Vol 2, Jan 2023 | सिर्फ दो घंटे का वायु प्रदूषण भी कर सकता है आपको बीमार

Newsletter - January 28, 2023

किसानों को बेहतर सलाह देने के लिए 720 डीएएमयू लगाएगा मौसम विभाग। Photo: Damien du Toit/Wikimedia Commons

मौसम के बेहतर पूर्वानुमान के लिये 2025 तक पूरे देश में डॉप्लर वेदर रडार नेटवर्क

मौसम विभाग ने ऐलान किया है कि वह चरम मौसमी घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी के लिये अगले 3 साल में देश के भीतर 25 अतिरिक्त डॉप्लर वेदर रडार लगायेगा। इसके अलावा किसानों को बेहतर कृषि संबंधी सलाह देने के लिये 720 ज़िला एग्रो मौसमी यूनिट (डीएएमयू) भी लगायी जायेंगी। मौसम विभाग ने यह भी तय किया है कि कृषि-मौसम संबंधी सेवायें वर्तमान में 2,300 निकायों से बढ़ाकर 2025 तक 7,000 निकायों तक कर दी जायेगी। दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी को आने वाले दिनों में शहरी बाढ़ नियंत्रण सिस्टम के भीतर लाया जायेगा। 

दिल्ली में अंधाधुंध शहरीकरण से घटे जलस्रोत 

वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट (इंडिया) यानी डब्लू आर आई की ताज़ा रिसर्च में कहा गया है कि शहरीकरण और निर्माण क्षेत्र के फैलाव के कारण राजधानी के कई जलस्रोत खत्म हो गये हैं। डब्लू आर आई ने प्राकृतिक बुनियादी ढांचे पर शहरीकरण के प्रभावों का अध्ययन करने के लिये 10 शहरों को चुना। शोध में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर निर्माण के कारण राजधानी दिल्ली के जलस्रोत तेजी से सिकुड़ गये हैं। उपग्रह से ली गई तस्वीरों के अध्ययन से पता चला है कि साल 2000 से 2015 के बीच राजधानी के केंद्र से 20 किलोमीटर के दायरे में जलस्रोतों में 14 प्रतिशत की कमी आई है जबकि 20 से 50 किलोमीटर के दायरे में यह 23 प्रतिशत कम हुये हैं। 

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि निर्माण में इस वृद्धि के कारण भूजल के रीचार्ज की क्षमता भी घटी है और प्रतिदिन करीब 16.9 करोड़ लीटर वॉटर रीचार्ज का नुकसान हो रहा है। दूसरी ओर इस बीच जनसंख्या में 88 लाख की वृद्धि हुई जिससे पानी की मांग में बढ़ोतरी हुई। 

दुनिया के सबसे लम्बे नदी क्रूज़ से गंगा की डॉल्फिन को ख़तरा  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के बनारस से लेकर असम के डिब्रूगढ़ तक करीब 3200 किलोमीटर लम्बे रिवर क्रूज़ को लॉन्च किया। लेकिन जानकारों को शंका है कि दुनिया का यह सबसे लम्बा रिवर क्रूज़ गंगा की डाल्फिन के लिये घातक साबित होगा। एम वी गंगा नाम के तिमंज़िला क्रूज़  से वाराणसी से डिब्रूगढ़ तक की दूरी 51 दिन में तय की जानी है जिसके दौरान क्रूज़ 27 अलग-अलग रिवर सिस्टम से गुजरेगा। 

वाराणसी से करीब 30 किलोमीटर दूर कैथी गांव के पास गंगा और गोमती का संगम डॉल्फिन का बसेरा है और जहां पर विलुप्त हो रही इस मछली को एक सुरक्षित पनाहगार मिलती है। वन्यजीव विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां पर करीब तीन दर्जन डॉल्फिन है लेकिन यह क्रूज़ उनके अस्तित्व के लिये ख़तरा हो सकती है। 

अनुमान है कि गंगा में 3000 से अधिक डॉल्फिन हैं और ब्रह्मपुत्र में इनकी संख्या करीब 500 है। जीव विज्ञानी आर के सिन्हा ने अंग्रेज़ी अख़बार द गार्डियन से कहा कि डाल्फिन के सामने खड़े अन्य संकटों के अलावा यह क्रूज़ उनके वजूद के लिये एक और बड़ा ख़तरा खड़ा करेगा। 

बदलती जलवायु का पंजाब के फसल उत्पादन पर होगा गंभीर असर, बारिश ने तमिलनाडु में प्याज़ की फसल को किया तबाह 

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों का शोध बताता है कि जलवायु में हो रहे बदलाव राज्य में रबी और खरीफ की फसल उत्पादकता पर बुरा असर डालेगी। शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अगले 27 सालों में  मक्के की फसल 13.1 प्रतिशत घट सकती है।  जलवायु में बदलाव जारी रहे तो 2080 तक उत्पादकता को नुकसान 24 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। कपास के उत्पादन में साल 2050 तक 11.4 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है जो 2080 में बढ़कर 23.4 प्रतिशत हो जायेगी।  
उधर तमिलनाडु के कई ज़िलों में बारिश ने छोटे प्याज़ की फसल को चौपट कर दिया है। महत्वपूर्ण है कि राज्य के किसानों ने प्याज़ की फसल का रकबा इस साल बढ़ा दिया था क्योंकि सरकार ने घोषणा की थी कि छोटा प्याज़ उगाने वाले किसानों को बीस हज़ार प्रति हेक्टेयर की सब्सिडी दी जायेगी। लेकिन पिछले तीन महीनों से लगातार बारिश के कारण प्याज़ की फसल खेतों में सड़ने लगी और जो प्याज़ ठीक थी उसमें नमी के कारण क्वॉलिटी ख़राब होने का ख़तरा बहुत बढ़ गया है।

सोनम वांगचुक लद्दाख को बचाने के लिए पांच दिन का उपवास कर रहे हैं। Photo: Bhoomi College/Flickr

सोनम वांगचुक के समर्थन में कई लोग जुड़े

मैग्सेस पुरस्कार विजेता और शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने गणतंत्र दिवस के मौके पर लद्दाख को बचाने के लिए पांच दिन का उपवास शुरू किया। वांगचुक यह उपवास 18,000 फुट की ऊंचाई पर खारडुंगला दर्रे पर कर रहे हैं जहां इन दिनों रात के वक्त तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे पहुंच जाता है।  वांगचुक लद्दाख में अंधाधुंध टूरिज्म और विकास की योजनाओं के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं। उन्होंने सोलर पावर के महत्व को स्वीकारने और सौर ऊर्जा की दोहन की वकालत की है। 

वांगचुक के उपवास को पूरे देश में कई जगह से समर्थन मिला है। लद्दाख में टूरिज़्म के लिये साल के 5 महीनों के दौरान ही 6 लाख लोग आ रहे हैं जो कि वहां की आबादी की दोगुना संख्या है। अगर यह सैलानियों की संख्या पर्यावरण की परवाह किये बिना बढ़ती रही तो यहां के संवेदनशील इकोसिस्टम के लिये भारी नुकसान हो सकता है। 

धनौरी वेटलैंड: केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस 

ग्रेटर नोएडा स्थित धनौरी वेटलैंड को रामसर स्थल का दर्जा मिलने में “असामान्य देरी” के लिए एक पक्षीप्रेमी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और यूपी सरकार को क़ानूनी नोटिस भेजा है। 

पक्षीप्रेमी आनंद आर्या ने इस बाबत सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी अपील की है। वेटलैंड्स को रामसर स्थल का दर्जा एक अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के तहत दिया जाता है ताकि उनके संसाधनों का ज़िम्मेदारी से उपयोग हो और पक्षियों का संरक्षण किया जा सके।

आर्या ने अपनी नोटिस में धनौरी और अन्य वेटलैंड्स को अधिसूचित नहीं करने को “वैधानिक कर्तव्य का गंभीर उल्लंघन” और “संबंधित अधिकारियों द्वारा आपराधिक विश्वासघात” बताया है।

हालांकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुए पत्राचार से पता चलता है कि केंद्र ने 2019 के बाद से कई बार उत्तर प्रदेश वन विभाग और उत्तर प्रदेश वेटलैंड प्राधिकरण को धनौरी को रामसर साइट के रूप में नामित करने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने के संबंध में लिखा है, लेकिन यूपी सरकार ने अभीतक ऐसा प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया है।

धनौरी वेटलैंड सारस क्रेन की काफी बड़ी आबादी के साथ-साथ कम से कम 20,000 जलपक्षीयों और अन्य प्रजातियों का पोषण करते हैं। सारस क्रेन को वेटलैंड के ह्रास और घटाव से खतरा है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि रामसर का दर्जा मिलने मात्र से वेटलैंड को बचाने में मदद नहीं मिलेगी, और उन्हें वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत एक अधिसूचना के माध्यम से पूरी तरह से कानूनी सुरक्षा की जरूरत है।

हरित परियोजनाओं की पहचान के लिए नई नीति पर काम कर रहा है भारत: रिपोर्ट

भारत सरकार एक नई नीति पर नीति पर काम कर रही है जिसके तहत आर्थिक गतिविधियों और प्रौद्योगिकियों को सस्टेनेबल और नॉन-सस्टेनेबल श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाएगा

रायटर्स की एक रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि ऐसा हरित परियोजनाओं की वरीयता देने वाले निवेशकों की सुविधा के लिए किया जा रहा है।

इस प्रस्ताव के तहत, यूरोपीय संघ की ग्रीन टैक्सोनॉमी की तर्ज पर, भारत सरकार सतत गतिविधियों को प्रमाणित करेगी। सरकार को उम्मीद है कि ऐसा करने से इन योजनाओं की में निवेश बढ़ेगा और निवेशकों को भी सहूलियत होगी।

इस नीति के मसौदे पर नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी इस बारे में कोई भी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।  

रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सतत परियोजनाओं की पहचान करने और अन्य परियोजनाओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की लंबी प्रक्रिया में के ओर यह पहला कदम है।

सरकारी अनुमान के अनुसार देश को 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए 10 से 15 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।

बाढ़ से बेहाल कराची में एडाप्टेशन फंड का उपयोग करने में विफल रहा विश्व बैंक

माना जा रहा था कि विश्व बैंक का सॉलिड वेस्ट इमरजेंसी एंड एफिशिएंसी प्रोजेक्ट (स्वीप) पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची को बाढ़ की सालाना समस्या से मुक्त करेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

2017 के बाद से कराची में बाढ़ की समस्या साल दर साल बढ़ती ही गई, और पिछले साल तो शहर को ‘एक्सट्रीम फ्लड’ का सामना करना पड़ा।

कराची को बाढ़ से मुक्त करने में एक बड़ी समस्या है नालों में से कचरा हटाना, जिसके कारण बारिश का पानी ओवरफ्लो हो जाता है। उम्मीद थी कि स्वीप परियोजना से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार होगा, लेकिन इस पंचवर्षीय परियोजना के शुरुआती दो सालों में प्रगति के कोई आसार नहीं है। 100 मिलियन डॉलर के बजट का 3% से भी कम खर्च हुआ है, और बुनियादी ढांचे पर कोई भी खर्च नहीं किया गया है।

प्रोजेक्ट की पिछले दो सालों की प्रगति रिपोर्ट देखें तो ऐसा लगता है कि विश्व बैंक भी यह मानता है इस परियोजना में कोई खास काम नहीं हुआ है।

2020 में आई गंभीर बाढ़ के बाद सिंध की सरकार ने नालों की सफाई में तेजी लाने के लिए विश्व बैंक से संपर्क किया था। विश्व बैंक ने दिसंबर 2020 में इन प्रयासों को वित्तीय सहायता देने की घोषणा की, और कहा कि इससे “कराची में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं में सुधार” होगा, जिससे बाढ़ को कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन जमीनी हकीकत में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ।

दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई शहरों में हवा का स्तर फिर गिरने लगा है। Photo: Nvssafu photography/Wikimedia Commons

एमपीसीबी ने रखा सफर के मॉनिटरिंग स्टेशन हटाने का प्रस्ताव

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) ने एक चौंकाने वाले प्रस्ताव में कहा है कि सिस्टम ऑफ़ एयर क्वालिटी रिसर्च एंड फोरकास्टिंग (सफर) द्वारा संचालित नौ वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशनों को स्थानांतरित किया जाए।   

एचटी की एक रिपोर्ट के अनुसार एमपीसीबी का कहना है कि सफर की एक्यूआई रीडिंग मुंबई की परिवेशी वायु गुणवत्ता को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती है।

पिछले कुछ हफ्तों में मुंबई के एक्यूआई का स्तर लगातार ‘खराब’ से ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रहा है।

एचटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि सफर के नौ मॉनिटरिंग स्टेशनों के अलावा, एमपीसीबी खुद मुंबई में कम से कम 11 निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) संचालित करता है, जो आमतौर पर सफर के उपकरणों की तुलना में प्रदूषण का कम स्तर रिकॉर्ड करते हैं।

वहीं इसी से जुड़ी एक अन्य खबर में विशेषज्ञों ने मुंबई में प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत अधिक मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि 20 सक्रिय और पांच आगामी स्टेशनों के बावजूद, मुंबई महानगरीय क्षेत्र के विस्तार को देखते हुए यह संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।

दिल्ली-एनसीआर समेत देश के 34 शहरों में ख़राब रही वायु गुणवत्ता 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 27 जनवरी को जारी रिपोर्ट में देश के 190 में से तीन शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘बेहद खराब’ रहा

केवल आठ शहरों में हवा ‘बेहतर’ रही, जबकि 34 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर “खराब” दर्ज किया गया। 53 शहरों की श्रेणी ‘संतोषजनक’ और 92 में ‘मध्यम’ रही।   

दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में रही। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 229 दर्ज किया गया जबकि फरीदाबाद में 272, गाजियाबाद में 155, गुरुग्राम में 210, नोएडा में 172, और ग्रेटर नोएडा में 194। 

देश के अन्य प्रमुख शहरों में मुंबई का वायु गुणवत्ता सूचकांक 254 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के ‘खराब’ स्तर को दर्शाता है।

जबकि कोलकाता में यह इंडेक्स 189, चेन्नई में 105, बैंगलोर में 160, हैदराबाद में 103, जयपुर में 125 और पटना में 204 दर्ज किया गया।

‘वन पर्सन, वन कार’ की मांग करनेवाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को लेकर दायर की गई एक याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें “वन पर्सन, वन कार” के मानदंड को लागू करने की मांग की गई थी। इस जनहित याचिका में यह भी मांग की गई थी कि यदि एक व्यक्ति एक से अधिक कार खरीदे तो हर कार पर उससे पर्यावरण टैक्स वसूला जाए।

शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि अदालत ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। भारत में वायु प्रदूषण में वाहनों से होनेवाले उत्सर्जन का एक बड़ा योगदान है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, “हम इस तरह के निर्देश जारी नहीं कर सकते। यह नीति का विषय है।”

याचिकाकर्ता ने कहा था कि 2021 में देश में 30 लाख से अधिक कारें बिकीं, जो देश में करदाताओं की संख्या के साथ मेल नहीं खाता है।

न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने याचिकाकर्ता से कहा, “हम पर्यावरण नीति से संबंधित मुद्दों का संज्ञान नहीं ले सकते।” 

बेंच ने कहा कि करदाताओं की गिनती का काम सरकार पर छोड़ देना चाहिए।

केवल 2 घंटे वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से भी प्रभावित होता है दिमाग: अध्ययन    

एक नए अध्ययन के अनुसार केवल दो घंटे के लिए डीजल निकास के संपर्क में आने मात्र से मस्तिष्क की कार्यात्मक क्षमता में कमी आती है और दिमाग के अलग-अलग हिस्सों का एक दूसरे के साथ संचार प्रभावित होता है।

एनवायरनमेंटल हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में पहली बार वायु प्रदूषण के कारण मनुष्यों के दिमाग में नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रभावित होने के सबूत दिए हैं।

यह अध्ययन करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बतया कि कई दशकों तक वैज्ञानिकों का मानना था कि मस्तिष्क वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से बचा रह सकता है। उन्होंने कहा कि हालांकि वर्तमान अध्ययन केवल यातायात से उतन्न प्रदूषण के दिमाग पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित है, दहन के दूसरे उपकरण भी चिंता का विषय हैं।

नवीकरणीय उद्योग की मांग है कि सौर मॉड्यूल आयात पर उच्च सीमा शुल्क में कटौती की जाए।

नवीकरणीय उद्योग को बजट से क्या हैं उम्मीदें

पेरिस समझौते के तहत भारत को 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित करनी थी। लेकिन देश इस लक्ष्य से 55 गीगावाट से चूक गया।

अब देश के सामने 2030 तक 500 गीगावाट स्थापित करने का लक्ष्य है, जिसे प्राप्त करने के लिए 2023 और आगे आने वाले सालों में हर साल 25-30 गीगावाट स्थापित करना अनिवार्य होगा

इसलिए, नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग को उम्मीद है कि परियोजना विकास की धीमी गति के लिए जिम्मेदार कारणों को सरकार इस साल के बजट में दूर करेगी

उद्योगों को सरकार से जिन क्षेत्रों में राहत की उम्मीद है उनमें प्रमुख हैं सौर मॉड्यूल आयात पर उच्च सीमा शुल्क में कटौती, बिजली संयंत्रों की पर होने वाले पूंजीगत व्यय में टैक्स में छूट, सौर मॉड्यूल उत्पादन के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव आवंटन में इज़ाफ़ा, निवेशकों के लिए टैक्स में राहत आदि।

नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना से भारत कर सकता है हर साल 19 बिलियन डॉलर की बचत

साफ ऊर्जा पर रिसर्च करनी वाली ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के एक नए शोध के अनुसार अगर 2025 तक यूटिलिटी-स्केल पर 76 गीगावाट सौर और पवन ऊर्जा स्थापित करने की भारत की योजना सफल होती है तो देश प्रति वर्ष 19.5 बिलियन डॉलर तक की बचत कर सकता है

यह रिपोर्ट ग्लोबल सोलर पावर ट्रैकर और ग्लोबल विंड पावर ट्रैकर के डेटा का विश्लेषण करके तैयार की गई है और इसने संभावित नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में भारत को वैश्विक स्तर पर शीर्ष सात देशों में स्थान दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार इस स्थापना से भारत लगभग सालाना 78 मिलियन टन कोयले के उपयोग से बच सकता है। यह कोयला बिजली संयंत्रों की लगभग 32 गीगावाट क्षमता के बराबर है। यह 2018 के बाद से देश में स्थापित नई कोयला क्षमता से अधिक है।

वैश्विक स्तर पर संभावित यूटिलिटी-स्केल सौर ऊर्जा में भारत का हिस्सा 5 प्रतिशत है, और यह केवल चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से पीछे है। जबकि संभावित पवन ऊर्जा क्षमता में वैश्विक स्तर पर भारत 17वें स्थान पर है।

ओएनजीसी देश भर में तलाशेगा जियोथर्मल ऊर्जा के स्रोत

ओएनजीसी ने स्वच्छ ऊर्जा की तलाश में भारत के भू-तापीय (जियोथर्मल) ऊर्जा स्रोतों को मापने की योजना बनाई है

मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना प्रारंभिक चरण में है और लगभग एक साल में इसका क्रियान्वन शुरू हो जाना चाहिए।

भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी की सतह के नीचे गर्मी के रूप में जमा होती है और इसे स्वच्छ, नवीकरणीय और कार्बन-मुक्त माना जाता है। अध्ययनों के अनुसार, भारत में भू-तापीय ऊर्जा की 10 गीगावाट अनुमानित क्षमता है।

पिछले साल अगस्त में ओएनजीसी ने भू-तापीय ऊर्जा स्रोतों की तलाश में लद्दाख में ड्रिलिंग शुरू की थी। लेकिन अब कंपनी की योजना देशभर में सर्वे कराने की है।

नवीकरणीय स्रोतों की खोज में 2050 तक 45 लाख करोड़  डॉलर के निवेश की संभावना

ब्लूमबर्गएनईएफ ने एक नए अध्ययन में पाया है कि कम कार्बन बिजली उत्पादन के स्वच्छ और सुरक्षित स्रोतों की खोज, 2050 तक 45.8 लाख करोड़ डॉलर तक के निवेश के अवसर पेश कर सकती है। इस राशि में समूचे बिजली उत्पादन पर हुए खर्च का 97% शामिल होगा।

अध्ययन में नेट जीरो सिनेरियो (NZS) और इकोनॉमिक ट्रांजिशन सिनेरियो (ETS) के आधार पर यह अनुमान लगाए गए हैं। पवन और सौर तकनीकें उल्लेखनीय रूप से ऊर्जा क्षेत्र को नेट जीरो उत्सर्जन की ओर ले जाएंगी। 2050 तक एनजेडएस और ईटीएस में इन दोनों तकनीकों पर पूंजीगत व्यय क्रमशः $26.8 लाख करोड़ और $13.7 लाख करोड़ हो सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नेट जीरो सिनेरियो में मौजूदा वार्षिक दरों की तुलना में सौर ऊर्जा की आपूर्ति को तीन गुना और पवन ऊर्जा की आपूर्ति को छह गुना से अधिक बढ़ाने की जरूरत होगी।

बैटरी और अन्य निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोतों — जैसे कि भू-तापीय, बायोमास और परमाणु —  में निवेश 2050 तक संयुक्त रूप से कुल $6.2 लाख करोड़ निर्धारित किए गए हैं।

जीवाश्म ईंधन का भी नेट-जीरो भविष्य में एक स्थान है, जो कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) उपशमन तकनीकों के साथ प्रयोग में लाया जा सकता है।

लिथियम-आयन बैटरी पर वर्तमान जीएसटी दर 18% है।

बजट में ईवी उद्योग को लिथियम-आयन बैटरी पर जीएसटी में कटौती की उम्मीद

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2022 में 4 लाख से अधिक इकाइयों की बिक्री के साथ इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग ने रिकॉर्ड वृद्धि देखी। विभिन्न योजनाओं, छूट और कर लाभों के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाता रहा है। आगामी केंद्रीय बजट 2023 में इन प्रयासों के और गति प्राप्त करने की उम्मीद है

इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग की मांगों में से प्रमुख है बैटरी और अन्य पुर्जों पर जीएसटी दर कम करना, ताकि वाहन की कुल लागत को कम किया जा सके लिथियम-आयन बैटरी पर जीएसटी दर 18% है। साथ ही लिथियम के आयात पर आयात शुल्क और सीमा शुल्क भी लगाया जाता है।

अन्य मांगों में शामिल है फेम इंडिया और पीएलआई जैसी योजनाओं की समय-सीमा में विस्तार। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा और उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए 2015 में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया (फेम इंडिया) योजना शुरू की गई थी। योजना का दूसरा चरण 2019 में तीन वर्षों के लिए 10,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ लागू किया गया था। इसका मतलब है कि यह योजना मार्च 2024 में समाप्त हो जाएगी।

भारत के ईवी उपभोक्ताओं के सामने आई अप्रत्याशित बाधा

देश के कई ईवी उपभोक्ताओं को एक बाधा का सामना करना पड़ रहा है। कई आवासीय सोसायटीस ईवी चार्जिंग पॉइंट स्थापित करने की इच्छुक नहीं हैं। 

देश भर के विभिन्न रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) कई कारणों से ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने को लेकर संशय में हैं। कुछ मामलों में, उदाहरण के लिए, निवासियों को उनके आवंटित पार्किंग स्थलों में चार्जर स्थापित करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि तब केवल वही इसका उपयोग कर पाएंगे। 

इसलिए, जब कोई भी निवासी ईवी खरीदता है तो इस प्रक्रिया को दोहराना होगा।

बिजली मंत्रालय द्वारा यह स्पष्ट किए जाने के बावजूद कि ईवी मालिकों के लिए अपने घरेलू बिजली कनेक्शन का उपयोग करके अपने ईवी को चार्ज करना कानून के दायरे में है, कई उपभोक्ताओं को उनके आरडब्ल्यूए ऐसा नहीं करने देते।

अन्य कारणों में आग लगने का जोखिम, ग्रिड पर लोड, चार्जिंग में लंबा समय, निवासियों द्वारा दीवारों में छेद करने की अनिच्छा, जागरूकता की कमी आदि शामिल हैं।

इसलिए, निजी चार्जिंग सुविधाओं पर एक कानूनी ढांचे और विशिष्ट दिशानिर्देशों की मांग की जा रही है, जो आरडब्ल्यूए के बीच जागरूकता की कमी को पूरा करे और ईवी खरीदारों को उत्पीड़न से बचाए

कुछ ईवी मालिकों ने इस तरह के उत्पीड़न के कारण अपनी सोसायटीस के खिलाफ मामले भी दर्ज कराए हैं

मुंबई एयरपोर्ट पर लांच हुआ इलेक्ट्रिक वाहनों का पहला बैच

मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट (सीएसएमआईए) ने इलेक्ट्रिक वाहनों का अपना पहला बैच लांच किया है

एयरपोर्ट पर जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों के मौजूदा बेड़े को बदलकर 45 बैटरी वाहन सेवा में लगाए गए हैं। सीएसएमआईए का यह प्रयास ‘कार्बन फुटप्रिंट को कम करने’ और ‘सतत परिवहन को बढ़ावा देने’ के प्रयास का हिस्सा है।

2029 तक ‘ऑपरेशनल नेट ज़ीरो मिशन’ के तहत एयरपोर्ट पर सभी जीवाश्म-ईंधन वाहनों के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग का लक्ष्य रखा गया है। जनवरी में लांच किए जा रहे 45 इलेक्ट्रिक वाहनों के अलावा, सीएसएमआईए अगले वित्तीय वर्ष में 60 और इलेक्ट्रिक वाहनों की तैनाती के लिए प्रयासरत है, जिसमें एंबुलेंस, फॉरवर्ड कमांड पोस्ट, सुरक्षा और एयरसाइड ऑपरेशंस मेंटेनेंस यूटिलिटी वाहन शामिल हैं।

तमिलनाडु ने ईवी पर रोड टैक्स की 100% छूट को 2025 तक बढ़ाया

तमिलनाडु ने राज्य में पंजीकृत होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर मोटर वाहन कर में दी जाने वाली 100% छूट को 2025 तक बढ़ा दिया है। राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों पर रोड टैक्स में100% की छूट की अवधि पहले 31 दिसंबर, 2022 को समाप्त हो गई थी।

साल 2022 में राज्य में लगभग 67,000 बैटरी वाहनों का पंजीकरण किया गया। इसी गति को जारी रखने के लिए अब 1 जनवरी, 2023 और 31 दिसंबर, 2025 के बीच पंजीकृत बैटरी वाहनों को रोड-टैक्स से मुक्त कर दिया गया है।

यह छूट परिवहन और गैर-परिवहन दोनों तरह के वाहनों पर लागू है। बैटरी वाहनों के प्रयोग को गति देने और ईवी इकोसिस्टम की सहायता करने के लिए, उद्योग ने राज्य सरकार से कुछ और वर्षों के लिए रियायतें देने का अनुरोध किया था।

कर में छूट से ईवी की ऊँची कीमतों में कटौती के अलावा, टैरिफ कम करने से पब्लिक चार्जिंग नेटवर्क का विस्तार करने में मदद मिलेगी, जो ईवी अपनाने के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।

जीवाश्म ईंधन के लिए दिए गए भारी कर्ज़ एनर्ज़ी ट्रांजिशन के लिए मुश्किल बन रहे हैं।

आर्थिक उलझन: अधिकांश कर्ज़ तेल और गैस के लिए

साफ ऊर्जा की ओर बढ़ने के रास्ते में भारत को एक आर्थिक दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। ग्लोबल इन्वायरेंमेंटल चेंज जर्नल  में प्रकाशित निजी कर्ज़ और बॉन्ड का विश्लेषण बताता है कि खनन के क्षेत्र में दिये गये 60% ऋण तेल और गैस निकालने के लिये हैं जबकि निर्माण क्षेत्र में 20% कर्ज़ पेट्रोलियम रिफायनिंग या उससे जुड़े क्षेत्र के लिये दिये गये हैं। अभी भारत के कार्बन उत्सर्जन में सबसे अधिक हिस्सा बिजली उत्पादन के कारण है लेकिन इस क्षेत्र में दिये गये केवल 17.5% कर्ज़ ही साफ ऊर्जा के लिये हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत कि जीवाश्म ईंधन में पर अति निर्भरता भारत के ऊर्जा ट्रांजिशन में एक रोड़ा बन रहा है।  

भारत ने साल 2070 तक नेट ज़ीरो इमीशन हासिल करने का वादा किया है लेकिन इसके साथ ही 2030 तक बिजली की अपनी आधी ज़रूरतें  साफ ऊर्जा स्रोतों से बनाने का लक्ष्य भी रखा है। इसके लिये उसे 1 लाख करोड़ डॉलर का निवेश करना होगा। लेकिन कोयले और तेल, गैस पर निर्भरता जीवाश्म ईंधन के लिये दिये भारी कर्ज़ बड़ी समस्या हैं। 

कोयले की कहानी: कहीं सप्लाई रोकने की बात, कहीं उत्पादन बढ़ाने की योजना 

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कोयला बिजलीघरों को छोड़कर बाकी औद्योगिक इकाइयों और अन्य वाणिज्यिक संगठनों को कोयले की आपूर्ति और बिक्री रोकने के लिए कहा है। यह निर्देश दिल्ली-एनसीआर में कोयले और ऐसे ईंधन जिसकी मंज़ूरी न दी गई हो  के उपयोग पर लगे प्रतिबंध के मद्देनजर आया है। यह प्रतिबंध 1 जनवरी से लागू हुआ था।

वहीं दूसरी ओर कोयला सचिव अमृत लाल मीणा ने कहा कि कोयला मंत्रालय की 31 मार्च तक बिजली क्षेत्र को अधिक सूखे ईंधन की आपूर्ति करने की योजना है। उन्होंने कहा कि यह एक एहतियाती उपाय है और इस बात पर जोर दिया कि सभी कोयला कंपनियां आम तौर पर अपने लक्ष्य से अधिक उत्पादन कर रही हैं। अप्रैल-सितंबर 2023 के दौरान सूखे ईंधन में 24 मिलियन टन की आपूर्ति की कमी का अनुमान लगाते हुए बिजली उत्पादन कंपनियां को कोयले का समय पर आयात सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।

प्रतिबंधों के बावजूद भारत के ज़रिये रूस से तेल आयात कर रहा ब्रिटेन

रूस पर प्रतिबंध लगाने में ब्रिटेन ने भले ही पश्चिम का नेतृत्व किया हो लेकिन वह भारत के माध्यम से रूसी तेल का आयात कर रहा है। यह सामने आया है कि बीपी और शेल सहित यूके को आपूर्ति करने वाले ऊर्जा खरीदारों ने भारतीय निजी कच्चे तेल रिफाइनरियों से अपने आयात में वृद्धि की है।

क्लाइमेट एडवोकेसी ग्रुप ग्लोबल विटनेस द्वारा विश्लेषण किए गए डेटा के अनुसार, फरवरी 2022 में यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद से ब्रिटेन ने भारतीय निजी रिफाइनरियों से 29 शिपमेंट या 10 मिलियन बैरल डीजल और अन्य रिफाइंड उत्पादों का आयात किया है। वही 2021 में यह आंकड़े सिर्फ सात शिपमेंट या 4 मिलियन बैरल ही थे । 
यूके का तेल प्रतिबंध 5 दिसंबर को प्रभाव में आया, लेकिन कुछ कानूनी खामियों के मद्देनज़र रूसी मूल का तेल अभी भी यूके में आ सकता है। कुछ समय पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था की फरवरी 2022 से भारत की तुलना में यूरोपीय संघ ने रूस से छह गुना अधिक जीवाश्म ईंधन आयात किया है।