पेरिस समझौते के तहत भारत को 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित करनी थी। लेकिन देश इस लक्ष्य से 55 गीगावाट से चूक गया।
अब देश के सामने 2030 तक 500 गीगावाट स्थापित करने का लक्ष्य है, जिसे प्राप्त करने के लिए 2023 और आगे आने वाले सालों में हर साल 25-30 गीगावाट स्थापित करना अनिवार्य होगा।
इसलिए, नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग को उम्मीद है कि परियोजना विकास की धीमी गति के लिए जिम्मेदार कारणों को सरकार इस साल के बजट में दूर करेगी।
उद्योगों को सरकार से जिन क्षेत्रों में राहत की उम्मीद है उनमें प्रमुख हैं सौर मॉड्यूल आयात पर उच्च सीमा शुल्क में कटौती, बिजली संयंत्रों की पर होने वाले पूंजीगत व्यय में टैक्स में छूट, सौर मॉड्यूल उत्पादन के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव आवंटन में इज़ाफ़ा, निवेशकों के लिए टैक्स में राहत आदि।
नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना से भारत कर सकता है हर साल 19 बिलियन डॉलर की बचत
साफ ऊर्जा पर रिसर्च करनी वाली ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के एक नए शोध के अनुसार अगर 2025 तक यूटिलिटी-स्केल पर 76 गीगावाट सौर और पवन ऊर्जा स्थापित करने की भारत की योजना सफल होती है तो देश प्रति वर्ष 19.5 बिलियन डॉलर तक की बचत कर सकता है।
यह रिपोर्ट ग्लोबल सोलर पावर ट्रैकर और ग्लोबल विंड पावर ट्रैकर के डेटा का विश्लेषण करके तैयार की गई है और इसने संभावित नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में भारत को वैश्विक स्तर पर शीर्ष सात देशों में स्थान दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार इस स्थापना से भारत लगभग सालाना 78 मिलियन टन कोयले के उपयोग से बच सकता है। यह कोयला बिजली संयंत्रों की लगभग 32 गीगावाट क्षमता के बराबर है। यह 2018 के बाद से देश में स्थापित नई कोयला क्षमता से अधिक है।
वैश्विक स्तर पर संभावित यूटिलिटी-स्केल सौर ऊर्जा में भारत का हिस्सा 5 प्रतिशत है, और यह केवल चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से पीछे है। जबकि संभावित पवन ऊर्जा क्षमता में वैश्विक स्तर पर भारत 17वें स्थान पर है।
ओएनजीसी देश भर में तलाशेगा जियोथर्मल ऊर्जा के स्रोत
ओएनजीसी ने स्वच्छ ऊर्जा की तलाश में भारत के भू-तापीय (जियोथर्मल) ऊर्जा स्रोतों को मापने की योजना बनाई है।
मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना प्रारंभिक चरण में है और लगभग एक साल में इसका क्रियान्वन शुरू हो जाना चाहिए।
भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी की सतह के नीचे गर्मी के रूप में जमा होती है और इसे स्वच्छ, नवीकरणीय और कार्बन-मुक्त माना जाता है। अध्ययनों के अनुसार, भारत में भू-तापीय ऊर्जा की 10 गीगावाट अनुमानित क्षमता है।
पिछले साल अगस्त में ओएनजीसी ने भू-तापीय ऊर्जा स्रोतों की तलाश में लद्दाख में ड्रिलिंग शुरू की थी। लेकिन अब कंपनी की योजना देशभर में सर्वे कराने की है।
नवीकरणीय स्रोतों की खोज में 2050 तक 45 लाख करोड़ डॉलर के निवेश की संभावना
ब्लूमबर्गएनईएफ ने एक नए अध्ययन में पाया है कि कम कार्बन बिजली उत्पादन के स्वच्छ और सुरक्षित स्रोतों की खोज, 2050 तक 45.8 लाख करोड़ डॉलर तक के निवेश के अवसर पेश कर सकती है। इस राशि में समूचे बिजली उत्पादन पर हुए खर्च का 97% शामिल होगा।
अध्ययन में नेट जीरो सिनेरियो (NZS) और इकोनॉमिक ट्रांजिशन सिनेरियो (ETS) के आधार पर यह अनुमान लगाए गए हैं। पवन और सौर तकनीकें उल्लेखनीय रूप से ऊर्जा क्षेत्र को नेट जीरो उत्सर्जन की ओर ले जाएंगी। 2050 तक एनजेडएस और ईटीएस में इन दोनों तकनीकों पर पूंजीगत व्यय क्रमशः $26.8 लाख करोड़ और $13.7 लाख करोड़ हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नेट जीरो सिनेरियो में मौजूदा वार्षिक दरों की तुलना में सौर ऊर्जा की आपूर्ति को तीन गुना और पवन ऊर्जा की आपूर्ति को छह गुना से अधिक बढ़ाने की जरूरत होगी।
बैटरी और अन्य निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोतों — जैसे कि भू-तापीय, बायोमास और परमाणु — में निवेश 2050 तक संयुक्त रूप से कुल $6.2 लाख करोड़ निर्धारित किए गए हैं।
जीवाश्म ईंधन का भी नेट-जीरो भविष्य में एक स्थान है, जो कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) उपशमन तकनीकों के साथ प्रयोग में लाया जा सकता है।
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