रिपोर्ट कहती है कि जो राज्य पहले अक्षय ऊर्जा में अग्रणी थे, अब अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं। Photo: Bishnu Sarangi/Pixabay

क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन में कर्नाटक, गुजरात सबसे आगे: रिपोर्ट

एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के स्वच्छ बिजली की ओर ट्रांजिशन में कर्नाटक और गुजरात सबसे आगे हैं

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईएफए) और एक स्वतंत्र थिंक टैंक एम्बर की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अक्षय ऊर्जा संपन्न राज्य अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर रहे हैं

रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि कर्नाटक और गुजरात ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए अपने ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा बढ़ाया और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियां और नियम लागू किए।

वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने को कहा गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र, जो नवीकरणीय क्षेत्र में सुधार करने में अग्रणी थे, अब अपनी क्षमता को प्राप्त करने में पिछड़ रहे हैं।

विशेष रूप से राजस्थान और तमिलनाडु में प्रगति सभी ओर से समान नहीं रही है।

कॉप26 में किए गए वायदे के अनुसार भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत ने दी अबतक की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर परियोजना को मंजूरी

भारत ने चीन की सीमा से लगे पर्वतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपनी अब तक की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर परियोजना को मंजूरी दे दी है।  

बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 2,880 मेगावाट की दिबांग हाइड्रोपावर परियोजना अरुणाचल प्रदेश के निचले दिबांग घाटी जिले में दिबांग नदी पर बनाई जा रही है।

इसके लिए 319 अरब रुपए के अनुमानित निवेश की मंजूरी मिल गई है और कहा जा रहा है कि इसके निर्माण में लगभग नौ साल लगेंगे।

भारत हाइड्रोपावर को नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत करता है और कोयले का उपयोग कम करने की दिशा में इसे महत्वपूर्ण मानता है। सौर और पवन आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में भी यह उपयोगी माना जाता है।  

लेकिन ऐसी परियोजनाओं से बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति होती है और स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है। जिससे इन परियोजनाओं का स्थानीय लोग विरोध करते हैं। इसके कारण परियोजनाओं में होने वाली देरी से निर्माण की लागत भी बढ़ती है।

विशेषज्ञों की मानें तो इस परियोजना से भी ऐसे ही खतरे पैदा हो सकते हैं।

चीन ने फिर जताई भारत के एएलएमएम नियम पर आपत्ति

चीन ने एक बार फिर भारत के उस नियम पर आपत्ति जताई है जो सौर परियोजनाओं में केवल घरेलू स्तर पर निर्मित मॉड्यूल के प्रयोग की अनुमति देता है।

स्वीकृत विनिर्माताओं की सूची (एएलएमएम) के तहत चीनी कंपनियां भारत में घरेलू सौर परियोजनाओं के लिए मॉड्यूल की आपूर्ति नहीं कर सकती हैं।

चीन एएलएमएम को अपने व्यापार में बाधक् मानता है और उसने चौथी बार इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन के सामने उठाया, जब सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक मानकों और नीति-नियमों पर चर्चा कर रहे थे।

हालांकि, कुछ दिन पहले ही भारत ने सोलर डेवलपर्स को एक साल के लिए एएलएमएम की अनिवार्यता से मुक्त कर दिया था। 31 मार्च, 2024 तक कमीशन की गई परियोजनाओं में सूची से बाहर भी सौर मॉड्यूल खरीदने की छूट दी जाएगी।

भारत लंबे समय से चीनी सौर मॉड्यूल पर निर्भर रहा है। एएलएमएम का उद्देश्य था स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना। लेकिन अभी तक मांग के अनुरूप घरेलू उत्पादन क्षमता विकसित नहीं हुई है। एएलएमएम 2019 में जारी किया गया था, और तब से इसे कई बार आगे बढ़ाया जा चुका है।

भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश 46% गिरा

वित्तीय वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करीब 2,050 करोड़ रुपए रहा, जो पिछली तिमाही की तुलना में 46 प्रतिशत कम है। मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में यह लगभग 3,770 करोड़ रुपए था।

निवेश में इस गिरावट के लिए बदलती अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप निवेश करने वाले देशों की मौद्रिक नीतियों में बदलाव को जिम्मेदार माना जा रहा है।

पिछले कुछ समय से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा है और हर तिमाही में लगभग 4,086 करोड़ रुपए के निवेश प्राप्त हुए हैं। 

वहीं जानकारों का कहना है कि 2023 में भारत के पास नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 1.68 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित करने की क्षमता है और इसके लिए एक मजबूत सतत ऊर्जा फ्रेमवर्क की जरूरत है।

पिछले साल ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने भी 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा में करीब दो लाख करोड़ रुपए के निवेश का लक्ष्य रखा था।

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