Vol 1, April 2023 | सामान्य रहेगा मॉनसून, लेकिन उससे पहले भीषण गर्मी के लिए रहिए तैयार

Newsletter - April 13, 2023

मौसम विभाग ने कहा है कि ज़रूरी नहीं कि अल-निनो प्रभाव वाले वर्षों में बारिश कम हो। Photo: Mallika Viegas/Flickr

अल निनो के बावजूद सामान्य रहेगा मानसून: आईएमडी

माना जा रहा था कि अल निनो प्रभाव के कारण इस साल मॉनसून पर असर पड़ सकता है लेकिन मौसम विभाग ने मंगलवार को कहा है कि इस साल मॉनसून  ‘सामान्य’ ही रहेगा। आईएमडी ने जून से सितंबर के बीच पूरे देश में दक्षिण पश्चिम मॉनसून दीर्घावधि औसत (लॉन्ग पीरियड औसत)  का 96% बताया है। 1971 से 2020 तक की बारिश का औसत लॉन्ग पीरियड एवरेज (एलपीए) कहा जाता है। मौसम विभाग के मुताबिक इस अनुमान में +/- 5% की त्रुटि हो सकती है।   

मौसम विभाग से पहले प्राइवेट वेदर फोरकास्टिंग एजेंसी स्काइमेट ने अल निनो प्रभाव के कारण इस साल ‘सामान्य से कम’ (करीब 94%) रहने की भविष्यवाणी की।

अल निनो प्रभाव के तहत प्रशान्त महासागर के पूर्वी मध्यरेखीय हिस्से में समुद्र गर्म होता है जिसका प्रभाव मॉनसून पर देखा जा सकता है। 

मौसम विभाग के निदेशक डी महापात्रा ने कहा कि अल निनो वाले साल बुरे मॉनसून वाले नहीं होते। उन्होंने आंकड़ा दिया कि 1951 से अब तक अल निनो प्रभाव वाले 15 वर्ष हुए हैं जिनमें से 6 साल ऐसे हैं जिनमें ‘सामान्य’ या  ‘सामान्य से अधिक’ बारिश हुई।  

मार्च के दो रूप, दुनिया में रिकॉर्ड गर्म तो भारत में बारिश से तर 

मार्च के इस साल दो रूप दिखे। दुनिया में यह इतिहास का दूसरा सबसे गर्म मार्च रहा तो भारत के कई राज्यों में इस महीने औसत से अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई। 

मध्य भारत में तो इस मार्च में औसत से 206% अधिक बरसात हुई। दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र में 107% अधिक बारिश हुई। 1901 के बाद यह सातवां मौका है जब प्रायद्वीपीय क्षेत्र में इतनी बारिश हुई है। मौसम विभाग का कहना है कि मार्च में पूरे देश में सामान्य से 26% अधिक बरसात हुई।

आईएमडी के मुताबिक इस मार्च में औसत अधिकतम तापमान सामान्य से 0.13 डिग्री सेल्सियस अधिक था। वहीं औसत न्यूनतम तापमान सामान्य से 0.59 डिग्री सेल्सियस और औसत तापमान सामान्य से 0.36 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। 

गर्म होता उत्तरी ध्रुव, शिकारी जीवों के व्यवहार पर दिखता असर  

आर्कटिक पर तापमान वृद्धि का प्रभाव समुद्री जीवों के व्यवहार पर दिख रहा है। पिछले दो दशकों में शिकारी जीवों ने उत्तर की ओर अपनी प्रवास सीमा का विस्तार किया है। जलवायु परिवर्तन और उत्पादकता में वृद्धि इसके पीछे प्रमुख वजहें बताई जा रही है। यह बात होक्काइडो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और दुनिया के दूसरे शोधकर्ताओं की एक टीम की रिसर्च में सामने आये हैं। 

पिछले दो दशकों में आर्कटिक में मानव जनित जलवायु परिवर्तन के भारी प्रभाव दिखे हैं और यहां तापमान दुनिया के बाकी हिस्सों के मुकाबले दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है।  जून 2020 में साइबेरिया के वर्खोयान्स्क शहर में तापमान 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इसकी पुष्टि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भी की थी। यहां जमी समुद्री बर्फ हर साल 13 प्रतिशत की दर से पिघल रही है।    

आदिवासी क्षेत्र में बाक्साइड खनन का प्रभाव कृषि, हवा और पानी पर 

झारखंड में बाक्साइड खनन के कारण वायु गुणवत्ता से लेकर भू-जल तक हो रहा है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित एक ख़बर के मुताबिक राज्य के गुमला ज़िले में भारी बॉक्साइड खनन से हवा प्रदूषित हो रही है जिसका असर स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

खनन से उड़ कर आने वाली धूल से किसानों की कृषि भूमि भी खराब हो रही है। कई किसानों की खेती योग्य ज़मीन भी खनन के लिये ली गई और बॉक्साइड दोहन के बाद उस भूमि का भराव मानकों द्वारा नहीं किया जा रहा। 

झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ समेत देश के करीब दस राज्यों में बॉक्साइड निकाला जाता है जिसका प्रभाव मिट्टी, हवा और पानी पर पड़ता है।

रिपोर्ट में जैव विविधता विशेषज्ञ के हवाले से कहा गया है कि ‘खनन की वजह से कई रसायन उत्पन्न होते हैं जो पानी को प्रदूषित करते हैं। साथ ही इस वजह से मिट्टी की जल धारण क्षमता कम होती है।

उन्होंने खदान के पुनर्भराव के सवाल पर कहा कि प्राकृतिक भूमि प्राकृतिक होती है और उसे कृत्रिम तरीके से कभी भी पहले की स्थिति में नहीं लाया जा सकता है’।

इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और अवैज्ञानिक विस्थापन के कारण हाथियों के बसेरे लगातार नष्ट हो रहे हैं।

देश में बढ़े बाघ, लेकिन घट रही हाथियों की संख्या

भारत में बाघों की संख्या चार सालों में 6.7 फ़ीसदी बढ़ी है लेकिन  हाथियों का संकट बरकरार है। प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को देश में बाघों की संख्या का नया आंकड़ा जारी किया।

साल 2022 में बाघों की संख्या बढ़कर 3,167 हो गई, जो 2018 में 2,967 थी वहीं 2014 में ये संख्या 2,226 थी। 2006 में यह संख्या 1,411 थी।

एक ओर बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है और उनके संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है, वहीं हाथियों के हैबिटैट लगातार सिकुड़ रहे हैं और उनकी संख्या घटी है। हालांकि पिछले कुछ सालों में सरकार ने एलीफैण्ट रिज़र्व की संख्या बढ़ाई है।  

फिर भी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और अवैज्ञानिक विस्थापन के कारण हाथियों के बसेरे (हैबिटैट) लगातार नष्ट हो रहे हैं। हाथियों के प्रवास के लिए माइग्रेशन कॉरिडोर भी सुरक्षित नहीं है। नतीजन हाथियों और मानवों के संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं। वन और पर्यावरण मंत्री के बयान के मुताबिक हर साल हाथी 500 लोगों की जान ले रहे हैं और लोग प्रतिरक्षा में सालाना 100 हाथियों को मार दे रहे हैं। 

हाल ही में इडुक्की जिले के ‘अनायिरंकल’ क्षेत्र में चावल खाने वाले हाथी ‘अरीकोम्बन’ और दो अन्य हाथियों का आतंक फैल गया। इस मामले पर केरल उच्च न्यायालय द्वारा गठित एक समिति ने पाया कि इस क्षेत्र में ‘अवैज्ञानिक पुनर्वास’ किए जाने से पहले यह हाथियों का हैबिटैट था।

अदालत ने कहा कि लोगों को हाथियों के आवास में बसाना ही ”पूरी समस्या की जड़” है।

वनों की परिभाषा बदलने वाला विधेयक सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया

विवादास्पद वन संरक्षण संशोधन विधेयक, 2023 को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी संसदीय स्थायी समिति के बजाय एक प्रवर समिति (सेलेक्ट कमेटी) को भेज दिया गया है। पर्यावरण संबंधी संसदीय समिति की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद जयराम रमेश कर रहे हैं, उन्होंने इस फैसले का विरोध किया है।

बिल में ‘वन’ की परिभाषा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। पर्यावरणविदों को डर है कि यह विधेयक 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के वनों को परिभाषित करने वाले आदेश के प्रभाव को कम कर देगा।

1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाते हुए यह फैसला सुनाया कि वन संरक्षण अधिनियम उन सभी भूमियों पर लागू होगा जो या तो ‘वन’ के रूप में नामित हैं या वनों से मिलते-जुलते हैं।

यह विधेयक कुछ प्रकार की वन भूमियों को फारेस्ट क्लियरेंस प्राप्त करने से छूट देता है: जैसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के निर्माण के लिए बॉर्डर या एलओसी के 100 किमी के भीतर स्थित वन भूमि; सरकार द्वारा प्रबंधित रेल लाइन या सड़क के किनारे स्थित वन; निजी भूमि पर पेड़ों के बागान जो वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं। 

ज़्यादातर हीट एक्शन प्लान में वित्त और स्थानीय संदर्भ की कमी 

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) ने देश के 18 राज्यों में 37 हीट एक्शन प्लान का मूल्यांकन किया और पाया कि लू से बचने के लिये बनायी गई अधिकतर योजनाओं में स्थानीय वास्तविकताओं का खयाल नहीं रखा गया और वह इस बात तक ही सीमित है कि शुष्क लू के थपेड़ों का सामना कैसे किया जाये। सीपीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 37 में से केवल 10 हीट एक्शन योजनाओं में ही स्थानीय जलवायु और परिस्थिति के आधार पर लू के न्यूनतम तापमान को परिभाषित किया गया।

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन एक्शव प्लांस में हीटवेव घोषित करने के लिये नमी, गर्म रातें और लगातार गर्मी की अवधि जैसे संकट बढ़ाने वाले स्थानीय कारकों को शामिल किया गया या नहीं। इन योजनाओं में लिये वित्त की कमी साफ दिखी और ये कमज़ोर वर्ग की पहचान और उस पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं हैं। 

सीपीआर के शोध के मुताबिक 37 हीट एक्शन प्लांस में से केवल 2 ने ही विस्तार से वर्तमान संकट मूल्यांकन किया और 11 में ही फंडिंग सोर्स की बात कही गई। हीट एक्शन प्लान आर्थिक क्षति और लोगों की जान लेने वाली लू से निपटने के लिये भारत का पहला नीतिगत कदम है। 

2030 तक पवन ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत को उठाने होंगे कदम

ग्लोबल विंड एनर्जी कॉउंसिल द्वारा जारी 2023 की ग्लोबल विंड रिपोर्ट में कहा गया है कि पवन ऊर्जा उद्योग इस साल रिकॉर्ड ऊर्जा क्षमता स्थापना की उम्मीद कर रहा है, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में आनेवाली चुनौतियों से निपटने के लिए नीति-निर्माताओं को तत्काल कदम उठाने होंगे

ताजा अनुमान है कि 2027 तक 680 गीगावाट नई क्षमता स्थापित की जाएगी, यानि हर साल करीब 136 गीगावाट।

भारत ने 2030 तक कुल 500 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है जिसमें 140 गीगावॉट पवन ऊर्जा होगी यानी अगले साढ़े सात सालों में भारत को 98 गीगावॉट विन्ड एनर्जी के संयंत्र लगाने हैं। 

लेकिन अगर पवन ऊर्जा क्षमता बढ़ने की मौजूदा रफ्तार देखें तो वह 2 गीगावॉट से अधिक नहीं रही है। इस हिसाब से 2030 के लिए तय लक्ष्य हासिल करने में 50 साल लग जाएंगे। 

विन्ड एनर्जी क्षेत्र के जानकार इसके लिए सरकार की नीतियों को दोष देते हैं।

स्पेन के शोधकर्ताओं ने कहा है कि वायु प्रदूषण के हाइब्रिड इम्युनिटी पर प्रभाव की जांच की जानी चाहिए।

वायु प्रदूषण कम करता है कोविड टीके का असर: शोध

एक नए अध्ययन से पता चला है कि महामारी से पहले वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आने वाले लोगों पर कोविड-19 के टीके कम असरदार होते हैं

स्पेन में बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ और जर्मन ट्रायस आई पुजोल रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पाया है कि सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ 2) और ब्लैंक कार्बन (बीसी) के संपर्क में आने से, ऐसे लोगों में एंटीबॉडी प्रतिक्रिया लगभग 10 प्रतिशत कम होती है जो पहले कोविड से संक्रमित नहीं हुए हैं।

चूंकि संक्रमित हो चुके लोगों में टीका अधिक असरदार होता है, इसलिए उनपर प्रदूषकों का उतना प्रभाव नहीं देखा गया।

हालांकि, लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से हाइब्रिड इम्युनिटी पर क्या प्रभाव पड़ता है इस बारे में और जांच की जानी चाहिए, शोधकर्ताओं ने कहा।

पहले भी कई अध्ययनों में पाया गया है कि वायु प्रदूषक इम्यून रिस्पांस को कम करते हैं।

नासा ने लांच किया अंतरिक्ष से वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाला डिवाइस

नासा ने एक नया उपकरण स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा है जो उत्तरी अमेरिका में वायु प्रदूषण को ट्रैक कर सकता है

ट्रोपोस्फेरिक इमिशंस मॉनिटरिंग ऑफ़ पॉल्यूशन, या टेम्पो, एक ऐसा उपकरण है जो अंतरिक्ष से वायु प्रदूषकों और उनके उत्सर्जन स्रोतों की निगरानी पहले से कहीं अधिक व्यापक रूप से करेगा।

टेम्पो के प्रोजेक्ट मैनेजर केविन डॉटर्टी के अनुसार, यह उपकरण पूरे उत्तरी अमेरिका में दिन के समय हर घंटे प्रदूषण और वायु गुणवत्ता को मापेगा।

मौजूदा उपग्रह पृथ्वी की निचली कक्षा में हैं, जिसका अर्थ है कि वह एक निश्चित समय पर दिन में केवल एक बार डेटा प्रदान कर सकते हैं।

मुंबई में प्रदूषण रोकने का वार्ड-स्तरीय प्लान जारी

बृहन्मुम्बई महानगरपालिका ने एक सात-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति द्वारा वायु प्रदूषण रोकने के तरीकों के सुझावों के आधार पर वार्ड-स्तरीय एक्शन प्लान तैयार किया है

बीएमसी ने 29 मार्च को जारी एक सर्कुलर में कहा था कि वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए वार्ड-स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा।

प्रशासन ने वार्ड अधिकारियों को निर्देशों का पालन नहीं करने वालों पर की जाने वाली कार्रवाई का ब्यौरा देते हुए महीने में दो बार एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है।

विशेषज्ञों की समिति ने अपनी ‘मुंबई वायु प्रदूषण शमन योजना’ में निर्माण गतिविधियों को प्रदूषण का प्राथमिक कारण बताया है।

उन्होंने यह भी कहा कि सॉलिड वेस्ट को खुले में जलाना; होटलों, भोजनालयों, बेकरियों और घरों में इस्तेमाल होने वाला अशुद्ध ईंधन; श्मशान घाटों से निकलने वाला धुआं, वाहनों का उत्सर्जन और सड़क की धूल मुंबई की बिगड़ती वायु गुणवत्ता में योगदान करते हैं।

दिल्ली सरकार ने विभागों से समर एक्शन प्लान बनाने को कहा

दिल्ली सरकार ने सभी संबंधित विभागों को गर्मी के मौसम में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए अपनी-अपनी योजना तैयार करने का निर्देश दिया है।

पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि सरकार सड़क की धूल, औद्योगिक प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, वृक्षारोपण और प्रत्यारोपण, खुले में कचरा जलाना, शहर के जंगलों, शहरी खेती, जल निकायों और पार्कों के कायाकल्प सहित 16 क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगी।

राय ने कहा कि रियल टाइम डेटा के आधार पर राज्य सरकार पड़ोसी राज्यों से भी प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कार्रवाई करने को कहेगी।

दिल्ली सरकार ने पिछले साल पहली बार वायु प्रदूषण की जांच के लिए समर एक्शन प्लान लागू किया था।

इस साल की पहली तिमाही में नीलाम की गई सौर क्षमता में 69% की गिरावट आई।

सोलर टेंडर्स में 43% की वृद्धि, लेकिन नीलामी में आई 50% की गिरावट

भारत में विभिन्न एजेंसियों द्वारा मंगाए गए सोलर टेंडर पिछली तिमाही के मुकाबले इस साल की पहली तिमाही में 43 प्रतिशत बढ़कर 13.8 गीगावाट तक पहुंच गए। 

पिछली तिमाही, यानि 2022 की चौथी तिमाही में 9.7 गीगावाट की निविदाएं जारी की गईं थीं।

मेरकॉम इंडिया के रिसर्च के अनुसार, 2023 की पहली तिमाही में बड़े टेंडरों (>500 मेगावाट) की संख्या पिछली तिमाही की तुलना में बढ़ी है।

निविदा घोषणाओं में पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में 172 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 

हालांकि, इस तिमाही में पिछली के मुकाबले हुई नीलामी में 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। वहीं पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में नीलाम की गई सौर क्षमता में 69 प्रतिशत की गिरावट आई, जिसका कारण मॉडल और निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) नीति के निलंबन को लेकर अनिश्चितता को बताया जा रहा है।

अप्रैल की शुरुआत के साथ पूरी क्षमता पर बिजली उत्पादन करेंगे कोयला संयंत्र

अप्रैल की शुरुआत के साथ भारत सरकार का कोयला बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता पर काम करने का आदेश लागू होगया है। सरकार ने भीषण गर्मी में बिजली की मांग को देखते हुए अप्रैल से जून तक अधिकतम क्षमता पर संचालित करने का आदेश जारी किया था। सरकार को उम्मीद है कि अप्रैल में बिजली की मांग 229 गीगावाट तक पहुंच जाएगी।

जानकारों का कहना है कि इस आदेश से भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नाटकीय रूप से बढ़ेगा। भारत पहले से ही दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ रही गर्मी से देश में ऊर्जा की मांग भी बढ़ती जा रही है, जिससे ग्रिडों पर अधिक भार पड़ रहा है। 

पिछली फरवरी की तुलना में इस साल फरवरी में भारत की बिजली खपत 10 प्रतिशत बढ़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले हफ्तों में ऊर्जा खपत के रिकॉर्ड टूट सकते हैं। 

वहीं देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का 10 प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होता है।

लेकिन फरवरी में जारी एक सरकारी आदेश के अनुसार किसी भी आगामी कोयला या लिग्नाइट-आधारित कमर्शियल थर्मल पावर प्लांट को अपनी कुल ऊर्जा का 40 प्रतिशत  हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित करना होगा।

हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं को ट्रांसमिशन शुल्क में मिलनेवाली छूट की अवधि बढ़ी

भारत सरकार ने हाइड्रोजन मैन्युफैक्चरिंग संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा ट्रांसमिशन करने के शुल्क पर दी जाने वाली छूट की अवधि बढ़ा दी है। अब जनवरी 2031 से पहले शुरू किए जाने वाले संयंत्रों पर यह छूट दी जाएगी। इससे पहले इस छूट की अवधि जुलाई 2025 तक थी।

भारत हरित हाइड्रोजन का दुनिया का सबसे सस्ता उत्पादक बनना चाहता है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार इस कदम से और अधिक हरित हाइड्रोजन उत्पादन परियोजनाओं को 25 सालों के लिए ट्रांसमिशन शुल्क पर छूट मिल सकेगी।क्योंकि बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन और अमोनिया परियोजनाओं के निर्माण में तीन से चार साल लगते हैं, और कई परियोजनाओं के जून 2025 तक चालू होने की  संभावना नहीं थी।

भारत का लक्ष्य है दुनिया में सबसे कम दरों पर हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना, जो मौजूदा 4-5 डॉलर प्रति किलोग्राम से घटाकर 1-1.50 डॉलर प्रति किलोग्राम तक लाया जाना है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज और अदानी एंटरप्राइजेज ने 2030 तक 1 डॉलर प्रति किलो की लागत का लक्ष्य प्राप्त करने की घोषणा की है।

स्वच्छ ऊर्जा तकनीक के लिए विदेशों में महत्वपूर्ण खनिज संपदा खरीदेगा भारत

भारत विदेशों में महत्वपूर्ण खनिज संपत्तियों का अधिग्रहण करेगा ताकि देश में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के विकास के लिए महत्वपूर्ण घटकों की कमी न हो, खनन सचिव विवेक भारद्वाज ने जी20 समूह के एक सम्मलेन के दौरान कहा।

ईटी की रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल ऐसी सम्पत्तियां मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में तलाशी जा रही हैं।

जी20 एनर्जी ट्रांजिशन वर्किंग ग्रुप की बैठक को संबोधित करते हुए भारद्वाज ने कहा कि एक अध्ययन के अनुसार, 15 देशों के पास दुनिया के 55-90% महत्वपूर्ण खनिज भंडार और प्रोसेसिंग क्षमता है।

बैठक में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण पर बात की गई, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण के लिए उभरती हुई तकनीकों में खनिजों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

भारत में ईवी की पैठ अभी केवल 1 प्रतिशत के आसपास ही है।

भारत को 30% ईवी का लक्ष्य पाने के लिए चार्जिंग इंफ़्रा पर देना होगा ध्यान: मूडीज

रेटिंग एजेंसी मूडीज ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की पैठ बढ़ाने में देश के चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।  

रिपोर्ट में कहा गया है कि उपभोक्ताओं आदि को दिए जाने वाले सरकारी इंसेंटिव, स्थानीय बैटरी निर्माण, राज्य-स्तरीय सब्सिडी और जीएसटी दरों में कटौती से  ईवी का प्रयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी।

मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस की रिपोर्ट कहती है कि कारों की बिक्री के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन ईवी की पैठ अभी केवल 1 प्रतिशत के आसपास है।

सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश में 30 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक हों। ईवी की बिक्री में वृद्धि और सरकार के लक्ष्य की प्राप्ति देश के चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और ईवी पर स्विच करने की उपभोक्ताओं की तत्परता पर निर्भर करेगा, मूडीज ने कहा।

भारत समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से में अभी एक उचित चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की जरुरत है, और हाल फ़िलहाल इस बात की कोई संभावना नजर नहीं आ रही कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री के अनुपात में चार्जिंग क्षमता कब तक पूरी हो पाएगी।

भारत 2022 में जापान को पीछे छोड़कर चीन और अमरीका के बाद तीसरा सबसे बड़ा वाहन बाजार बन गया है।

पेरिस में बैन होगी किराए पर ली जा सकने वाली ई-स्कूटर

पेरिस के लोगों ने किराए पर ली जा सकने वाली इलेक्ट्रिक स्कूटरों को बैन करने के पक्ष में बड़ी संख्या में वोट दिया है। पेरिस जो कभी ई-स्कूटर सेवाओं को अपनाने में अग्रणी था, अब ऐप पर बुक किए जा सकने वाले इन वाहनों को प्रतिबंधित करने वाली एकमात्र प्रमुख यूरोपीय राजधानी बनने को तैयार है।

इस साल 1 सितंबर तक यह शहर बैटरी से चलने वाले इन वाहनों को पूरी तरह सड़कों से हटा देगा। सितंबर में पेरिस में लगभग 15,000 ई-स्कूटर संचालित करने का तीन कंपनियों का कॉन्ट्रैक्ट भी समाप्त हो रहा है।

पेरिस 2018 में ई-स्कूटर अपनाने वाले यूरोप के पहले शहरों में से एक था। इन माइक्रो-वाहनों को मोबाइल ऐप की मदद से किराए पर लिया जा सकता है और उपयोग के बाद शहर में कहीं भी छोड़ा जा सकता है। हालांकि, जल्द ही पेरिस के लोग शिकायत करने लगे कि इनकी संख्या बहुत बढ़ गई है और यह यातायात के लिए खतरा हैं

ई-स्कूटरों का विरोध तब और बढ़ गया जब वह पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए। आलोचकों का आरोप है कि लोग इन वाहनों की सवारी लापरवाही से करते हैं, यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं और गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं।

मुंबई में ईवी चार्ज करना हुआ मंहगा

इस महीने से मुंबई में इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी चार्ज करने की लागत बढ़ जाएगी, क्योंकि महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) ने टैरिफ में बढ़ोत्तरी को मंजूरी दे दी है।

एमईआरसी ने शहर भर के ईवी स्टेशनों पर वाहन चार्ज करने के लिए टैरिफ में 14-18 प्रतिशत की वृद्धि को मंजूरी दे दी है।

अडानी इलेक्ट्रिसिटी द्वारा संचालित ईवी स्टेशनों पर टैरिफ में 14 फीसदी की वृद्धि की जाएगी, वहीं बेस्ट 16 फीसदी की वृद्धि को लागू करेगा। टाटा पावर का उपयोग करने वाले वाहनों को चार्ज करने के लिए 18 प्रतिशत अधिक भुगतान करना होगा।

मुंबई में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग के लिए सभी बिजली कंपनियों के संशोधित टैरिफ को अब 7.25/यूनिट कर दिया गया है।

हालांकि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक वाहन चार्ज करने पर 1.50 रुपए प्रति यूनिट की छूट दी जाएगी।

तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहन लांच करेगा बजाज

बजाज ऑटो इस महीने अपना पहला तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहन लांच करेगा

यह वाहन यात्री और कार्गो दोनों श्रेणियों के लिए लांच किया जाएगा, लेकिन शुरुआत में इसे केवल कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही प्रयोग किया जा सकेगा।

बजाज पिछले साल ही इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स लांच करना चाहता था, लेकिन सुरक्षा मुद्दों को लेकर इसे स्थगित कर दिया गया।

आईसीआरए की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 तक भारत में इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स की पैठ 8 प्रतिशत से बढ़कर 14 से 16 प्रतिशत के बीच हो जाएगी।

भारत की कोशिश गैर-कोकिंग कोयले का निर्यातक बनने की है।

भारत 3 साल के भीतर शुरू करेगा कोयले का निर्यात, बिक्री के लिए होगी 106 खानों की नीलामी

केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने घोषणा की है कि भारत 2025-26 तक कोयले का निर्यात शुरू कर देगा। भारत अभी अपनी ज़रूरतों के लिये कोयला आयात भी करता है लेकिन अब उसकी कोशिश गैर-कोकिंग कोयले का निर्यातक बनने की है।

देश में 90 मीट्रिक टन ऐसे कोयले का आयात होता है जिसकी भरपाई देश में खनन किए गए कोयले से हो सकती है और जिसे 2025-26 तक रोक दिया जाएगा। सरकार ने गर्मी के मौसम में कोयले की बेरोकटोक सप्लाई का भी आश्वासन दिया है, जब अप्रैल के दौरान अधिकतम मांग (पीक डिमांड) 229 गीगावॉट होने की संभावना है।

वित्त वर्ष 2023 में कोयले की घरेलू मांग 1,087 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है और वर्तमान में 116-117 मीट्रिक टन कोयले के स्टॉक के साथ रिकॉर्ड कोयले का उत्पादन लगभग 900 मीट्रिक टन हो चुका है। 

सरकार ने कोयला ब्लॉकों के वाणिज्यिक खनन के लिए 106 खानों को भी नीलामी के दायरे में रखा है। प्रस्तावित कुल खानों में से 61 ब्लॉक्स में कोयले की मात्रा की पूरी जानकारी है जबकि 45 में अभी आंशिक रूप से ही आकलन किया गया है। 95 गैर-कोकिंग कोल खानों, 10 लिग्नाइट खानों और एक कोकिंग कोल खदानों की पेशकश की जा रही है। 

आईएफसी नहीं देगा नए कोयला प्रोजेक्ट्स को कर्ज़

इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) जो कि विश्व बैंक का हिस्सा है, नए कोयला प्रोजेक्ट्स के लिए ऋण नहीं देगा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका स्वागत किया है और कहा है यह कदम बहुत पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था। अब तक चली आ रही ग्रीन इक्विटी एप्रोच नीति (जीईए) के तहत जिन बिचौलिया वित्तीय संस्थानों (जैसे इन्वेस्टमैंट बैंक) को कॉर्पोरेशन कर्ज़ देता था उन पर यह शर्त होती थी कि वे 2025 तक कोयले में निवेश आधा और 2030 तक पूरी तरह खत्म कर देंगे, हालांकि उन पर नए कोयला प्रोजेक्ट में निवेश न करने की बाध्यता नहीं होती थी। 

कोयले में निवेश करने वाले वित्तीय संस्थानों (या बैंकों) को आईएफसी ने मई 2019 से अब तक 40 बिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की है। नियमों में ढिलाई के कारण इन संस्थानों ने पिछले 5 साल में इंडोनेशिया और विएतनाम समेत कई देशों में बड़े नए कोयला प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया। 

भारत में आज बहुत सारे वित्तीय संस्थान हैं जिन्होंने इस तरह निवेश किया है। वर्तमान में 88 संस्थानों के करीब 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (40,000 करोड़ रुपए) एनर्जी और उससे जुड़े प्रोजेक्ट्स में लगे हैं और इसमें नवीनीकरणीय ऊर्जा भी शामिल है। साल 2021 में आईएफसी और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के बीच एक करार हुआ था।

इसमें आईएफसी के शेयरहोल्डर बनने के बाद बैंक द्वारा ‘किसी नए कोल प्रोजेक्ट को फंडिंग बन्द करने की प्रतिबद्धता’ का हवाला है। 

रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादक रोसनेफ्ट और इंडियन ऑयल के बीच करार

तेल की आपूर्ति में पर्याप्त वृद्धि करने के लिए, रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादक रॉसनेफ्ट ने इंडियन ऑयल कॉर्प के साथ एक टर्म एग्रीमेंट किया है। यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय देशों से तमाम प्रतिबंधो के कारण रूस अब उनकी जगह नए खरीदार तलाश रहा है।

भारत मार्च में रूस के कच्चे तेल यूराल का सबसे बड़ा खरीदार रहा। यूराल रूस से निकलने वाले कच्चे तेल का एक प्रकार है जो सबसे अधिक निर्यात होता है। समुद्र से निकले गए ऐसे कच्चे तेल का 50% निर्यात भारत को हुआ और चीन दूसरे नंबर पर है।  

रॉसनेफ्ट ने कहा कि रूस पहली बार भारत के पांच सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में एक बन गया है। साल 2022 में दोनों देशों के बीच 38.4 बिलियन डॉलर (3.2 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच गया। 

थर्मल पावर संयंत्रों को लगभग पांच गुना तेजी से करना होगा बंद

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट यह बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए के लिए, 2040 तक कोयला बिजली संयंत्रों को साढ़े चार गुना अधिक तेजी से रिटायर करना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक कोयले के प्रयोग में कटौती की मौजूदा रफ्तार काफी नहीं है।

आंकड़ें बताते हैं की 2022 में जहां करीब 25,968 मेगावाट क्षमता के कोयला बिजलीघरों को बन्द किया गया था, वहीं 2030 तक और 25 गीगावाट कोयला पावर संयंत्रों को बंद करने का लक्ष्य रखा गया है। 

चीन के अलावा बाकी विकासशील देशों ने इस मामले में  प्रगति की है और अपनी नियोजित कोयला बिजली क्षमता में 23 गीगावाट की कटौती की है।

इसके विपरीत चीन ने कोयला बिजली क्षमता में 126 गीगावाट वृद्धि की योजना बनाई है।

भारत की बात करें तो 2022 के दौरान देश में करीब 784 मेगावाट कोयला बिजली क्षमता को रिटायर किया गया है, और 2,220 मेगावाट की नई कोयला बिजली योजनाओं को रद्द कर दिया गया है। लेकिन साथ ही भारत सरकार ने कोयला ब्लॉकों के वाणिज्यिक खनन के लिए 106 खानों को भी नीलामी के दायरे में रखा है