टैक्सी-ऑटो सर्विस मुहैय्या कराने वाली कंपनी ओला का कहना है कि भारत में ई-कारों के आने में वक़्त लगेगा। नागपुर में ई-टैक्सी सर्विस के लिये पायलट प्रोजक्ट के निराशाजनक नतीजों के बाद ओला ने यह बयान दिया है। कंपनी के मुताबिक इस दिशा में क्रांति के लिये पहले ई-बाइक और ई-रिक्शॉ को बढ़ावा मिलना चाहिये। ओला का कहना है कि टैक्सी ड्राइवरों ने शिकायत की है कि बैटरी-स्वॉपिंग की सुविधा न होने की वजह से चार्ज़िंग में उनका बहुत वक़्त ज़ाया हो रहा है और खर्च कमाई से अधिक है।
उधर उद्योगपति रतन टाटा ने ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिये ओला में निवेश किया है हालांकि उनके द्वारा निवेश की गई रकम कितनी है यह पता नहीं है लेकिन कहा जा रहा है कि रतन टाटा यह कदम बताता है कि ई-वाहनों में उन्हें पूरा यकीन है। इसी साल टाटा ने यह फैसला किया था कि अब नये कोयला बिजलीघरों में कंपनी निवेश नहीं करेगी।
फेम – II कम कर सकता है करीब एक तिहाई कार्बन उत्सर्जन : CII
भारतीय उद्योग महासंघ (CII) का कहना है कि अगले 10 सालों में वाहनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में करीब 37% की कमी लाई जा सकती है और ऊर्जा की खपत 64% कम हो जायेगी। CII का अनुमान सरकारी आकलन पर आधारित है जिसके मुताबिक अहर तय लक्ष्य हासिल किये गये को कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता घटेगी। अभी भारत कच्चे तेल का 83.7% आयात करता है।
हालांकि उद्योग महासंघ ने ई-वाहनों से जुड़े घरेलू उत्पादन कारखानों को बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। भारत ने 2017 में 15 करोड़ डॉलर ( करीब 1055 करोड़ रुपये) की लीथियम-ऑयन बैटरियां चीन से आयात की लेकिन अब वह अपनी बैटरी बनाने की यूनिट्स लगा कर आयात घटाने की दिशा में काम कर रहा है।
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