Vol 1, March 2024 | गर्मियों से पहले जल संकट ने बजाई खतरे की घंटी

बेंगलुरु में भीषण जल संकट, अन्य शहरों पर भी मंडराता खतरा

बेंगलुरु और आस-पास के इलाकों में जल संकट गहराता जा रहा है। कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने कहा है कि राज्य पिछले चार दशकों के सबसे बुरे सूखे से गुज़र रहा है।

भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस) के एक अध्ययन के मुताबिक पिछले कुछ दशकों के शहरीकरण के दौरान, बेंगलुरु में कंक्रीट के ढाचों और पक्की जमीनों में 1,055% का इज़ाफ़ा हुआ है। वहीं, जल प्रसार क्षेत्र में 79% की गिरावट हुई है जिससे पेयजल की भारी कमी हुई है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि शहर की 98% झीलों पर अतिक्रमण हो चुका है जबकि 90% में सीवेज और उद्योगों का कचरा भर गया है।

जल संकट की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री आवास पर भी पानी के टैंकर देखे गए हैं। वहीं शिवकुमार ने कहा कि पहली बार ऐसा हुआ कि उनके घर के बोरवेल में भी पानी नहीं आ रहा है।       

बेंगलुरु को प्रतिदिन 2,600-2,800 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और वर्तमान आपूर्ति आवश्यकता से आधी है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) ने पेयजल के गैर-जरूरी उपयोग पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है।  जल संकट के बीच कई लोग शहर से पलायन‎ करने लगे हैं। 

ऐसा ही जलसंकट 2019 में चेन्नई में भी हुआ था। हैदराबाद में भी ऐसे ही संकट की आहट सुनाई दे रही है।  हाल ही में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में‎ कहा गया कि 2030 तक भारत के करीब 10‎ शहरों में भारी जल संकट देखने को ‎मिल सकता है। 

जनवरी के बाद फरवरी ने भी तोड़ा रिकॉर्ड, समुद्र सतह का तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर 

वैज्ञानिकों के मुताबिक जनवरी के बाद बीती फरवरी का तापमान भी वैश्विक रूप से रिकॉर्ड स्तर पर रहा। यह लगातार नवां महीना है जिसमें ऊंचे तापमान का रिकॉर्ड बना है। यूरोपियन यूनियन के कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस सेंटर के मुताबिक वैश्विक समुद्र सतह तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर रहा। आंकड़े बताते हैं कि फरवरी में तापमान प्री-इंडस्ट्रियल (1850-1900 का औसत तापमान) लेवल से 1.77 डिग्री सेंटीग्रेट ऊपर रहा। 1991 से 2020 के औसत तापमान से यह 0.81 डिग्री ऊपर रहा। पिछले 12 महीनों का औसत वैश्विक तापमान वृद्धि 1.56 डिग्री रही है। 

यूरोप के तापमान को देखें तो 1991-2020 की तुलना में तापमान वृद्धि 3.3 डिग्री की रही। यूरोप में दिसंबर से फरवरी तक का समय महाद्वीप पर अब तक की दूसरा सबसे गर्म सर्दियां रही हैं। अगर ध्रुवीय हिस्सों (पोलर क्षेत्र) को छोड़ दें तो उसके बाहर औसत वैश्विक समुद्र सतह तापमान उच्चतम रहे। यह पहले के 20.98 डिग्री के तापमान को तोड़कर 21.06 डिग्री दर्ज किया गया यह आंकड़े बताते हैं कि धरती की तापमान वृद्धि (थोड़े समय के लिये ही सही) 1.5 डिग्री के उस बैरियर को पार कर गई है जिसके बाद पृथ्वी पर क्लाइमेट चेंज के दीर्घ अवधि के लिये विनाशक परिणाम होंगे।  

यूरोप पर मंडराता ‘विनाशकारी जलवायु परिवर्तन संकट 

पूरे यूरोप में सभी देशों को क्लाइमेट चेंज के विनाशकारी परिणामों के लिये तैयार हो जाना चाहिये। यहां भयानक बाढ़, सूखा और हीटवेव जैसी चरम मौसमी घटनाओं की मार पड़ेगी और समाज और अर्थव्यवस्था में उसका स्पष्ट असर दिखाई देगा। यह बात सोमवार को यूरोपीय यूनियन की क्लाइमेट एजेंसी ने कही।  सरकारों को चुनौतियों का सामना करने के लिये अब नई योजनायें बनानी होंगी। कोपेनहेगेन स्थित क्लाइमेट एजेंसी ने यह बात पूरे यूरोप पर आधारित अपने विश्लेषण में कही। यूरोप धरती पर सबसे तेज़ी से गर्म हो रहा महाद्वीप है जो वैश्विक औसत से दुगनी रफ्तार से गर्म हो रहा है। भले ही देश वार्मिंग की रफ्तार कम कर लें लेकिन तापमान पहले ही प्री इंडस्ट्रियल स्तर से 1 डिग्री ऊपर तो जा ही चुके हैं। 

अल निनो प्रभाव, इस साल होगी फिर रिकॉर्डतोड़ गर्मी  

उधर मौसम विभाग (आईएमडी) ने चेतावनी दी है कि भारत में इस साल गर्मियों की शुरुआत अधिक तापमान के साथ, होगी क्योंकि अल नीनो की स्थिति कम से कम मई तक बनी रहने की संभावना है।

आईएमडी ने भविष्यवाणी की कि देश के पूर्वोत्तर प्रायद्वीपीय हिस्सों — तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तरी कर्नाटक — और महाराष्ट्र और ओडिशा के कई हिस्सों में हीटवेव वाले दिनों की संख्या सामान्य से अधिक हो सकती है।

मार्च में सामान्य से अधिक बारिश (29.9 मिमी के लॉन्ग-पीरियड एवरेज से 117 प्रतिशत से अधिक) होने की संभावना है।

विभाग ने कहा कि मार्च से मई की अवधि में देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। हालांकि मार्च में हीटवेव की स्थिति नहीं रहेगी। 

दशकों तक निष्क्रिय रहते हैं पारिस्थितिकी को क्षति पहुंचाने वाले आक्रामक पौधे 

पौधों की ऐसी बहुत सारी प्रजातियां हैं जो पारिस्थितिकी और जैव विवधता के लिये बड़ा संकट हैं क्योंकि इनके आक्रामक विस्तार से कई प्रजातियां खत्म हो जाती हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में हुये शोध में पाया गया है कि ऐसी आक्रामक वनस्पतियां सक्रिय होने से पहले कई दशकों बल्कि कई बार को सदियों तक सुषुप्त अवस्था में रहती हैं।  इस शोध में दुनिया भर के 9 क्षेत्रों की 5,700 प्रजातियों का अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं का दावा है कि आक्रामक पौधों पर किया गया अब तक का यह सबसे बड़ा विश्लेषण है। शोध करने वाली टीम के सदस्य प्रोफेसर मोहसेन मेसगरन ने कहा, ये पौधे जितनी अधिक देर तक निष्क्रिय रहेंगे, इसके उतने अधिक आसार हैं कि हम इन्हें नजरअंदाज करेंगे। यह देरी अंततः इन पौधों को  एक गंभीर आक्रामक खतरे के रूप में उभरने में मदद करती है। ये आक्रामक पौधे टाइम बम की तरह हैं, जो भारी नुकसान को अंजाम देते हैं।

भारत की मांग, हर साल $1 ट्रिलियन का क्लाइमेट फाइनेंस दें अमीर देश

भारत ने यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) से मांग की है कि 2025 से अमीर देशों को हर साल “कम से कम” 1 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 8.2 लाख करोड़ रुपए) क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में विकासशील देशों को मुहैया कराने चाहिए, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें।

हालांकि यह मांग मौजूदा 100 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता से कहीं ज्यादा है, फिर भी यह दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन के घोषणापत्र के अनुरूप है। अमीर देश अभी तक 2009 में कॉप15 के दौरान किए गए वायदे के अनुरूप हर साल 100 बिलियन डॉलर का क्लाइमेट फाइनेंस प्रदान करने में असमर्थ रहे हैं। भारत ने अपने प्रस्ताव में उन्हें इस अधूरे वायदे की भी याद दिलाई है।

आंकड़ों के मुताबिक़ भारत को यदि 2030 तक अपने क्लाइमेट लक्ष्यों को पूरा करना तो उसे लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत है। 2020 में भारत को प्राप्त 44 बिलियन डॉलर के क्लाइमेट फाइनेंस का 80 प्रतिशत हिस्सा घरेलू स्रोतों से प्राप्त हुआ। जबकि इसका 40% प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पब्लिक फाइनेंस से मिला था। विकसित देशों के अधूरे वायदों के कारण अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंस रुका हुआ है।

उधर प्राइवेट फाइनेंस की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने पिछले साल ग्रीन बांड योजना शुरू की थी। लेकिन इसमें भी सुधार की जरूरत है, साथ ही प्राइवेट फाइनेंस बढ़ाने के और तरीके भी तलाश करने होंगें।

दिल्ली हाईकोर्ट ने पेड़ों की कटाई के लिए एसओपी बनाने का दिया निर्देश

दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जिन इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए पेड़ों की कटाई आवश्यक होती है उनके लिए एक स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाया जाना चाहिए, जिसमें वन विभाग की भी सहभागिता होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पेड़ों को काटने की अनुमति अंतिम विकल्प होना चाहिए।

कोर्ट ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों से यह एसओपी बनाने के लिए कहा है, जिसके तहत किसी भी निजी निर्माण के लिए पेड़ों को काटने से पहले इसकी अनुमति लेनी होगी। इस प्रक्रिया के अंतर्गत संबंधित अधिकारी निर्माण स्थल पर जाकर मुआयना करेंगे कि क्या पेड़ों को किसी तरह बचाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में वन विभाग भी शामिल होना चाहिए, जो पेड़ों को सुरक्षित करने पर अपनी राय देगा।

मामले की सुनवाई अब 18 मार्च को होगी।

गरीब देशों में ग्रामीण महिलाओं पर होगा जलवायु परवर्तन का बुरा असर, संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी 

मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी कि गरीब देशों में खेतों और घरेलू काम में पिसने वाली ग्रामीण महिलाओं के परिवार पर जलवायु परिवर्तन का अधिक प्रभाव पड़ता है। जब ये महिलायें जीविका के लिये वैकल्पिक साधन ढूंढती हैं तो इन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में महिला प्रधान परिवारों की आय में गर्मी के दौरान 8 प्रतिशत और बाढ़ में 3 प्रतिशत अधिक क्षति होती है। एफएओ के मुताबिक गर्मी में तनाव के कारण यह असमानता 83 डॉलर प्रति व्यक्ति तक बढ़ जाती है और बाढ़ की वजह से यह अंतर 35 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति हो जाता है। 

सिडबी ने हासिल की पहली ग्रीन क्लाइमेट फंड परियोजना

भारतीय लधु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) ने कहा है कि उसने अपनी पहली परियोजना अवाना सस्टेनेबिलिटी फंड (एएसएफ) के लिए ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) की मंजूरी हासिल कर ली है। एएसएफ 120 मिलियन डॉलर का फंड है जिसमें जीसीएफ 24.5 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा।

अवाना सस्टेनेबिलिटी फंड के द्वारा उन नई कंपनियों में निवेश किया जाएगा जो प्रौद्योगिकी और तकनीक की मदद से क्लाइमेट चेंज से निपटने, पर्यावरण संरक्षण और सस्टेनेबल डेवलपमेंट आदि में अपना योगदान देंगीं।

यह सिडबी द्वारा संचालित पहली परियोजना है, जिसका देश के जलवायु लक्ष्यों पर बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।

प्रदूषण के लिए राजस्थान के छबड़ा थर्मल पावर स्टेशन को मिला नोटिस

राजस्थान में एक और सरकारी थर्मल पावर प्लांट को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हुए पाया गया है और कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। झालावाड़ जिले में कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट पर जुर्माना लगाए जाने के लगभग एक महीने बाद, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) ने बारां जिले में छबड़ा थर्मल पावर स्टेशन  के खिलाफ का यह कदम उठाया है।

‘पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल’ (यह सिद्धांत कि प्रदूषण नियंत्रित करने का खर्च प्रदूषक को वहन करना चाहिए) के अनुसार, आरएसपीसीबी ने अनुमान लगाया है कि सीटीपीएस पर 2.01 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा लगाया जाना है। पावर स्टेशन के निरीक्षण के बाद, आरएसपीसीबी टीम ने बताया कि इकाई जल अधिनियम, 1974 के प्रावधानों का पालन करने में गंभीर रूप से विफल रही।  साथ ही वायु अधिनियम, 1981; पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986; और 2006 की ईआईए अधिसूचना, जिसे बोर्ड द्वारा अत्यंत गंभीरता से देखा जाता है, का पालन करने में भी विफल रही।  

देश के कई शहरों में हवा दमघोंटू

हमारे देश के कुछ शहरों की हवा बहुत प्रदूषित है और सांस लेना मुश्किल है। अगरतला, चंद्रपुर, गुरुग्राम, गुवाहाटी, नलबाड़ी और रूपनगर में वायु प्रदूषण गंभीर है। इन शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 200 से ऊपर है और 251 एक्यूआई के साथ चंद्रपुर की स्थिति सबसे खराब है।

इसी तरह देश के 119 शहरों में वायु गुणवत्ता मध्यम श्रेणी में बनी हुई है। 13 शहर ऐसे हैं जहां हवा साफ है और प्रदूषण का स्तर 50 या उससे नीचे है। वाराणसी में 24 अंक के साथ भारत में सबसे स्वच्छ हवा है। संतोषजनक वायु गुणवत्ता वाले शहरों का आंकड़ा 115 दर्ज किया गया था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 08 मार्च 2024 को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 251 में से 13 शहरों में हवा ‘बेहतर’ (0-50 के बीच) रही। वहीं 113 शहरों में वायु गुणवत्ता ‘संतोषजनक’ (51-100 के बीच) है, गौरतलब है कि 07 मार्च 2024 यह आंकड़ा 115 दर्ज किया गया था। 119 शहरों में वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ (101-200 के बीच) रही।

हाइकोर्ट ने कहा की झारखंड में ध्वनि प्रदूषण की शिकायत के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी करे सरकार

रांची शहर में ध्वनि प्रदूषण की बढ़ती समस्या के बीच, झारखंड उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक जनहित याचिका की अध्यक्षता की। मामले की सुनवाईं के बाद, न्यायमूर्ति रंगन मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की खंडपीठ ने राज्य सरकार को ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित व्यक्तियों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन स्थापित करने का निर्देश दिया। विशेष रूप से रात्रि 10:30 बजे के बाद लोग हेल्पलाइन नंबर पर अपनी शिकायत कर सके तथा ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति पा सकें।  इसके अलावा, सरकार को ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए जनता को शिक्षित करने और जागरूकता फैलाने में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान शुरू करने का काम सौंपा गया था।

याचिका दायर कर कहा गया है कि रात 10.30 बजे के बाद बैंक्वेट हॉल, धर्मशाला और मैरिज हॉल में लाउडस्पीकर और डीजे के साथ जुलूस निकालने से ध्वनि प्रदूषण हो रहा है और इसे रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने पहले एक आदेश जारी कर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या डीजे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी और इस नियम का उल्लंघन करने वालों को परिणाम भुगतना होगा। हालाँकि, धार्मिक त्योहारों के दौरान आधी रात तक लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति तभी दी जा सकती है, जब जिला प्रशासन से अनुमति ली गई हो।

बेहतर वायु गुणवत्ता आत्महत्या दर में कमी से जुड़ी है: अध्ययन

चीन में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण का स्तर कम होने से आत्महत्या की दर कम हो सकती है। कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वायु प्रदूषण को कम करने के चीन के प्रयासों ने केवल पाँच वर्षों में देश में 46,000 आत्महत्या से होने वाली मौतों को रोका है। टीम ने प्रदूषण और आत्महत्या दर को प्रभावित करने वाले जटिल कारकों को अलग करने के लिए मौसम की स्थिति का उपयोग किया, और इस निष्कर्ष  पर पहुंचे की यह वास्तव में कारण संबंध हैं।

 शोध दल ने पहले भारत में आत्महत्या की दर पर तापमान के प्रभाव का अध्ययन किया था, जिसमें पाया गया कि अत्यधिक गर्मी उन दरों को बढ़ाती है। टीम यह जानने के लिए उत्सुक थी कि चीन में आत्महत्या की दर दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में कहीं अधिक तेजी से गिरी है। शोधकर्ताओं ने कहा कि 2000 में, देश की प्रति व्यक्ति आत्महत्या दर वैश्विक औसत से अधिक थी, लेकिन दो दशक बाद यह उस औसत से नीचे आ गई है, जिसमें गिरावट आ रही है। उन्होंने कहा कि साथ ही, वायु प्रदूषण का स्तर भी कम हो रहा था।

साफ़ ऊर्जा पर मिली सब्सिडी कुल सब्सिडी का 10% से भी कम: रिपोर्ट

इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने पिछले साल ऊर्जा सब्सिडी पर 3.2 लाख करोड़ रुपए खर्च किए। लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी इस राशि का केवल 10 प्रतिशत थी। कुल मिलाकर, जीवाश्म ईंधन पर दी गई सब्सिडी, स्वच्छ ऊर्जा पर दी गई सब्सिडी से पांच गुना अधिक थी।

12 मार्च को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊर्जा सब्सिडी नौ साल के उच्चतम स्तर पर रही। हालांकि इसमें कहा गया है कि पिछले एक दशक में जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी 59% घटी है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न ऊर्जा संकट के कारण भारत सभी ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। 

साल 2023 में स्वच्छ ऊर्जा और जीवाश्म ईंधन दोनों पर दी जाने वाली सब्सिडी में लगभग 40% की वृद्धि हुई, हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी में बढ़ोत्तरी थोड़ी तेज थी। पिछले साल भारत की नवीकरणीय ऊर्जा सब्सिडी बढ़कर 14,843 करोड़ रुपए हो गई, जो वित्त वर्ष 2022 की तुलना में 8% अधिक है। हालांकि, इस दौरान जीवाश्म ईंधन पर जो सब्सिडी दी गई, उसकी तुलना में ये इज़ाफ़ा भी काफी कम था।

कुल ऊर्जा सब्सिडी में स्वच्छ ऊर्जा सब्सिडी की हिस्सेदारी 10% से भी कम रही, जबकि कोयला, तेल और गैस पर दी गई सब्सिडी की हिस्सेदारी लगभग 40% थी। शेष सब्सिडी का अधिकांश हिस्सा बिजली की खपत के लिए था, खासकर कृषि में।

3.2 गीगावॉट के साथ ओपन एक्सेस सौर क्षमता में रिकॉर्ड वृद्धि

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2023 के दौरान रिकॉर्ड 3.2 गीगावाट ओपन एक्सेस सौर क्षमता जोड़ी, जो पिछले साल के मुकाबले 6.66 प्रतिशत अधिक है। इसके पीछे मॉड्यूल की कीमतों में कमी जैसे कई कारण बताए जा रहे हैं।

ओपन एक्सेस सौर ऊर्जा एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उत्पादक उपभोक्ताओं को हरित ऊर्जा की आपूर्ति करने के लिए सोलर प्लांट स्थापित करते हैं।

मेरकॉम की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल में ओपन एक्सेस सौर क्षमता यह रिकॉर्ड वृद्धि है, और दिसंबर 2023 तक कुल क्षमता 12.2 गीगावॉट तक पहुंच गई।

इसमें 33.1% के साथ पहला स्थान पर कर्नाटक है, दूसरे पर महाराष्ट्र (13.5%) और तीसरे पर तमिल नाडु (11.4%)। 

देश की आधे से अधिक नवीकरणीय क्षमता 4 राज्यों तक सीमित: केंद्र

केंद्र सरकार द्वारा 14 मार्च को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, देश की आधे से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता चार राज्यों में सीमित है। इसमें राजस्थान की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक का नंबर आता है।

‘एनर्जी स्टेटिस्टिक्स 2024’ में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने कहा है कि “नवीकरणीय ऊर्जा की अनुमानित क्षमता के भौगोलिक वितरण से पता चलता है कि राजस्थान की हिस्सेदारी सबसे अधिक लगभग 20.3% है।” महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक की हिस्सेदारी 32% है।

वित्त वर्ष 2023 में भारत ने 2,109.7 गीगावाट की कुल अनुमानित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का केवल 8% उपयोग किया था। 2030 तक भारत स्थापित नवीकरणीय क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट करना चाहता है। उस समय तक देश अपनी सौर ऊर्जा क्षमता का लगभग 40% और पवन ऊर्जा क्षमता का 10% उपयोग करेगा।

भारत की स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता 56% बढ़ी

भारत ने 2023 में 2.8 गीगावाट अतिरिक्त पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित की, जो 2022 में की गई 1.8 गीगावाट से लगभग 56% अधिक है। दिसंबर 2023 तक संचयी पवन क्षमता 44.7 गीगावाट रही, जबकि 2022 के अंत में यह 41.9 गीगावाट थी।

मेरकॉम इंडिया रिसर्च के अनुसार, 2023 की चौथी तिमाही (Q4) में भारत ने 552 मेगावाट की पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 141% अधिक है।

वहीं पिछली तिमाही, यानि Q3 के मुकाबले Q4 में इंस्टॉलेशन में 34% की वृद्धि हुई।

नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती मांग के कारण देश भर में पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाओं में भी वृद्धि हुई है।

नई ईवी नीति को मंजूरी, विदेशी कंपनियों को मिलेगी छूट

सरकार ने नई इलेक्ट्रिक-वाहन नीति को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत भारत में मैनुफैक्चरिंग यूनिट लगाने वाली कंपनियों को शुल्क में रियायतें दी जाएंगी, यदि वह कम से कम 500 मिलियन डॉलर (4,150 करोड़ रुपए) का निवेश करें। इस कदम के जरिए सरकार टेस्ला जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करना चाहती है। 

इस योजना के तहत, ईवी मैनुफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने वाली कंपनियों को कम सीमा शुल्क पर एक सीमित संख्या में कारें आयात करने की अनुमति दी जाएगी।

इसके तहत कम से कम 4,150 करोड़ रुपए निवेश करने वाली कंपनियों को शुल्क में उनके निवेश के बराबर या 6,484 करोड़ रुपए, जो भी कम हो, की छूट दी जाएगी। यदि निवेश 800 मिलियन डालर (6,631 करोड़ रुपए) या अधिक है, तो प्रति वर्ष 8,000 से अधिक की दर से अधिकतम 40,000 ईवी के आयात की अनुमति होगी।

गौरतलब है कि टेस्ला भारत सरकार से कस्टम शुल्क में रियायत की मांग करती रही है।  हालांकि हाल ही में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि भारत केवल टेस्ला के लिए अपनी नीति नहीं बदलेगा, बल्कि सभी कंपनियों को ध्यान में रखकर इसमें बदलाव किया जाएगा।

टेस्ला के अलावा, ई-वाहनों का अन्य प्रमुख वैश्विक निर्माता चीन की बीवाईडी कंपनी है।

सभी ऑटो कंपनियां एक निश्चित संख्या में ईवी निर्मित करें: ईएसी-पीएम

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) ने प्रस्ताव रखा है कि ऑटोमोबाइल कंपनियों को एक ट्रांसफरेबल मैंडेट दिया जाना चाहिए कि उनके द्वारा निर्मित वाहनों का एक निश्चित प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन होने चाहिए। ट्रांसफरेबल मैंडेट सरकार या किसी नियामक संस्था द्वारा कंपनियों पर लगाई गई शर्तों को कहते हैं जिसके तहत उन्हें कुछ मानकों या लक्ष्यों को पूरा करना होता है। इसके ट्रांसफरेबल होने का अर्थ यह है कि कंपनियां आपस में अनुपालन के इस दायित्व का हस्तांतरण या व्यापर कर सकती हैं।

ईएसी-पीएम के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय और निदेशक देवी प्रसाद मिश्रा द्वारा लिखे गए इस पेपर में सुझाव दिया गया है कि जीएसटी दरों में जरूरी फेरबदल करके इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद की अपेक्षा लीजिंग को बढ़ावा देना चाहिए।

पेपर में कहा गया है कि “अभी तक ईवी को बढ़ावा देने के लिए हमारी नीतियां सब्सिडी, टैक्स में छूट, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर आदि पर केंद्रित रही हैं… कंपनियों को एक निश्चित प्रतिशत में ईवी का उत्पादन करने का ट्रांसफरेबल मैंडेट देना इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को प्रोत्साहित करने का एक प्रभावी तरीका होगा।”

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, 2030 तक भारत में हर साल एक करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन बिकेंगे, जिनके कारण पांच करोड़ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होने की उम्मीद है।

ईवी निर्माण: मूलनिवासियों की जमीनें हड़प रहीं माइनिंग कंपनियां

मानवाधिकार समूह क्लाइमेट राइट्स इंटरनेशनल (सीआरआई) ने एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग से इंडोनेशिया, फिलीपींस और कांगो में स्थानीय समुदायों के अधिकारों का हनन हो रहा है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।  

पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ी है। ऐसे में इन वाहनों की बैटरी में प्रयोग होने वाले निकल जैसे खनिजों का खनन बहुत बढ़ गया है। दुनिया में सबसे ज्यादा निकल के भंडार इंडोनेशिया और फिलीपींस में हैं।

ठीक ऐसा ही प्रभाव कांगो में कोबाल्ट और कोल्टन की माइनिंग का पड़ रहा है। इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर मूलनिवासियों की जमीनों पर निकल इंडस्ट्रियल ज़ोन बना दिए गए हैं।  

सीआरआई की उक्त रिपोर्ट में इंडोनेशिया के मलूकू प्रांत के हलमाहेरा गांव का ज़िक्र है, जहां के निवासियों ने माइनिंग कंपनियों पर डरा-धमकाकर उनकी ज़मीने खाली करवाने का आरोप लगाया है। मानवाधिकार समूहों ने चेतावनी दी है कि यदि वनों को इसी तरह नष्ट किया जाता रहा तो यहां के समुदाय अपना घर हमेशा के लिए खो देंगे।

कर्नाटक सरकार ने बंद की इलेक्ट्रिक बाइक टैक्सी सेवा

कर्नाटक सरकार ने राज्य में इलेक्ट्रिक बाइक टैक्सी सेवाओं के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया है। आदेश में कहा गया है कि इन सेवाओं से मोटर वाहन अधिनियम का उल्लंघन हो रहा था और इन्हें “महिलाओं के लिए असुरक्षित” पाया गया।

राज्य सरकार ने कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने और दोपहिया बाइक टैक्सी पर यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस योजना को रद्द कर दिया गया है।  

कर्नाटक इलेक्ट्रिक बाइक-टैक्सी योजना 2021 में शुरू हुई थी। 

बिजली उत्पादन से रिकॉर्ड इमीशन, चीन में अर्थव्यवस्था का ग्राफ बढ़ने से जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बढ़ा

पूरी दुनिया में बिजली उत्पादन क्षेत्र से जुड़े CO2 इमीशन पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गये। इसके पीछे उन देशों में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग भी एक कारण रहा जहां सूखे के कारण जलविद्युत का उत्पादन प्रभावित हुआ।  शुक्रवार को इंटरनेशन एनर्जी एजेंसी ने यह बात कही।  वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान पर नियंत्रण रखने और क्लाइमेट चेंज प्रभावों को रोकने के लिये उत्सर्जन (विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से होने वाले) में भारी कटौती अनिवार्य है। एजेंसी का विश्लेषण कहता है कि साल 2023 में वैश्विक तापमान में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि 410 मिलिटन टन के बराबर है। इससे  पिछले साल एनर्जी सेक्टर से होने वाले कुल उत्सर्जन की मात्रा 37.4 बिलियन टन हो गई। 

साफ ऊर्जा स्रोतों  से बिजली उत्पादन ने कुछ मदद ज़रूर की लेकिन कोविड-19 के बाद चीन की अर्थव्यवस्था और उत्पादन में उछाल आया है जिसका असर इमीशन में वृद्धि पर दिखा है। आईईए का विश्लेषण कहता है कि बिजली उत्पादन के लिये चीन के इमीशन 5.2% बढ़े हैं। 

कोयला बिजलीघरों से मिली रिकॉर्ड बिजली और इमीशन भी

इस साल जनवरी में कोयले से बिजली उत्पादन में देश ने नया रिकॉर्ड स्थापित किया। थिंक टैंक एम्बर के मुताबिक भारत के जनवरी 2023 में कोयला बिजलीघरों ने 115 टेरावॉट आवर यानी 115 बिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया। यह पिछले साल 2023 की जनवरी में 10% अधिक है और एक रिकॉर्ड है। बिजली उत्पादन के लिये कोयले के इस्तेमाल में चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर है। जनवरी में कोयला बिजलीघरों से उत्सर्जन भी रिकॉर्ड स्तर पर रहा जो कि कुल 104.5 मिलियन मीट्रिक टन था जबकि सभी बिजली स्रोतों से कुल इमीशन 107.5 मिलियन टन हुआ। 

महत्वपूर्ण है कि इस साल 7 मार्च तक कोल इंडिया ने कोयला उत्पादन में भी रिकॉर्ड बना दिया है। अब तक 2023-24 में कोल इंडिया का कुल कोयला उत्पादन 703.91 मिलियन टन हो गया।  जहां कोयले से बिजली उत्पादन बढ़ा वहीं जलविद्युत, पवन और सोलर से उत्पादन में 21.4%, 19% और 3% की गिरावट दर्ज हुई। 

बड़े यूरोपीय देश नॉर्थ सी में तेल-गैस ड्रिलिंग रोकने को तैयार नहीं 

एक रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्थ सी के आसपास बसे किसी भी बड़े तेल और गैस उत्पादक देश की योजना ड्रिलिंग रोकने की नहीं है यद्यपि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से नीचे रखने के लिये ऐसा किया जाना ज़रूरी है।  पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले कैंपेन ग्रुप ऑइल चेंज इंटरनेशनल के मुताबिक यहां स्थित पांचों देश – यूके, जर्मनी, नीदरलैंड, नॉर्वे और डेनमार्क – अपनी तेल और गैस नीतियों को पेरिस संधि के मुताबिक ढालने में विफल रहे हैं। इन देशों से घिरा नॉर्थ सी पश्चिमी यूरोप में तेल और गैस का विपुल भंडार है और माना जाता है अब भी यहां करीब 24 बिलियन बैरल पेट्रोलियम जमा है। साल 2021 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा था कि नेट ज़ीरो इमीशन (और धरती को बचाने) के लिये अब किसी नहीं तेल प्रोजेक्ट की गुंजाइश नहीं है लेकिन आइल चेंज की रिपोर्ट में कहा गया है कि नॉर्वे और यूके में नीतियां पेरिस संधि से मेल नहीं खाती क्योंकि ये देश “आक्रामक” अंदाज़ में नये तेल और गैस भंडारों के लिये लिये शोध और लाइसेंसिंग कर रहे हैं।

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