जाते-जाते बारिश ने की एक और तबाही: बाढ़ में डूबा बिहार

Newsletter - October 2, 2019

आसमान से बरसी आफत: इस साल मॉनसून ने 25 साल के रिकॉर्ड तोड़ दिये। जाते -जाते भी बिहार में भारी बरसात ने कई लोगों की जान ले ली। फोटो

जाते-जाते बारिश ने की एक और तबाही: बाढ़ में डूबा बिहार

बिहार में लगातार भारी बारिश और बाढ़ से कम से कम 30 लोगों की जान चली गई और लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। राज्य के दूसरों हिस्सों के अलावा राजधानी पटना में घरों में कई फुट पानी भर गया।  स्कूलों को बन्द करना पड़ा। नवादा ज़िले में मंगलवार को दो लड़के पानी में बह गये। आपदा प्रबंधन (NDRF) की 20 से अधिक टीमें राहत कार्य में लगा दी गईं। वायुसेना के हेलीकॉप्टरों ने राजधानी समेत कई जगह खाने के पैकेट गिराने का काम किया। NDRF के मुताबिक करीब 200 राहतकर्मी 24 घंटे राहत कार्य में लगे हैं और 3000 से अधिक लोगों को सुरक्षित जगहों में पहुंचाया गया है।

इस साल कुदरत ने अपना सबसे मनमौजी मिजाज दिखाया है। देश के कई हिस्सों में जुलाई के मध्य तक सूखा पड़ा रहा और फिर अचानक बेइंतहा बरसात होने लगी। मॉनसून ने इस साल पिछले 25 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। पूरे देश में इस साल अब तक 1600 लोगों के मरने की ख़बर है। महत्वपूर्ण है कि बिहार में इस साल जून-जुलाई में हीटवेव से कई लोगों की मौत हुई। ऐसी घटनाओं के पीछे जहां ग्लोबल वॉर्मिंग के असर को ज़िम्मेदार बताया जाता है वहीं सरकारी महकमे की लापरवाही और निकम्मेपन से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

बिहार में बाढ़ आना कोई नई बात नहीं है न ही भारत में इस तरह  की आपदायें नई हैं लेकिन नगर विकास योजना (अर्बन डेवलपमेंट प्लानिंग) का अभाव भी ऐसी आपदाओं के लिये काफी हद तक ज़िम्मेदार है जहां शहरों को बसाते वक्त इस तरह के हालात को ध्यान में नहीं रखा जाता। इसके अलावा नगर निकायों (म्युनिस्पल बॉडी) द्वारा नालियों और निकास पाइपों की सफाई न करना, कचरे का कोई प्रबंधन न होना, प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल इसके प्रमुख कारण हैं।   नदियों और जलाशयों की ज़मीन पर अतिक्रमण करने की आदत और उन पर भवन निर्माण बिना सरकारी महकमे के भ्रष्टाचार के संभव नहीं है जिसकी कीमत अब चुकानी पड़ रही है।


क्लाइमेट साइंस

एक और चेतावनी: IPCC की ताज़ा रिपोर्ट ने मानवता पर मंडरा रहे ख़तरे को फिर से ज़ाहिर किया है। वक़्त निकला जा रहा है लेकिन विश्व के तमाम बड़े देश अब भी सच से मुंह छुपा रहे हैं। फोटो - Shutterstock

कार्बन उत्सर्जन नहीं घटा तो समंदर में समा जायेंगे कई शहर: IPCC

एक साल के भीतर जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ पैनल (IPCC) की एक और रिपोर्ट आ गई है। समुद्र और क्रायोस्फियर पर क्लाइमेट चेंज के असर को बताने वाली यह रिपोर्ट भी मानवता के लिये कड़ी चेतावनी लेकर आई है।  रिपोर्ट के मुताबिक इसी रफ्तार से धरती की तापमान वृद्धि होती रही तो सदी के अंत तक समुद्र का जल स्तर 1.1 मीटर तक ऊपर उठ सकता है। इससे मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और सूरत जैसे शहरों के डूबने का ख़तरा है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब 140 करोड़ लोगों को विस्थापित करना पड़ेगा। अगर तापमान वृद्धि को 2 डिग्री के भीतर भी रखा गया तो भी समुद्र सतह में 30 से 60 सेंटीमीटर की बढ़त होगी।

इस हालात से बचने के लिये सभी देशों को कार्बन उत्सर्जन में तेज़ी से और भारी कटौती करनी होगी। पिछले साल अक्टूबर में प्रकाशित हुई IPCC रिपोर्ट में कहा गया था कि 2030 तक दुनिया को 2010 के उत्सर्जन के मुकाबले 45% उत्सर्जन घटाने होंगे और साल 2050 तक दुनिया को कार्बन न्यूट्रल (नेट इमीशन ज़ीरो) करना होगा। आज चीन, अमेरिका, भारत, रूस और यूरोपियन यूनियन सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों में हैं।

संयुक्त राष्ट्र से शिकायत करने वाले किशोरों में उत्तराखंड की रिद्धिमा पांडे भी

स्वीडन की छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने क्लाइमेट चेंज को लेकर विश्व नेताओं के साथ पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। लेकिन ग्रेटा इस जंग में अकेली नहीं हैं।  दुनिया के 16 छात्रों ने बाल अधिकारों के हनन के लिये संयुक्त राष्ट्र में विशेष रूप से 5 देशों – अर्जेंटीना, ब्राज़ील, फ्रांस, जर्मनी और टर्की – के खिलाफ शिकायत की। इनमें से एक उत्तराखंड की 11 वर्षीय छात्रा रिद्धिमा पांडे भी हैं। रिद्धिमा भी आने वाले वक्त में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षेत्र में जागरूकता फैलाना चाहती है।

अमेरिका और कनाडा में पक्षी ख़तरे में

उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में चिड़ियों की तमाम प्रजातियां खतरे में हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 1970 से अब तक, यानी पिछले 50 साल में अमेरिका और कनाडा में कुल पक्षियों का कोई 29% यानी करीब 300 पक्षी कम हो गये हैं। पक्षियों की संख्या में यह कमी हर तरह के हैबिटेट – चरागाह, समुद्र तट या फिर मरुस्थल – में हो रही है। हालांकि इस शोध में पक्षियों की घटती संख्या का कोई एक स्पष्ट और निर्णायक कारण तो नहीं बताया गया है लेकिन उनके बसेरे (हैबिटेट) में इंसानी अतिक्रमण को वजह माना गया है।


क्लाइमेट नीति

बड़े बोल: न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा बुलाये गये सम्मेलन में सभी नेताओं ने बड़ी बड़ी बातें तो की लेकिन नेट ज़ीरो इमीशन के लिये किसी भी देश के पास कोई पुख्ता योजना नहीं थी। फोटो

धरती बचाने के लिये विश्व नेताओं के पास कोई योजना नहीं

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने पिछले हफ्ते तमाम बड़े देशों के नेताओं को न्यूयॉर्क बुलाया। गुट्रिस ने इन नेताओं से नेट ज़ीरो इमीशन के लिये एक पुख्ता योजना के साथ आने को कहा था लेकिन किसी भी बड़े देश के पास कार्बन इमीशन को कम करने के लिये कोई प्रभावी योजना नहीं है। पिछले साल प्रकाशित हुई IPCC की विशेष रिपोर्ट के मुताबिक अगले 10 सालों में दुनिया का नेट इमीशन 2010 के मुकाबले 45% कम किया जाना ज़रूरी है और 2050 तक दुनिया को नेट-ज़ीरो इमीशन पर ला खड़ा करना होगा। हालांकि तमाम देशों के बढ़ते उत्सर्जन और ढुलमुल रवैये को देखते हुये यह लक्ष्य पाना नामुमकिन है।

ग्रेटा थनबर्ग को मिला “ऑल्टरनेटिव नोबेल प्राइज़”

जलवायु परिवर्तन के ख़तरों के प्रति दुनिया को आगाह कर रही 16 वर्षीय छात्रा ग्रेटा थनबर्ग को 2019 का राइट इवलीहुड  अवॉर्ड दिया जायेगा। इसकी घोषणा पिछले बुधवार को स्टाकहोम में की गई। इस  सम्मान को “ऑल्टरनेटिव नोबेल प्राइज़” (वैकल्पिक नोबेल सम्मान) के नाम से भी जाना जाता है। ग्रेटा को यह सम्मान वैज्ञानिक तथ्यों के मद्देनज़र क्लाइमेट एक्शन के लिये एक राजनीतिक जागरूकता पैदा करने और आपातकालीन कदम उठाने की मांग के लिये दिया  जा रहा है।

भारत का “एडाप्टेशन फंड” बहुत कम

भारत भले ही सौर ऊर्जा की राह में तेज़ी से आगे बढ़ा हो लेकिन, ग्लोबल वॉर्मिंग के असर से निबटने के लिये वह तैयार नहीं दिखता। पर्यावरण मंत्रालय को इस साल कुल 2900 करोड़ का बजट दिया गया है जिसमें नेशनल एडाप्टेशन फंड के हिस्से केवल 100 करोड़ ही है। यह फंड सूखे, बाढ़, चक्रवाती तूफान और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभावों के खिलाफ तैयारी में इस्तेमाल होता है। पंजाब औऱ केरल जैसे राज्यों के लिये दी गई रकम भी बहुत कम है। जानकार इस फंड को लेकर इसलिये भी चिन्ता जता रहे हैं क्योंकि भारत में बाढ़, सूखे और साइक्लोन जैसी घटनायें लगातार बढ़ रही हैं और इनके प्रभाव का सामना करना हमारे क्लाइमेट एक्शन का प्रमुख हिस्सा होना चाहिये

रुस बना पेरिस समझौते का हिस्सा

दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों में से एक रूस अब आधिकारिक रूप से पेरिस समझौते का हिस्सा बन गया है। अब तक रूस की कोई क्लाइमेट पॉलिसी नहीं थी। यह देखते हुये इसे एक अच्छा संकेत माना जा रहा है। रूस इस वक्त कार्बन इमीशन (उत्सर्जन)को घटाने के लिये दो घरेलू योजनाओं को रिव्यू कर रहा है।


वायु प्रदूषण

बुरे दिन आने वाले हैं: दिल्ली के आसपास के राज्यों में किसानों ने पाबंदी के बावजूद खुंटी जलाना शुरू कर दिया है। जाड़ों की आमद से पहले ही प्रदूषण का स्तर बढ़ना शुरू हो गया है। फोटो: Livemint

पाबंदी के बावजूद खुंटी जला रहे पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसान

किसानों द्वारा खुंटी (फसल की ठूंठ) जलाना हर साल दमघोंटू प्रदूषण की वजह बनता है  और इस साल तो यह काम थोड़ा जल्दी शुरू कर दिया है। अपने खेत को रबी (जाड़ों में बोयी जाने वाली) की फ़सल के लिये तैयार करने के लिये दिल्ली से लगे यूपी, हरियाणा और पंजाब में किसान खुंटी जला रहे हैं। इससे हर साल राजधानी में प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तस्वीरों से पता चलता है कि पंजाब के अमृतसर, लुधियाना और पटियाला में खुंटी जलाई जा रही है। इसी तरह हरियाणा के करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला के साथ पश्चिमी यूपी के कुछ हिस्सों में भी फसल जलने के प्रमाण मिल रहे हैं।

पिछले साल पंजाब में खुंटी निकालने के लिये 13,000 मशीनें दी गई जिससे प्रदूषण में 10%  गिरावट हुई लेकिन हरियाणा में जागरूकता अभियान का कोई असर होता नहीं दिख रहा है। इधर दिल्ली सरकार ने खुंटी की वजह से बढ़े प्रदूषण स्तर के मद्देनज़र राजधानी में लोगों को मास्क बांटने के साथ ऑड-ईवन कार योजना लागू करने की घोषणा की है।

फरीदाबाद पावर प्लांट: NGT ने रिपोर्ट मांगी 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT)  ने फरीदाबाद स्थित एक ताप विद्युत गृह से हो रहे प्रदूषण को लेकर हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रिपोर्ट मांगी है। इस बिजलीघर से फ्लाई एश के उड़ने और बिखरने को लेकर NGT में शिकायत की गई थी। ट्रिब्यूनल के चेयरमैन आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने जांच कर एक महीने के भीतर ज़रूरी कदम उठाने के लिये कहा है। इस मामले की अगली सुनाई 7 जनवरी 2020 को होगी।

जंगलों की आग से इंडोनेशिया में भरा धुंआं

इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में जंगलों में लगी आग से आसमान में धुंआं भर गया है और लोगों के लिये सांस लेना दूभर हो गया है। यहां जंगलों में कई महीनों से आग लगी हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि  हवा में एरोसॉल्स (ठोस या द्रव के प्रदूषित कण) की बढ़ी मात्रा की वजह से सैटेलाइट से मिली तस्वीरों में आसमान का रंग लाल दिख रहा है।   यह एरोसॉल जंगल की आग, रेतीले और धूल भरे तूफान या ज्वालामुखी के फटने से फैलते हैं। इंडोनेशिया के मौसम विभाग ने कहा कि पिछले हफ्ते के अंत में सुमात्रा के मुआरो जंबी क्षेत्र में भारी धुंआं देखा गया जिसकी पुष्टि उपग्रह से मिली तस्वीरों ने की है।


साफ ऊर्जा 

साफ ऊर्जा की खोज: सरकार ने तय किया है बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को भी अब साफ ऊर्जा में गिना जायेगा। फोटो: ETEnergyWorld

450 GW साफ ऊर्जा का दावा, बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर नज़र

न्यूयॉर्क में हुये ताजा जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ ऊर्जा का लक्ष्य बढ़ाकर 450 गीगावॉट कर दिया है जबकि जानकार कहते हैं कि भारत ने साल 2022 तक 175 गीगावॉट साफ ऊर्जा का जो लक्ष्य घोषित किया है उसे हासिल कर पाना ही अभी नामुमकिन दिख रहा है। सरकार इस लक्ष्य को पाने के लिये बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को भी साफ ऊर्जा में गिन रही है जबकि अब तक सरकार केवल 25 मेगावॉट या उससे कम क्षमता की जलविद्युत परियोजनाओं को ही साफ ऊर्जा मानती थी।

पहले साफ ऊर्जा में पवन ऊर्जा का हिस्सा 50% था लेकिन अब घटकर 29.3% रह गया है। इसी तरह सौर ऊर्जा का शेयर 34.68% से घटकर 21.61% रह जायेगा। दूसरी ओर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को क्लीन एनर्जी में शामिल कर लेने से साफ ऊर्जा में हाइड्रो का हिस्सा 6% से उछलकर 41% हो जायेगा यानी 7 गुना की वृद्धि। जानकार कहते हैं कि इन कोशिशों को साफ ऊर्जा की क्षमता बढ़ाना नहीं कहा जा सकता बल्कि ऊर्जा क्षेत्रों का नया नामकरण कहा जा सकता है।

ग्रीन कंपनियों को मिलेगा आसान कर्ज़?  

प्रधानमंत्री कार्यालय ने नीति आयोग से कहा है वह ग्रीन प्रोजेक्ट्स के लिये कर्ज़ मुहैया कराने की योजनाओं पर विचार करे। PMO की यह कोशिश प्रधानमंत्री के 450 GW साफ ऊर्जा के ऐलान से जोड़कर देखी जा रही है।  अंग्रेज़ी अख़बार मिंट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने उन कंपनियों को कर्ज़ देने से मना कर दिया है जिनकी  ₹ 3 / यूनिट से कम पर बिजली बेचनी की योजना थी।

सोलर की ₹ 2.44 प्रति यूनिट और पवन ऊर्जा के ₹ 2.43 प्रति यूनिट की दर से बिजली बेचने से बैंकों को भरोसा नहीं है कि ये प्रोजेक्ट लम्बे समय तक चल पायेंगे। नीति आयोग अभी भुगतान न कर पाने वाली वितरण कंपनियों से निपटने में ही व्यस्त है और कई साफ ऊर्जा कंपनियों का पेमेंट पिछले 15 महीने से फंसा हुआ है।

साफ ऊर्जा में भारत का $ 9000 करोड़ निवेश: UNEP   

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने कहा है कि भारत ने इस साल के मध्य तक साफ ऊर्जा में करीब 9000 करोड़ अमेरिकी डॉलर लगाये जिससे भारत क्लीन एनर्जी सेक्टर के अग्रणी निवेशकों में आ गया है। हालांकि चीन अब भी इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। चीन ने 2010 से 2019 के बीच क्लीन एनर्जी सेक्टर में $ 75,800 करोड़ का निवेश किया है। इसके बाद अमेरिका ($ 35,600 करोड़) और जापान ($ 20,200 करोड़)  का नंबर है।


बैटरी वाहन 

ई-प्राइम: अमेज़न ने 1 लाख बैटरी वाहन खरीदने का फैसला किया है जो डिलीवरी वैन की तरह काम करेंगे। इससे साल 2030 से CO2 उत्सर्जन में सालाना 40 लाख टन कटौती होगी। फोटो: ClimateRock

अमेज़न खरीदेगा एक लाख बैटरी वैन

ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी अमेज़न ने सामान की डिलीवरी और ट्रांसपोर्ट के लिये 1 लाख बैटरी चालित वैन खरीदने का फैसला किया है। किसी कंपनी के पास यह दुनिया का सबसे बड़ा बैटरी वाहनों का बेड़ा होगा। इन वाहनों का बनाने का टेका अमेज़न ने बैटरी वाहनों की उस्ताद कंपनी टेस्ला को दिया है। इनमें से 10,000 गाड़ियां 2021 से सड़कों पर दौड़ने लगेंगी और सभी वाहनों की डिलीवरी 2030 तक हो जायेगी। इसके लिये कंपनी ने 44 करोड़ अमेरिकी डालर का निवेश किया है और कहा जा रहा है कि 2030 से इन बैटरी वाहनों की वजह से सालाना 40 लाख टन कार्बन डाइ ऑक्साइड का इमीशन रोका जा सकेगा।

दिल्ली: बैटरी वाहनों से बचेंगे तेल और गैस में खर्च होने वाले 6000 करोड़

बैटरी वाहन नीति के तहत दिल्ली की सड़कों पर अगले 5 साल में पांच लाख बैटरी वाहन उतारे जायेंगे। अनुमान है कि इससे तेल और सीएनजी जैसे ईंधन पर खर्च होने वाले 6000 करोड़ सालाना की बचत होगी। इससे हर साल करीब 48 लाख टन CO2 इमीशन भी घटेगा। यह बात दिल्ली के डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन और रॉकी माउंटेनियरिंग संस्थान द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है। लेकिन यह याद रखना ज़रूरी है कि  इस बैटरी नीति का हाल भी केंद्र सरकार की बैटरी नीति जैसा न हो जाये। केंद्र ने पहले 2030 तक सड़कों में पूर्ण रूप से बैटरी वाहन उतारने की बात कही लेकिन अब वह उस नीति से पीछे हट गई है।


जीवाश्म ईंधन

कोयला करें निर्यात: देश के पावर सेक्रेटरी चाहते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनियां भारत आयें और देश कोयले का निर्यातक बने – फोटो : Kuoni

“कोयला निर्यातक बने भारत”

भारत अभी अपनी ज़रूरत का 20% कोयला आयात करता है लेकिन पावर सेक्रेटरी एस सी गर्ग का कहना है कि भारत को जल्द ही कोयला निर्यातक बनना चाहिये। गर्ग ने कोयला खदानों के कामकाज की कड़ी आलोचना करते हुये कहा कि अंतरराष्ट्रीय माइनिंग (खनन)कंपनियों को खनन के लिये भारत में आना चाहिये और भारत की वर्तमान खनन क्षमता (जो पावर सेक्टर के लिये अभी 1 करोड़ टन सालाना से कम है) को बढ़ाकर 29 करोड़ टन तक ले जाना चाहिये। पावर सेक्रेटरी ने कहा कि कोयला सप्लाई में कमी के कारण करीब 5 लाख करोड़ रुपये का निवेश ख़तरे में है।

जर्मन कोल कंपनी का वादा, 2040 तक “ज़ीरो कार्बन” का लक्ष्य

जर्मनी की सबसे बड़ी कोयला खनन और पावर कंपनी RWE ने घोषणा की है कि उसका लक्ष्य साल 2040 तक  “ज़ीरो कार्बन” कंपनी बनने का है।  इसके लिये कंपनी का इरादा कोल-पावर उत्पादन पूरी तरह बन्द करने का है। कंपनी बॉन के पास हम्बख फॉरेस्ट में कोयला खनन के लिये चर्चा में रही जिसका व्यापक विरोध हो रहा है। अब ख़बर है कि कंपनी सौर और पवन ऊर्जा में 1600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी।  अनुमान है कि इस कदम से RWE को  2030 तक 70% CO2 इमीशन कम करने का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।

गैस: मध्य एशिया, अफ्रीका में बढ़ा निवेश, भारत ने की 50 लाख टन की डील  

तेल और कोयले के मुकाबले साफ ऊर्जा की बढ़ती मांग के चलते मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में 3,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है। इस क्षेत्र में ईंधन की मांग में 15% की बढ़ोतरी हुई है। अरब पेट्रोलियम इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन का अनुमान है कि मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में अगले 5 साल में 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश होगा। भारत की कंपनी पेट्रोनेट ने अमेरिका की गैस कंपनी टेलुरियन से सालाना 50 लाख टन नेचुरल गैस की डील की है। सरकार का कहना है कि भारत के ट्रांसपोर्ट सेक्टर की मांग को ध्यान में रखते हुये यह करार किया गया है। अनुमान है कि साल 2030 भारत में गैस की खपत 2.5 गुना बढ़ेगी।

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.