जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने सोमवार को एक सिंथेसिस रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के इस पैनल द्वारा छठे आकलन चक्र की अंतिम रिपोर्ट है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के भौतिक प्रभावों से काफी नुकसान हो रहा है, जो कुछ मामलों में अपरिवर्तनीय है।
रिपोर्ट में इस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की गई है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना शायद अब संभव नहीं है। लेकिन यह भी कहा गया है कि यदि इस दशक में तत्काल और कड़े कदम उठाए जाएं तो इस लक्ष्य को पाया जा सकता है हालांकि इसकी संभावना 50 प्रतिशत होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए सभी क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में त्वरित, लगातार और भारी कटौती की आवश्यकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमारे पास सिर्फ इस दशक का समय है। यदि कार्रवाई में देरी होती है, तो हानि और क्षति बढ़ती जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि यह रिपोर्ट हमारा मार्गदर्शन करती है कि कैसे हम 1.5 डिग्री की सीमा को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए बड़े प्रयासों की जरूरत होगी।
उन्होंने कहा की यह रिपोर्ट हर देश को एक पुकार है कि वह बड़े पैमाने पर और तेजी से जलवायु प्रयासों को सही दिशा दें। हमें सभी मोर्चों पर जलवायु कार्रवाई की जरूरत है, उन्होंने कहा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग का एक बहुत बड़ा कारण अभी भी जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध और लगातार बढ़ता प्रयोग है।
इसलिए गुटेरेश ने अमीर देशों से से आग्रह किया कि वह 2040 तक और विकासशील देश 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन पर पहुंचने का प्रयास करें। उन्होंने आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के 38 सदस्य देशों से आग्रह किया कि 2030 तक कोयले को फेजआउट करें। और अन्य देशों से 2040 तक कोयले का प्रयोग पूरी तरह बंद करने का अनुरोध किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की 50 प्रतिशत संभावना के लिए, दुनिया को 2020 के बाद 500 अरब टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित नहीं करना चाहिए। मौजूदा वार्षिक उत्सर्जन के हिसाब से यह सीमा दस साल से भी कम समय में पार हो जाएगी।
आईपीसीसी ने कहा कि उत्सर्जन अब तक कम होना शुरू हो जाना चाहिए, और 2030 तक इसे लगभग आधा करना होगा।
संयुक्त राष्ट्र पैनल ने यह भी कहा कि 2019 के स्तरों के मुकाबले 2035 तक उत्सर्जन में 60 प्रतिशत की कटौती होनी चाहिए। यह एक नया लक्ष्य है जो पिछली रिपोर्टों में नहीं दिया गया था।
रिपोर्ट में समाधान के तौर पर जलवायु-प्रत्यास्थी विकास पर जोर दिया गया है। उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों को अनुकूलन (एडॉप्टेशन) उपायों के साथ जोड़ने की बात भी की गई है।
आईपीसीसी के अध्यक्ष होसुंग ली ने कहा कि प्रभावी और न्यायसंगत क्लाइमेट एक्शन से न केवल हानि और क्षति कम होगी, बल्कि प्रकृति और लोगों को व्यापक लाभ भी होगा। “यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि अधिक महत्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन की तत्काल आवश्यकता है। यदि हम तुरंत कार्रवाई शुरू करें तो अभी भी हम अपना भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं,” उन्होंने कहा।
आईपीसीसी रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमित संसाधन, अपर्याप्त फाइनेंस, त्वरित कार्रवाई के प्रति उदासीनता, राजनैतिक प्रतिबद्धता की कमी आदि प्रभावी क्लाइमेट एक्शन के मार्ग में बड़ी बाधाएं हैं।
इसलिए अमीर देशों के लिए जरूरी है कि वह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता में आवश्यक बढ़ोत्तरी करें।
रिपोर्ट के 93 लेखकों में से एक अदिति मुखर्जी ने कहा कि क्लाइमेट जस्टिस महत्वपूर्ण है, “क्योंकि जिन लोगों ने जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान दिया है, वह इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं”।
“दुनिया की लगभग आधी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। पिछले एक दशक में अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में बाढ़, सूखे और तूफान से होने वाली मौतों की संख्या 15 गुना बढ़ी है,” उन्होंने कहा।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा कि आईपीसीसी की नई रिपोर्ट एक स्पष्ट चेतावनी है जिसे अनदेखा करने का सरकारों के पास कोई बहाना नहीं है।
उन्होंने कहा कि सरकारों को जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने के लिए तेजी से कार्य करना चाहिए और तेल, गैस और कोयले के किसी भी नए विस्तार को रोकना चाहिए।
“आईपीसीसी ने क्लाइमेट एक्शन का जो खाका प्रस्तुत किया है उसमें समाधानों की कमी नहीं है। सरकारों को ऐसे प्रयास तेज करने चाहिए जिनसे स्थानीय समुदायों को अपरिवर्तनीय जलवायु प्रभावों से बचाया जा सके।”
हालांकि ली ने कहा कि यह रिपोर्ट केवल एक मार्गदर्शक है और यह अलग-अलग देशों को तय करना है कि वह 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सहायता करने के लिए किस तरह के कदम उठाते हैं।
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