
Newsletter - March 20, 2023
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसल पर चोट, किसानों पर दोहरी मार
मार्च के मध्य में देश के कई हिस्सों में हुई बारिश से खेतों में खड़ी रबी की फसल को भारी नुकसान हुआ है। दिल्ली, यूपी, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में कई जगह तेज़ हवा के साथ बरसात हुई।
शानिवार से सोमवार तक देश में कई जगह बारिश के साथ ओलावृष्टि भी हुई। इससे जहां तापमान में अचानक गिरावट हुई वहीं गेहूं, सरसों, ज्वार और आलू समेत कई फसलों को नुकसान हुआ है।
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की आशंका देखते हुए मौसम विभाग (आईएमडी) ने पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों को सलाह दी है कि वह गेहूं और अन्य रबी फसलों की कटाई फिलहाल टाल दें।
पकी हुई फसलों के मामले में आईएमडी ने किसानों को कुछ राज्यों में सरसों और चना जैसी फसलों की जल्द से जल्द कटाई करने और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर संग्रहीत करने की सलाह दी है।
किसानों को फसल गिरने से बचाने के लिए गेहूं की फसल की सिंचाई नहीं करने को भी कहा गया है।
वहीं मार्च की शुरुआत में फसल के नुकसान के बाद, महाराष्ट्र के किसानों को एक झटका और लगा है। 16-17 मार्च को हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि से उनकी तैयार फसल बर्बाद हो गई है।
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से हजारों किसान प्रभावित हुए हैं, जिससे मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र क्षेत्रों में फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है।
जंगलों में बढ़ती आग, मार्च की शुरुआत में दिखी 115% वृद्धि
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) ने उपग्रह की मदद से जो आंकड़े जुटाये गये हैं उनके मुताबिक इस साल मार्च के पहले 12 दिनों में जंगलों में 42,799 जगह आग का पता चला है। पिछले साल इसी दौरान 19,929 आग की घटनाएं दर्ज की गई थीं यानी कुल 115% की वृद्धि। एफएसआई के मुताबिक बीते सोमवार को देश के जंगलों में कुल 772 जगह बड़ी आग धधकते देखी गईं। इनमें उड़ीसा के जंगलों में सबसे अधिक 202 जगह बड़ी आग देखी गईं। इसके बाद मिज़ोरम (110), छत्तीसगढ़ (61), मेघालय (59), मणिपुर (52) और आंधप्रदेश (48) में बड़ी आग दिखीं।
बरसात में कमी आग की प्रमुख वजह माना जा रहा है। इस साल फरवरी में देश में केवल 7.2 मिमी बारिश दर्ज की गई जो कि 1901 के बाद से अब तक फरवरी में हुई छठी सबसे कम बारिश है। मध्य भारत में 99% कम बारिश हुई जबकि उत्तर भारत में 76% की कमी दर्ज की गई। दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र में भी 54% कम बारिश हुई जबकि पूर्व और उत्तर पूर्व में 35% की कमी दर्ज हुई। इस साल फरवरी का औसत तापमान (29.66 डिग्री) भी इतिहास का सबसे अधिक तापमान रहा।
तकरीबन सारी आग की घटनायें मानव जनित होती हैं। गर्मी, हीटवेव और सूखा वातावरण और सर्दियों के मौसम में कम बारिश से आग फैलना आसान हो रहा है. दूसरी ओर फॉरेस्ट मिस मैनेजमेंट
और वन आरक्षियों की कमी और और जंगलों में रहने वाले समुदायों को बाहर कर देना भी इसका कारण है।
रिकॉर्डतोड़ चक्रवाती तूफान फ्रेडी ने मचाई तबाही, मलावी में 200 से अधिक मरे
चक्रवाती तूफान फ्रेडी ने दक्षिणी अफ्रीका में महीने भर के भीतर दूसरी बार चोट की है। इससे दो अफ्रीकी देशों मलावी और मोज़ाम्बिक में काफी तबाही हुई है। मलावी में 200 से अधिक लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। मलावी के व्यवसायिक केंद्र ब्लेटटायर में सबसे अधिक मौतें हुई हैं और मरने वालों में कई बच्चे भी हैं। मोज़ाम्बिक में 20 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। राहत के काम में लगी एजेंसियों का कहना है कि आपदा और जल भराव के कारण आने वाले दिनों में हैजे का संकट हो सकता है।
फ्रैडी इतिहास में उन गिने चुने चक्रवातों में है जो महीने भर से अधिक वक्त तक बने रहे। इसने 34 दिन में उत्तर-पश्चिम ऑस्ट्रेलिया से चलकर पूरा हिन्द महासागर पार कर अफ्रीका तक का 8,000 किलोमीटर का सफर तय किया है यह सबसे अधिक समय तक प्रभावी रहने वाले चक्रवात का रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर बना दिया है।
इसरो की भूस्खलन एटलस में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और टिहरी सबसे संकटग्रस्त
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिस सेंटर ने सैटेलाइट तस्वीरों से रिस्क असेसमेंट किया है और देश के 147 ज़िलों की लिस्ट जारी की है जिनमें भूस्खलन या लैंडस्लाइड का ख़तरा है। इस भूस्खलन एटलस में मिज़ोरम, उत्तराखंड, हिमाचल और अरुणाचल जैसे पर्वतीय राज्यों के अलावा केरल जैसे समुद्र तटीय राज्यों का ब्यौरा है।
इसरो के वैज्ञानिकों ने 1998 से 2022 के बीच हुई भूस्खलन की घटनाओं के आधार पर सभी राज्यों में लैंडस्लाइड हॉटस्पाट एरिया बताये हैं। मिज़ोरम जैसे छोटे से राज्य में पिछले 25 साल में यानी 1998 से 2022 के बीच 12,385 लैंडस्लाइड हुये हैं। इनमें 2017 में ही करीब 8,926 घटनायें हुईं। उत्तराखंड में इसी दौरान 11,219 भूस्खलन हुये जबकि केरल – जहां 2018 में भयानक बाढ़ आई थी – वहां अब तक 6,039 भूस्खलन की घटनायें हुई हैं।
महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड के सभी ज़िले इस लिस्ट में शामिल हैं। नेशनल रिमोट सेंसिग सेंटर ने जो लिस्ट बनाई है उसमें उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और टिहरी पहले और दूसरे नंबर पर हैं। रुद्रप्रयाग ज़िले में ही केदारनाथ धाम है जहां 2013 में भयानक आपदा आई थी। और टिहरी वह ज़िला है जहां से होकर यमुनोत्री और गंगोत्री का सड़क मार्ग जाता है। चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत और उत्तरकाशी तो हैं ही हरिद्वार और उधमसिंह नगर जैसे मैदानी ज़िले भी 147 ज़िलों की लिस्ट में हैं जहां भूस्खलन का खतरा है।
जलवायु परिवर्तन: तापमान वृद्धि से यूके में बाढ़ से क्षति 20% बढ़ेगी
शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ के प्रभावों और क्षति को आंकते हुये ब्रिटेन का “फ्यूचर फ्लड मैप” बनाया है। इससे पता चलता है कि अगली एक सदी में बाढ़ के कारण सालाना आर्थिक क्षति कोई 20 प्रतिशत बढ़ जायेगी। क्लाइमेट चेंज के कारण विशेष रूप से उन रिहायशी और व्यवसायिक “हॉटस्पॉट्स” को अधिक नुकसान होगा जो कि बाढ़ के रास्ते में आते हैं। शोध बताते हैं कि अगर सदी के अंत तक वादों के मुताबिक धरती की तापमान वृद्धि को 1.8 डिग्री तक रोका भी जाये तो भी दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड के अलावा साउथ वेल्स के इलाकों में भारी बाढ़ का प्रभाव होगा।
ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र (ट्रॉपिक्स) में बढ़ रहे तापमान से कॉफी का उत्पादन कम, दाम बढ़ेंगे
नई रिसर्च बताती है कि कॉफी उत्पादक क्षेत्र में बदलते क्लाइमेट के प्रभाव के कारण कॉफी की उपज में भारी कमी होने वाली है। ऐसा अनुमान है कि 2050 तक दुनिया में कॉफी पैदावार के लिये उपयुक्त क्षेत्र आधा रह जायेगा जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कॉफी के दाम बढ़ेंगे। शोधकर्ताओं ने पाया है कि पिछले 40 साल में उन इलाकों में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हालात बदले हैं जहां कॉफी का उत्पादन होता है। 1980 से 2020 के बीच जहां तापमान बहुत कम हुआ करता था वहीं पर अब तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो रहा है।
दुनिया में 2.5 करोड़ कॉफी उत्पादक किसान हैं जिनमें से अधिकतर छोटे उत्पादक हैं। दुनिया में 90 प्रतिशत कॉफी उत्पादक किसानों के पास 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल के बागान हैं और वे क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को वह नहीं झेल पायेंगे। जानकारों का कहना है कि अगर 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि होती है तो 2050 तक अरेबिका जैसी लोकप्रिय कॉफी के लिये उत्पादन क्षेत्र 90 प्रतिशत घट जायेगा। ब्राज़ील, विएतनाम और इथ्योपिया जैसे देशों के साथ भारत भी दुनिया के 10 सबसे बड़े कॉफी उत्पादक देशों में है।
छोटे और विकासशील देश स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन से हो रही हानि से बचाने के लिए प्रयासरत हैं। Photo: Erik Karits/Pixabay
संकटग्रस्त देशों ने लॉस एंड डैमेज की असरदार रणनीति के लिये शोधकर्ताओं से मिलाया हाथ
दुनिया के सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) ने जलवायु आपदाओं से बेहतर तरीके से निपटने के लिये लघु द्वीपीय देशों (एसआईएस) के साथ हाथ मिलाया है। नेपाल, बांग्लादेश, सेनेगल, वानूआतू और मलावी जैसे देश बांग्लादेश में इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट और यूके के इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर काम करेंगे ताकि जलवायु आपदाओं के लिए धन और संसाधनों (लॉस एंड डैमेज फंड) के वितरण हेतु राष्ट्रीय स्तर एक सुविधाओं का रोडमैप बन सके।
यह गठबंधन स्थानीय समुदायों को मदद करेगा ताकि वह जलवायु आघातों को लेकर अपनी सरकारों को स्थानीय लोगों के दृष्टिकोण और समझ के बारे में बता सकें। इसके अलावा जलवायु संकट से लड़ने के लिये अमीर देशों द्वारा मिलने वाले किसी भी लॉस एंड डैमेज (हानि और क्षति निधि) फंड के उपयोग के लिये देशों को तैयार किया जायेगा।
चीन ने जलवायु संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए जजों को दिए निर्देश
चीन के सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट ने जलवायु संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए जजों को दिशानिर्देश जारी किए हैं।
यह दिशानिर्देश जजों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे मुकदमों पर फैसला देते समय कॉर्पोरेट उत्सर्जन में कमी के साथ विकास को भी ध्यान में रखें।
यह दस्तावेज़ चीन की अदालतों को लो-कार्बन टेक्नोलॉजी, ऊर्जा संरक्षण, कार्बन व्यापार और ग्रीन फाइनेंस से संबंधित मामलों की सुनवाई करने की अनुमति देता है।
जजों को जलवायु अनुकूलन और शमन को बढ़ावा देने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है।
इस दस्तावेज़ के अनुसार, जजों को कार्बन ट्रेडिंग बाज़ार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसके कारण हाल के दिनों में कई तरह के मुकदमे हुए हैं।
यूरोपीय संघ ने तैयार की ग्रीन बॉन्ड जारी करने के नियमों की पहली खेप
यूरोपीय संघ अपने नेट-जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से ग्रीन बांड जारी करने के नियमों की पहली खेप तैयार की है। हालांकि, इन नियमों का अनुपालन स्वैच्छिक आधार पर होगा।
इन नियमों को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है जिससे निवेशकों को उच्च-गुणवत्ता वाले ग्रीन बॉन्ड और कंपनियों की पहचान करने में आसानी हो और ग्रीनवाशिंग को कम किया जा सके। नियमों के अंतर्गत एक प्रकिया तय की गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह बताया जा सके कि बॉन्ड की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग कैसे हो रहा है।
बाहरी समीक्षकों द्वारा बॉन्ड के सत्यापन के लिए भी मानक तय किए गए हैं। ग्रीन बॉन्ड जारी करने वाली कपनियों को अब यह दिखाना होगा कि प्राप्त निवेश उनकी नेट-जीरो ट्रांजिशन योजनाओं में कैसे सहायक होगा।
नए नियमों पर औपचारिक मुहर लगनी बाकी है, जिसके बाद इन्हें लागू होने में एक साल का समय लगेगा।
जलवायु परिवर्तन को आईसीजे के दायरे में लाने का ऑस्ट्रेलिया ने किया समर्थन
जलवायु संकट पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) द्वारा निर्णय करने के वानूआतू के प्रस्ताव का ऑस्ट्रेलिया ने समर्थन किया है।
वानूआतू जल्द ही संयुक्त राष्ट्र महासभा के सामने अपना प्रस्ताव पेश करेगा, जिसमें क्लाइमेट एक्शन पर विभिन्न देशों के दायित्वों पर राय मांगी जाएगी।
वानूआतू चाहता है कि आईसीजे विशेष रूप से लघु द्वीपीय विकासशील देशों पर ध्यान केंद्रित करे, जिनपर जलवायु परिवर्तन का जोखिम सबसे अधिक है।
गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया सभी प्रमुख उत्सर्जकों — वर्तमान और ऐतिहासिक — को इन दायित्वों के दायरे में लाने का प्रयास कर सकता है, क्योंकि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का यह सबसे अच्छा तरीका है।
ऑस्ट्रेलिया के अलावा कम से कम 69 अन्य विकसित और विकासशील देशों ने अब तक वानूआतू के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
प्रदूषण के मामले में 131 देशों की सूची में भारत का स्थान आठवां है। Photo: tedimac/Pixabay
दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 39 शहर
दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 39 भारतीय शहरों को स्थान मिला है।
आईक्यूएयर द्वारा पीएम2.5 के वार्षिक औसत स्तर के आधार पर तैयार की गई पांचवीं विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से सात गुना खराब है।
आईक्यूएयर एक स्विस वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकी कंपनी है जो हर साल विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट तैयार करती है। साल 2022 की यह रिपोर्ट 7,323 शहरों और 131 देशों के पीएम2.5 डेटा पर आधारित है।
रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान का भिवाड़ी शहर 92.7 के पीएम स्तर के साथ भारत का सबसे प्रदूषित और दुनिया का तीसरा सबसे प्रदूषित शहर है। वहीं दिल्ली 92.6 के पीएम स्तर के साथ सबसे प्रदूषित महानगरीय शहर बताया गया है।
131 देशों की सूची में भारत आठवें स्थान पर रहा, हालांकि 2022 में पीएम2.5 का औसत स्तर 2021 के मुकाबले थोड़ा बेहतर रहा।
वहीं एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि 2022-23 की सर्दियों के दौरान पीएम2.5 का स्तर दिल्ली में उच्चतम रहा, जबकि दूसरे शहरों में भी बहुत खराब स्तर दर्ज किया गया।
दिल्ली के बाद कोलकाता और मुंबई सबसे अधिक प्रदूषित हैं, जबकि बेंगलुरू और चेन्नई में हवा की गुणवत्ता सबसे तेजी से खराब हुई। लेकिन 2021-22 की सर्दियों की तुलना में, दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में सुधार दर्ज किया गया।
मुंबई में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने एक सात सदस्यीय समिति गठित की है। 1 अप्रैल, 2023 से बीएमसी धूल और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को सख्ती से लागू किया जाएगा और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
ब्रह्मपुरम वेस्ट प्लांट में लगी आग से जहरीली हुई कोच्चि की हवा
केरल के कोच्चि में ब्रह्मपुरम वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में लगी भीषण आग पर 12 दिनों के लगातार प्रयासों के बाद पूरी तरह से काबू पाया जा सका।
12 दिनों की इस आग से कोच्चि की हवा बेहद जहरीली हो चुकी है। आग बुझने के बाद भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोच्चि के निवासियों को सावधान रहने की चेतावनी दी है।
हवा में रासायनिक प्रदूषकों के बढ़े हुए स्तर के कारण, गर्मी की पहली बारिश में रासायनिक पदार्थों का स्तर बहुत अधिक हो सकता है। एसिड रेन की संभावना भी जताई गई है।
हवा में रासायनिक प्रदूषण आस-पास के जिलों आलप्पुझा, कोट्टायम और त्रिस्सूर में भी फैल गया है।
राज्य सरकार ने कोच्चि में एक स्वास्थ्य ऑडिट का आदेश दिया है ताकि आग के प्रभावों का पता लगाया जा सके और उन लोगों के लिए विशेष वार्ड और मोबाइल क्लीनिक स्थापित किए जा सकें जिन्हें मेडिकल सहायता की आवश्यकता हो सकती है।
वायु प्रदूषण से बढ़ता है युवाओं में ‘लॉन्ग कोविड’ का खतरा: शोध
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले युवाओं में लॉन्ग कोविड का खतरा बढ़ जाता है। कोविड की बीमारी ठीक हो जाने के बाद भी यदि लंबे समय तक शरीर में उसके कुछ लक्षण बने रहते हैं तो उसे ‘लॉन्ग कोविड’ कहा जाता है।
लैंसेट रीजनल हेल्थ यूरोप में प्रकाशित इस अध्ययन में 753 ऐसे युवाओं को शामिल किया गया जिन्हें कोविड हो चुका था। ऐसे युवा जिनमें संक्रमण हल्का या मध्यम था, उनमें हर छह में से एक ने लॉन्ग कोविड से पीड़ित होने की सूचना दी।
इन युवाओं में दो महीने या उससे अधिक समय तक रहने वाले लक्षणों में प्रमुख थे सांस की तकलीफ, थकान और गंध या स्वाद में बदलाव।
अध्ययन में पाया गया कि महामारी के पहले जो युवा अधिक प्रदूषित इलाकों में रहते थे, विशेषकर जो ट्रैफिक से होने वाले प्रदूषण के अधिक संपर्क में थे, उनमें इन लक्षणों के होने की संभावना 28 प्रतिशत अधिक थी। खास तौर से सांस की तकलीफ जैसे रेस्पिरेटरी लक्षणों पर वायु प्रदूषण का प्रभाव और अधिक पाया गया।
दिल्ली का ग्रीन कवर दो दशकों में हुआ दोगुना
केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया है कि दिल्ली में ग्रीन कवर पिछले दो दशकों में दोगुना हो गया है।
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2021 का हवाला देते हुए सरकार ने न्यायलय को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी का ग्रीन कवर 2001 में 151 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 342 वर्ग किमी हो गया है। सरकार ने इस वृद्धि का श्रेय ‘कई एजेंसियों द्वारा बड़े पैमाने चलाए गए वृक्षारोपण कार्यक्रमों’ को दिया है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि राज्य के भौगोलिक क्षेत्र में ग्रीन कवर का हिस्सा 2001 में 10.2 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 23.06 प्रतिशत हो गया।
केंद्र सरकार ने यह हलफनामा राष्ट्रीय राजधानी में खराब वायु गुणवत्ता और प्रदूषण के स्तर पर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दायर किया था।
रिपोर्ट कहती है कि जो राज्य पहले अक्षय ऊर्जा में अग्रणी थे, अब अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं। Photo: Bishnu Sarangi/Pixabay
क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन में कर्नाटक, गुजरात सबसे आगे: रिपोर्ट
एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के स्वच्छ बिजली की ओर ट्रांजिशन में कर्नाटक और गुजरात सबसे आगे हैं।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईएफए) और एक स्वतंत्र थिंक टैंक एम्बर की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अक्षय ऊर्जा संपन्न राज्य अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि कर्नाटक और गुजरात ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए अपने ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा बढ़ाया और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियां और नियम लागू किए।
वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने को कहा गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र, जो नवीकरणीय क्षेत्र में सुधार करने में अग्रणी थे, अब अपनी क्षमता को प्राप्त करने में पिछड़ रहे हैं।
विशेष रूप से राजस्थान और तमिलनाडु में प्रगति सभी ओर से समान नहीं रही है।
कॉप26 में किए गए वायदे के अनुसार भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत ने दी अबतक की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर परियोजना को मंजूरी
भारत ने चीन की सीमा से लगे पर्वतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपनी अब तक की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर परियोजना को मंजूरी दे दी है।
बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 2,880 मेगावाट की दिबांग हाइड्रोपावर परियोजना अरुणाचल प्रदेश के निचले दिबांग घाटी जिले में दिबांग नदी पर बनाई जा रही है।
इसके लिए 319 अरब रुपए के अनुमानित निवेश की मंजूरी मिल गई है और कहा जा रहा है कि इसके निर्माण में लगभग नौ साल लगेंगे।
भारत हाइड्रोपावर को नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत करता है और कोयले का उपयोग कम करने की दिशा में इसे महत्वपूर्ण मानता है। सौर और पवन आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में भी यह उपयोगी माना जाता है।
लेकिन ऐसी परियोजनाओं से बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति होती है और स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है। जिससे इन परियोजनाओं का स्थानीय लोग विरोध करते हैं। इसके कारण परियोजनाओं में होने वाली देरी से निर्माण की लागत भी बढ़ती है।
विशेषज्ञों की मानें तो इस परियोजना से भी ऐसे ही खतरे पैदा हो सकते हैं।
चीन ने फिर जताई भारत के एएलएमएम नियम पर आपत्ति
चीन ने एक बार फिर भारत के उस नियम पर आपत्ति जताई है जो सौर परियोजनाओं में केवल घरेलू स्तर पर निर्मित मॉड्यूल के प्रयोग की अनुमति देता है।
स्वीकृत विनिर्माताओं की सूची (एएलएमएम) के तहत चीनी कंपनियां भारत में घरेलू सौर परियोजनाओं के लिए मॉड्यूल की आपूर्ति नहीं कर सकती हैं।
चीन एएलएमएम को अपने व्यापार में बाधक् मानता है और उसने चौथी बार इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन के सामने उठाया, जब सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक मानकों और नीति-नियमों पर चर्चा कर रहे थे।
हालांकि, कुछ दिन पहले ही भारत ने सोलर डेवलपर्स को एक साल के लिए एएलएमएम की अनिवार्यता से मुक्त कर दिया था। 31 मार्च, 2024 तक कमीशन की गई परियोजनाओं में सूची से बाहर भी सौर मॉड्यूल खरीदने की छूट दी जाएगी।
भारत लंबे समय से चीनी सौर मॉड्यूल पर निर्भर रहा है। एएलएमएम का उद्देश्य था स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना। लेकिन अभी तक मांग के अनुरूप घरेलू उत्पादन क्षमता विकसित नहीं हुई है। एएलएमएम 2019 में जारी किया गया था, और तब से इसे कई बार आगे बढ़ाया जा चुका है।
भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश 46% गिरा
वित्तीय वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करीब 2,050 करोड़ रुपए रहा, जो पिछली तिमाही की तुलना में 46 प्रतिशत कम है। मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में यह लगभग 3,770 करोड़ रुपए था।
निवेश में इस गिरावट के लिए बदलती अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप निवेश करने वाले देशों की मौद्रिक नीतियों में बदलाव को जिम्मेदार माना जा रहा है।
पिछले कुछ समय से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा है और हर तिमाही में लगभग 4,086 करोड़ रुपए के निवेश प्राप्त हुए हैं।
वहीं जानकारों का कहना है कि 2023 में भारत के पास नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 1.68 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित करने की क्षमता है और इसके लिए एक मजबूत सतत ऊर्जा फ्रेमवर्क की जरूरत है।
पिछले साल ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने भी 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा में करीब दो लाख करोड़ रुपए के निवेश का लक्ष्य रखा था।
बैटरी के उत्पादन, डिस्पोजल और चार्जिंग के दौरान ईवी से भी प्रदूषक तत्व निकलते हैं। Photo: Nerijus jakimavičius/Pixabay.com
ईवी निर्माण के कारण बढ़ेगी चीन पर भारत की निर्भरता: रिपोर्ट
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के घरेलू निर्माण के चलते कच्चे माल, खनिज प्रोसेसिंग और बैटरी उत्पादन के लिए भारत की चीन पर निर्भरता बढ़ेगी।
आर्थिक थिंकटैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईवी के प्रभावों का मूल्यांकन करने की जरूरत है। बैटरी के उत्पादन, डिस्पोजल और चार्जिंग के दौरान ईवी से भी प्रदूषक तत्व निकलते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ईवी के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली करीब 70 फीसदी सामग्री चीन और कुछ अन्य देशों से आयात की जाती है।
चीन विश्व स्तर पर उत्पादित लिथियम का 60 प्रतिशत से अधिक प्रोसेस करता है। वह 65 प्रतिशत कोबाल्ट और 93 प्रतिशत मैंगनीज को भी प्रोसेस करता है। वैश्विक स्तर पर उत्पादित चार में से तीन बैटरियों का निर्माण चीन करता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि ईवी का नौकरियों और प्रदूषण पर प्रभाव पड़ता है और इनसे जुड़े 13 ऐसे मुद्दे गिनाए हैं जो उपभोक्ताओं के साथ-साथ उद्योग और सरकार द्वारा भी ध्यान देने योग्य हैं।
इन मुद्दों में शामिल हैं ईवी की महंगी कीमतें, लंबी यात्रा के लिए ईवी की उपयुक्तता, खराब मौसम में प्रदर्शन, सार्वजनिक परिवहन के लिए उपयुक्तता, चीन पर बढ़ती निर्भरता, और प्रदूषण में कमी न होना आदि।
भारत में पंजीकृत इलेक्ट्रिक वाहन 21 लाख से ऊपर
भारत में कुल 21.7 लाख इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पंजीकृत हैं, भारी उद्योग राज्य मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने मंगलवार को संसद को सूचित किया।
6 मार्च तक के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 4.65 लाख ईवी पंजीकृत हैं, इसके बाद महाराष्ट्र में 2.26 लाख पंजीकृत हैं।
जहां दिल्ली 2.03 लाख पंजीकृत वाहनों के साथ तीसरे स्थान पर है, वहीं बेंगलुरु 1.83 लाख ईवी के साथ चौथे स्थान पर रहा।
आंकड़ों से यह भी पता चला है कि दिल्ली में देश में सबसे अधिक 1,845 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन (पीसीएस) हैं। जबकि कर्नाटक में 704 ऐसे स्टेशन हैं, और महाराष्ट्र में 660 ईवी चार्जिंग स्टेशन हैं।
कुल मिलाकर, देश भर में 6,586 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं।
एक अलग जवाब में ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में ऐसे कुल 10,967 स्टेशन काम कर रहे हैं।
ईवी की खरीद पर आयकर में छूट चाहिए तो जल्दी कीजिए
यदि आप आयकर अधिनियम की धारा 80EEB के तहत ईवी की खरीद पर टैक्स में छूट चाहते हैं तो जल्दी कीजिए। आपके पास 31 मार्च तक का समय है।
आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80EEB के तहत ईवी खरीदने हेतु लिए गए ऋण के ब्याज पर आयकर में छूट प्रदान की जाती है। इस धारा को इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 2019 के केंद्रीय बजट में पेश किया गया था।
इस धारा के तहत 1.5 लाख रुपए तक की कटौती का लाभ उठाया जा सकता है, यदि कुछ शर्तें पूरी की जाएं तो।
यदि आप लोन लेकर ईवी खरीदने की योजना बना रहे हैं तो आपको सुनिश्चित करना होगा कि आपका लोन 31 मार्च 2023 तक स्वीकृत हो जाए। तभी आप धारा 80EEB के तहत कटौती का दावा करने में सक्षम होंगे।
बजट 2021 में सरकार ने (प्रदूषण के स्तर को कम करने के उद्देश्य से) ग्रीन टैक्स नीति की घोषणा की थी। ग्रीन टैक्स वाहन के पंजीकरण प्रमाणपत्र के नवीनीकरण के समय लगाया जाता है। ईवी इस टैक्स से पूरी तरह मुक्त हैं।
ऑटो पीएलआई वितरण के पहले होगी गहन जांच
फेम-II (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) पहल के तहत इलेक्ट्रिक दोपहिया निर्माताओं द्वारा गलत तरीके से सब्सिडी प्राप्त करने के आरोपों के बाद, सरकार प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) के तहत इंसेंटिव देने के पहले गहन जांच करेगी।
दिशानिर्देशों का पालन न करने के आरोपों के बाद लगभग एक दर्जन इलेक्ट्रिक दोपहिया निर्माताओं के खिलाफ जांच चल रही है।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इंसेंटिव प्राप्त करने के लिए, अब निर्माताओं को और सख्त नियमों का पालन करना होगा।
ऑटोमोटिव क्षेत्र में पीएलआई योजना को लागू करने वाले भारी उद्योग मंत्रालय ने भी निर्माताओं के लिए विनिर्माण मानक तैयार किए हैं।
सरकार ने इस साल की शुरुआत में पीएलआई के तहत इंसेंटिव देने के लिए बजट में 604 करोड़ रुपए आवंटित किए थे।
अगले चार से पांच वर्षों में योजना का विस्तार होने पर इस राशि में भी वृद्धि होगी।
चीन की प्रस्तावित कोयला परियोजनाओं में लगभग 50% की वृद्धि हुई है। Photo: Wikimedia Commons
चीन में कोल बूम वैश्विक ताप वृद्धि को सीमित करने के लक्ष्य पर खतरा
थिंक-टैंक इ3जी की रिपोर्ट के अनुसार 2022 के आखिरी छह महीनों में चीन की प्रस्तावित कोयला परियोजनाओं में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इन प्रस्तावित परियोजनाओं की कुल क्षमता 250 गीगावाट हो गई है।
रिपोर्ट का कहना है कि इसी दौरान अन्य देशों की कोयले से बिजली उत्पादन की योजनाओं में संयुक्त रूप से 97 गीगावाट की कमी देखी गई। यह आधुनिक इतिहास में कोयले से बिजली उत्पादन का सबसे निचला स्तर है।
ऐसे में चीन में हो रहे बदलाव दुनिया के बाकी हिस्सों के विपरीत जा रहे हैं।
हालांकि अक्षय ऊर्जा उत्पादन के मामले में चीन अभी भी विश्व में अग्रणी है। चीन में स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं का विकास लगभग उतनी ही तेजी से हो रहा है जितना बाकी दुनिया में संयुक्त रूप से हो रहा है।
लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि चीन का कोयला विस्तार पेरिस समझौते के तहत तय किए गए लक्ष्य के लिए “सीधे तौर पर हानिकारक” है।
कॉप28 से पहले यूरोपीय संघ दे रहा है जीवाश्म ईंधन फेजआउट को बढ़ावा
कॉप28 जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले, यूरोपीय संघ (ईयू) जीवाश्म ईंधन के वैश्विक फेजआउट को बढ़ावा देने का निर्णय किया है।
कॉप27 में नाकामयाबी के बाद फिर से इस वैश्विक समझौते को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों के मंत्रियों द्वारा यह तय किया गया है कि रूसी जीवाश्म ईंधन के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग या ऊर्जा की बचत करने पर जोर दिया जा सके।
सदस्य देशों ने 2050 के पहले ही गैर-जीवाश्म ऊर्जा प्रणालियों की ओर बढ़ने के वैश्विक प्रयासों को प्रोत्साहित करने पर सहमति जताई। लेकिन इस ट्रांज़िशन के दौरान प्राकृतिक गैस की भूमिका को भी पहचाना गया।
सरकार ने वाणिज्यिक खनन के लिए 29 कोयला ब्लॉकों की नीलामी की
जिन 29 कोयला ब्लॉकों को सरकार ने वाणिज्यिक खनन के लिए नीलम किया है, उनसे अगले दो वर्षों में औसत ड्राई फ्यूल उत्पादन में अतिरिक्त 7 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, क्योंकि इन भंडारों की संयुक्त पीक रेटेड कैपेसिटी (पीआरसी) लगभग 91 मिलियन टन है।
कोयला मंत्रालय ने पिछले महीने वाणिज्यिक खनन के लिए 29 भंडारों की नीलामी की थी, जिनमें से सभी के लिए बोली लगा दी गई है। वाणिज्यिक खनन करने वाली निजी कंपनियां बिना किसी एंड-यूज़ प्रतिबंध के, व्यावसायिक रूप से कोयले का खनन कर सकती हैं। एंड-यूज़ प्रतिबंध से तात्पर्य है कि खनन किया हुआ कोयला केवल विशेष प्रयोजनों के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है, बाजार में बेचा नहीं जा सकता।
वाणिज्यिक खनन करने वाली निजी कंपनियों के पास कोयले के गैसीकरण या निर्यात का विकल्प होगा। वह इसे अपने संयंत्रों में भी इस्तेमाल कर सकते हैं या बाजार में बेच सकते हैं।