Vol 1, January 2024 | इस साल टूटेगा 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि का बैरियर!

इस साल दुनिया होगी 1.5 डिग्री के बैरियर के पार

नासा के पूर्व वैज्ञानिक जेम्स हैनसन ने चेतावनी दी है कि इस साल मई तक धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री के उस बैरियर को पार कर जायेगी जिसे धरती के अस्तित्व के लिये बड़ा ख़तरा माना जा रहा है। हैनसन अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा में काम कर चुके वह वैज्ञानिक हैं जिन्हें यह श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने ही  1980 के दशक में   दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरों से आगाह किया था।

हालांकि क्लाइमेट साइंस में किसी एक साल में यह बैरियर पार हो जाने से ऐसा नहीं माना जाता कि वास्तव में धरती को 1.5 डिग्री तापमान से बचाने का मिशन फेल हो गया है। क्लाइमेट साइंटिस्ट मानते हैं कि लगातार कुछ सालों तक धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री से ऊपर रहे तो ही इस बदलाव को माना जायेगा हालांकि जलवायु आपदाओं और ग्लोबल वॉर्मिंग का असर तो तब भी काफी हद तक दिखेगा ही। 

साल 2023 बना दुनिया का सबसे गर्म साल, भारत में 2016 के बाद सबसे ऊंचा तापमान 

बीता साल (2023) दुनिया का सबसे गर्म साल आंका गया है। यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी कॉपरनिक्स के मुताबिक धरती में तापमान वृद्धि 1.48 डिग्री आंकी गई। पेरिस संधि के तहत जलवायु परिवर्तन प्रभावों को सीमित रखने के लिये इस तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से कम रखने का इरादा किया गया था लेकिन इतनी जल्दी हो रही तापमान वृद्धि बता रही है कि सरकारें अपने प्रयास में विफल रही हैं। इस साल की गर्मी में  अल-निनो प्रभाव भी दिख रहा है। इस साल इतिहास की सबसे गर्म फरवरी रिकॉर्ड की गई और कई महीने असामान्य रूप से गर्म रहे हैं। 

भारत में पिछले 122 सालों के इतिहास में भारत का दूसरा सबसे गर्म साल  रहा। मौसम विभाग ने 1901 से तापमान का रिकॉर्ड रखना शुरू किया है अब तक 2016 को सबसे गर्म साल माना जाता है। वातावरण में हवा का वार्षिक औसत तापमान में 0.65 डिग्री सेल्सियस (1981 से 2010 के औसत के मुकाबले) अधिक रहा रहा जबकि 2017 में यह वृद्धि 0,71 डिग्री थी। 

अगर बारिश के लिहाज से देखें तो उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी हिस्से को छोड़कर  दिसंबर में देश में असामान्य बरसात हुई। यह करीब 25.2 मिलीमीटर मापी गई जो कि सामान्य से 60% अधिक है।  

कूनो पार्क में 3 चीता शावकों का जन्म

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में तीन और चीता शावकों का जन्म हुआ है। नामीबियाई चीता आशा ने 3 जनवरी को इन तीन शावकों को जन्म दिया। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शावकों की फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए इसे प्रोजेक्ट चीता के लिए एक ‘बड़ी कामयाबी’ बताया।

इससे पहले मार्च 2023 में नामीबियाई चीता ज्वाला ने भी 4 शावकों को जन्म दिया था, लेकिन उनमें से एक ही जीवित बचा है। कूनो पार्क में इससे पहले अफ्रीका से लाए गए 20 में से छह वयस्क चीतों की भी मौत हो चुकी है, जिसके बाद प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठने लगे थे।

लेकिन इन तीन शावकों के जन्म के बाद अब कूनो में चीतों की संख्या 18 हो गई है। 

जोशीमठ के बाद अब हिमाचल के गांवों में भूधंसाव, भवनों में दरारें 

उत्तराखंड के जोशीमठ की तरह अब हिमाचल प्रदेश के गांवों में भी भूधंसाव की ख़बरें आ रही हैं और घरों में दरारें दिख रही हैं। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक लाहौल क्षेत्र के लिंडूर गांव में पिछले चार-पांच माह में भारी भू-धंसाव देखा गया है।  यहां 16 घरों में दरारें देखी गई जिनमें 9 घरों को भारी क्षति पहुंची है। आईआईटी मंडी के वैज्ञानिक इस भूधंसाव के कारणों की जांच कर रहे हैं और पता लगा रहे हैं कि इसके पीछे बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं की क्या भूमिका है। महत्वपूर्ण है कि बीते साल जुलाई-अगस्त में इस क्षेत्र में 72 सालों में सबसे अधिक बरसात का रिकॉर्ड टूटा था। 

शाकाहार अपनाने से कम होगा प्रदूषण: रिसर्च

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया है कि प्लांट-बेस्ड डाइट अपनाने से दुनिया भर में समय से पहले होने वाली 2,36,000 मौतों को रोका जा सकता है और इससे वैश्विक जीडीपी भी बढ़ सकता है। 

अध्ययन में कहा गया है कि खाद्य प्रणालियां दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक तिहाई के लिए जिम्मेदार हैं। यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है तो यह उत्सर्जन 2060 के दशक में पृथ्वी के औसत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ाने के लिए काफी होगा, जो अतिरिक्त तापमान को बढ़ा देगा।

इस अध्ययन में कृषि से होने वाली समस्याओं की फेहरिस्त में वायु प्रदूषण को भी शामिल किया गया है। कहा गया है कि पशुपालन अमोनिया उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है। यह उत्सर्जन अन्य प्रदूषकों के साथ प्रतिक्रिया करके सूक्ष्म कण बनाते हैं, जो हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

26 साल तक सरकारी तेल कंपनी में काम कर चुके मुख्तार बाबायेव अब क्लाइमेट वार्ता की अध्यक्षता करेंगे। फोटो: World Economic Forum/ Faruk Pinjo/Flickr

क्लाइमेट वार्ता की कमान एक बार फिर तेल कंपनी के दिग्गज़ के हाथ

दिसंबर में संपन्न हुई दुबई क्लाइमेट वार्ता (कॉप – 28) की अध्यक्षता जहां आबूधाबी की तेल कंपनी  एडनॉक के सीईओ अल जबेर ने की थी वहीं इस साल अज़रबेजान में होने वाली वार्ता की कमान एक बार फिर तेल कंपनी के दिग्गज़ के ही हाथ में होगी। अज़रबेजान के मंत्री और 26 साल तक सरकारी तेल कंपनी में काम कर चुके मुख्तार बाबायेव अब क्लाइमेट वार्ता की अध्यक्षता करेंगे। 

अज़रबेजान के पास गैस का करीब 2.5 लाख करोड़ घन मीटर भंडार है और वह दुनिया के सबसे बड़े गैस निर्यातकों में है। अज़रबेजान का इरादा 2027 तक अपना निर्यात दुगना करने का है। पर्यावरण कार्यकर्ता और क्लाइमेट साइंटिस्ट जलवायु परिवर्तन वार्ता में तेल और गैस कंपनियों के दबदबे से चिंतित हैं। पिछले साल दुबई क्लाइमेट वार्ता में जीवाश्म ईंधन कंपनियों के करीब ढाई हज़ार लॉबीकर्ता थे जो 2022 में शर्म-अल-शेख में हुई क्लाइमेट वार्ता में शामिल लॉबीकर्ताओं का चार गुना थी।

पर्यावरणीय मंजूरी से पहले प्रोजेक्ट शुरू करने की अनुमति से जुड़े आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय के 2022 के एक मेमोरेंडम पर रोक लगा दी है जिसमें परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी मिलने से पहले कामकाज शुरू करने की अनुमति देने की बात कही गई थी।

वनशक्ति नामक एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रालय को नोटिस भेजकर चार हफ़्तों के अंदर जवाब देने के लिए कहा है। इससे पहले जनवरी 2022 में मंत्रालय ने एक मेमोरेंडम में कहा था कि परियोजनाओं को पर्यावरण पर पड़नेवाले प्रभावों का आकलन करने के पहले ही काम शुरू करने की मंजूरी दी जा सकती है और एनवायरमेंटल क्लीयरेंस के लिए वह बाद में आवेदन कर सकते हैं।

वनशक्ति की दलील थी कि एनवायरमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट के तहत किसी भी गतिविधि के शुरू होने से पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य है और यदि परियोजना शुरू होने के बाद यह अनुमति दी जाती है तो यह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के लिए घातक सिद्ध होगा।        

हाइड्रोपावर परियोजनाओं को मिल सकती है सैद्धांतिक मंजूरी

पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों को जारी किए गए एक नोट में कहा है कि नदी के बेसिन की वहन क्षमता और संचयी प्रभाव का मूल्यांकन किए जाने से पहले भी हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को सैद्धांतिक मंजूरी दी जा सकती है।

पर्यावरण विशेषज्ञों ने मंत्रालय के इस रुख पर चिंता जताई है।

राज्य सरकारों को जारी किए गए नोट में मंत्रालय ने कहा है कि वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के तहत मंजूरी प्रदान करने में समय लगता है, इसलिए वन संरक्षण प्रभाग एक उचित प्रक्रिया के तहत सैद्धांतिक मंजूरी देने पर विचार कर सकता है। केंद्र ने कहा है कि रिवर बेसिन की वहन क्षमता और संचयी प्रभाव का अध्ययन बाद में किया जा सकता है जिसके आधार पर बाद में निर्णायक मंजूरी दी जा सकती है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि एक बार सैद्धांतिक मंजूरी मिल जाने के बाद उसे वापस लेना संभव नहीं होगा।

हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को पर्यावरण और वन मंजूरी 2013 के एक आदेश के अनुसार दी जाती है, जिसमें कहा गया था कि किसी रिवर बेसिन में एक से अधिक परियोजनाओं की स्थिति में संचयी प्रभाव और वहन क्षमता का अध्ययन किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने शिमला डेवलपमेंट प्लान को दी अनुमति, एनजीटी द्वारा लगे प्रतिबंध हटे 

सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार शिमला डेवलपमेंट प्लान (एसडीपी) 2041 को अनुमति दे दी जिसके तहत हिमाचल प्रदेश की राजधानी में भवन निर्माण को रेग्युलेट किया जाएगा। राज्य सरकार ने वहां फिलहाल निर्माण पर रोक लगाने वाले एनजीटी के स्टे के खिलाफ याचिका लगाई थी जिसे हटाकर कोर्ट ने यह अनुमति दी है। एनजीटी ने यह देखते हुए कई निर्देश दिए थे कि शिमला में कोर, नॉन कोर के साथ हरित और ग्रामीण क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण के कारण गंभीर पर्यावरणीय और पारिस्थितिक चिंताएं पैदा कर दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि एसडीपी में विकास के लिए (निर्माण कार्य) की ज़रूरतों और पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त सेफगार्ड हैं। 

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक अपने 100 पेज के आदेश में उच्चतम न्यायालय ने 20 जून 2023 को प्रकाशित किए गए डेवलपमेंट प्लान पर काम करने की अनुमति दे दी। द प्लान – “विज़न 2041” के लागू होने पर कुछ प्रतिबंधों के साथ 17 ग्रीन बेल्ट निर्मित की जाएंगी और उस कोर ज़ोन में भी निर्माण कार्य होगा जहां एनजीटी ने प्रतिबंध लगाया था। 

बाघों के हमलों में 5 साल में 302 लोगों की मौत

केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में देश में बाघों के हमलों में कुल 302 लोग मारे गए, जिनमें से 55 प्रतिशत से अधिक मौतें महाराष्ट्र में हुईं। जहां 2022 में बाघों के हमलों में 112 लोगों की मौत हुई, वहीं 2021 में 59, 2020 में 51, 2019 में 49 और 2018 में 31 लोगों की मौत हुई।

अकेले महाराष्ट्र में ऐसी 170 मौतें दर्ज की गईं, जबकि उत्तर प्रदेश में 39 मौतें हुईं। पश्चिम बंगाल में 29 लोग मारे गए। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में यह संख्या लगातार कम हुई है, 2018 में 15 से घटकर 2022 में सिर्फ एक हो गई। वहीं बिहार में बाघों के हमलों से संबंधित मौतों में वृद्धि हुई है — 2019 में शून्य से बढ़कर 2022 में यह आंकड़ा नौ तक पहुंच गया।

इसी बीच गैर-लाभकारी लाभकारी संस्था वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) ने पिछले साल देश में बाघों की मौतों के आंकड़े जारी किए हैं, जो बताते हैं कि 2023 में 204 बाघों की मौत हुई जो पिछले एक दशक में सबसे अधिक है।

महाराष्ट्र में 52, मध्य प्रदेश में 45, उत्तराखंड में 26, तमिल नाडु और केरल में 15-15, कर्नाटक में 13, और असम और राजस्थान में 10-10 बाघों की मौत हुई। उत्तर प्रदेश में 7, बिहार और छत्तीसगढ़ में तीन-तीन, जबकि ओडिशा और आंध्र प्रदेश में दो-दो बाघों की मौत हुई। तेलंगाना में 2023 में एक बाघ की मौत दर्ज की गई।

दिल्ली और पटना देश के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में।

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के 5 साल: क्या है शहरों में प्रदूषण का हाल

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को लॉन्च हुए पांच साल बीत चुके हैं, और इसके प्रदर्शन को लेकर कई तरह के विश्लेषण सामने आ रहे हैं। 

कार्यक्रम के लॉन्च के वक्त यह लक्ष्य रखा गया था कि 2024 तक भारत के करीब सवा सौ शहरों में प्रदूषण का स्तर (2017 के स्तर के मुकाबले) 20-30 प्रतिशत कम किया जाएगा। बाद में इस टाइमलाइन और लक्ष्य को बदलकर 131 शहरों में 2017 के प्रदूषण के स्तर से  20-40 प्रतिशत कर दिया गया और लक्ष्य प्राप्ति की सीमा 2026 के अंत तक कर दी गई है।

अब ताज़ा विश्लेषणों में देश के ज्यादातर शहरों में कोई उत्साहजनक सुधार नहीं दिखा है।

पहला विश्लेषण क्लाइमेट ट्रेंड्स और रेस्पायरर लिविंस साइंसेज़ ने किया है। इस अध्ययन में इन 131 शहरों में मौजूद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

पीएम 2.5 को लेकर जिन 49 शहरों के डाटा पूरे 5 साल उपलब्ध रहे उनमें से 27 में प्रदूषण के स्तर में कुछ सुधार दिखता है। इसी तरह पीएम 10 को लेकर 46 शहरों के डाटा उपलब्ध थे वहां 24 में सुधार दिखा है। वाराणसी, आगरा और जोधपुर उन शहरों में हैं जहां 2019 के मुकाबले 2023 में प्रदूषण स्तर में अच्छी गिरावट दर्ज की गई है। वाराणसी में पीएम 2.5 के स्तर में 72 प्रतिशत और पीएम 10 में  69 प्रतिशत की गिरावट हुई है।

दिल्ली और पटना देश के सबसे प्रदूषित शहरों में रहे। हालांकि दिल्ली में प्रदूषण के औसत स्तर में 2019 के मुकाबले कुछ गिरावट दर्ज की गई लेकिन मुंबई, नवी मुंबई, उज्जैन, जयपुर और पुणे में प्रदूषण स्तर बढ़े।

दूसरा विश्लेषण सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) ने किया है, जिसके अनुसार पिछले साल 37 शहरों में प्रदूषण का स्तर एनसीएपी के तहत निर्धारित लक्ष्य से नीचे दर्ज किया गया। 

रिपोर्ट में परिवेशी पीएम10 स्तरों के आधार पर असम और मेघालय सीमा पर स्थित बर्नीहाट को भारत का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। इसके बाद बेगूसराय (बिहार), ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश), श्रीगंगानगर (राजस्थान), छपरा (बिहार), पटना (बिहार), हनुमानगढ़ (राजस्थान), दिल्ली, भिवाड़ी (राजस्थान), और फ़रीदाबाद (हरियाणा) शीर्ष 10 की सूची में हैं।

इन विश्लेषणों के आधार पर कहा जा सकता है कि कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन अधिकांश शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय मानकों और अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से अधिक है। सबसे कम प्रदूषित शहरों में भी प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा से ऊपर है, जो दिखाता है कि अधिक कड़े नियामक ढांचे की जरूरत है।

दिल्ली-एनसीआर में फिर से लगाए गए ग्रैप-3 प्रतिबंध

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने रविवार को दिल्ली और एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तीसरे चरण के तहत प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी और एनसीआर में वायु गुणवत्ता फिर से गंभीर श्रेणी में पहुंच गई है।

इन प्रतिबंधों के तहत सभी गैर-जरूरी निर्माण कार्यों और बीएस-III पेट्रोल और बीएस-IV डीजल वाहनों के परिचालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

सीएक्यूएम को आशंका है कि वायु गुणवत्ता की स्थिति लंबे समय तक ‘गंभीर’ बनी रह सकती है, और आगे की गिरावट को रोकने के लिए तुरंत जीआरएपी चरण-III को लागू करने का निर्णय लिया गया है।

हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा से संबंधित निर्माण कार्य, राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाएं, स्वास्थ्य सेवा, रेलवे, मेट्रो रेल, हवाई अड्डे, अंतर-राज्य बस टर्मिनल, राजमार्ग, सड़कें, फ्लाईओवर, ओवरब्रिज, बिजली ट्रांसमिशन, पाइपलाइन, स्वच्छता और जल आपूर्ति आदि से जुड़े निर्माण पर प्रतिबंध नहीं है।

देश में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाने पर जोर

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) द्वारा किए गए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के विश्लेषण में कहा गया है कि देश में मैनुअल वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग नेटवर्क की प्रगति धीमी है, और 2024 तक नियोजित 1,500 स्टेशनों के मुकाबले दिसंबर 2023 तक केवल 931 स्टेशन स्थापित किए गए हैं।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि कार्यक्रम में किसी दंडात्मक प्रकिया का प्रावधान न होने के कारण महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं हो पा रही। 118 नए शहर, जो अभी तक एनसीएपी का हिस्सा नहीं हैं, वहां पीएम10 का स्तर राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) से अधिक दर्ज किया गया।

क्रिया के दक्षिण एशिया विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि “खतरनाक प्रदूषण स्तर दर्ज करने वाले शहरों की सूची में गैर-एनसीएपी शहरों बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्शाती है कि वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याएं कितनी व्यापक हैं। हालिया डेटा के आधार पर एनसीएपी की सूची की समीक्षा करके नए शहरों को उसमें शामिल किया जाना चाहिए और ऐसे सभी शहरों को उत्सर्जन में कटौती के वार्षिक लक्ष्य प्रदान किए जाने चाहिए।”

क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा किए गए विश्लेषण में भी कहा गया है कि सरकार ने एनसीएपी शहरों में कई नए वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए हैं, लेकिन किसी शहर के भीड़-भाड़ वाले स्थानों में दो मॉनिटरों का औसत डेटा शहर भर में फैले पांच स्टेशनों के औसत डेटा की तुलना में वायु गुणवत्ता की एक अलग तस्वीर प्रदान कर सकता है।

उदाहरण के तौर पर उज्जैन, जहां प्रदूषण का स्तर 46% से अधिक बढ़ा है, वहां पर केवल एक मॉनिटरिंग स्टेशन है जो पूरे समय काम करता रहता है। 

इससे पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि देश की 47% जनता वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग नेटवर्क के बाहर है।

एक लीटर की बोतल में नेनो-प्लास्टिक के करीब ढाई लाख महीन कण 

जानकार चेतावनी देते रहे हैं कि बोतलबंद पानी के प्रयोग से माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में जा रहा है जो कई बीमारियों का कारण बनता है। अब एक नई रिसर्च बताती है कि पानी से भरी एक लीटर की बोतल में नेनो-प्लास्टिक के 2,40,000 कण हो सकते हैं। प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में सोमवार को प्रकाशित रिसर्च बताती है अब तक शरीर में पहुंच रहे ऐसे नेनो-प्लास्टिक (जो कि एक माइक्रोमीटर लंबाई के बराबर या हमारे बाल के सत्तरवें हिस्से के बराबर व्यास के होते हैं)  कणों के बारे में लोग अनजान ही रहे हैं।

नेनो-प्लास्टिक माइक्रोप्लास्टिक के मुकाबले अधिक नुकसानदेह होते हैं। नेनो-प्लास्टिक का पता चलने के बाद अब रिसर्च बता रही है कि बोतलबंद पानी में अब तक ज्ञात स्तर से 100 गुना अधिक प्लास्टिक होता है क्योंकि पहले केवल 1 से 5000 माइक्रोमीटर के कणों के बारे में ही पता लगाया गया था। दुनिया में हर साल करीब 450 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है और यह खुद नष्ट नहीं होता बल्कि छोटे रूपों में टूटकर पर्यावरण में सैकड़ों साल तक बना रहता है। 

इंदौर में अनुपचारित पानी छोड़ने के कारण फैक्ट्रियों पर कार्रवाई

तालाबों, नालों और नदियों में अनुपचारित (अनट्रीटेड) प्रदूषित जल छोड़ने के कारण इंदौर स्थानीय प्रशासन ने 11 फैक्ट्रियों की बिजली काट दी है और उन्हें सील कर दिया गया। स्थानीय प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और ज़िला औद्योगिक केंद्र के अधिकारियों की टीम ने संयुक्त कार्रवाई में यह कदम उठाया। प्रशासन ने इन फैक्ट्री मालिकों पर दंड लगाते हुये उन्हें कारखानों से निकलने वाले पानी के ट्रीटमेंट की उचित व्यवस्था करने को कहा है।

दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगभग 510 गीगावाट तक पहुंच गई है।

पिछले साल 50% बढ़ी वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता: आईईए

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने गुरुवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2023 में दुनिया की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पिछले साल के मुकाबले 50 प्रतिशत बढ़ी है, और अनुमान लगाया है कि इसमें अगले पांच वर्षों में तेजी से वृद्धि होगी।

आईईए ने कहा कि वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2030 तक ढाई गुना बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन कॉप28 में हुए समझौते के अनुसार अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकारों को और प्रयास करने होंगे।

एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ‘दुनिया भर की एनर्जी सिस्टम्स में जोड़ी गई नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगभग 510 गीगावाट तक पहुंच गई, जिसमें तीन-चौथाई योगदान सोलर पीवी का रहा’।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान नीतियों और बाजार स्थितियों के तहत, 2028 तक वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता कुल 7,300 गीगावॉट तक बढ़ने का अनुमान है। लेकिन कॉप28 के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, इसे कम से कम 11,000 गीगावॉट तक बढ़ना होगा।

यूनियन बजट: हरित क्षेत्र की मांग, जीएसटी में कमी, निवेश में वृद्धि

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर को उम्मीद है कि आगामी यूनियन बजट देश को उसके अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ने में सहायक होगा। इसके लिए उद्योग की मांग है कि सेक्टर में पूंजीगत व्यय बढ़ाया जाए और विशेष रूप से हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र मैनुफैक्चरिंग पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) घटाया जाए।

नवीकरणीय क्षेत्र से जुड़े उद्योगपतियों और अधिकारियों ने ग्रीन हाइड्रोजन और बैटरी स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने के साथ-साथ, बायोएनर्जी, सोलर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

नवीकरणीय मैनुफैक्चरिंग के लिए पीएलआई योजनाओं और बैटरी स्टोरेज के लिए वायाबिलिटी गैप फंडिंग की भी आवश्यकता बताई जा रही है।

सोलर पैनल आयात पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू विनिर्माण बढ़ाने, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर आसान बनाने और लोकल मैनुफैक्चरिंग पर इंसेंटिव देने के सुझाव दिए जा रहे हैं। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र मैनुफैक्चरिंग पर जीएसटी घटाकर 5% करने से घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा और हाइड्रोजन क्षेत्र में वृद्धि होगी।

भारत, यूएई ने संभावित ग्रिड कनेक्टिविटी के समझौते पर हस्ताक्षर किए

भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने दोनों देशों के बीच ग्रिड कनेक्टिविटी की स्थापना की संभावना तलाशने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 

विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने बताया कि वाइब्रेंट गुजरात समिट के दौरान भारत और यूएई ने ऐसे चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें से एक नवीकरणीय ऊर्जा पर है, जिसमें सौर और हाइड्रोजन भी शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि समझौते में दोनों देशों के बीच ग्रिड कनेक्टिविटी की संभावना तलाशने की बात की गई है, लेकिन इस बारे में उन्होंने विस्तार से कोई जानकारी नहीं दी।

कुछ सरकारी सूत्रों का मानना है कि दोपहिया वाहन निर्माताओं को अब सब्सिडी की जरूरत नहीं है।

फेम-III योजना: सब्सिडी के लिए 26,400 करोड़ रुपए

केंद्र सरकार फास्टर अडॉप्टेशन एंड मैनुफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, यानी फेम योजना के तीसरे चरण की व्यापक रूपरेखा पर काम कर रही है। सूत्रों के अनुसार, हितधारकों के साथ चर्चा के आधार पर भारी उद्योग मंत्रालय अकेले फेम-III सब्सिडी के लिए 26,400 करोड़ रुपए के आवंटन पर विचार कर रहा है, जिसमें दोपहिया वाहनों को लगभग 8,158 करोड़ रुपए, इलेक्ट्रिक बसों को 9,600 करोड़ रुपए और इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहनों को 4,100 करोड़ रुपए मिलेंगे।

अनुमान के मुताबिक, इनोवेशन फंड और परीक्षण आदि के लिए आवंटन को मिलाकर कुल आवंटन 33,000 करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है।

प्रस्तावित योजना में मंत्रालय 50% डोमेस्टिक वैल्यू एडिशन (डीवीए) को अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है, साथ ही फेज्ड मैनुफैक्चरिंग प्रोग्राम (पीएमपी) को हटाया जा सकता है। हालांकि कुछ सरकारी सूत्रों का कहना है कि फेम योजना के सबसे बड़े लाभार्थी दोपहिया वाहन निर्माता रहे हैं, और उन्हें अब सरकारी सब्सिडी की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, देश में ई-मोबिलिटी इकोसिस्टम विकसित करने पर अधिक खर्च करना चाहिए।

फेम-III योजना के अलावा, सरकार अगले सात वर्षों में 800,000 डीजल बसों को इलेक्ट्रिक बसों से बदलने की योजना बना रही है।

उत्तराखंड के टाइगर रिज़र्व में ट्रायल ईवी दुर्घटनाग्रस्त, 4 मरे; कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज

उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित राजाजी टाइगर रिज़र्व में परीक्षण के लिए मंगाई गई इलेक्ट्रिक एसयूवी के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण दो फारेस्ट रेंजर्स समेत चार लोगों की मौत हो गई और एक महिला वार्डन लापता हो गईं।

उत्तराखंड पुलिस ने उक्त इलेक्ट्रिक वाहन बनाने और कस्टमाइज़ करने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। हालांकि, दुर्घटनाग्रस्त एसयूवी की निर्माता कंपनी बेंगलुरु-स्थित स्टार्टअप प्रवेग डायनेमिक्स ने मामले में नई एफआईआर की मांग करते हुए कहा है कि मौजूदा एफआईआर में कई तथ्यों की अनदेखी की गई है

राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने मामले की उच्च-स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। उक्त इलेक्ट्रिक वाहन का इस्तेमाल पेट्रोलिंग के लिए किया जाना था। उनियाल ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित टाइगर रिजर्वों ने ऐसे इलेक्ट्रिक वाहन खरीदे हैं।

ओला इलेक्ट्रिक ने अपनी मूल कंपनी को बेचे 8,000 से अधिक ई-स्कूटर: रिपोर्ट

मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार ओला इलेक्ट्रिक ने 8,200 से अधिक ई-स्कूटर, प्रमोटर समूह की कंपनी एएनआई टेक्नोलॉजीज लिमिटेड को बेचे हैं, जो कई शहरों में अपनी इलेक्ट्रिक बाइक टैक्सी सेवा शुरू करने और विस्तार करने पर विचार कर रही है। हालांकि, ओला इलेक्ट्रिक ने 7,000 करोड़ रुपए से अधिक के आईपीओ के लिए पिछले साल दिसंबर में दायर किए गए ड्राफ्ट में इस संबंधित पार्टी लेनदेन का खुलासा नहीं किया

ड्राफ्ट पेपर्स में ओला इलेक्ट्रिक के 30 जून, 2023 तक के वित्तीय विवरण शामिल थे, जिसका अर्थ है कि उक्त लेनदेन जून के बाद किया गया। 

मिंट ने सूत्रों के हवाले से बताया कि ओला इलेक्ट्रिक ने अप्रैल 2022 से दिसंबर 2023 तक एएनआई टेक्नोलॉजीज और उसकी सहायक कंपनियों को कम से कम 12,000 स्कूटर बेचे, जिनमें से ज्यादातर दिसंबर में बेचे गए।  हालांकि ओला ने दिसंबर में बिक्री में उछाल आने से इंकार किया है।

दिल्ली सरकार ने ईवी नीति की अवधि 3 महीनों के लिए बढ़ाई

दिल्ली सरकार ने अपनी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति को अगले तीन महीनों के लिए बढ़ाने का फैसला किया है, अधिकारियों ने बताया। अगस्त 2020 में अधिसूचित इस नीति का लक्ष्य 2024 तक दिल्ली में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को 25 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

एक अधिकारी ने कहा कि अब इसे 31 मार्च 2024 तक बढ़ाया जाएगा और कैबिनेट इसे मंजूरी देगी।

दिल्ली इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2020 की अवधि पिछले साल 8 अगस्त को समाप्त हो गई थी, तब से कई बार इसका विस्तार किया गया है। अधिकारियों के मुताबिक नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति पर काम चल रहा है लेकिन यह कब लागू होगी यह तय नहीं है।

अप्रैल-दिसंबर के बीच कोयला उत्पादन 76 मिलियन टन बढ़ा।

भारत का कोयला उत्पादन दिसंबर में करीब 11% बढ़ा, अप्रैल से दिसंबर के बीच कुल उत्पादन 680 मिलियन टन से अधिक

दिसंबर 2023 में भारत में कोयला उत्पादन 92.87 मिलिटन टन हुआ जो एक साल पहले दिसंबर 2022 के उत्पादन से 10.75 प्रतिशत अधिक है। दिसंबर 2022 में देश में कुल 83.86 मिलियन टन कोयले का खनन किया गया।  

कोयला मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “कोयला क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। उत्पादन, ढुलाई और स्टॉक का स्तर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।” सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने इस एक महीने में अपना प्रोडक्शन 8.27 प्रतिशत बढ़ाया। अप्रैल से दिसंबर के बीच उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले अब तक करीब 76 मिलियन टन की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जहां 2022 में इन 9 महीनों का कुल उत्पादन 608.34 मिलियन टन था वहीं 2023 में यह 684.31 मिलियन टन हो गया। 

बढ़ती कीमतों के कारण रूस से भारत के तेल आयात घटा 

यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण पश्चिमी देशों के दबाव की अवहेलना करते हुए भारत ने रूस से सस्ते कच्चे तेल का आयात जारी रखा। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अब इस रियायती कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ने से रूस से भारत का आयात पिछले 11 महीने के निम्नतम स्तर पर आ गया है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने  रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद कर कई बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा बचाई और साफ कर दिया था वह रूस पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के बजाय अपने राष्ट्रीय हित को तरजीह देगा। इस दौरान भारत चीन के बाद रूस से कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया।

लेकिन अब ओपेक+ देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती पर सहमति बन जाने और चीन से तेल की मांग बढ़ने के बाद रूसी कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद भारत के लिए यह फायदे का सौदा नहीं रह गया है। 

‘ट्रांज़िशन अवे’ का समझौता वैकल्पिक: सऊदी मंत्री

सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान ने बीते हफ्ते एक कार्यक्रम में कहा कि उनका देश जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं को गंभीरता से ले रहा है, और उसने केवल तेल ही नहीं, बल्कि सभी प्रकार की ऊर्जा पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कॉप28 में हुआ जीवाश्म ईंधन से दूर जाने (ट्रांज़िशन अवे) का समझौता कई “विकल्पों” में से एक है। 

पिछले साल दुबई में हुए महासम्मेलन में विभिन्न देश आठ “वैश्विक प्रयासों” में “योगदान करने” के लिए एक-दूसरे का “आह्वान” करने पर सहमत हुए — जिनमें से एक विकल्प “ट्रांज़िशन अवे” का भी था। हालांकि अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान ने दावा किया कि “यह सभी आठ प्रयास वैकल्पिक हैं”।