Newsletter - May 25, 2023
एआई से उपजा ख़तरा : कितना पानी पी जाता है आपका चैट-जीपीटी
आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस पर आधारित चैट जीटीपी भले ही आपकी समस्याओं का शॉर्टकट हो लेकिन इसका प्रयोग पर्यावरण पर बहुत भारी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि 20 से 50 सवालों के जवाब देने में यह चैटबॉट आधा लीटर पानी चट कर जाता है क्योंकि न केवल इस पूरी प्रक्रिया में बहुत बिजली खर्च होती है बल्कि विशालकाय मशीनों को ठंडा रखना पड़ता है।
मानवता के सामने आसन्न जल संकट को देखते हुए पर यह धरती के लिए बहुत बड़ा संकट है। डाउट टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड के शोधकर्ताओं ने पहली बार आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद से चलने वाले इन प्रोग्रामों द्वारा होने वाली पानी की खपत का अध्ययन किया है।
आपके सवालों के जवाब देने के लिए यह चैट बॉट बहुत बड़े डेटा प्रोसेसिंग सेंटरों और भीमकाय सर्वरों पर निर्भर होता है जो क्लाउड कम्प्यूटेशन के ज़रिए सूचना का आदान-प्रदान और गणना तथा विश्लेषण करते हैं। शोध में कहा गया है कि अमेरिका में माइक्रोसॉफ्ट के अत्याधुनिक डेटा केंद्रों में जीपीटी-3 एआई प्रोग्राम के लिए करीब दो सप्ताह में सात लाख लीटर पानी की खपत की गई जो करीब 370 बीएमडब्ल्यू कारों के निर्माण में होने वाली पानी की खपत के बराबर है।
एशिया में में तो इन डेटा सेंटरों में पानी की खपत तीन गुना बढ़ जाएगी क्योंकि यहां के डेटा सेंटर अमेरिका की तुलना में कम दक्ष हैं। इस बीच यह बहस तेज़ हो रही है कि क्या चैट जीपीटी जैसी सुविधाएं देने वाली एमआई टेक्नोलॉजी जलवायु परिवर्तन का हल है या संकट बढ़ायेगी। इस पर हिन्दी और अंग्रेज़ी में आप विस्तार से कार्बनकॉपी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं
यूपी, राजस्थान और दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हीटवेव, बौछारों से कुछ जगह राहत
इस हफ्ते की शुरुआत देश के कई हिस्सों में लू के थपेड़ों यानी हीटवेव के साथ हुई। सोमवार को यूपी के झांसी में अधिकतम तापमान 46.5 डिग्री पहुंच गया जबकि राजस्थान के चुरू में यह 45.7 डिग्री तक जा पहुंचा। वहीं झारखंड के डाल्टनगंज में सोमवार को तापमान 44.9 डिग्री रहा। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में अधिकतम तापमान 45 के आसपास रहा। पिछले साल मार्च में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया था और इस साल फरवरी का तापमान 122 साल का अधिकतम रहा। पिछले महीने महाराष्ट्र में एक सरकारी कार्यक्रम लू लगने से कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई थी। मौसम विभाग ने बढ़ते तापमान को देखते हुये अलर्ट जारी किया।
हालांकि देश के कई हिस्सों में तेज़ हवा और बौछारों से राहत भी मिली। कुछ जगह बारिश के साथ ओले भी गिरे।
साल 2027 तक धरती की तापमान वृद्धि हो जाएगी 1.5 डिग्री पार
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक अब यह बिल्कुल निश्चित है कि अगले 5 सालों में ही धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री का बैरियर पार कर जाएगी। हालांकि अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि 1.5 डिग्री की यह तापमान वृद्धि फिलहाल स्थाई नहीं होगी (यानी तापमान आगे फिर गिर सकता है) लेकिन पूर्व औद्योगिक स्तर (प्री इंडस्ट्रियल लेवल) से 1.5 डिग्री की इस अल्पकालिक तापमान वृद्धि के भी विनाशकारी परिणाम होंगे और इनमें से कई प्रभाव स्थाई और अपरिवर्तनीय होंगे।
पिछले साल भी डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में ऐसी चेतावनी दी गई थी लेकिन ताज़ा रिपोर्ट में तापमान वृद्धि की यह निश्चितता बढ़ी है। पिछले साल प्रकाशित रिपोर्ट में जहां 2027 तक इस तापमान वृद्धि की 50% संभावना थी वहीं अब नए अध्ययन में यह सुनिश्चितता 66% हो चुकी है।
अंधाधुंध जल दोहन और भूमि उपयोग में बदलाव से पानी की गुणवत्ता प्रभावित
दुनिया भर में भूमि उपयोग के बदलते पैटर्न से कई हाइड्रोलोजिकल बदलाव हो रहे हैं। अमेरिका की मैसिच्यूसेट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का अध्ययन बता रहा है कि जंगलों को सड़कों और पार्किंग स्थलों में बदलने से परिदृश्य बदल रहा है और हमारा जल विज्ञान प्रभावित हो रहा है। ज़मीन के सीमेंट और कंक्रीट से भरने और दलदली और आर्द्र भूमि को नष्ट करने से जो पानी पहले रिस कर भू-जल का रूप लेता था वह नहीं हो रहा और शहरी बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही हैं। अधिकांश पानी अब बहकर नदियों में जा रहा है।
जल वैज्ञानिक बताते हैं कि 2021 तक कंक्रीट निर्मित भूमि (सड़क, पार्किंग आदि) 75 प्रतिशत बढ़ जाएंगी। इससे अपवाह (रन-ऑफ) में भारी वृद्धि होगी। इससे भूमि की सतह पर फास्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा में 12 से 13 प्रतिशत वृद्धि होगी जो काफी हानिकारक हो सकता है।
कूनो में संकट जारी, तीन चीतों के बाद अब शावक की मौत हुई
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों पर संकट कम नहीं हो रहा। तीन चीतों की मौत के बाद अब एक शावक की मौत हो गई है जिसका जन्म मार्च में हुआ था।
वन विभाग का कहना है कि ऐसा लगता है कि नामीबिया से लाई गई मादा चीता ज्वाला के इस शावक की मौत कमजोरी के कारण हुई है, क्योंकि यह जन्म से ही कमजोर था। इस मौत के बाद पिछले दो महीनों में कूनो में चीतों की मौत की संख्या चार हो गई है।
नामीबियाई चीतों में से एक ‘साशा’ ने 27 मार्च को गुर्दे से संबंधित बीमारी के कारण दम तोड़ दिया था, जबकि दक्षिण अफ्रीका से लाए गए ‘उदय’ की मौत 13 अप्रैल को हो गई थी। वहीं मादा चीता ‘दक्षा’ की संभोग के प्रयास के दौरान एक नर चीते के साथ हिंसक झड़प में आई चोटों से 9 मई को मौत हो गई थी।
मार्च में ‘ज्वाला’ ने चार शावकों को जन्म दिया था। 1947 में आखिरी चीते के शिकार के बाद पहली बार भारतीय धरती पर चीता शावकों का जन्म हुआ था।
कुछ दिनों पहले ही चीतों की मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह राजनीति से ऊपर उठकर चीतों को राजस्थान में स्थानांतरित करने पर विचार करे।
इटली में पिछले 100 साल की सबसे भयानक बाढ़, 13 लोगों की मौत
भारी बारिश के कारण इटली पिछले 100 साल की सबसे विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहा है जिसमें उसके 40 से अधिक शहर और कस्बे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यहां इस कारण उत्तरी इमीलिया रोमाग्ना प्रांत में 13 लोगों की मौत हो गई है और 20,000 से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। देश की 23 से अधिक नदियों ने भारी जलप्रवाह के कारण अपने तटबंध तोड़ दिए हैं और करीब 300 जगह भूस्खलन हुए हैं।
चीतों को राजस्थान भेजने पर विचार करे सरकार: सुप्रीम कोर्ट
कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह राजनीति से ऊपर उठकर चीतों को राजस्थान में स्थानांतरित करने पर विचार करें।
कोर्ट के ऐसा कहने के कुछ ही दिनों बाद कूनो पार्क में एक चीता का शावक की भी मौत हो गई। नामीबिया से लाई गई चीता ‘ज्वाला’ ने मार्च में चार शावकों को जन्म दिया था जिनमें से एक की मंगलवार को मौत हो गई।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि विशेषज्ञों की रिपोर्ट और लेखों से ऐसा लगता है कि कूनो में इतनी बड़ी संख्या में चीतों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, और सरकार उन्हें अन्य अभयारण्यों में शिफ्ट करने पर विचार कर सकती है।
कूनो पार्क में इससे पहले तीन चीतों की मौत हो चुकी है। कुछ दिनों पहले एक नर चीते के हिंसक हमले में मादा चीता ‘दक्षा’ मारी गई थी। उससे पहले मार्च में ‘साशा’ की मौत किडनी इंफेक्शन की वजह से हुई थी, और अप्रैल में नर चीते ‘उदय’ ने इलाज के दौरान कार्डियक अरेस्ट से दम तोड़ दिया था।
दिलचस्प बात यह रही कि कोर्ट के चीता विशेषज्ञों के लेखों और रिपोर्ट्स के उल्लेख पर सरकारी वकील ने कहा कि भारत में कोई चीता विशेषज्ञ नहीं हैं क्योंकि 1947-48 में चीते देश से विलुप्त हो गए थे। इसके बाद बेंच ने शीर्ष अदालत द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति से कहा कि वह 15 दिनों के भीतर नेशनल चीता टास्कफ़ोर्स को अपने सुझाव दे ताकि उन पर विचार किया जा सके।
यूएई ने कॉप28 में सीरिया को बुलाया, पश्चिमी देश हो सकते हैं नाराज़
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) द्वारा कॉप28 जलवायु शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है। यूएई का कहना है कि वह दुबई में होनेवाले सम्मलेन में “हर किसी को मौका देना” चाहता है।
लेकिन यूएई इस कदम से पश्चिमी नेताओं के बीच बेचैनी बढ़ सकती है, जो सीरिया की सरकार के साथ राजनयिक संबंधों को बहाल करने का कड़ा विरोध कर रहे हैं।
एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कॉप 28 की लीडर्स समिट जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर असद का स्वागत किया जाना चाहिए।
युद्ध अपराध और मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप झेल रहे सीरियाई राष्ट्रपति के साथ कुछ अरब देश संबंध सामान्य करने का प्रयास कर रहे हैं। यूएई के इस निमंत्रण को इन्हीं प्रयासों के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
किरेन रिजिजू को मिला पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एकल कार्यभार
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को नया पृथ्वी विज्ञान मंत्री बनाया गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत मौसम, जलवायु, समुद्र विज्ञान के साथ भूकंप विज्ञान से जुड़ी जानकारियां एकत्र करना और शोध आते हैं। एक अलग मंत्रालय के रूप में इस मिनिस्ट्री की स्थापना साल 2006 में हुई थी और अब तक साइंस और टेक्नोलॉज़ी मंत्री को ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का कार्यभार दिया जाता रहा, लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि इस दो मंत्रालयों के अलग-अलग मंत्री हैं।
यूपीए के कार्यकाल में कपिल सिब्बल, पृथ्वीराज चौहान, पवन बंसल, वयालार रवि, विलासराव देशमुख और जलपाल रेड्डी विज्ञान और तकनीकी के साथ इस मंत्रालय को संभाल चुके हैं और एनडीएक के कार्यकाल में डॉ हर्षवर्धन और अब जितेन्द्र सिंह इन मंत्रालयों के प्रभारी रहे लेकिन रिजिजू पहले शख्स हैं जिनके पास केवल पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ही होगा। साइंस और टेक्नोलॉजी अभी जितेन्द्र सिंह के पास है।
फ्रांस ने छोटी अवधि की उड़ानों पर लगाया प्रतिबंध
फ्रांस ने औपचारिक रूप से छोटी अवधि की घरेलू उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। एयरलाइन उत्सर्जन कम करने के उद्देश्य से फ्रांस ने उन मार्गों की उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है जिन्हें ढाई घंटे से कम समय में ट्रेन से तय किया जा सकता है।
यह नियम ज्यादातर पेरिस और क्षेत्रीय हब जैसे नैनटेस, ल्योन और बोर्डो के बीच हवाई यात्राओं पर लागू होगा, लेकिन कनेक्टिंग फ्लाइट्स पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा।
नए कानून में यह अनिवार्य किया गया है कि इन मार्गों पर रेल सेवाएं बढ़ाई जाएं जो यात्रियों की बढ़ी संख्या के लिए पर्याप्त हों और उनकी जरूरतों को पूरा कर सकें।
यह कदम फ्रांसीसी राजनेताओं के निजी जेट से होनेवाले उत्सर्जन को कम करने के तरीकों पर हो रही बहस के बीच आया है।
2018-2021 के बीच भारत ने देखा मानव-जनित वायु प्रदूषण का सबसे खराब स्तर
नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुए एक नए अध्ययन के अनुसार 2018-2021 के दौरान भारत में मानव-प्रेरित वायु प्रदूषण का अधिकतम स्तर दर्ज किया गया। इस अवधि में कोविड महामारी के पहले, उसके दौरान और बाद के काल को भी शामिल किया गया है, जिसमें देश में परिवहन, औद्योगिक बिजली संयंत्रों, हरित स्थान की गतिशीलता और अनियोजित शहरीकरण के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि देखी गई।
अध्ययन के अनुसार, मानवजनित क्रियाएं जलवायु परिस्थितियों और वायुमंडलीय परिवर्तनों का सबसे प्रमुख कारण हैं और भारत इस तरह की गतिविधियों से सबसे अधिक प्रभावित देश है। शोध में यह भी कहा गया कि ग्रामीण वायु प्रदूषण के संदर्भ में कृषि अपशिष्ट जलाना भी एक मुख्य कारण है। अध्ययन के दौरान दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और चेन्नई में वायु प्रदूषण के मामलों में भारी उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया।
मुंबई : एक ही दशक में वायु प्रदूषण की शिकायतें 237% बढ़ीं
एक नए शोध के अनुसार, मुंबई में सिर्फ एक दशक में वायु प्रदूषण की शिकायतें साढ़े चार गुना बढ़ीं है। ‘स्टेटस ऑफ़ सिविक इश्यूज इन मुंबई, 2023’ नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से 2022 के बीच वायु प्रदूषण की शिकायतों में 30% का इज़ाफ़ा हुआ। 2018 से 2022 के बीच 1,491 प्रदूषण संबंधी शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें से 1,075 मुंबई के वायु प्रदूषण से संबंधित थीं।अध्ययन में कहा गया है कि 2021 में कुल 424 प्रदूषण की शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें से 343 वायु प्रदूषण को लेकर थीं। यह आंकड़ा पांच वर्षों में सबसे अधिक है। मुंबई की हवा की बिगड़ती गुणवत्ता से परेशान स्थानीय निवासियों ने अधिकारियों को पत्र भी लिखा है।
अध्ययन में बताया गया है कि पिछले साल बीएमसी द्वारा जारी मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान (एमसीएपी) में शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार के उपायों और योजनाओं को सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन उनको प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि बीएमसी को पिछले एक साल में उसके द्वारा सुझाए गए कई उपायों को लागू करने पर विचार करना चाहिए था।
कम, मध्यम आय वाले देशों में समय से पहले जन्मे शिशुओं की 91% मौतें वायु प्रदूषण से संबंधित हैं: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
उच्च आय वाले देश जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदान देते हैं, लेकिन जिन लोगों ने संकट में सबसे कम योगदान दिया है, वे इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में समय से पहले जन्मे शिशुओं की मृत्यु के 91% मामले वायु प्रदूषण से संबंधित होते हैं।
डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और पार्टनरशिप फॉर मैटरनल न्यू बोर्न एंड चाइल्ड हेल्थ द्वारा हाल ही में जारी ‘बॉर्न टू सून: डिकेड ऑफ एक्शन ऑन प्रीटरम बर्थ‘ रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के असंख्य प्रभावों पर प्रकाश डालती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन — प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से — गर्भावस्था के परिणामस्वरूप मृत जन्म, समय से पहले जन्म और गर्भकालीन आयु को छोटा कर रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन गर्मी, तूफान, बाढ़, सूखा, जंगल की आग और वायु प्रदूषण के अलावा खाद्य असुरक्षा, जल या खाद्य जनित बीमारियों, वेक्टर जनित बीमारियों, प्रवासन, संघर्ष और स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन के माध्यम से गर्भावस्था को प्रभावित करता है।
यह बात नई नहीं है की वायु प्रदूषण का शिशुओं पर भारी प्रभाव पड़ता है, लेकिन इनका ज़्यादा प्रभाव उन देशो पर पड़ना जिनका जलवायु परिवत्रन में कम से कम योगदान है चिंताजनक है।
मॉनसून के कमज़ोर होने का रिश्ता वायु प्रदूषण से
पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिरोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से पता चलता है कि पिछले एक दशक में वायु प्रदूषण और पश्चिमी तट पर बढ़ती चक्रवाती गतिविधि के कारण मॉनसून कमज़ोर हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और अन्य मानव जनित कारकों से ऊष्णदेशीय भाग में मॉनसून के प्रवाह पर बड़ा असर पड़ा रहा है और पश्चिमी तट पर चक्रवात बढ़ रहे हैं। चक्रवातों की संख्या बढ़ेगी तो इससे मॉनसून कमज़ोर होगा क्योंकि इसका रिश्ता भारत के ऊपर नमी के कम होने से हैं।
अमेरिकी वायु प्रदूषण मामले में बीपी को करना होगा $40 मिलियन का भुगतान
बड़ी तेल कंपनी बीपी अमेरिकी उत्सर्जन कानूनों का उल्लंघन करने के लिए $40 मिलियन जुर्माना अदा करेगी। कंपनी अपनी इंडियाना स्थित तेल रिफाइनरी में कैंसर पैदा करने वाले बेंजीन और अन्य हानिकारक प्रदूषकों के उत्सर्जन को रोकने में विफल रही। बीपी को अपने 134 साल पुराने इंडियाना रिफाइनरी में बेंजीन प्रदूषण को रोकने के लिए महत्वपूर्ण निवेश करने की आवश्यकता होगी, जिसका संघीय नियमों का उल्लंघन करने का इतिहास रहा है।
बीपी, न्याय विभाग और पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के बीच समझौते के लिए भी कंपनी को वायु प्रदूषण को कम करने के लिए नई तकनीक और अन्य पूंजीगत सुधारों में लगभग $197 मिलियन का निवेश करने की आवश्यकता होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन सुधारों से बेंजीन में प्रति वर्ष अनुमानित सात टन, अन्य खतरनाक वायु प्रदूषकों में प्रति वर्ष 28 टन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक उत्सर्जन में 372 टन की कमी आने की उम्मीद है।
भारत 172 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल कर चुका है, और लगभग 129 गीगावाट क्षमता या तो कार्यान्वित की जा रही है या उसके लिए निविदा जारी कर दी गई है, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा सचिव बी एस भल्ला ने एक मीटिंग के दौरान बताया।
भल्ला ने नवीकरणीय ऊर्जा योजनाओं और क्षमताओं की प्रगति पर राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समीक्षा बैठक के दौरान कहा कि इससे कुल स्थपित क्षमता 301 गीगावाट हो जाएगी जिसके बाद देश को गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट ऊर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य पाने के लिए लगभग 200 गीगावाट क्षमता और जोड़नी होगी।
हालांकि भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा था, इस लिहाज से यह प्रगति थोड़ी धीमी है।
बैठक में रूफटॉप सौर कार्यक्रम और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन सहित विभिन्न कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा की गई।
बिजली की कमी के बीच सौर ऊर्जा पर चल रहे हैं ग्रामीण अस्पताल और क्लिनिक
भारत के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति जायदातर असंतुलित रहती है, ऐसे में यहां स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर रूफटॉप सोलर का प्रयोग बढ़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही गर्मी और चरम मौसम की घटनाओं के कारण नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग और भी जरूरी होता जा रहा है।
पब्लिक हेल्थकेयर सेंटर में एक सौर प्रणाली स्थापित करने में लगभग 7 लाख रुपए का खर्च आता है, जिसमें लेड-एसिड बैटरी शामिल है, जिसमें रात में उपयोग करने के लिए बिजली स्टोर की जाती है। छोटे क्लिनिक्स के लिए यह लागत लगभग 1.6 लाख रुपए आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह पीएचसी अब पावर ग्रिड से केवल बैकअप के रूप में जुड़े रहते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था हेल्थ केयर विदाउट हार्म के एक अध्ययन के अनुसार, अस्पतालों और क्लिनिक्स में स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग करने से इस क्षेत्र में उत्सर्जन में कटौती करने में मदद मिलती है, जो वैश्विक उत्सर्जन में लगभग 4.4% का योगदान करता है।
इस साल की पहली तिमाही में 6,000 प्रतिशत से अधिक बढ़ा सौर निर्यात
भारत ने वर्ष 2023 की पहली तिमाही (Q1) में 479 मिलियन डॉलर (39.5 बिलियन रुपए) के सोलर सेल और मॉड्यूल का निर्यात किया। वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, यह पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 6,293 प्रतिशत अधिक है।
वहीं पिछली तिमाही के आंकड़ों को देखें तो निर्यात 371 मिलियन डॉलर (लगभग 30.6 बिलियन रुपए) बढ़ा, यानि 29% की वृद्धि। जनवरी से मार्च के दौरान, 99.2% के मार्केट शेयर के साथ सबसे अधिक निर्यात अमेरिका को किया गया। अमेरिका को किया जाने वाला निर्यात काफी बढ़ रहा है क्योंकि उसने चीन से आयातित सौर घटकों को प्रतिबंधित कर दिया है।
इस तिमाही के दौरान भारत ने 812 मिलियन डॉलर (करीब 67.06 बिलियन रुपए) के सोलर सेल और मॉड्यूल का आयात किया, जो पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 34% कम है।
9 घंटे तक केवल नवीकरणीय ऊर्जा पर चला पूरा स्पेन
नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में तेजी से बढ़ रहे देशों के बीच स्पेन का स्थान अग्रणी है। और पिछले हफ्ते इसने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।
एक रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को सुबह 10 बजे से शाम 7 बजे तक स्पेन की पूरी ऊर्जा हरित स्रोतों जैसे पवन, सौर और हाइड्रोपावर से उत्पन्न हुई।
स्पेन पहले भी केवल नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा आपूर्ति करता रहा है, लेकिन यह पहली बार है जब इतने लंबे समय तक देश की पूरी ऊर्जा सप्लाई हरित स्रोतों से की गई।
नवीकरणीय ऊर्जा — विशेष रूप से फोटोवोल्टिक — की तेजी से स्थापना के कारण स्पेन अब अपनी अधिक से अधिक ऊर्जा जरूरतों को अक्षय ऊर्जा से पूरा करने में सफल हो रहा है। इससे न केवल देश का कार्बन फुटप्रिंट काफी हद तक कम हो रहा है, बल्कि दिन के समय ऊर्जा की कीमतें भी घट रही हैं।
भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों पर दी जाने वाली सब्सिडी बिक्री मूल्य का 40% से घटाकर 15% कर दिया है। नई दर 1 जून के बाद पंजीकृत किए गए वाहनों पर लागू होगी। सरकार की मंशा अधिक संख्या में वाहनों को सब्सिडी प्रोग्राम के अंतर्गत लाने की है। लेकिन इससे इलेक्ट्रिक स्कूटर्स की प्रति यूनिट कीमतें काफी बढ़ोत्तरी होगी।
केंद्र सरकार ₹10,000 करोड़ की फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया (फेम इंडिया) प्रोत्साहन योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ‘प्रति यूनिट सब्सिडी मौजूदा स्तर पर जारी रहती तो इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिए आवंटित राशि अगले दो महीनों में समाप्त हो जाती’। वहीं मौजूदा प्रतिशत घटा कर करीब 10 लाख अतिरिक्त वाहनों को फेम इंडिया के तहत सब्सिडी दी जा सकती है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार यदि सब्सिडी में कटौती से फेम योजना अधिक समय तक चल सकती है तो ईवी उद्योग इसके लिए तैयार है।
लेकिन एक अन्य रिपोर्ट में ईवी उद्योग से जुड़े लोगों के हवाले से कहा गया कि सरकार का यह कदम बाजार के लिए हानिकारक हो सकता है जो इलेक्ट्रिक मोबिलिटी बढ़ाने में बाधा उत्पन्न करेगा।
भारत में ईवी की संख्या 1%, धीमी गति के कारण कंपनियां नहीं कर पा रहीं प्रगति
एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में ईवी की बिक्री दर (हल्के वाहनों की कुल बिक्री के मुकाबले) केवल 1.1 प्रतिशत रही, जबकि एशिया के लिए यह औसत दर 17.3 प्रतिशत थी।
चीन 27.1 प्रतिशत की दर के साथ पहले पायदान पर है, और धीमी शुरुआत के बाद दक्षिण कोरिया में भी यह दर 10.3 प्रतिशत हो चुकी है।
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटो बाजार होने की वजह से भारत में इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों के लिए संभावनाएं बहुत हैं, लेकिन धीमी घरेलू प्रगति के कारण कोई भी भारतीय कंपनी निकट भविष्य में वैश्विक स्तर पर बड़ी हिस्सेदारी लेती नहीं दिख रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘पिछले 12 महीनों में देश में ईवी की बिक्री कुल हल्के वाहनों की बिक्री का 2 प्रतिशत से भी कम रही’। साथ ही भारत में 90 प्रतिशत ईवी दोपहिया और तिपहिया वाहन हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘पर्याप्त चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी ईवी अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा’।
भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश में 30 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक होने चाहिए।
इलेक्ट्रिक कारें करती हैं अधिक उत्सर्जन: आईआईटी शोध का दावा
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि इलेक्ट्रिक कारें, हाइब्रिड और पारंपरिक अंतर्दहन इंजन (आईसीई) कारों की तुलना में 15 से 50 प्रतिशत अधिक ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण, उपयोग और स्क्रैपिंग से हाइब्रिड और पारंपरिक इंजन कारों की तुलना में कहीं अधिक उत्सर्जन होता है। अध्ययन में कहा गया कि बैटरी वाहनों को चार्ज करना होता है, और फ़िलहाल देश में 75% से अधिक बिजली जीवाश्म ईंधन से बनती है।
रिपोर्ट में बताया गया है की हाइब्रिड कारें सबसे अधिक इको-फ्रेंडली होती हैं और यदि सरकार साफ़ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना चाहती है तो उसे हाइब्रिड कारों पर अधिक टैक्स को कम करना चाहिए।
वहीं इंग्लैंड में एक अध्ययन में पाया गया है कि बैटरी पैक के अतिरिक्त वजन के कारण भारी इलेक्ट्रिक कारों के टायरों से अधिक सूक्ष्म कण निकलकर वातावरण में प्रवेश करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि विकसित देशों में इस प्रकार का नॉन-एग्जॉस्ट उत्सर्जन, पेट्रोकेमिकल कारों के एग्जॉस्ट उत्सर्जन से अधिक होगया है।
हालांकि अमेरिका की एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) इन दावों को ख़ारिज करती है। ईपीए के अनुसार भले ही इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण में अधिक उत्सर्जन होता हो, लेकिन टेल-पाइप एमिशन न होने के कारण वह अपने जीवनकाल में पारंपरिक कारों की अपेक्षा कम उत्सर्जन होता है। वहीं चार्जिंग में होने वाले उत्सर्जन को कम करने का सीधा उपाय यह है कि बिजली का उत्पादन गैर-जीवाश्म स्रोतों से किया जाए।
ईवी निर्माण क्षमता बढ़ाने के लिए वाहन निर्माता 10 अरब डॉलर का निवेश करेंगे
देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारतीय वाहन निर्माता करीब 10 अरब डॉलर या 80,000 करोड़ रुपए का निवेश करने पर विचार कर रहे हैं।
यह निवेश ईवी इकोसिस्टम के लिए एक मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने के लिए किया जाएगा। पूंजीगत व्यय का आवंटन ईवी के लिए ग्रीन फील्ड प्लांट बनाने, बैटरी प्लांट में बेहतर शोध और निवेश और ग्रिड चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को सपोर्ट करने के लिए किया जाएगा।
इस योजना का उद्देश्य है लगभग बीस लाख वाहनों का निर्माण करने की क्षमता विकसित करना, जिसे 2030 तक बढ़ाकर 72-75 लाख यूनिट की क्षमता तक पहुंचाया जाए। दोपहिया वाहन निर्माता लगभग 1.5 करोड़ ईवी मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी विकसित करने की तैयारी कर रहे हैं।
देश में 50 लाख लोग कोयले पर निर्भर, जस्ट ट्रांजिशन की चर्चा पर जोर देगा भारत
भारत जी-20 वार्ताओं में ‘जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन’ की चर्चा पर जोर देगा, क्योंकि देश में 50 लाख लोग सीधे तौर पर कोयला खनन पर निर्भर हैं।
केंद्रीय कोयला सचिव अमृत लाल मीणा का कहना है कि “अनुमान के अनुसार, लगभग 50 लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोयला खनन गतिविधियों में लगे हुए हैं, खासकर पूर्वी भारतीय राज्यों में। ‘जस्ट ट्रांजिशन’ की बात करते समय इस चुनौती का ध्यान रखना बहुत जरूरी है”।
मीणा ने कहा कि आगे का रास्ता तय करते समय इन 50 लाख लोगों की आजीविका, वैकल्पिक रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा से जुड़े सवालों पर विचार करना होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार ने 30 ऐसी खदानों की पहचान की है जहां कोयला खनन समाप्त हो गया है, और कंपनियों ने इन्हें बंद करने की 2-3 वर्षीय प्रक्रिया शुरू कर दी है।
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि देश में कोयला उत्पादन बढ़ता रहेगा और 2040 में चरम पर पहुंचेगा, जिसके बाद यह स्थिर हो जाएगा।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सचिव एंटोनियो गुटेरेश ने विकासशील देशों से 2050 तक नेट-जीरो पर पहुंचने का प्रयास करने का आग्रह किया था। वहीं पिछले दिनों संपन्न हुई बैठक में जी7 देशों ने भी सभी ‘प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं’ से 2050 तक नेट-जीरो पर पहुंचने को कहा है।
जी7 ने कहा 2050 तक नेट-जीरो पर पहुंचे सभी देश, लेकिन खुद ही हैं लक्ष्यों से पीछे
अमीर देशों के जी7 समूह के नेताओं ने सभी सरकारों से कहा है कि वह अधिक से अधिक 2050 तक नेट-जीरो पर पहुंचने का लक्ष्य रखें।
अनौपचारिक रूप से भारत और चीन जैसे देशों को संबोधित करते हुए जी7 देशों ने सभी ‘प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं’ से आग्रह किया है कि वह कॉप28 सम्मलेन से पहले अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को इस प्रकार संशोधित कर लें कि वह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के अनुकूल हों।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जी7 की इस घोषणा में समता के मूल्य की अनदेखी की गई है, और जलवायु संकट में कम योगदान देने वाले विकासशील देशों से भी ऐतिहासिक प्रदूषकों की तरह ही उत्सर्जन में कटौती करने की मांग की जा रही है।
क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुसार, जी7 देशों में से किसी के भी लक्ष्य या नीतियां 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के अनुकूल नहीं हैं।
जी7 देशों ने रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न ऊर्जा संकट का हवाला देते हुए न केवल ‘अस्थाई रूप से’ गैस सेक्टर में अधिक निवेश का समर्थन किया, बल्कि क्लाइमेट फाइनेंस के मुद्दे पर भी कोई खास घोषणा नहीं की, और केवल यही कहा कि विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर की जो सहायता 2020 तक की जानी थी उसे इस साल पूरा करने का प्रयास किया जाएगा।
प्रमुख जीवाश्म ईंधन कंपनियां सालाना दें 209 बिलियन डॉलर का मुआवजा: शोध
एक नए अध्ययन ने दुनिया की शीर्ष 21 जीवाश्म ईंधन कंपनियों को उनके दशकों के उत्सर्जन से होनेवाले नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि उन्हें हर साल 209 बिलियन डॉलर क्षतिपूर्ति के रूप में उन समुदायों को देने चाहिए जिन्हें जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक हानि हुई है।
वन अर्थ जर्नल में प्रकाशित इस अभूतपूर्व स्टडी के अनुसार बीपी, शेल, एक्सॉनमोबिल, टोटल, सऊदी आरामको और शेवरॉन उन 21 सबसे बड़े प्रदूषकों में से हैं जो 2025 से 2050 के बीच होने वाली जलवायु आपदाओं जैसे सूखा, जंगल की आग, समुद्र के स्तर में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने के लिए जिम्मेदार हैं।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी प्रमुख हरजीत सिंह ने डाउन टू अर्थ पत्रिका से कहा कि ‘दशकों से यह जीवाश्म ईंधन कंपनियां जलवायु संकट में इनकी प्रमुख भूमिका से ध्यान हटाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाती रही हैं’।
हालांकि इस रिपोर्ट में विकासशील देशों की सरकारी कंपनियों, जैसे कोल इंडिया लिमिटेड, को उनके उत्सर्जन के लिए भुगतान करने से ‘छूट’ दी गई है।
हरजीत ने कहा कि ‘पश्चिमी जीवाश्म ईंधन कंपनियों के विपरीत, कोल इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियों को छूट देना आवश्यक था क्योंकि भारत में कोयले का उपयोग लाखों गरीब लोगों की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया जाता है’।
रूसी कच्चे तेल के उत्पादों की रीसेल के सवाल पर भारत ने यूरोपीय संघ को लगाई फटकार
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूसी कच्चे तेल से रिफाइंड ईंधन जैसे डीजल बनाकर यूरोप को बेचने के लिए भारत पर कार्रवाई की मांग का जवाब देते हुए कहा कि यूरोपीय संघ पहले अपने नियमों और रेगुलेशन की ओर देखे।
यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने कहा था कि भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल से प्राप्त रिफाइंड उत्पादों को यूरोपीय देशों को बेचे जाने पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि पश्चिमी देश अब रूसी ऊर्जा उद्योग पर और कड़े प्रतिबंध लगाना चाहते हैं।
जवाब में जयशंकर ने कहा कि उन्हें पहले यूरोपीय संघ परिषद का रेगुलेशन 833/2014 देखना चाहिए, जिसके अनुसार रूसी कच्चे तेल को थर्ड वर्ल्ड देशों में ट्रांसफॉर्म किए जाने के बाद रूसी नहीं समझा जाता है।