बाढ़ के साथ विनाशकारी सूखे का भी ख़तरा

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - February 26, 2021

बढ़ेंगे विनाशकारी सूखे: नई रिसर्च कहती है कि आने वाले दशकों में देश में ‘फ्लैश ड्राउट’ की घटनाओं में तेज़ी आयेगी।Photo:YODA Adaman on Unsplash

भारत में ‘फ्लैश-ड्राउट’ बढ़ने की चेतावनी

आईआईटी गांधीनगर का एक नया शोध बताता है कि सदी के अंत तक भारत में फ्लैश ड्राउट की घटनायें तेज़ी से बढ़ेंगी और इनमें 7-8 गुना तक वृद्धि होगी। फ्लैश ड्राउट उस सूखे को कहा जाता है जो असामान्य तेज़ी से पड़े और कृषि, इकोसिस्टम और पानी की उपलब्धता को खत्म कर देता है। ग्रीन हाउस गैस इमीशन का तेज़ी से बढ़ता ग्राफ इस हालात के ज़िम्मेदार कारणों में एक है। 

मोंगाबे इंडिया में छपी एक ख़बर के मुताबिक भारत में साल 1986, 2001 और 2015 में फ्लैश ड्राउट की घटनायें हुईं थी। साल 2001 में उत्तर और मध्य भारत प्रभावित हुआ जबकि 1986 और 2015 में फ्लैश ड्राउट की मार अधिक व्यापक थी और इससे फसल उत्पादन पर असर पड़ा। पिछले साल की गई एक स्टडी बताती है फ्लैश ड्राउट के कारण हर साल 10-15% धान और मक्के की फ़सल प्रभावित होती है। 

अमेरिका में बर्फीले तूफान ने की बत्ती गुल 

दक्षिण और मध्य अमेरिका को जमा देने वाली बर्फीले तूफान की वजह से लाखों लोगों को बिजली गुल होने की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। करीब 15 लाख लोगों को इस तूफान की वजह से चौकन्ना रहने को कहा गया था। इसने सड़कों पर आइस बिखेर कर फिसलन भरी एक पर्त छोड़ थी कई इलाकों में लोगों को बर्फ पर गाड़ी चलाने का अनुभव भी नहीं था। जलवायु परिवर्तन को इसके आइस स्टोर्म के पीछे वजह माना जा रहा है। इससे पहले की गई रिसर्च के मुताबिक गर्म हो रहे उत्तरी ध्रुव के कारण जेट स्ट्रीम जेट धारायें कमज़ोर हो रही हैं। जेटधारायें वायुमंडल में तेज़ गति से बहने वाली धारायें हैं  और जब ये कमज़ोर होती हैं तो अधिक ठंडी हवा दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर जा रही हैं। 

उत्पादन क्षेत्र: ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 20 साल में 120% बढ़ा 


दुनिया में स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम, पेट्रोकैमिकल और पल्प बनाने के कारण हो रहा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 1995 और 2015 के बीच 120% बढ़ा है।   उत्सर्जन में यह बढ़ोतरी उत्पादन वृद्धि के समानुपाती है जो इस दौरान 15% से 23% बढ़ा।   चीन में इस दौरान यह बढ़ोतरी 75% हुई। साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित यह  शोध बताता है कि इस कुल वृद्धि में 40% उत्सर्जन निर्माण क्षेत्र में और 40% वाहन, मशीनरी और दूसरे उत्पाद बनाने में हुआ।


क्लाइमेट नीति

परवाह नहीं: राज्य प्रदूषण बोर्ड के आदेश के बाद भी एनटीपीसी ने तपोवन प्रोजेक्ट में मलबा निस्तारण को ठीक करने के लिये कुछ नहीं किया। अब उस पर 58 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है।

उत्तराखंड: एनटीपीसी पर 58 लाख का जुर्माना

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राष्ट्रीय ताप बिजली कॉर्पोरेशन यानी एनटीपीसी को पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के लिये 57 लाख 96 हज़ार का जुर्माना भरने को कहा है। एनटीपीसी पर यह जुर्माना उत्तराखंड में उसके निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगाड़ प्रोजेक्ट में पर्यावरण नियमों की अवहेलना के लिये लगाया गया था। एनटीपीसी ने राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की ओर से पास किये गये आदेश के खिलाफ एनजीटी में अपील की थी।  

महत्वपूर्ण है कि यह एनटीपीसी का वही हाइड्रो प्रोजेक्ट है जिसमें पिछली 7 फरवरी को आई आपदा के बाद कई मज़दूरों की मौत हुई है। इस आपदा के बाद साफ दिखा कि एनटीपीसी के निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में सुरक्षा मानकों का भारी कमी थी। पिछले साल राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पाया था कि यहां मलबा निस्तारण (मक डम्पिंग) के लिये बनाई गई साइट्स पर मलबे का ढलान 60 डिग्री से अधिक है जो कि तय मानकों से दुगना है। राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पिछले साल जून में साइट का दौरा करने के बाद एनटीपीसी को मलबा निस्तारण यार्ड्स को दुरुस्त करने को कहा था लेकिन अक्टूबर में किये गये दौरे में पाया कि कंपनी ने कोई एहतियाती कदम नहीं उठाये।  

एनर्जी निवेश संधि में ग्रीन सुधार पर यूरोपीय सदस्य एकमत नहीं 

यूरोपीय सदस्य एनर्जी इन्वेस्टमेंट ट्रीटी (ईसीटी) के तहत ग्रीन सुधारों पर एकमत नहीं हैं। फ्रांस और स्पेन इस संधि में ऐसे कड़े सुधारों के हिमायती जिसके तहत जीवाश्म ईंधन कंपनियां उन देशों पर मुआवजे के लिये मुकदमा कर सकती हैं जहां क्लाइमेट पॉलिसी से उनके मुनाफे पर चोट पड़ती हो। हालांकि पूर्वी यूरोपीय देश ऐसे बदलावों का विरोध कर रहे हैं। थिंक टैंक ओपन एक्सपी के मुताबिक अगर कंपनियां ऐसे मुकदमे करेंगी – जर्मनी की कंपनी आरडब्लूई पहले ही नीदरलैंड सरकार पर 140 करोड़ यूरो का मुकदमा कर चुकी है – तो आम आदमी पर 1.3 लाख करोड़ यूरो का बोझ पड़ेगा। इसमें से आधा बोझ यूरोपीय यूनियन उठायेगी। 

यूरोपीय यूनियन की नीति में गैस प्रोजेक्ट के लिये “सीमित छूट”

कोरोना महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी पैकेज में यूरोपीय देशों ने भले ही उन प्रोजेक्ट को बाहर रखने की कोशिश की हो जो जलवायु परिवर्तन का कारण हों लेकिन गैस प्रोजेक्ट्स में निवेश के लिये सीमित गुंजाइश रखी है।  जहां ब्रेसेल्स आर्थिक रिकवरी फंड को 2050 तक पूरे यूरोप को क्लाइमेट न्यूट्रल बनाने की दिशा में लगाने की बात कर रहा है वहीं जर्मनी और पोलैंड नेचुरल गैस को जीवाश्म ईंधन और साफ ऊर्जा के बीच एक ‘पुल’ के तौर पर इस्तेमाल करने को कह रहे हैं। 

क्लाइमेट पर ग़लत जानकारी रोकने के लिये फेसबुक का अभियान


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक ने घोषणा  की है कि वह क्लाइमेट चेंज पर दी जा रही गलत जानकारी पर ‘मिसइन्फोर्मेशन’ लेबल लगायेगा। अभी उसका यह ट्रायल यूनाइटेड किंगडम में शुरू होगा। फेसबुक का क्लाइमेट साइंस इंफोर्मेशन सेंटर, फैक्ट चेक के दावों के साथ यह लेबलिंग करेगा। हालांकि यह कैसे किया जायेगा इसकी प्रक्रिया अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि अल्गोरिदम का वही तरीका फेसबुक इस्तेमाल करेगा जो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान किया गया।


वायु प्रदूषण

कोयला जला रही फैक्ट्रियां मुंबई की हवा में बढ़ा रही हैं प्रदूषण

मुंबई में फैक्ट्रियां हर साल 20 लाख टन कोयला जलाती हैं और वायु प्रदूषण के मामले में समुद्र तट पर होने का जो फायदा शहर को मिलता है वह कोयले के इस धुंयें से खत्म हो रहा है। यह बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की एक स्टडी में सामने आयी है। सीएसई ने शहर के  कुल 13 में से 4 औद्योगिक इलाकों का अध्ययन किया जिनमें ट्रांस-थाने क्रीक (टीटीसी), तालोजा, अंबरनाथ और दोम्बीवली शामिल हैं। ये चारों इलाके मुंबई मेट्रोपोलिटन रीज़न का 70% क्षेत्र कवर करते हैं। 

ट्रांस थाने क्षेत्र सबसे अधिक प्रदूषित है और इस अध्ययन में शामिल क्षेत्रों के कुल प्रदूषण का 44%  यहीं से होता है। इसके बाद तालोजा का नंबर है जो 26% के लिये ज़िम्मेदार है। सीएसई ने अपनी स्टडी में कई सुझाव दिये हैं जिनमें फैक्ट्रियों द्वारा कोयले के बजाय अपेक्षाकृत साफ ईंधन का इस्तेमाल प्रमुख सिफारिश है।  

यूपी में हैं 10 में से 8 सबसे प्रदूषित शहर 

देश के 99 शहरों से लिये गये रियल टाइम आंकड़ों पर आधारित एक अखिल भारतीय शोध में कहा गया है  देश के छोटे और तेज़ी से बढ़ रहे कस्बे अब वायु प्रदूषण के नये केंद्र (हॉट स्पॉट) बन रहे हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वॉयरेंन्मेंट (सीएसई) की स्टडी में कहा गया है कि ऐसे 10 सबसे प्रदूषित शहरो में 8 उत्तर प्रदेश में हैं जिनमें गाज़ियाबाद और बुलंदशहर लिस्ट में टॉप करते हैं। कुल 99 शहरों – जिनका अध्ययन किया गया – में से 23 उत्तर भारत के हैं। दिल्ली इस लिस्ट में पांचवें नंबर पर है और राजस्थान का भिवाड़ी दसवें नंबर पर है। साफ हवा के मामले में मैसुरु की एयर क्वॉलिटी सर्वोत्तम पाई गई जिसके बाद सतना (मध्यप्रदेश) और कोच्ची (केरल) का नंबर था। 

भारत में पिछले साल वायु प्रदूषण से मरे 1.2 लाख लोग 

पिछले साल यानी 2020 में भारत में कुल 1.2 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरे। यह बात एयर क्वालिटी (आई क्यू एयर -IQAir) डाटा के ग्रीनपीस दक्षिणपूर्व एशिया विश्लेषण में सामने आयी है। इन मौतों में से 54,000 तो दिल्ली में ही हुईं| | रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण भारत में 2 लाख करोड़ की आर्थिक क्षति का कारण बना। ‘ग्रीनपीस: कॉस्ट टु  इकनोमि ड्यू टु एयर पॉल्युशन  एनालिसिस 2021’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट  ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन एडवाइड़री ग्रुप (ग्रीनपीस) द्वारा जारी की गई है। 

दुनिया भर में अधिक आबादी वाले पांच बड़े शहरों – दिल्ली, मैक्सिको सिटी, साओ पाउलो, शंघाई और टोक्यो में लगभग 1.6 लाख  लोगों की मौत का कारण पीएम 2.5 है। रिपोर्ट में वास्तविक समय स्वास्थ्य प्रभाव और फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) से आर्थिक लागत का अनुमान लगाने के लिए ऑनलाइन उपकरण -‘कॉस्ट एस्टीमेटर’ का इस्तेमाल किया गया|  यह उपकरण ग्रीनपीस दक्षिण पूर्व एशिया, आईक्यूएयर और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के बीच सहयोग से लगाया गया है। 

दिल्ली-एनसीआर : ईंट के भट्ठों पर प्रदूषण बोर्ड करेगा फैसला 

भारत की हरित अदालत एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने दिल्ली-एनसीआर इलाके में उन्हीं ईंट के भट्टों को सीमित रूप से चलाने की अनुमति दी है जिनमें ज़िक-जैक टेक्नोलॉजी लगी हो। कोर्ट ने कहा है कि मार्च औऱ जून के बीच कितने और कौन से भट्ठे चलेंगे ये इस बात पर निर्भर है कि उस क्षेत्र में हवा की क्वॉलिटी कैसी है। जब हवा ज़हरीली  क्वॉलिटी की नहीं होगी तभी भट्ठे चल सकेंगे। राज्य और केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की संयुक्त समिति इस बात का फैसला करेगी कि किन ईंट भट्टों को चलने दिया जाये। 


साफ ऊर्जा 

नई ज़िम्मेदारी: टेरी के वर्तमान महानिदेशक अजय माथुर के कंधों पर अब होगी अंतर्राष्ट्रीय सोलर अलायंस की ज़िम्मेदारी Photo – PRNewsWire

भारत के अजय माथुर होंगे ISA के नये महानिदेशक

ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) के प्रमुख रह चुके और दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यू (टेरी) के वर्तमान महानिदेशक डॉ अजय माथुर अब अंतर्राष्ट्रीय सोलर अलायंस यानी आएसई के प्रमुख चुने हैं। माथुर 15 मार्च से यह कार्यभार संभालेंगे। डॉ अजय माथुर जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार पैनल के सदस्य भी हैं ग्रीन क्लाइमेट फंड के सदस्य रह चुके हैं। 

पेरिस संधि के बाद आईएसए का गठन 2015 में भारत और फ्रांस के सहयोग से हुआ था जिसका मकसद साल 2030 तक पूरी दुनिया में सोलर एनर्जी के लिये 1 लाख करोड़ अमरीकी डॉलर का निवेश इकट्ठा करना है। अभी 70 से अधिक देश सोलर अलायंस के सदस्य हैं और संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य देश इसमें शामिल हो सकता है। अलायंस का मुख्यालय गुरुग्राम में है।   

बीएसईएस डिस्कॉम ने 3000 से अधिक रूफ टॉप मीटर लगाये। 

दिल्ली में छतों पर सोलर पैनलों को बढ़ावा देने की मुहिम में बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड ने कुल 3,000 रूफटॉप सोलर नेट मीटरिंग कनेक्शन लगाये हैं जो कि 106 मेगाव़ॉट पीक (Mwp) सोलर लोड से जुड़े हैं। इन वितरण कंपनियों की योजना वित्तीय साल 2021-22 में कुल 1000 रूफ-टॉप सोलर कनेक्शन लगाने की है। ये वितरण कंपनियां कहती हैं कि रिहायशी या व्यवसायिक दोनों ही इमारतों में उपभोक्ता रूफटॉप सोलर नेट मीटरिंग को बड़े स्तर पर अपना रहे हैं। 

बीएसईएस के आंकड़ों के मुताबिक घरेलू सेगमेंट में सबसे अधिक रूफटॉप सोलर नेट मीटिरिंग कनेक्शन (1,805) हैं। इसके बाद शैक्षिक संस्थान (655), व्यवसायिक (554), औद्योगिक (35) और दूसरे (91) हैं। 

आंध्र प्रदेश: पवन ऊर्जा कंपनियां पहुंची हाइकोर्ट 

आंध्र प्रदेश में अब विन्ड एनर्ज़ी कंपनियों ने हाइकोर्ट में अपील की है और कहा है कि मार्च 2020 से राज्य की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) ने उन्हें भुगतान नहीं किया है। राज्य सरकार ने सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों के साथ बिजली खरीद अनुबंध पर फिर से समझौता करने की कोशिश की है। जगन मोहन रेड्डी सरकार ने उनकी पूर्ववर्ती सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा है कि पहले बहुत अधिक दरों पर समझौता किया था।   

साल 2019 में अन्त में कोर्ट ने तय किया था कि वितरण कंपनियां सभी पवन ऊर्जा कंपनियों को रु 2.43 की दरों से भुगतान करे। यह विन्ड एनर्जी के लिये रिकॉर्ड कम कीमतें थीं। लेकिन अब इन कंपनियों का कहना है कि अंतरिम दरों पर भी पिछली मार्च से उनको भुगतान नहीं हो पाया है।


बैटरी वाहन 

तिपहिया में तेज़ी: दिल्ली सरकार के ‘स्विच दिल्ली’ अभियान के तहत बिक बैटरी वाहनों में तिपहिया की संख्या सबसे अधिक है। Photo –The New Indian Express

“स्विच दिल्ली” के तहत बिके सबसे अधिक तिपहिया वाहन

राजधानी में “स्विच दिल्ली” अभियान के तहत साढ़े पांच हज़ार से अधिक तिपहिया बैटरी वाहन बेचे जा चुके हैं। यह बैटरी वाहनों की श्रेणी में सबसे बड़ी सेल है।  इस योजना के तहत नारा है “दिल्ली के ग्रीन वॉरियर” और दिल्ली सरकार सभी बैटरी तिपहिया वाहनों पर 30,000 रुपये की सब्सिडी (- पहले यह छूट सिर्फ ई-रिक्शा को मिल रही थी -) दे रही है लेकिन अब यह बैटरी चालित ई-कार्ट लोडर्स और ई-ऑटो को भी दी जा रही है।  अनुमान है कि बैटरी वाहन चलाने से सालाना खर्च भी  29,000  रुपये कम हो जाती है। आंकड़े बताते हैं कि ई-रिक्शा चालक करीब 33% सालाना खर्च बचा रहे हैं। 

दिल्ली, जयपुर और आगरा के बीच चलेंगी आधुनिक बसें 

भारत की ताप बिजली कंपनी एनटीपीसी नेशनल गो इलैक्ट्रिक कैंपेन के तहत दिल्ली, आगरा और जयपुर के बीच हाइड्रोजन फ्यूल सेल बसें चलायेगी।  माना जा रहा है कि इन बसों को चलाने में सालाना खर्च परम्परागत बसों के मुकाबले करीब 30,000 रुपये कम होगा।  इस प्रोजेक्ट के उद्घाटन में केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह भी मौजूद थे जिन्होंने कहा कि सरकार अगले 4-5 महीनों में ग्रीन हाइड्रोजन की खरीद शुरू करेगी। 

मॉस्को: 2030 तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट होगा पूरी तरह इलैक्ट्रिक 

मॉस्को की सभी बसें साल 2030 तक पूरी तरह इलैक्ट्रिक हो जायेंगी क्योंकि यहां प्रशासन जल्द से जल्द पेट्रोल और डीज़ल वाहनों से निजात पाना चाहता है। इससे शहर में इलैक्ट्रिक बसों की संख्या 600 से बढ़कर 2000 हो जायेगी। शहर में बना ट्राम नेटवर्क भी बिजली से चलेगा। रूस के 10% इलैक्ट्रिक वाहन मॉस्को में ही हैं और यहां एक यूनिवर्सिटी ने लीथियम आयन बैटरियों को रीसाइकिल करने का अभिनव तरीका भी खोज निकाला है जिसमें – एक क्रायोजिनिक वैक्यूम से  – “बिना किसी विस्फोट का खतरा उठाये” महंगी धातु निकाल ली जाती है।  


जीवाश्म ईंधन

अडानी को झटका: लंदन स्थित जानी-मानी बीमा कंपनी ट्रैवलर यूरोप ने कहा है कि वह अडानी के कार्माकोल प्रोजेक्ट को कवर नहीं करेगी।Photo:Jinomono Media on Unsplash

अडानी के कोयला खनन को कवर नहीं करेगा लंदन का बड़ा बीमा ग्रुप

लंदन के बीमा और पुनर्बीमा सिंडिकेट लॉयड्स ऑफ लंदन ट्रैवलर यूरोप ने घोषणा की है कि वो अडानी कार्माकल कोल माइन के कोयला खनन के प्रोजेक्ट  को कवर नहीं करेगा। यह घोषणा लॉयड्स की बदली रणनीति का परिणाम है जिसने 2020 तक इस बात पर चुप्पी साध रखी थी कि वह कोल माइनिंग को सपोर्ट करेगा या नहीं। हालांकि एलायंज़ और म्यूनिक आरई जैसी बड़ी बीमा कंपनियों ने इस पर अपना रुख साफ कर दिया था। 

उधर करीब 1 करोड़ टन सालाना कोयला क्षमता वाली अडानी की कार्माकल खदान पर ऑस्ट्रेलिया में काम चल रहा है और वह इसी साल उत्पादन शुरू कर देगी लेकिन लॉयड्स की घोषणा के बाद 1 जनवरी 2022 से इसके कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन को बीमा कवर नहीं मिलेगा। 

साफ ऊर्जा पर पीछे हट रहा है मैक्सिको 

अंग्रेज़ी अख़बार गार्डियन में छपी ख़बर से खुलासा हुआ है कि लैटिन अमेरिकी देश मैक्सिको क्लाइमेट एक्शन पर उल्टी दिशा में चल रहा है। वैसे मैक्सिको ने पहले क्लीन एनर्जी सेक्टर में अच्छा काम किया है लेकिन नये राष्ट्रपति एंड्रेस मैन्युअल लोपेज़ – जिनका लोकप्रिय नाम एम्लो है – का साफ ऊर्जा के लिये ठंडा रुख अब इस देश को पीछे धकेल रहा है।  मैक्सिको के नये ‘एनर्ज़ी सिक्योरिटी विज़न’ के तहत  पुराने कोयला प्लांट्स को फिर से शुरू करने के अलावा कई छोटी खदानों से लाखों टन कोयला खरीदा जायेगा ताकि स्थानीय लोगों की नौकरियों का बचाया जा सके। 

हालांकि मैक्सिको अब अपनी वर्तमान जलविद्युत परियोजनाओं को चमकायेगा  ताकि मैक्सिको का कुल ऊर्जा में 35% साफ ऊर्जा का संकल्प पूरा हो सके। यह नया बदलाव इसलिये चौंकाने वाला है क्योंकि 2015 में हुई पेरिस संधि के बाद विकासशील देशों में मैक्सिको पहला देश था जिसने क्लाइमेट एक्शन प्लान जमा किया था लेकिन कहा जा रहा है कि एम्लो इस बात के लिये कृतसंकल्प हैं कि वह 80% सरकारी खर्च जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट्स को फिर से शुरु करने में खर्च करेंगे। यह जी-20 देशों और अमेरिका की नई सरकार के इरादों के खिलाफ है।

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