दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरेंमेंट (सीएसई) ने अपनी एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें सरकार द्वारा 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी पर गंभीर सवाल खड़े किये गये हैं। रिपोर्ट कहती है कि ये खदानें खोली गईं तो घने जंगलों के विनाश के साथ इस क्षेत्र में रह रहे आदिवासियों का विस्थापन होगा। इस स्टडी में इस बिन्दु को रेखांकित किया गया है कि 2015 के बाद से अब तक नई खानों के लिये 19,000 हेक्टेयर जंगल काटे गये हैं जिससे 10 लाख पेड़ों का सफाया हुआ और दस हज़ार परिवारों को विस्थापित होना पड़ा।
सीएसई की रिपोर्ट ये भी कहती है कि जंगलों को खनन करने या न करने के लिये “गो” और “नो-गो” में बांटने की प्रक्रिया भी एक धोखा है क्यों मापदंडों को आखिरी वक्त में बदला जा सकता है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “साल 2020 में जिन 41कोयला ब्लॉक्स को नीलाम किया जा रहा है वह पहले नो-गो श्रेणी में थे।”
कोयले के बजाय प्राकृतिक गैस की ओर झुका बांग्लादेश
कोयले की खपत में एशिया के अव्वल देशों में शामिल बांग्लादेश अपने 13 गीगावॉट के बिजलीघरों को कोयले की बजाय एलएनजी यानी प्राकृतिक गैस से चलाने की सोच रहा है। बांग्लादेश के पावर, एनर्जी और मिनरलस रिसोर्सेज मंत्रालय का कहना है कि कोयला आधारित प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पास रहे क्योंकि उन पर कोई पैसा लगाना नहीं चाहता। दूसरी ओर नेचुरल गैस में कार्बन इमीशन और खर्च दोनों ही कम है। माना जा रहा है कि बांग्लादेश साल 2030 तक अपना गैस आयात दोगुना कर देगा। हालांकि बांग्लादेश फिलहाल 5,371 मेगावॉट के निर्माणधीन कोयला बिजलीघरों पर काम जारी रखेगा। महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश के कोयला बिजलीघरों चीन के कई बैंकों से कर्ज़ मिल रहा है।
आर्कटिक के पास नॉर्वे करेगा ऑयल ड्रिलिंग
उत्तरी ध्रुव के पास ऑयल ड्रिलिंग का नॉर्वे सरकार का फैसला काफी पर्यावरण के लिये घातक हो सकता है। नॉर्वे ने इस पर अंतिम दौर की तैयारी पूरी कर ली है जिसमें जनता से राय ली जाती है। नॉर्वे यहां 9 जगह तेल ड्रिलिंग की योजना बना रहा है जो न केवल आर्कटिक का संवेदनशील पर्यावरण के लिये बुरा है बल्कि खुद कंपनियों के लिये भी घाटे का सौदा हो सकता है।
ग्रीनपीस, नेचर एंड यूथ, डब्लू डब्लू एफ और फ्रेंड्स ऑफ अर्थ नॉर्वे जैसे संगठनों ने नॉर्वे सरकार से कहा है कि वह इस फैसले पर फिर से विचार करे क्योंकि ऑर्कटिक में तेल फैला तो उसे साफ करने की कोई टेक्नोलॉजी अभी उपलब्ध नहीं है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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