Vol 2, February 2024 | रूस-यूक्रेन युद्ध: तेल कंपनियों ने कमाया  $300 बिलियन का मुनाफा

ग्लोबल वार्मिंग से पिघल रही है दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आइस शेल्फ

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग यदि पेरिस समझौते में मौजूद 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा से ऊपर हुई तो पृथ्वी की दूसरी सबसे बड़ी बर्फ की चादर — अंटार्कटिका में मौजूद फ़िल्च्नर-रोन हिमचट्टान — बड़े पैमाने पर पिघल सकती है, जिसके कारण दुनियाभर में समुद्रों का जलस्तर बहुत अधिक बढ़ जाएगा।

बर्फ की यह चादर अंटार्कटिका की सीमा से लगे वेडेल सागर के दक्षिणी भाग को कवर करती है। इस आइस शेल्फ के पूर्वी भाग के नीचे एक गर्त है जिसे फिल्चनर ट्रफ कहा जाता है। गर्त के भीतर पानी का तापमान अंटार्कटिक तटीय धारा द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसके कारण मौसम के अनुसार अलग-अलग मात्रा में गर्म गहरा पानी फिल्चनर ट्रफ में प्रवाहित होता है। जर्मनी में अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट फॉर पोलर एंड मरीन रिसर्च के शोधकर्ताओं ने यह पाया है की गर्म गहरे पानी के इस प्रवाह से गर्त के ऊपर मौजूद आइस शेल्फ का निचला भाग लगतार पिघल रहा है।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि गर्त में पानी के लगातार गर्म होने से बर्फ के पिघलने में वृद्धि हो सकती है और इससे दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धि हो सकती है। 

ग़रीब और हाशिए पर रह रहे लोगों पर जलवायु संकट का सबसे अधिक प्रभाव 

शहरी लोगों पर होने वाले सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को ध्यान में रख बनाए गए एक मॉडल में पाया गया है  गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय पर जलवायु जनित ख़तरों और संकट की सर्वाधिक चोट पड़ती है। इस रिपोर्ट का शीर्षक है: ‘क्लाइमेट रेजिलिएंट सिटीज़: असेसिंग डिफरेंसियल वल्नेरेबिलिटी टु क्लाइमेट हैजार्ड इन अर्बन इंडिया’। रिपोर्ट की प्रमुख लेखक लुबाइना रंगवाला कहती हैं, ‘हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि ख़तरों का आकलन समुदाय विशेष को लेकर कैसे किया जाए।’ रंगवाला इसे समझाते हुए कहती हैं कि मुंबई के तटीय क्षेत्र पर संकट है लेकिन यह कोली समुदाय और वहां के बड़े रियल एस्टेट के लोगों के लिए एक सा नहीं हो सकता। इस तरह भूस्खलन के संकट का आकलन करते हुए पता चला कि मुंबई के 70% लैंडस्लाइड संभावित इलाके झोपड़-झुग्गी वाले क्षेत्रों में पड़ते हैं। 

ऊष्णदेशीय क्षेत्र में अत्यधिक बारिश की बढ़ती गंभीरता  के पीछे बादलों का खेल 

गर्म होती जलवायु में क्लाउड क्लस्टरिंग यानी बादलों के जमाव का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया है कि तापमान बढ़ने के साथ एक्सट्रीम रेन फॉल (चरम वर्षा) की घटनाएं अधिक विनाशक हो जाती हैं।   ऑस्ट्रिया के इस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट और मेटिरोलॉजी के वैज्ञानिकों ने एक क्लाइमेट मॉडल के प्रयोग से यह जानने की कोशिश की कि बादलों और तूफान की क्लस्टरिंग (जमाव) होने पर चरम वर्षा की घटनायें किस तरह प्रभावित होती हैं।

उन्होंने पाया कि गर्म होती जलवायु के साथ ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में एक्सट्रीम रेनफॉल की घटनाओं की मार बढ़ जाती है। अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा कि जिन क्षेत्रों में बादलों की क्लस्टरिंग होती है वहां लंबे समय तक बरसात होती है और इसलिये कुल बारिश बढ़ जाती है। 

कृत्रिम प्रकाश की बढ़ती संस्कृति क्या कीट-पतंगों के लिए ख़तरा है? 

माना जाता है कि कीड़े प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन  हाल ही में नेचर कम्युनिकेशन पत्रिका में प्रकाशित एक शोध ने कीड़ों के प्रकाश के प्रति अस्थिर व्यवहार का रहस्य उजागर किया है। यह अध्ययन बताता है कि सभी कीड़े समान रूप से प्रकाश की ओर आकर्षित नहीं होते हैं। वे सीधे प्रकाश की ओर नहीं जाते हैं, बल्कि प्रकाश स्रोत से उन्हें जोड़ने वाली रेखा से समकोण पर उड़ने का प्रयास करते हैं।

दरअसल, कीड़े प्राकृतिक रूप से प्रकाश की ओर पीठ करके उड़ते हैं। इसे आप उनकी जीन प्रोग्रामिंग कह सकते हैं। यही तंत्र उन्हें दिन के समय – जब सूर्य ऊपर होता है – सीधे उड़ने में मदद करता है। रात में, जब सूर्य नहीं होता, तो वे अपनी उड़ान की दिशा बनाए रखने के लिए उपलब्ध प्रकाश स्रोतों का उपयोग करते हैं। रात में जब कीड़े कृत्रिम प्रकाश देखते हैं, तो वे अपनी उड़ान की दिशा निर्धारित करने के लिए इसका उपयोग करते हैं। वे प्रकाश के सबसे चमकीले क्षेत्रों की ओर अपनी पीठ रखने का प्रयास करते हैं। यह प्रक्रिया, जिसे ‘डोर्सल लाइट रिस्पांस’ कहा जाता है, के प्रभाव से वे प्रकाश के चारों ओर मंडराने लगते हैं।

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच कीट पतंगों के व्यवहार का अध्ययन अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। मक्खियों की तरह ही परागण में कीट-पतंगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस कारण वे जैव विवधता संरक्षण में अहम हैं। बहुत सारे कीट पक्षियों का आहार बनते हैं और खाद्य श्रंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। उनकी उपस्थिति बताती है कि किसी क्षेत्र में जलीय जीवन और जैव विविधता कितनी स्वस्थ या कमज़ोर है। इसलिए उनकी आबादी में गिरावट पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है, जिसका एक प्रमुख कारण कृत्रिम प्रकाश के प्रति कीड़ों का व्यवहार भी है। आधुनिक युग में प्रकाश प्रदूषण में वृद्धि के बीच यह समझना महत्वपूर्ण है कि कृत्रिम प्रकाश कीड़ों को कैसे प्रभावित करता है। यह समझ हमें ऐसे कृत्रिम प्रकाश स्रोत विकसित करने में मदद कर सकती है जो कीड़ों के लिए कम आकर्षक हों और उनकी घटती आबादी को रोकने में मदद करें। 

बदलती जलवायु से क्यों बढ़ेंगे टिड्डियों के हमले 

जलवायु परिवर्तन और उससे उपजे मौसम बदलाव के कारण भारत में पश्चिमी सीमा से होने वाले टिड्डियों के हमले बढ़ सकते हैं। अनियमित मौसम, अचानक तेज़ हवा और बेमौसमी बारिश से रेगिस्तानी टिड्डी – जो कि उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के कुछ शुष्क क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक छोटी सींग वाली प्रजाति,एक प्रवासी कीट है – का संकट बढ़ रहा है। 

ये टिड्डियां लाखों के झुंड में लंबी दूरी तक यात्रा करती हैं  और फसलों को भारी  नुकसान पहुंचाती है, जिससे अकाल और खाद्य असुरक्षा होती है। साइंस एडवांसेज़ नाम की पत्रिका में कहा गया है कि गर्म होती जलवायु में ऐसी टिड्डियों के ख़तरे बढ़ेंगे और इनसे होने वाली क्षति को रोकना नामुमकिन होगा।

करीब एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में 8 करोड़ टिड्डियों का झुंड समा जाता है कि और इनके बढ़ते हमले खाद्य सुरक्षा के लिये बड़ा संकट पैदा कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने वन संरक्षण अधिनियम के संशोधनों पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) में किए गए संशोधनों पर रोक लगाते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वह उसके 1996 में दिए गए आदेश में वर्णित ‘वन’ की परिभाषा का पालन करें। 

वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में पिछले साल किए गए संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया था कि 2023 के संशोधन ने वन की परिभाषा को ‘काफ़ी हद तक कमजोर’ कर दिया है, अधिनियम के दायरे को सीमित कर दिया है और इसके कारण कथित तौर पर 1.97 लाख वर्ग किमी भूमि वन क्षेत्र से बाहर हो गई है।

इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश जारी किया और देश में वनों की पहचान करने के अपने 1996 के फैसले पर वापस जाने का आदेश दिया। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि वनों की सामान्य परिभाषा पर वापस जाना काफी नहीं है और ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ के अर्थ को समझने के लिए देश के इकोलॉजिकल सिस्टम को देखते हुए कुछ व्यापक मापदंडों को परिभाषित किया जाना चाहिए।

अफ्रीका की जीडीपी में जलवायु परिवर्तन से होगी 7.1% की कटौती 

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहे हैं और गरीब देश इससे बड़े स्तर पर  प्रभावित हो रहे हैं। अब सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट स्टडी बताती है कि आने वाले दशकों में अफ्रीका महाद्वीप में क्लाइमेट चेंज के प्रभावों से 20 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार होंगे, कृषि से राजस्व 30% तक गिरेगा और कुल जीडीपी में 7.1% की गिरावट हो जाएगी। आने वाले दशकों में  विकासशील देशों के सामाजिक-आर्थिक जीवन पर प्रभाव की पड़ताल करती यह रिपोर्ट बताती है कि अगर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर काबू नहीं किया गया तो विकासशील देशों खासतौर से अफ्रीका महाद्वीप पर  खराब असर होगा और पिछले कुछ दशकों में हुई प्रगति के लाभ मिट जाएंगे। 

हिमाचल, उत्तराखंड जैसा न हो लद्दाख का हाल, इसलिए आमरण अनशन करेंगे सोनम वांगचुक

क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने कहा है कि यदि लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग पर सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच चल रही बातचीत बेनतीजा रहती है तो वह आमरण अनशन करेंगे

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार “औद्योगिक लॉबी के दबाव” में है और इसलिए लद्दाख को संवैधानिक अधिकार नहीं देना चाहती है। वांगचुक ने कहा कि “ये लॉबी लद्दाख का शोषण करना चाहती है, जैसा उन्होंने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में किया है, जहां स्थानीय लोग अब इसकी कीमत चुका रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि यह एक मिथक है कि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने से लद्दाख का विकास बाधित होगा।

इससे स्थानीय लोगों को विकास में हिस्सेदारी मिलेगी। इससे सुनिश्चित होगा कि सभी परियोजनाओं और लद्दाख के प्रबंधन में मूलनिवासी जनजातीय लोगों की राय ली जाए। वर्तमान में उपराज्यपाल जिसे चाहें, खनन और उद्योग की अनुमति दे सकते हैं। इसी बात से लद्दाखी लोग सबसे ज्यादा डरते हैं,” उन्होंने कहा।

चीतों को बसाने के लिए दो अभयारण्यों का दौरा करेगी अफ्रीकी टीम

अफ्रीकी और नामीबियाई विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही मध्य प्रदेश के गांधी सागर और नौरादेही अभयारण्यों का दौरा करेगी और चीतों को इन स्थानों पर बसाने के लिए सर्वेक्षण करेगी। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मध्य प्रदेश के कूनो पार्क में प्रोजेक्ट चीता की समीक्षा के दौरान यह जानकारी दी। 

उन्होंने कहा कि इस समय में आठ शावकों समेत 21 चीते कूनो में हैं। यादव ने कहा कि प्रोजेक्ट चीता के तहत कुल 10 वन क्षेत्रों का चयन किया गया था, जिनमें से तीन मध्य प्रदेश में हैं। अफ्रीकी विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही गांधीसागर और नौरादेही अभयारण्यों में जाएगी और सर्वेक्षण करने के बाद चीतों को इन स्थानों पर स्थानांतरित किया जाएगा।

भूपेन्द्र यादव ने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्य में हाथी संरक्षण परियोजना भी शुरू की जाएगी, जिसके तहत एक केंद्रीय टीम एमपी का दौरा करेगी और असम और केरल के अनुभवों के आधार पर अध्ययन करेगी और एमपी सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगी।

‘ट्रिपल-डिप’ ला-नीना से उत्तर भारत में सुधरी हवा, लेकिन प्रायद्वीप में बढ़ा प्रदूषण

जलवायु परिवर्तन के कारण घटी ट्रिपल-डिप ला-नीना की घटना से 2022-23 के सर्दियों के मौसम में जहां उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ, वहीं प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई। साल 2020-23 के दौरान लगातार तीन सालों में ला-नीना की अनोखी ट्रिपल-डिप घटना का दुनिया भर में समुद्र और जलवायु पर भारी असर पड़ा।

एल्सेवियर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि 2022-23 की सर्दियों के दौरान भारत के प्रायद्वीपीय शहरों में हवा की गुणवत्ता खराब हुई, लेकिन हाल के दशकों में देखे गए रुझानों के विपरीत, उत्तरी हिस्सों में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ।

उत्तर भारतीय शहरों में, गाजियाबाद में प्रदूषण में 33 प्रतिशत की कमी के साथ सबसे बड़ा सुधार दर्ज किया गया, इसके बाद रोहतक (30 प्रतिशत) और नोएडा (28 प्रतिशत) का स्थान रहा। सबसे गंभीर और चारों ओर से घिरा शहर होने के कारण दिल्ली में लगभग 10 प्रतिशत का सुधार हुआ है। इसके विपरीत मुंबई में पीएम 2.5 के स्तर में 30 प्रतिशत की वृद्धि के साथ हवा की गुणवत्ता में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई, इसके बाद कोयंबटूर (28 प्रतिशत), बेंगलुरु (20 प्रतिशत), चेन्नई (12 प्रतिशत) रहे।

‘खराब’ वायु गुणवत्ता वाले शहरों में आई 68% की गिरावट

देश में खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में 68 फीसदी की भारी गिरावट आई है। आंकड़ों के मुताबिक, 27 फरवरी 2024 को खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 25 दर्ज की गई थी, जो 28 फरवरी को घटकर आठ रह गई। इन शहरों में अगरतला, अंगुल, अररिया, बर्नीहाट, गुवाहाटी, कटिहार, मुजफ्फरनगर और नलबाड़ी शामिल हैं। इसी तरह देश में केवल वापी की हवा जानलेवा है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 308 दर्ज किया गया है।

इसी तरह दिल्ली की वायु गुणवत्ता में भी सुधार दर्ज किया गया है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक में 18 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। इस सुधार को देखते हुए केंद्र सरकार ने दिल्ली-एनसीआर से वायु प्रदूषण नियंत्रण योजना के तहत लगाए गए सभी प्रतिबंधों को वापस लेने का फैसला किया है

देश में वाराणसी की हवा सबसे ज्यादा साफ है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 22 दर्ज किया गया है। इसी तरह तुमकुरु में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक 27 रिकॉर्ड किया गया है। कुल मिलकर देश के 23 शहरों में वायु गुणवत्ता बेहतर बनी हुई है।

प्रदूषण पर एनजीटी ने 53 शहरों से मांगा जवाब

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने 53 ऐसे शहरों रिपोर्ट मांगी है जहां वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई थी। रिपोर्ट में इन शहरों से प्रदूषण के सभी स्रोतों के योगदान और प्रदूषण को कम करने के लिए किए गए उपायों पर जानकारी मांगी गई है।

पिछले साल 5 दिसंबर को एनजीटी ने विभिन्न राज्यों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों पर विचार करने के बाद कहा था कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) और 15वें वित्त आयोग के तहत दिए गए फंड का पूरा उपयोग नहीं किया है। 19 फरवरी को पारित एक आदेश में एनजीटी ने यह भी कहा कि रिपोर्टों के अनुसार, वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान सड़क की धूल का है और इसे कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

मामले की अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिसके एक हफ्ते पहले 53 शहरों को यह रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया गया है।

नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं बिहार में गंगा का पानी

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) के अनुसार बिहार से गुजरने वाली लगभग सभी प्रमुख नदियां नहाने के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं। बीएसपीसीबी ने 27 जिलों में गंगा, सोन, कोसी, बागमती आदि नदियों के 98 बिंदुओं पर सैंपल जांच की, और पाया कि पानी में फीसल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अत्यधिक उपस्थिति थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रदूषण पटना और अन्य शहरी क्षेत्रों में गंगा सहित अन्य नदियों में अनुपचारित सीवेज और दूषित अपशिष्ट जल छोड़ने के कारण होता है। पटना के गांधी घाट पर फीसल कोलीफॉर्म की मौजूदगी निर्धारित मापदंड से 36 गुना अधिक पाई गई।
उधर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने चेतावनी दी है कि अगर बिहार गंगा जल प्रदूषण पर मांगी गई जानकारी छह सप्ताह के भीतर देने में विफल रहता है तो वह राज्य के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश देगा। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 17 फरवरी की रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा कि राज्य के 38 में से 20 जिलों ने अधूरी और आंशिक रूप से गलत जानकारी के साथ अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। 

अक्षय ऊर्जा विस्तार के बीच भारत को रखनी होगी इन बातों पर नज़र

भारत के ऊर्जा उत्पादन में 2040 तक अक्षय ऊर्जा का योगदान 50-70% तक पहुंचने की उम्मीद है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, 31 जनवरी 2024 तक देश में स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता लगभग 74.3 गीगावाट और स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता लगभग 44.9 गीगावाट थी। जहां एक ओर यह आंकड़े दिखाते हैं कि भारत अपने अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है, वहीं यह भी एक तथ्य है कि देश को जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है

इन प्रयासों में सबसे जरूरी है घरेलू मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देना। भारत सोलर सेल और मॉड्यूल के लिए बहुत हद तक चीन से आयात पर निर्भर है, ऐसे में बिना घरेलू मैनुफैक्चरिंग और लोकल सप्लाई चेन को बढ़ावा दिए यदि इनपर अधिक आयात शुल्क लगाया गया तो इससे मौजूदा परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है। वर्तमान में चल रहे ग़ज़ा युद्ध के कारण लाल सागर में हो रहे हमलों से भी आपूर्ति मार्ग बाधित हुआ है, जिसके कारण एशिया और यूरोप में सोलर मॉड्यूल की कीमतें 20% तक बढ़ी हैं। वहीं पवन ऊर्जा के मामले में तकनीकी विकास की जरूरत है।                  

अक्षय ऊर्जा को ग्रिड से जोड़ना भी एक चुनौती है। इसके लिए जरूरत है ऐसी नीतियों की जो हाइब्रिड सौर, पवन और स्टोरेज इंस्टालेशन के विकास को प्रोत्साहित करें।

अंत में यह भी जरूरी है कि अक्षय ऊर्जा का यह विकास न्यायपूर्ण तरीके से हो। यानी ऊर्जा उत्पादन से लेकर उसके प्रयोग तक में कहीं भी मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो। इसके लिए जरूरी है मानवाधिकार और पर्यावरण संबंधी सम्यक तत्परता, यानी एक तरह का ऑडिट जो यह सुनिश्चित करे कि विभिन्न उत्पादकों की प्रोडक्शन प्रक्रिया के दौरान किसी भी मानवाधिकार या पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

हाइड्रोजन का जलवायु पर प्रभाव अनुमान से कहीं अधिक: शोध

एनवायर्मेंटल डिफेंस फंड के वैज्ञानिकों के नए शोध के अनुसार, हाइड्रोजन उत्पादन के दौरान होनेवाले उत्सर्जन का आकलन करने के लिए जो मानक प्रयोग किए जाते हैं, उनसे बड़े पैमाने पर गलत अनुमान लगाए जा सकते हैं। शोध में पाया गया कि हाइड्रोजन और मीथेन उत्सर्जन के जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण, इससे होने वाले लाभ काफी कम हो सकते हैं।

शोध में पाया गया कि हाइड्रोजन लाइफसाइकिल असेसमेंट के दौरान तीन महत्वपूर्ण कारकों को संज्ञान में नहीं लिया जाता: हाइड्रोजन उत्सर्जन का ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव, हाइड्रोजन उत्पादन और प्रयोग के दौरान होनेवाला मीथेन उत्सर्जन, और निकट भविष्य में इसके प्रभाव। शोधकर्ताओं ने पाया कि इन कारकों को आकलन में शामिल करने से यह पता लगाया जा सकता है कि जीवाश्म ईंधन प्रौद्योगिकियों की तुलना में हाइड्रोजन सिस्टम बेहतर हैं या नहीं।

भारत ने शुरू की चीन, वियतनाम से आयातित सोलर ग्लास की एंटी-डंपिंग जांच 

भारतीय निर्माताओं के आरोपों पर कार्रवाई करते हुए, सरकार ने चीन और वियतनाम से आयातित कुछ सोलर ग्लास की एंटी-डंपिंग जांच शुरू की है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार वाणिज्य मंत्रालय की जांच शाखा व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) चीन और वियतनाम में बने ‘टेक्सचर्ड टेम्पर्ड कोटेड और अनकोटेड ग्लास’ की कथित डंपिंग की जांच कर रही है। 

बाजार की भाषा में इसे सोलर ग्लास या सोलर फोटोवोल्टिक ग्लास जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। घरेलू उद्योगों की ओर से (देश की सबसे बड़ी ग्लास निर्माता) बोरोसिल रिन्यूएबल्स लिमिटेड ने एक शिकायत दायर करके जांच और आयात पर उचित एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने की मांग की है।

साफ़ ऊर्जा में इस साल होगा $800 बिलियन निवेश: रिपोर्ट

एस एंड पी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी में निवेश 15 प्रतिशत तक बढ़कर 800 बिलियन डॉलर यानी करीब 66 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना उम्मीद है। इस निवेश में सबसे बड़ा योगदान सौर ऊर्जा में हुए विकास का होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन कैप्चर और स्टोरेज, कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल और हाइड्रोजन जैसे उभरते क्षेत्रों में नीतिगत बदलावों के कारण निवेश में वृद्धि होगी। इसमें यह भी कहा गया है कि तकनीकी विकास के फलस्वरूप, साफ़ ऊर्जा के प्रयोग की लागत में 2030 तक 15 से 20 प्रतिशत की गिरावट आएगी।  हालांकि कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज (CCUS) को लेकर विशेषज्ञों में एक राय नहीं है क्योंकि टेक्नोलॉजी की प्रामाणिकता पर अभी सवाल हैं। जानकार इसे जीवाश्म ईंधन का प्रयोग जारी रखने का एक बहाना मानते हैं।

अरबों डॉलर के निवेश के बाद एप्पल ने बंद की ईवी परियोजना

एप्पल ने अपनी एक दशक पुरानी, अरबों डॉलर की इलेक्ट्रिक वाहन परियोजना को बंद करके सबको चौंका दिया है। ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया कि ‘प्रोजेक्ट टाइटन’ को बंद करने के निर्णय का खुलासा 27 फरवरी को आतंरिक रूप से चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर जेफ विलियम्स और वाईस प्रेसिडेंट केविन लिंच द्वारा किया गया।

हालांकि कंपनी ने कभी इस परियोजना की आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की थी, लेकिन मीडिया ख़बरों के अनुसार इसमें करीब 2,000 लोग काम कर रहे थे और रिसर्च और डेवेलपमेंट पर अब तक अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके थे। हालांकि माना जा रहा है कि पहला वाहन बनाने में टीम को अभी भी कई साल लगने वाले थे।

स्पेशल प्रोजेक्ट्स ग्रुप (एसपीजी) के नाम से जाने जानी वाली इस टीम के कई कर्मचारी अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डिवीज़न में स्थानांतरित किए जाएंगे।

ट्रांसपोर्ट सेक्टर में ग्रीन हाइड्रोजन: पायलट प्रोजेक्ट्स के लिए सरकार ने जारी की गाइडलाइंस 

सरकार ने बसों, ट्रकों और चौपहिया वाहनों में ईंधन के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन के प्रयोग  वाले पायलट प्रोजेक्ट्स के लिये गाइडलाइंस जारी की हैं। नवीनीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने बीती 14 फरवरी को जारी एक बयान में कहा है कि इसके लिये कुल 496 करोड़ रूपये के बजट का प्रावधान है जिसके तहत वित्तीय वर्ष 2025-26 तक योजना लागू होगी। साफ ऊर्जा और इलेक्ट्रोलाइट्स की गिरती कीमतों के साथ ग्रीन हाइड्रोजन पर आधारित वाहन आने वाले दिनों में फायदे का सौदा हो सकते हैं। क्लीन मोबिलिटी के क्षेत्र में दूसरे प्रयासों के अलावा नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत नवीनीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) जीवाश्म ईंधन की बजाय स्वच्छ ईंधन के प्रयोग को प्रोत्साहित कर रहा है और शिपिंग  क्षेत्र में भी इसे लागू किया जायेगा। 

सड़क पर वाहनों के लिये यह योजना भूतल परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और नामित एजेंसियों के ज़रिये लागू की जायेंगी। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन प्रयोग की टेक्नोलॉजी के विकास के साथ एथनॉल/ मेथनॉल और अन्य सिंथेटिक ईंधन की मिक्सिंग/ ब्लैंडिंग शामिल है। इस योजना के जरिए साफ ईंधन के लिये पूरे मूलभूत ढांचे को बढ़ाना बड़ी  चुनौती होगी। 

ईवी के साथ भारतीय बाजार में वापसी कर सकती है फोर्ड

वैश्विक ऑटो दिग्गज फोर्ड मोटर हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ भारतीय बाजार में वापसी की तैयारी कर रही हैद हिंदू बिज़नेसलाइन ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि कंपनी इन कारों के उत्पादन के लिए चेन्नई स्थित अपनी विनिर्माण सुविधा का उपयोग करेगी।

भारत में अपनी उपस्थिति मजबूत करने के लिए, फोर्ड मोटर एक स्थानीय मैनुफैक्चरिंग पार्टनर भी खोज रही है। इस संबंध में सूत्रों का कहना है कि इसकी संभावित संयुक्त उद्यम के लिए टाटा समूह के साथ बातचीत चल रही है। 

फोर्ड ने साल 2021 में भारत में निर्माण बंद कर दिया था और घोषणा की थी वह भारत में अब केवल महंगे मॉडलों का निर्यात करेगी।

चीनी इंजीनियरों ने बनाई रिचार्जेबल कैल्शियम-ऑक्सीजन बैटरी

चीनी इंजीनियरों के एक समूह ने कैल्शियम-आधारित बैटरी का एक नमूना बनाया है जो सामान्य तापमान पर 700 बार चार्ज करके काम में लाई जा सकती है।   शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग करने योग्य, रिचार्जेबल, कैल्शियम-ऑक्सीजन-आधारित बैटरी विकसित करने का प्रयास किया है। वर्तमान में रिचार्जेबल बैटरियों में लिथियम-आयन का प्रयोग किया जाता है। 

हालांकि, लिथियम की कमी और इससे जुड़ी समस्याओं (बैटरी की आयु के साथ गुणवत्ता में गिरावट और ओवरचार्जिंग के खतरे इत्यादि) के कारण वैज्ञानिक एक अच्छे विकल्प की खोज कर रहे हैं। कैल्शियम लिथियम से 2,500 गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

जीवाश्म ईंधन से ट्रांजिशन के लिए कॉप-28 अध्यक्ष की अपील

पिछले दुबई में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-28) के मेजबान रहे यूएई ने सभी देशों से अपील की कि वे जीवाश्म ईंधन से दूर जाने (ट्रांजिशन अवे) के लिए कदम उठाएं। पिछले साल दिसंबर में हुए सम्मेलन में गहन वार्ता के बाद सभी देश जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से ट्रांजिशन पर  सहमत हुए थे, ताकि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से बचा जा सके। अब सभी देशों को अपनी उन योजनाओं के बारे में बताना है जिनके द्वारा इस उद्देश्य को हासिल किया जाएगा। 

मंगलवार को दुबई वार्ता को अध्यक्ष रहे सुलतान अल जबेर ने बीते मंगलवार (20 फरवरी) को यह कहा कि अब हमें अभूतपूर्व सहमति को अभूतपूर्व एक्शन और अभूतपूर्व परिणामों में बदलना चाहिए। जबेर ने कहा कि पावर की मांग को अगर नियंत्रित नहीं किया गया तो ऊर्जा उथलपुथल (एनर्जी टर्मऑइल) हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जबेर ने कहा कि ट्रांजिशन की कीमत को लेकर विश्व के देशों और नेताओं को ईमारदारी और पारदर्शिता बरतनी चाहिए। यह दिलचस्प है कि जबेर खुद यूएई की सबसे बड़ी तेल कंपनी एडनॉक के सीईओ हैं और दुबई वार्ता के दौरान संयुक्त अरब अमीरात के इरादों पर कई सवाल उठे और विवाद हुआ था।     

जीवाश्म ईंधन के लिए विवादास्पद  संधि से बाहर आएगा यूके   

यूनाइटेड किंगडम उस विवादास्पद ऊर्जा संधि से निकल जाएगा जिसकी वजह से बड़ी तेल और गैस कंपनियां क्लाइमेट नीतियों को लागू करने के लिए सरकारों के खिलाफ मुकदमे कर रही हैं। यूरोप के दूसरे महत्वपूर्ण देशों फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और नीदरलैंड भी 1990 के दशक की इस संधि को छोड़ने का फैसला किया है जबकि यूरोपीय संसद ने सभी देशों से इस संधि को छोड़ने की अपील की है। नब्बे के दशक में जब ऊर्जा क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन का बोलबाला था तो यह संधि अंतर्राष्ट्रीय निवेश को बढ़ावा देने के लिए की गई लेकिन बाद में विश्व की बड़ी कंपनियों ने इस संधि की मदद से सरकारों पर मुकदमे करने शुरू किए। इटली जिसे वैश्विक ब्रिटिश तेल कंपनी रॉकहॉपर को संधि के तहत भारी कीमत चुकानी पड़ी, ने 2015 में ही इसे संधि को छोड़ने का ऐलान कर दिया था।   

रूस-यूक्रेन युद्ध: बड़ी तेल कंपनियों ने कमाया $281 बिलियन का मुनाफा 

एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ग्लोबल विटनेस ने दावा किया है कि फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद तेल की सुपर मेजर कंपनियों ने 281 बिलियन डॉलर यानी 23 लाख करोड़ रुपए से अधिक का मुनाफा कमाया है। इसमें 20.5 लाख करोड़ तो बीपी, शेल, शेवरॉन, एक्सॉन मोबिल और टोटल एनर्जी जैसी कंपनियों की जेब में गया। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद तेल और गैस की  कीमतों में भारी उछाल के कारण यह हुआ। रूस के हमले के बाद से अब तक यूके स्थित कंपनियों बीपी और शेल   ने मिलाकर 94.2 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया है यानी करीब पौने आठ लाख करोड़ रुपये के बराबर। यह रकम पूरे ब्रिटेन के लोगों के 17 महीने के बिजली के बिल के बराबर है।