Vol 1, February 2024 | जलवायु परिवर्तन के कारण चार गुना हो रहीं अतिवृष्टि की घटनाएं

पहली बार पूरे एक साल के लिए 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि की सीमा हुई पार: यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी

यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी के मुताबिक पहली बार ऐसा हुआ है कि पूरे एक साल वैश्विक औसत तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री से ऊपर रही। हालांकि इसका मतलब पेरिस संधि के तहत बताई गई 1.5 डिग्री तापमान सीमा को स्थाई रूप से पार होना नहीं माना जायेगा क्योंकि इसका अर्थ कई सालों तक दीर्घ कालिक (long term) वॉर्मिंग से है। यूरोपीय यूनियन के कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस ने भी कहा है कि जनवरी का तापमान धरती पर अब तक का सबसे अधिक रहा। असल में पिछले साल जून के बाद हर महीना इसी तरह रिकॉर्ड गर्मी वाला रहा है। वैज्ञानिक अल नीनो – जो मध्य प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म होने को दर्शाता है – और मानव जनित जलवायु परिवर्तन को इसकी वजह मानते हैं। 

साल 2023 अब तक का सबसे गर्म साल रहा जिसमें प्री इंडस्ट्रियल स्तर की तुलना में औसत वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस के करीब वृद्धि हुई थी। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने दिसंबर में कहा था कि 2024 में हालात और भी बदतर हो सकते हैं क्योंकि “अल निनो आमतौर पर वैश्विक तापमान पर असर चरम पर पहुंचने के बाद डालता है।”

जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पूर्व और बांग्लादेश के कई हिस्सों में अति वृष्टि की घटनाएं हुई चार गुना 

एक नई रिसर्च बताती है कि 1950 और 2021 के बीच मेघालय के गारो, खासी और जेन्तिया वाले पठारों और उससे लगे असम के क्षेत्र में चरम वृष्टि की घटनायें (एक दिन में 15 सेमी से अधिक बरसात) चार गुना हो गई है। मेघालय के चेरापूंजी और मौसिनराम भारत की उन जगहों में हैं जहां सबसे अधिक बरसात हुई और इसके साथ ही यह राज्य देश में सर्वाधिक वृष्टि वाले क्षेत्रों में दर्ज हुआ। हालांकि भारतीय मौसम विभाग के आंकड़े यह इंगित करते हैं कि पिछले 30 साल में मेघालय समेत उत्तर-पूर्व के इलाकों में मॉनसून की बारिश का ग्राफ गिरा है।   

रिसर्च पेपर के सह लेखक क्लाइमेट साइंटिस्ट रॉक्सी कॉल कहते हैं, “हमारा शोध दिखाता है कि जहां इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में कुल बारिश कम हो रही है वहीं चरम वृष्टि की घटनायें बढ़ रही हैं।” 

शोध बताता है कि1950 से 2021 के बीच मई से अक्टूबर तक मेघालय (और उत्तर-पूर्व बांग्लादेश और भारत) और तटीय बांग्लादेश में अति वृष्टि की घटनायें चार गुना हो गईं। तुलना के लिये 1950 से 1980 के 30 सालों को आधार बनाया गया। इस पूरे क्षेत्र में अत्यधिक बारिश की घटनायें हो रही है जिसके पीछे वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़े कारक बता रहे हैं।  इनमें एक बंगाल की खाड़ी का गर्म होना भी है। 

वेटलैंड – भारत में रामसर सूची की संख्या में हुई बढ़ोतरी 

इस साल 2 फरवरी को वर्ल्ड वेटलैंड डे के मौके पर केंद्र सरकार ने पांच अन्य वेटलैंड साइट्स को रामसर श्रेणी में शामिल करने की घोषणा की। अब भारत में रामसर वेटलैंड साइट्स की संख्या बढ़कर 75 से बढ़कर 80 हो गई है। वेटलैंड्स धरती पर बहुत महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र होते हैं जिन्हें आर्द्रभूमि कहा जाता है। यहां कई तरह की वनस्पतियां पनपती हैं और यह ज़मीन को नम रखने के साथ पानी को छानने और रेग्युलेट करने का का भी काम करते हैं। इसलिये कई बार इन्हें धरती की किडनी भी कहा जाता है। 

वेटलैंड्स कई पक्षी प्रजातियों, जंतुओं का पर्यावास होता है और कार्बन को सोखने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं लेकिन धरती पर वेटलैंड्स विभिन्न कारणों से ख़तरे में हैं। 1970 के दशक में ईरान के रामसर में इन महत्वपूर्ण धरोहरों को बचाने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संधि की गई जिसके नाम पर पारिस्थितिकी के लिहाज से अति महत्वपूर्ण वेटलैंड्स को रामसर क्षेत्र या रामसर साइट की श्रेणी में रखा जाता है। 

टिपिंग पॉइंट की ओर बढ़ रहा अटलांटिक महासागर 

वैज्ञानिक पिछले कई दशकों से चेतावनी देते रहे हैं कि अटलांटिक सागर में जलधाराओं का महत्वपूर्ण तंत्र (अटलांटिक मेरिडिओनल  ओशिनिक सर्कुलेशन या एएमओसी) गड़बड़ा रहा है जो धरती के बड़े हिस्से पर विनाशलीला ला सकता है। एएमओसी अटलांटिक महासागर में घूमने वाली समुद्री धाराओं का तंत्र है जो गर्म पानी को सुदूर उत्तर में और ठंडे पानी को दक्षिण में ले जाता है। खाड़ी धारायें (गल्फ स्ट्रीम) इस तंत्र का हिस्सा हैं और इस मूवमेंट के कारण ध्रुवों पर बर्फ जमती है समुद्र में तापमान और खारेपन का संतुलन बना रहता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से समुद्री धाराओं का यह तंत्र शिथिल पड़ रहा है और एक रिपोर्ट कहती है कि यह “पूरे क्लाइमेट सिस्टम और मानवता के लिये ख़राब समाचार है।”

कम्प्यूटर सिम्युलेशन के प्रयोग से तैयार किये गये एक नये अध्ययन में कहा गया है कि अटलांटिक महासागर में जलधाराओं का अनायास थमना  यूरोप के एक बड़े हिस्से को जमा सकता है। पहले से दिख रही यह आशंका अब अधिक करीब और प्रबल होती दिख रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तर-पश्चिमी यूरोप में कुछ दशकों में इस कारण तापमान में 5 से 15 डिग्री की गिरावट हो सकती है और आर्कटिक की बर्फ दक्षिणी हिस्से की ओर फैल सकती है और दक्षिणी गोलार्ध में तापमान में असमान्य बढ़ोतरी हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे बारिश का पैटर्न बड़े स्केल पर बदलेगा और भारी खाद्य और जल संकट पैदा हो सकता है। अटलांटिक महासागर तेज़ी से इस टिपिंग पाइंट की ओर बढ़ रहा है लेकिन यह कितनी जल्दी होगा यह मानव जनित जलवायु परिवर्तन के असर पर निर्भर है।

कूनो के बाद अब गांधी सागर में बसाए जाएंगे अफ़्रीकी चीते

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के बाद अब राज्य के मंदसौर जिले में स्थित गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य भी दक्षिण अफ्रीका से आने वाले चीतों का इंतज़ार कर रहा है

गांधी सागर कूनो पार्क से लगभग 270 किमी दूर है और इसे चीतों के ‘दूसरे घर’ के रूप में तैयार किया गया है। मंदसौर के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) संजय रायखेड़ा ने कहा की चीतों को यहां लाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं लेकिन चीतों को बसाने के समय और अन्य औपचारिकताओं पर अंतिम निर्णय राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) का होगा।

उन्होंने कहा कि इस अभयारण्य में दक्षिण अफ्रीका से चीतों का एक नया बैच आने की संभावना है।

गौरतलब है कि पिछले साल अफ़्रीकी देशों से 20 चीते लाए गए थे जिनमें से सात की मौत हो चुकी है। वहीं भारत में जन्मे 11 चीता शावकों में से तीन की मौत हो चुकी है। इन मौतों के बाद प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठने लगे थे। पिछले महीने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने राज्यसभा में बताया कि सात में से चार चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई थी

लॉस एंड डैमेज फंड की समय सीमा से चूके अमीर देश

पिछले साल कॉप28 के दौरान बड़े जोर-शोर से लॉस एंड डैमेज फंड का क्रियान्वयन किया गया था। लेकिन विकसित देश तय समयसीमा के अंदर फंड के बोर्ड के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने में विफल रहे हैं। इस कारण से जलवायु परिवर्तन से पीड़ित देशों और समुदायों को इस फंड का लाभ मिलने में देरी हो सकती है।

कॉप28 में विभिन्न देशों की सरकारों ने यूएनएफसीसीसी से फंड के नए बोर्ड की बैठक आयोजित करने के लिए कहा था, जब सभी वोटिंग मेंबरों के नामांकन दाखिल हो जाएं। इसके लिए आखिरी दिन 31 जनवरी 2024 रखा गया था। लेकिन विकसित देशों ने तय समय के अंदर अपने सदस्यों का चयन नहीं किया। 

यूएनएफसीसीसी के प्रवक्ता का कहना है कि जबतक सारे नामांकन नहीं आ जाते तबतक बोर्ड की बैठक नहीं बुलाई जा सकती। सूत्रों की माने तो देरी इसलिए हो रही है  क्योंकि यह देश सीटों के बंटवारे को लेकर एकमत नहीं हो पा रहे हैं।  

जानकारों का कहना है कि यदि कॉप29 को क्लाइमेट फाइनेंस के लिहाज से महत्वपूर्ण बनाना है तो ऐसे प्रमुख निर्णयों की समयसीमा का पालन होना चाहिए। 

लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना के अलावा, कॉप28 में फाइनेंस के अन्य पहलुओं पर बहुत कम प्रगति हुई। जलवायु वार्ता में कई ऐसे मुद्दों पर बातचीत की गई जिनको पूरा करने में फाइनेंस की भूमिका अहम है, इसके बावजूद फाइनेंस से जुड़े किसी भी एजेंडे की समयसीमा मौजूदा वर्ष के लिए नहीं रखी गई है।

यूएन जलवायु प्रमुख ने मांगा $ 2.4 ट्रिलियन का क्लाइमेट फाइनेंस

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल ने विभिन्न देशों से खरबों डॉलर का क्लाइमेट फाइनेंस देने का आह्वान किया है।   

अज़रबैजान की राजधानी बाकू में दिए एक भाषण में स्टिल ने कहा कि विकासशील देशों (चीन को छोड़कर) को एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए हर साल कम से कम 2.4 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है।

अगली जलवायु वार्ता कॉप29 बाकू में आयोजित होने वाली है और उम्मीद है कि यह ग्लोबल साउथ के लिए एक महत्वपूर्ण सम्मेलन होगा क्योंकि क्लाइमेट फाइनेंस एजेंडे के प्रमुख मुद्दों में से एक है।

ग्रेटा थुनबर्ग और अन्य प्रदर्शनकारी कोर्ट से बरी

लंदन में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक व्यवस्था के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार ग्रेटा थुनबर्ग और चार अन्य कार्यकर्ताओं को अदालत ने बरी कर दिया गया है। जज ने कहा कि उनके ऊपर कोई मामला नहीं है।

थुनबर्ग और अन्य पर ‘सार्वजनिक व्यवस्था अधिनियम की धारा 14 के तहत लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करने में विफल रहने’ का आरोप लगाया गया था। वे मेफेयर में इंटरकांटिनेंटल होटल के बाहर एक विरोध प्रदर्शन में भाग ले रहे थे, जहां जीवाश्म ईंधन उद्योग शिखर सम्मेलन एनर्जी इंटेलिजेंस फोरम (ईआईएफ), चल रहा था जिसमें कॉर्पोरेट अधिकारी और सरकारी मंत्री भी भाग ले रहे थे।

उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन अदालत में सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। कोर्ट ने यह भी कहा कि उनका विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण और अहिंसक था।

नोएडा बना सबसे प्रदूषित शहर, दिल्ली की हवा में सुधार

दिल्ली में लगातार पांच दिनों के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) में गिरावट दर्ज की गई, जो 356 से गिरकर 279 पर आ गया। लेकिन अभी भी प्रदूषण का स्तर ‘ख़राब’ की श्रेणी में ही है।

वहीं देश के सबसे प्रदूषित शहर की बात करें तो दूसरे शहरों को पीछे छोड़ ग्रेटर नोएडा पहले स्थान पर पहुंच गया है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 380 दर्ज किया गया। इसी तरह देश के छोटे बड़े अन्य 10 शहरों में भी वायु गुणवत्ता बेहद खराब बनी हुई है।

इन शहरों में अररिया (359), भागलपुर (340), भिवाड़ी (305), बर्नीहाट (303), गाजियाबाद (318), हापुड़ (368), मुजफ्फरनगर (369), नगांव (315), नलबाड़ी (302) और नोएडा (348) शामिल हैं।

यदि देश में सबसे साफ हवा वाले शहर की बात करें तो तुमकुरु और वाराणसी में वायु गुणवत्ता सूचकांक 32 दर्ज किया गया। इसी तरह देश के 16 अन्य शहरों में भी वायु गुणवत्ता बेहतर बनी हुई है। जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 या उससे कम दर्ज किया गया है।

वहीं दूसरी तरफ देश के 36 अन्य शहरों में प्रदूषण से हालात दमघोंटू बने हुए हैं, जहां वायु गुणवत्ता लोगों को बीमार करने के लिए काफी है।

बच्चों के दिमाग पर प्रदूषण के प्रभाव पर कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं: पर्यावरण मंत्री

पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने बताया है कि उच्च वायु प्रदूषण बच्चों के दिमाग और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है, इस बारे में कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया है। राज्यसभा में एक सवाल पूछा गया था कि क्या प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चों के दिमाग, तंत्रिका तंत्र और सोचने-समझने की शक्ति पर असर पड़ता है।  इसका जवाब देते हुए पर्यावरण मंत्री ने  कहा कि वायु प्रदूषण के कारण सांस संबंधी बीमारियों और उनसे होनेवाले नुकसान के बारे में कई अध्ययन किए गए हैं, लेकिन बच्चों के दिमाग और सोचने-समझने की शक्ति पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, इस बारे में कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया है।

हालांकि पिछले साल जनवरी में स्प्रिंगर नेचर जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल हेल्थ में प्रकाशित एक पेपर में पाया गया था कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषकों के अधिक संपर्क में आनेवाली महिलाओं के बच्चों के तंत्रिका तंत्र, सोचने समझने और भाषा सीखने की क्षमता कमजोर हुई थी।

जहाजों से होनेवाले SO2 उत्सर्जन को घटाने से बढ़ी ग्लोबल वार्मिंग

आशंका है कि वायु प्रदूषण पर नकेल कसने के लिए किए गए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों ने ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोत्तरी ही की है। जलयानों से समुद्र और आबोहवा में फैलने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए जिम्मेदार संगठन इंटरनेशनल मेरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (आईएमओ) ने जलयानों में इस्तेमाल होने वाले ईंधन में सल्फर की मात्रा को 3.5 प्रतिशत से घटाकर 0.5 प्रतिशत किया है

विज्ञानियों का कहना है कि सल्फर डाई-ऑक्साइड (SO2) के उत्सर्जन में कमी ने नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के बीच वैश्विक औसत तापमान में 1.32 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि में भूमिका निभाई होगी। इसके साथ ही जून 2023 में उत्तरी अटलांटिक महासागर में समुद्री सतह के तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि हुई, जिससे संभवतः इस साल अमेजन में सबसे भयानक सूखा आया।

SO2 की वजह से सांस, हृदय और फेफड़े की बीमारियां हो सकती हैं और यह एसिड बारिश ला सकता है, जो फसल, जंगल और जलीय नस्लों के लिए खतरा है। लेकिन SO2 उत्सर्जन दो तरीके से पृथ्वी को ठंडा करता है। पहला तरीका सीधे असर करता है। दरअसल, आबोहवा में मौजूद SO2, सल्फेट एरोसोल में तब्दील हो जाता है, जो सौर विकिरण को अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित करता है। दूसरे तरीके का प्रभाव अप्रत्यक्ष होता है। इसमें बादलों और सल्फेट एरोसोल के बीच संपर्क होता है, जिससे छोटे जल बूंदों वाले बादल बनते हैं और सल्फेट एरोसोल से चिपक जाते हैं।

दिल्ली: लैंडफिल साइट्स पर फेंका जा रहा है मलबा

दिल्ली में निर्माण और तोड़-फोड़ से उत्पन्न मलबे की प्रोसेसिंग करने के लिए चार विशिष्ट प्लांट होने के बावजूद, बहुत सा ऐसा कचरा भलस्वा, ग़ाज़ीपुर और ओखला की लैंडफिल साइट्स पर भेजा जा रहा है। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने आयुक्त को पत्र लिखकर कचरे का निस्तारण करने वाली एजेंसियों के खिलाफ जांच करने और कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

पिछले साल सितंबर में एमसीडी ने मलबे का निस्तारण करने के लिए 158 स्थान निर्धारित किए थे। लेकिन मेयर शेली ओबेरॉय ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान खुलासा किया कि इस प्रक्रिया में “बड़ी अनियमितताएं” हैं। निर्दिष्ट कलेक्शन पॉइंट होने से कचरे को अलग-अलग करने में सुविधा होती है। लेकिन ओबेरॉय ने कहा कि इन जगहों पर मलबे और ठोस अपशिष्ट को मिलाकर फिर लैंडफिल साइट्स पर भेजा जा रहा है, जिससे इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य ही विफल हो जा रहा है।

मलबे को लैंडफिल साइट्स पर फेंकने से पर्यावरणीय और आर्थिक दोनों प्रकार का नुकसान हो रहा है।

मेयर ने कहा कि कचरे का निस्तारण करने वाली एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।

फोटो: BloombergNEF

‘पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ देगी सौर ऊर्जा को बढ़ावा

इस साल का अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्रिड-आधारित सौर ऊर्जा योजना के लिए 10,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया था। वहीं बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि इस योजना का नाम ‘पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ होगा, और इसके अंतर्गत एक करोड़ घरों में रूफटॉप सोलर पैनल लगाए जाएंगे जिससे उन्हें हर महीने 300 यूनिट बिजली मुफ्त मिलेगी।

मोदी ने कहा कि योजना में 75,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया जाएगा। इस योजना के तहत सब्सिडी और सस्ते दर पर बैंक लोन भी मुहैया कराए जाएंगे। रूफटॉप सोलर लगाने पर सरकार 60 प्रतिशत तक की सब्सिडी देगी।

इस योजना का लाभ लेने के लिए https://pmsuryaghar.gov.in पर पंजीकरण करवाना होगा और सब्सिडी स्ट्रक्चर की जानकारी भी इस लिंक पर मिलेगी। 

तीन गुनी अक्षय ऊर्जा क्षमता के लिए हर साल चाहिए रु 2 लाख करोड़

थिंक टैंक क्लाइमेट एनालिटिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि दुनिया को 2030 तक निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा स्थपना लक्ष्यों को पूरा करना है तो उसके लिए हर साल दो लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी।  जबकि पिछले साल यह निवेश एक लाख करोड़ से भी कम था।

रिपोर्ट में कहा गया है की भारत और चीन में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की संख्या बढ़ने के कारण एशिया में अक्षय ऊर्जा में वृद्धि देखी जा रही है।  लेकिन इन दोनों देशों की कोयला परियोजनाएं अभी भी चिंता का कारण हैं। हालांकि इसमें कहा गया है कि भारत में 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता में 2.9-3.5 गुना वृद्धि होगी।

गौरतलब है कि पिछले साल कॉप28 के दौरान तय किया गया था कि 2030 तक वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता तीन गुना बढ़ाई जाएगी। हालांकि, इस रिपोर्ट का कहना है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 11.5 टेरावाट तक बढ़ाना होगा, यानि 2022 के स्तर से 3.4 गुना। और यह केवल तभी किया जा सकता है जब इस उद्देश्य के लिए हर साल 2 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाए।

लगातार गिर रहा है इरेडा के शेयरों का भाव

बीते साल नवंबर महीने में लिस्टिंग के बाद से सरकारी कंपनी इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (इरेडा) ने निवेशकों को लगातार मुनाफा दिया। हालांकि, बीते कुछ दिनों से यह शेयर बिकवाली मोड में है। सप्ताह के दूसरे कारोबारी दिन मंगलवार को भी यह शेयर 162 रुपए पर था।

एक दिन पहले के मुकाबले शेयर 5% लुढ़का और इसमें लोअर सर्किट लगा। यह लगातार पांचवां कारोबारी दिन है जब शेयर में लोअर सर्किट लगा है।

जानकारों का कहना है कि अगर इरेडा के शेयरों में गिरावट जारी रही, तो यह संभावित रूप से 140 रुपए या इसके आसपास तक पहुंच सकता है। एक्सपर्ट निवेशकों को अभी खरीदारी से परहेज करने की सलाह दे रहे हैं।

अडानी ग्रीन ने शुरू किया खावड़ा पार्क में बिजली उत्पादन

अडानी ग्रीन ने बुधवार, 14 फरवरी को कहा कि उसने गुजरात के खावड़ा में स्थित अपने नवीकरणीय ऊर्जा पार्क में बिजली उत्पादन शुरू कर दिया है। कंपनी ने बताया कि अभी 551 मेगावाट सौर क्षमता का संचालन शुरू किया गया है, जिससे नेशनल ग्रिड को बिजली आपूर्ति की गई है

कंपनी ने कहा कि वह पार्क में 30 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने की योजना बना रही है और अगले पांच वर्षों में इसके चालू होने की उम्मीद है। यदि ऐसा हुआ तो यह दुनिया का सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा इंस्टालेशन होगा।

अनुमान है कि खावड़ा आरई पार्क के पूरा होने पर सालाना 1.6 करोड़ घरों को बिजली मिलेगी।

टोयोटा पर लगा भ्रामक मार्केटिंग, ग्रीनवाशिंग का आरोप

कॉर्पोरेट वॉचडॉग एको की एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि टोयोटा ने झूठे दावे करके ‘इलेक्ट्रिक’ वाहनों के नाम पर हाइब्रिड और दूसरे प्रदूषणकारी वाहन बेचे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 देशों में 25 आधिकारिक टोयोटा वेबसाइटों पर कई भाषाओं में भ्रामक विज्ञापन दिए गए और वाहनों के पर्यावरण अनुकूल होने को लेकर झूठे दावे किए गए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि टोयोटा की ‘इलेक्ट्रिफाइड’ कैंपेन ने ईवी की बढ़ती मांग का फायदा उठाकर ज्यादातर हाइब्रिड वाहन बेचे। 

रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कैसे कंपनी ने बार-बार ‘इलेक्ट्रिफिकेशन’, ‘इलेक्ट्रिफाइड’ और यहां तक कि ‘इलेक्ट्रिक’ आदि शब्दों का गलत तरीके से प्रयोग किया और यह बताने की कोशिश की कि उसके हाइब्रिड वाहन भी इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे ही हैं, या उनकी आपस में अदला-बदली की जा सकती है।

रिपोर्ट में उपभोक्ता संरक्षण अधिकारियों से सिफारिश की गई है कि वह टोयोटा की वेबसाइटों और अन्य मार्केटिंग सामग्रियों की जांच करें।         

पिछले साल के मुकाबले 69% बढ़ी ईवी बिक्री

दुनिया भर में जनवरी 2024 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री पिछले साल की तुलना में 69 प्रतिशत बढ़ी। लेकिन पिछले दिसंबर 2023 के मुकाबले जनवरी 2024 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में 26 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जो जर्मनी और फ़्रांस द्वारा सब्सिडी में कटौती और चीन में बिक्री में गिरावट के कारण हो सकता है।

जनवरी में पूरी तरह से इलेक्ट्रिक कारों, या बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (बीईवी) और प्लग-इन हाइब्रिड की बिक्री 11 लाख  तक पहुंच गई, जो जनवरी 2023 में 660,000 थी। अमेरिका और कनाडा में जनवरी की बिक्री एक साल पहले की तुलना में 41% अधिक थी और चीन में यह लगभग दोगुनी हो गई। यूरोपीय संघ, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) और यूनाइटेड किंगडम में बिक्री 29% बढ़ी।

वहीं दिसंबर 2023 के मुकाबले चीन में बिक्री 26% कम रही। यूरोप में बिक्री में 32% और अमेरिका और कनाडा में 14% की गिरावट हुई।

ईवी अडॉप्टेशन की दौड़ में केरल सबसे आगे

देश में बिकने वाले यात्री वाहनों में से केवल 4% केरल में बिकते हैं। लेकिन हाल ही में इस दक्षिणी राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग ने वाहन निर्माताओं को भी हैरान कर दिया है। ईवी तकनीक को अपनाने की दौड़ में केरल तेजी से आगे बढ़ा है, और पिछले 12-18 महीनों में बड़े पैमाने पर बाजार में किफायती मूल्य पर लॉन्च की गई इलेक्ट्रिक कारों को अपनाने में यह केवल महाराष्ट्र से पीछे है।

उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि इन राज्यों में बिक्री बढ़ने का कारण है उपभोक्ता जागरूकता में वृद्धि, संचालन की लागत में कमी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार।

टाटा ने ईवी कीमतें 1 लाख रुपए तक घटाईं

टाटा मोटर्स ने घोषणा की है कि वह अपनी नेक्सॉन और टियागो ईवी की कीमत 1,20,000 रुपए तक कम कर रही है। कीमत में कमी मुख्य रूप से इन कारों के निर्माण में उपयोग की जाने वाली बैटरी की कीमतों में गिरावट के कारण है।

कीमत में कटौती के बाद, टाटा टियागो ईवी की भारत में कीमत 7.99 लाख रुपए से शुरू होगी। नेक्सॉन ईवी की कीमत 14.49 लाख रुपए से शुरू होगी जबकि लंबी दूरी की नेक्सॉन ईवी की कीमत 16.99 लाख रुपए से शुरू होगी।

जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के लिए दुबई संधि में छेद न ढूंढें सरकारें: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया की सरकारों को जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के लिए पिछले साल दिसंबर में हुई वैश्विक संधि में कमज़ोरियां नहीं ढूंढनी चाहिए। इस चेतावनी के साथ संयुक्त राष्ट्र के जलवायु वार्ता प्रमुख ने अमीर देशों से अपील की कि जलवायु संकट से लड़ रहे गरीब देशों पर धन की ‘बरसात’ होनी चाहिए। कुछ देशों ने दुबई वार्ता के समापन पर हुई संधि के महत्व को हल्का दिखाने की कोशिश की है जिसमें पहली बार दुनिया के सभी देशों ने आइल और गैस पर शपथ ली। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने पिछले महीने कहा था कि जीवाश्म ईंधन से ‘ट्रांजिशन अवे’ दिए गए अलग अलग विकल्पों में से एक विकल्प है। बहुत सारे देशों ने संधि की इस व्याख्या का विरोध किया था। 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के कंवेन्शन (UNFCCC) के  कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने किसी एक सदस्य का नाम लेने से इनकार कर दिया पर चेतावन दी कि संधि की भाषा में कमज़ोरियां ढूंढना या अब तक किये गये परिश्रम को बेकार करना पूरी तरह से आत्मघाती होगा क्योंकि जलनायु परिवर्तन के कारण हर देश की अर्थव्यवस्था और वहां के नागरिकों पर असर पड़ेगा। 

जीवाश्म ईंधन को ‘खलनायक’ बनाए बिना हो ‘व्यवस्थित बदलाव’: हरदीप पुरी

पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि भारत स्वच्छ ईंधन की ओर एक ‘व्यवस्थित बदलाव’ (ओडर्ली ट्रांजिशन) के पक्ष में है। पुरी के मुताबिक इस प्रक्रिया में ट्रांजिशन फ्यूल इस्तेमाल करना शामिल है और यह कार्य जीवाश्म ईंधन को ‘खलनायक’ के रूप में दिखाए बिना होना चाहिए। पुरी ने यह बात गोवा में इंडिया एनर्जी वीक के दौरान कही।    

ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देते हुए यह तर्क दिया जाता है कि तेल और गैस का बाज़ार पर निवेश कम होने का संकट है। कई विशेषज्ञ कहते हैं कि जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से भरपूर वर्तमान एनर्जी सिस्टन को बनाये रखा जाए ताकि इकोनोमी और उपभोक्ताओं को कीमतों और बाज़ार के हिचकोलों से बचाया जा सके। भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और उसकी 85 प्रतिशत ज़रूरत आयात से पूरी होती है। इस कारण अंतर्राष्ट्रीय तेल-गैस बाज़ार में उथलपुथल का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इस कारण ग्रीन एनर्जी की ओर रफ्तार को बढ़ाने के साथ भारत तेल और गैस के क्षेत्र में ज़रूरी निवेश के पक्ष में वकालत करता रहा है।

कोयला भारत की ऊर्जा ज़रूरतों में अहम बना रहेगा: आईईए

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) का ताजा अनुमान है कि साल 2026 तक पावर डिमांड के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा और उसकी विकास दर दुनिया में सबसे अधिक होगी। एजेंसी का कहना है कि 2026 में भारत में बिजली मांग का 68% कोयले से ही पूरा किया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2021 में ग्लासगो सम्मेलन में घोषणा की थी कि भारत 2070 तक नेट ज़ीरो दर्जा हासिल कर लेगा। 

आईईए के नई रिपोर्ट “इलैक्ट्रिसिटी – 2024” के मुताबिक 2026 के बाद भी कोयला भारत में पावर सेक्टर में अहम रोल अदा करता रहेगा हालांकि 2023 में जहां बिजली उत्पादन में इसका योगदान 74 प्रतिशत है वहीं यह 2026 में यह आंकड़ा कम होने की संभावना है।  

ब्रिटिश वैश्विक बैंक का नए तेल और गैस फील्ड को सीधा फाइनेंस न करने का फैसला 

ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय यूनिवर्सल बैंक बार्कलेज ने घोषणा की है कि वह किसी नये तेल और गैस फील्ड को सीधा फाइनेंस नहीं देगा। बैंक ने कहा है कि वह ऊर्जा क्षेत्र के उन कारोबारों को भी कर्ज रोकेगा जो जीवाश्म ईंधन के क्षेत्र में विस्तार कर रहे हैं। बीबीसी के मुताबिक बार्कलेज – जो कि जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में बड़े कर्ज देता रहा है – पर इस बात का जबाव लगातार बढ़ रहा है कि वह इस सेक्टर को मदद करना बन्द करे। पर्यावरण समूहों ने इसका स्वागत किया है  लेकिन यह भी कहा कि इतना कहना काफी नहीं है। 
पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था रेनफॉरेस्ट एक्शन नेटवर्क के मुताबिक 2016 से 2021 के बीच यूरोप में जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में बार्कलेज सबसे बड़ी कर्ज़दाता थी। साल 2022 में इसने $ 16,500 करोड़ का कर्ज़ दिया हालांकि यह राशि 2019 और 2020 से काफी कम थी जब करीब $ 30,000 के बराबर रकम दी गई।