आईआईटी गांधीनगर का एक नया शोध बताता है कि सदी के अंत तक भारत में फ्लैश ड्राउट की घटनायें तेज़ी से बढ़ेंगी और इनमें 7-8 गुना तक वृद्धि होगी। फ्लैश ड्राउट उस सूखे को कहा जाता है जो असामान्य तेज़ी से पड़े और कृषि, इकोसिस्टम और पानी की उपलब्धता को खत्म कर देता है। ग्रीन हाउस गैस इमीशन का तेज़ी से बढ़ता ग्राफ इस हालात के ज़िम्मेदार कारणों में एक है।
मोंगाबे इंडिया में छपी एक ख़बर के मुताबिक भारत में साल 1986, 2001 और 2015 में फ्लैश ड्राउट की घटनायें हुईं थी। साल 2001 में उत्तर और मध्य भारत प्रभावित हुआ जबकि 1986 और 2015 में फ्लैश ड्राउट की मार अधिक व्यापक थी और इससे फसल उत्पादन पर असर पड़ा। पिछले साल की गई एक स्टडी बताती है फ्लैश ड्राउट के कारण हर साल 10-15% धान और मक्के की फ़सल प्रभावित होती है।
अमेरिका में बर्फीले तूफान ने की बत्ती गुल
दक्षिण और मध्य अमेरिका को जमा देने वाली बर्फीले तूफान की वजह से लाखों लोगों को बिजली गुल होने की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। करीब 15 लाख लोगों को इस तूफान की वजह से चौकन्ना रहने को कहा गया था। इसने सड़कों पर आइस बिखेर कर फिसलन भरी एक पर्त छोड़ थी कई इलाकों में लोगों को बर्फ पर गाड़ी चलाने का अनुभव भी नहीं था। जलवायु परिवर्तन को इसके आइस स्टोर्म के पीछे वजह माना जा रहा है। इससे पहले की गई रिसर्च के मुताबिक गर्म हो रहे उत्तरी ध्रुव के कारण जेट स्ट्रीम जेट धारायें कमज़ोर हो रही हैं। जेटधारायें वायुमंडल में तेज़ गति से बहने वाली धारायें हैं और जब ये कमज़ोर होती हैं तो अधिक ठंडी हवा दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर जा रही हैं।
उत्पादन क्षेत्र: ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 20 साल में 120% बढ़ा
दुनिया में स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम, पेट्रोकैमिकल और पल्प बनाने के कारण हो रहा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 1995 और 2015 के बीच 120% बढ़ा है। उत्सर्जन में यह बढ़ोतरी उत्पादन वृद्धि के समानुपाती है जो इस दौरान 15% से 23% बढ़ा। चीन में इस दौरान यह बढ़ोतरी 75% हुई। साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित यह शोध बताता है कि इस कुल वृद्धि में 40% उत्सर्जन निर्माण क्षेत्र में और 40% वाहन, मशीनरी और दूसरे उत्पाद बनाने में हुआ।
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