नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से कहा है कि वह 6 महीने के भीतर देश भर में 175 एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाये। कोर्ट ने सीपीसीबी से कहा कि वह सभी राज्यों को प्रदूषण बोर्डों के साथ ऑनलाइन मीटिंग करके इस काम को मॉनीटर करे। सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने जुलाई में सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों को करीब 520 करोड़ रुपये अदा किये। कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब बोर्ड ने अदालत से कहा कि 173 स्टेशन पहले ही लगाये जा चुके हैं। इससे पहले कोर्ट ने सरकार के नेशनल क्वीन एयर प्रोग्रान (NCAP) की कड़ी आलोचना करते हुये उसे मॉडिफाई करने को कहा था। इस प्रोग्राम के तहत करीब 120 शहरों का प्रदूषण 2024 तक 30% जाना है।
दिल्ली की हवा ने शुद्धता को लेकर बनाया रिकॉर्ड
अगस्त महीने के आखिरी दिन दिल्ली की हवा ने कम प्रदूषण का रिकॉर्ड बना दिया। 31 अगस्त को एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 41 दर्ज किया गया। साल 2015 में मॉनिटरिंग शुरू होने के बाद से यह वायु प्रदूषण का सबसे कम नापा गया स्तर है। जानकारों का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन और हवा की बेहतर रफ्तार के कारण प्रदूषण इस स्तर तक गिरा। दिल्ली में अगस्त के महीने में 364.8 मिमी बारिश हुई जो सामान्य से 305 मिमी अधिक है। राजधानी में इतनी बरसात पिछले 12 साल में कभी नहीं हुई। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का कहा है कि 2015 के बाद से पहली बार इस महीने “गुड” एयर क्वॉलिटी स्तर के चार दिन रिकॉर्ड किया गया। इस साल अब तक “गुड” एयर क्वॉलिटी वाले 5 दिन दर्ज हो चुके हैं। इस साल 28 मार्च को “गुड” एयर क्वॉलिटी रिकॉर्ड की गई थी।
कोयला बिजलीघरों के लिये समय सीमा 2 साल बढ़े: ऊर्जा मंत्री
ज़हरीला गैस उगलते कोयला बिजलीघरों से फिलहाल राहत मिलती नहीं दिख रही है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने देश में 322 पावर प्लांट यूनिटों के लिये इमीशन नियंत्रक लगाने की समय सीमा 2022 तक बढ़ाने की मांग की है। कोयला बिजलीघरों को पहले ही दो बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। देश की कुल 448 यूनिटों को सल्फर नियंत्रक टेक्नोलॉजी लगानी है जिसे FGD या फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन कहा जाता है। यह तकनीक कोयला बिजलीघरों की चिमनियों से निकलने वाली SO2 को नियंत्रित करती है। अब तक केवल 4 यूनिटों में एफजीडी लगा है और 130 यूनिटों ने इसके लिये टेंडर दिये हैं। बिजली कंपनियां इस महंगी तकनीक को लगाने में शुरू से अनमनी दिख रही हैं।
नवजात फेफड़ों पर प्रदूषण की मार का असर किशोरावस्था पर
एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि 1 साल तक के नवजात शिशुओं को अगर यूरोपियन यूनियन के तय मानकों से कम प्रदूषित वातावरण में भी रखा जाये तो किशोरावस्था में उनके फेफड़ों की क्षमता पर असर पड़ता है। यूरोपियन यूनियन के हिसाब से पीएम 2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिये जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से यह 10 से कम होना चाहिये। नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के लिये यूरोपियन यूनियन और डब्लू एच ओ दोनों के मानक बराबर हैं।
शोधकर्ताओं ने जर्मनी के म्यूनिक और वेसेल में 915 बच्चों पर अध्ययन किया। बच्चों के फेफड़ों की ताकत मापने के लिये 6 साल, 10 साल और 15 साल की उम्र में टेस्ट किये गये। फिर अध्ययन के नतीजों की तुलना प्रदूषण के उस स्तर से की गई जहां यह बच्चे तब रह रहे थे जब इनकी उम्र 1 साल से कम थी। इस तुलना में इस बात का भी खयाल रखा गया कि बच्चे के मां-बाप धूम्रपान करते थे या नहीं। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वयस्क जिन्होंने बचपन में इससे भी कम प्रदूषण झेला था उन्हें अस्थमा होने की संभावना अधिक थी।
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