Newsletter - May 29, 2019
बड़ी ख़बर: कई देशों में नई सरकारें: जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग पर बंटेगी दुनिया!
पिछले पखवाड़े दुनिया में 4 बड़े चुनाव संपन्न हुये। इनके नतीजों का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ चल रही जंग पर असर पड़ना तय है।
भारत में सत्तारूढ़ दल ने पूरे बहुमत के साथ फिर वापसी की है। उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार जलवायु परिवर्तन के निबटने के लिये उठाये जा रहे सकारात्मक कदम जारी रखेगी। साफ ऊर्जा के लिये भारत अपने लक्ष्य और महत्वाकांक्षी बनायेगा। सितंबर में न्यूयॉर्क में होने वाले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत की भूमिका पर सबकी नज़र होगी। भारत के लिये अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को लीडर के रूप में स्थापित करने का बड़ा मौका है।
दूसरी ओर यूरोप में “ग्रीन” पार्टियों ने अपनी सीटें बढ़ाईं हैं – खासतौर से जर्मनी, फ्रांस और फिनलैंड में ऐसे दलों को कामयाबी मिली है। इससे उम्मीद बंध रही है कि यूरोपीय यूनियन का क्लाइमेट एक्शन तेज़ होगा। हालांकि ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीशन का दोबारा चुनाव कई लोगों के लिये हैरान करने वाला है और माना जा रहा है कि इससे कोयला लॉबी के हौसले बढ़ेंगे जो पहले ही नई कोयला खदानों को खोलने और कोयला बिजलीघरों को स्थापित करने मांग कर रही हैं। इंडोनेशिया में जोको विडोडो के चुने जाने से पाम ऑइल की तलाश में रेन-फॉरेस्ट का कटान तय है जो एक बहुत ही निराश करने वाली ख़बर है क्योंकि यह जंगल वातावरण की कार्बन गैस सोखने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
क्लाइमेट साइंस
चेन्नई में सूखे का असर, जलाशयों में पानी निम्नतम स्तर पर
चेन्नई के 4 सबसे अहम झीलों में जलस्तर बहुत घट गया है और यह पिछले 70 सालों के रिकॉर्ड किये गये सबसे खराब हालात हैं। द न्यूज़ मिनट में छपी ख़बर के मुताबिक इन जलाशयों में कुल क्षमता का केवल 1.3% पानी ही बचा है जो कि पिछले 74 साल में पांचवां निम्नतम स्तर है। चेन्नई मेट्रोपोलिटन वॉटर सप्लाई के आंकड़े कहते हैं कि चेम्बरामबक्कम झील में 3645 mcft (यूनिट) पानी संजोने की क्षमता है लेकिन वहां केवल 1 यूनिट पानी बचा है। यही हाल रेडचिल, पोंडी और चोलावरम जलाशयों का भी है।
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले सालों में सालाना बारिश में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। दूसरी ओर चेन्नई में बढ़ती आबादी और शहरीकरण की वजह से जलस्रोत नष्ट हुये हैं। भू-जल का बेतहाशा दोहन और वेटवैंड्स का खत्म होना भी बिगड़ते हालात के लिये ज़िम्मेदार है जिससे टैंकर माफिया का दबदबा बढ़ा है।
अंटार्टिक में पिघलती बर्फ: नये खतरों की आहट
उपग्रह से मिले आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि दक्षिणी ध्रुव (अंटार्टिक) में पिघलती बर्फ का संकट अब तक मिली जानकारियों से कहीं अधिक गहरा है। जियोफिज़कल रिसर्च लैटर नाम की पत्रिका में बताया गया है कि दक्षिणी ध्रुव पर बढ़ रहे तापमान की वजह से ग्लेशियर पिघल कर समंदर में जा रहे हैं और इस बदलाव की रफ्तार 1990 के मुकाबले 5 गुना हो गई है।
अगर इसी तरह चलता रहा तो ध्रुव के पश्चिमी हिस्से की सारी बर्फ पिघल जायेगी। इससे समंदर का जल स्तर कई फुट बढ़ सकता है और कई तटीय शहर गायब हो जायेंगे।
जलवायु संकट से ऑस्ट्रेलिया में गायब हो सकती हैं 26 देसी प्रजातियां
ऑस्ट्रेलिया में यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड और ऑस्ट्रेलियन कंजर्वेशन फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो जैव विविधता से समृद्ध पर्वत श्रंखला ग्रेट डिवाइडिंग रेंज में जानवरों की 20 से अधिक प्रजातियां लुप्त हो जायेंगी। करीब 3500 किलोमीटर लंबी यह पर्वत श्रंखला पूर्वी तट से लगी है और इस अध्ययन के तहत क्षेत्र की 1062 प्रजातियों पर रिसर्च की गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि 2085 तक वैश्विक तापमान में 3.7 डिग्री तक बढ़ोतरी होगी जो इस क्षेत्र की 26 प्रजातियों को मिटा देगी।
वन्य जीवन के खात्मे से छोटा हो रहा जानवरों और चिड़ियों का शरीर
जंगलों और जंगली जानवरों के विनाश की वजह से अब वन्य प्राणियों का शरीर 25 प्रतिशत छोटा हो रहा है। नेचर कम्युनिकेशन में छपे शोध में यह बात कही गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि करीब 1000 स्तनधारी प्रजातियां और पक्षी मिटने की कगार पर हैं जिनमें राइनो और ईगल भी शामिल हैं। 2018 में प्रकाशित एक रिसर्च में कहा गया था कि पिछले 1,25,000 वर्षों में जंगली जानवरों का औसत आकार 14% छोटा हो गया है। इस नये शोध के मुताबिक अगले 100 सालों में इनके आकार में 25% कमी होगी।
क्लाइमेट नीति
पर्यावरण संबंधी नियमों में ढिलाई का प्रस्ताव
केंद्र सरकार ने एक ऐसा प्रस्ताव रखा है जिसे मंज़ूरी मिली तो किसी भी विकास परियोजना को अनुमति देने से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की आंकलन रिपोर्ट (EIA) को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक सरकार का प्रस्तावित बदलाव प्रोजेक्ट से होने वाले पर्यावरण प्रभाव के बारे में फैसला लेने का अधिकार ज़िला मजिस्ट्रेट को दे देता है। इसके अलावा कुछ मामलों में निर्माण कार्यों के लिये नगर पालिका या स्थानीय इकाई को अधिकार देने का प्रस्ताव है।
क्लाइमेट जस्टिस की मांग लेकर लाखों स्कूली बच्चे उतरे सड़कों पर
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की मांग को लेकर भारत समेत दुनिया के 110 देशों में लाखों बच्चे सड़कों पर प्रदर्शन के लिये उतर आये। ये सारे बच्चे अपने भविष्य को बचाने के लिये दुनिया भर की सरकारों और राजनेताओं से पहल करने की मांग कर रहे हैं। 15 साल की ग्रेटा थुनबर्ग ने अगस्त में पहली बार अकेले स्टॉकहोम में प्रदर्शन किया और उसके बाद से जलवायु परिवर्तन को लेकर यूरोप, अमेरिका और देश के दूसरे हिस्सों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं।
यूरोपियन यूनियन ने नई संसद चुनी, क्लाइमेट पर कड़े कदमों की संभावना
मई में नई EU संसद के गठन के बाद अब सवाल है कि क्या यूरोपियन यूनियन एकजुट होकर 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने के लिये एकजुट होगा। जहां जर्मनी, फ्रांस और स्वीडन समेत कई देश सितंबर में हो रहे न्यूयॉर्क सम्मेलन में और अधिक कड़े कदमों का वादा करना चाहते हैं वहीं हंगरी, पोलैंड और एस्टोनिया जैसे देश पेरिस वार्ता के तहत किये वादों से आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं। ज़ाहिर है यह जलवायु परिवर्तन पर यूरोपियन यूनियन के वैश्विक नेतृत्व की परीक्षा का समय है क्योंकि EU के भीतर कई कट्टर दक्षिणपंथी सरकारों की वजह से मत बंटा हुआ है।
ब्रिटेन के इस गांव के बाशिंदे होंगे पहले “जलवायु परिवर्तन शरणार्थी”
नॉर्थ वेल्स का तटीय गांव फेयरबॉर्न धीरे धीरे समंदर में समा रहा है और यहां के निवासी ब्रिटेन के पहले क्लाइमेट रिफ्यूजी यानी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से विस्थापित होने वाला समुदाय बन सकते हैं। जानकारों के मुताबिक समुद्री तूफान की वजह से कभी भी गांव पर संकट आ सकता है और यहां के करीब 850 निवासियों को अपने घर छोड़कर कहीं और जाना होगा।
“द गार्डियन” ने बदली जलवायु परिवर्तन पर ख़बरों की स्टाइल शीट
पर्यावरण पर लगातार पैनी रिपोर्टिंग करने वाले द गार्डियन ने अब जलवायु परिवर्तन की ख़बरों को लिखने के लिये वैज्ञानिक रुप से अधिक उपयुक्त शब्दावली के इस्तेमाल का फैसला किया है। नई स्टाइल शीट के तहत अख़बार अब वैज्ञानिकों, पर्यावरण के जानकारों और नेताओं की तरह नई “प्रभावी शब्दावली” का इस्तेमाल करेंगे और पुराने “प्रभावहीन” हो चुके शब्दों से बचने की कोशिश करेगा। मिसाल के तौर पर बढ़ते ख़तरे को देखते हुये “ग्लोबल वॉर्मिंग” की जगह “ग्लोबल हीटिंग” और “क्लाइमेट चेंज” जैसे पुराने शब्द समूह की जगह “क्लाइमेट क्राइसिस, इमरजेंसी या ब्रेकडाउन” जैसे शब्द समूहों का इस्तेमाल होगा।
पर्यावरण पर काम कर रहे कई संस्थानों और संगठनों ने इसका स्वागत किया है। दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड की निदेशक आरती खोसला कहती है, “स्पष्ट रूप से हम क्लाइमेट ‘चेंज’ से कहीं अधिक भुगत रहे हैं और ख़बरों की शब्दावली में पैनापन ज़रूरी है। जो हम अपने सामने होता देख रहे हैं वह तो ‘आपातकाल’ जैसी स्थिति है।”
वायु प्रदूषण
शरीर के हर हिस्से को रोगी बनाता है वायु प्रदूषण
भारत सरकार ने भले ही वायु प्रदूषण से हो रही मौतों की चेतावनी को “भय फैलाने वाली” (alarmist) रिपोर्ट कह कर खारिज कर दिया हो लेकिन अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशयन द्वारा जारी नई रिसर्च में कहा गया है कि वायु प्रदूषण हमारे शरीर की हर कोशिका और हर अंग को नुकसान पहुंचा रहा है। रिसर्च कहती है कि ख़तरनाक अति सूक्ष्म कण हमारे फेफड़ों और वहां से रक्त नलिकाओं तक पहुंचते हैं और हृदय से लेकर दिमाग और यकृत या गुर्दे समेत हर अंग की कोशिकाओं को नष्ट कर सकते हैं। यह रिसर्च कहती है कि वायु प्रदूषण डायबिटीज, डिमेंशिआ, यकृत रोग से लेकर हड्डियों और ब्लेडर के कैंसर की वजह बन सकता है।
वाराणसी की प्रदूषित हवा, चेतावनी के बावजूद नहीं उठाया कोई कदम
वाराणसी भले ही प्रधानमंत्री का लोकसभा क्षेत्र हो लेकिन जब वायु प्रदूषण से लड़ने की बात आती है तो यह दूसरे शहरों की तरह फिसड्डी ही है। तीन साल पहले 2016 में इंडिया स्पेंड वेबसाइट ने सेंटर फॉर इन्वायरेंमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट यानी CEED और Care4Air के साथ मिलकर ‘वाराणसी चोक्स’ शीर्षक से एक ख़बर छापी। इस ख़बर में बताया गया कि किस तरह वाराणसी कई बार प्रदूषण के मामले में देश की राजधानी दिल्ली को भी पीछे छोड़ देता है।
अब इसी वेबसाइट पर 18 मई को छपी ख़बर बताती है कि यहां प्रदूषण से लड़ने की कोशिश सिर्फ कागज़ों पर ही हुई है। सूचना अधिकार कानून के तहत पूछे गये सवालों से बस इतना पता चला कि नगर पालिका, ट्रैफिक पुलिस और वन विभाग के अलावा यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) ने “कुछ कदम” उठाये ज़मीन पर कुछ होता नहीं दिखा।
एनजीटी ने फसल की ठूंठ जलने से प्रदूषण पर केंद्र सरकार से मांगी रिपोर्ट
पर्यावरण मामलों की अदालत नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल (NGT) ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को 2 हफ्तों के भीतर यह बताने को कहा है कि पंजाब, हरियाणा और यूपी जैसे राज्यों में हर साल खुंटी (फसल की ठूंठ) जलाये जाने की समस्या से निबटने के लिये क्या कदम उठाये गये हैं। पहले केंद्र सरकार को 30 अप्रैल तक इस बारे में रिपोर्ट पेश करनी थी लेकिन वह इस समय सीमा का पालन नहीं कर पाई। हर साल इन राज्यों में फसल कटाई के बाद ठूंठ जलाने से उत्तर भारत खासतौर पर दिल्ली में भयंकर प्रदूषण हो जाता है।
कोयला बिजलीघरों के प्रदूषण की मार एशिया के मॉनसून पर
जियोग्राफिकल रिसर्च लेटर में छपे एक अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का असर एशियाई देशों पर बरसने वाले मॉनसून पर पड़ रहा है। भारत, चीन, पाकिस्तान, थाइलैंड और दूसरे दक्षिण एशियाई देशों का मॉनसून कमज़ोर हो रहा है। इसकी प्रमुख वजह कोल प्लांट से निकलने वाले धुयें में मौजूद एरोसॉल की बढ़ती मात्रा है। वैज्ञानिक कहते हैं कि उन्होंने कई स्तरों पर आंकड़ो का अध्ययन किया और पाया कि मॉनसून के कमज़ोर होने का ऐसा ट्रेंड पिछले करीब साढ़े चार सौ सालों में नहीं देखा गया।
पेट-कोक (Pet Coke) से घुट रहा है अहमदाबादवासियों का दम, कोर्ट ने रिपोर्ट मांगी
अहमदाबाद की फैक्ट्रियों में ईंधन के रूप में खतरनाक पेट-कोक और तेल के इस्तेमाल से हो रहे प्रदूषण पर NGT ने एक एक्सपर्ट पैनल का गठन किया है। यह पैनल – जिसमें राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी हैं – पेट-कोक जलाने से पैदा हुये दमघोंटू हालात पर अदालत को अपनी रिपोर्ट देगा। हर साल फैक्ट्रियों में 8 लाख टन ईंधन जलाया जा रहा है जो भयानक प्रदूषण करता है।
उधर एक दूसरे मामले में हरियाणा में NGT ने इंडियन ऑइल की पानीपत रिफाइनरी पर पर्यावरण नियमों की अवहेलना कि लिये 17.31 करोड़ का जुर्माना किया है।
साफ ऊर्जा
भारत में कोयले से अधिक निवेश अब सौर ऊर्जा में
अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का सौर ऊर्जा में निवेश कोयले पर हो रहे निवेश से अधिक है और यह साफ ऊर्जा को बढ़ावा देने के वादों की दिशा में एक प्रभावी कदम है। रिपोर्ट कहती है कि लगातार तीसरे साल भारत ने कोल प्लांट्स के मुकाबले साफ ऊर्जा के संयंत्रों में अधिक निवेश किया। 2018 में पहली बार भारत में सोलर पर निवेश कोयले पर होने वाले निवेश से आगे निकला।
भारत ने पिछले 4 साल में अपनी साफ ऊर्जा उत्पादन क्षमता दोगुनी कर ली है। भारत की कुल सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता 77,000 मेगावॉट हो गई है और 60,000 मेगावॉट के क्लीन एनर्जी प्लांट लगाये जा रहे हैं। दूसरी ओर कोल पावर प्लांट की क्षमता अब भी बढ़ रही है लेकिन हर साल इस क्षमता में वृद्घि घटकर आधी हो गई है। भारत ने पेरिस समझौते के तहत वादा किया है कि साल 2022 तक उसके पास 1,75,000 मेगावॉट पावर क्षमता के साफ ऊर्जा प्लांट होंगे।
सब्सिडी में कटौती के बावजूद चीन साफ ऊर्जा का सबसे आकर्षक बाज़ार
सब्सिडी में कटौती के बावजूद लगातार चौथे साल चीन साफ ऊर्जा में निवेश के लिये सबसे आकर्षक बाज़ार बना हुआ है। यह आकलन यूनाइटेड किंगडम की एजेंसी अर्नेस्ट एंड यंग ने किया है। चीन के बाद अमेरिका का नंबर है जो लगातार दूसरे साल इस पायदान पर बना है। उधर महंगे होते उत्पादन की वजह से चीन में सालाना सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की दर घटी है। साल 2017 में जहां उसकी सौर ऊर्जा क्षमता में 53,000 मेगावॉट की बढ़ोतरी वहीं 2018 में यह सालाना बढ़त घटकर 44300 मेगावॉट हो गई। चीन साफ ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार सब्सिडी कम कर रहा है और उसने तय किया है कि वह समंदर के तट पर लगे प्रोजेक्ट्स से मिलने वाली पवन ऊर्जा पर 2021 के बाद कोई छूट नहीं देगा।
तमिलनाडु ने पवन और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट की नीलामी रोकी
देश में साफ ऊर्जा के मामले में अव्वल राज्य तमिलनाडु की डिस्कॉम (TANGEDCO) ने सौर और पवन ऊर्जा से जुड़े टेंडरों की नीलामी फिलहाल रोकने का फैसला किया है। डिस्कॉम का यह फैसला निविदाओं पर निवेशकों के ठंडे रुख को देखते हुये लिया है। सरकार ने सौर और पवन ऊर्जा की कीमतों पर एक सीमा तय की हुई है। माना जा रहा है कीमतों पर नियंत्रण की वजह से ही निवेशकों ने टेंडरों में रुचि नहीं ली।
तमिलनाडु सरकार ने नीलामी रोकने के बाद तय किया है कि अब वह साफ ऊर्जा के वादों को पूरा करने के लिये सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) से खरीद करेगी। तमिलनाडु 8,631 मेगावॉट पवन ऊर्जा और 2055 मेगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन के साथ साफ ऊर्जा के मामले में देश में अग्रणी राज्य है।
बैटरी वाहन
अगले 5 सालों में पेट्रोल-डीज़ल वाले दुपहिया और तिपहिया वाहनों की छुट्टी !
नीति आयोग ने सिफारिश की है कि भारत में ऑटो निर्माताओं को 2023 बाद केवल बैटरी चालित तिपहिया और 2025 के बाद सिर्फ बैटरी वाले टू-व्हीलर बेचने की ही अनुमति हो। इसका मतलब है कि अगर आयोग की सिफारिश मानी गई तो 2025 आते आते देश में पेट्रोल-डीज़ल वाले थ्री-व्हीलर और टू-व्हीलर नहीं बिकेंगे। यह कदम इतना अहम इसलिये है क्योंकि वाहनों की कुल सालाना बिक्री में 80% संख्या दुपहिया और तिपहिया वाहनों की है। ख़बर है कि तिपहिया बैटरी वाहनों पर मिलने वाली सब्सिडी को भी दुगना किया जा सकता है।
उधर दिल्ली मेट्रो भी यात्रियों की सुविधा के लिये मेट्रो स्टेशन से गंतव्य तक जाने के लिये ई-स्कूटर किराये पर देने की बात सोच रहा है। यह सेवा दिल्ली-एनसीआर के 5 स्टेशनों से शुरु की जा सकती है। अभी मेट्रो के 19 स्टेशनों पर यात्रियों के लिये साइकिल सुविधा उपलब्ध है।
चीन में बना दुनिया सबसे बड़ा चार्जिंग हब, पेनासोनिक बिछायेगी भारत में चार्जिंग स्टेशनों का जाल
एक ओर दावा किया जा रहा है कि चीनी शहर शेनज़ेन, दुनिया का सबसे बड़ा चार्जिंग स्टेशन बन गया है जहां हर रोज़ 5000 वाहनों को चार्ज करने की क्षमता है वहीं जापान की इलैक्ट्रोनिक्स कंपनी पेनासोनिक 2024 तक भारत में बैटरी वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशनों का जाल बिछाने की योजना बना रही है। यह चार्जिंग ग्रिड देश के 25 शहरों में बिखरा होगा और इसमें कुछ मिलाकर 1 लाख चार्जिंग स्टेशन होंगे। यह सुविधा शुरू में दुपहिया और तिपहिया वाहनों के लिये होगी और धीरे धीरे इसका विस्तार सभी बैटरी वाहनों के लिये किया जायेगा।
पेनासोनिक अमेरिकी बैटरी कार निर्माता कंपनी टेस्ला की सहयोगी है और उसका दावा है कि वह भारत में बैटरी वाहन और लीथियम आयन निर्माताओं को विश्व स्तर के फीचर्स विकसित करने में सहयोग करेगी।
जीवाश्म ईंधन
CERC ने दी बिजलीघरों को राहत
केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (CERC) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कोयला सप्लाई की कमी से जूझ रहे बिजलीघरों को देश के बाहर से कोयला आयात करने और उसकी ऊंची कीमत की वसूलने के लिये बिजली दरों को बढ़ाने की छूट दे दी है। इस फैसले के लिये कानून में बदलाव की ज़रूरत पड़ेगी और इससे करीब 15000 मेगावॉट के बिजलीघरों को राहत मिलेगी।
ONGC तेल भंडारों पर करेगा 65 हज़ार करोड़ निवेश, MUFG ने त्यागा कोल निवेश
साफ ऊर्जा में भारत के बढ़ते निवेश के बावजूद तेल और गैस क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी ONGC जीवाश्म ईंधन पर कुल 65,773 करोड़ रुपये निवेश करेगी। कंपनी यह निवेश अपने 13 अलग अलग फील्ड प्रोजेक्ट पर कर रही है जिनमें कच्चे तेल की खोज और उसे साफ करने का काम हो रहा है। अगले 3-4 सालों में ONGC करीब 40.9 मिलियन मीट्रिक टन (mmt) तेल और 114 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) प्राकृतिक गैस का उत्पादन करेगा।
दूसरी ओर जापान में कोल पावर के सबसे बड़े फाइनेंसर मित्सुबिशी यूएफजी (MUFG) ने भविष्य में किसी कोयला संयंत्र के लिये कर्ज़ न देने का फैसला किया है। दुनिया भर में पर्यावरण पर काम कर रहे कई संगठनों ने MUFG इस फैसले का स्वागत किया है।
ऑस्ट्रेलिया में अडानी के खनन प्रोडक्ट को जून में मिलेगी मंज़ूरी
ऑस्ट्रेलिया में चुनी गई नई सरकार जून के मध्य तक अडानी के विवादित कोयला खनन प्रोजक्ट को हरी झंडी दे सकती है। अडानी ग्रुप पिछले 10 साल से इस खनन प्रोजेक्ट को पाना चाहता है लेकिन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपत्तियों की वजह से उसका यह प्रोजेक्ट अटका हुआ है।
अडानी ग्रुप ने दावा किया है अगले साल मार्च तक वह इस प्रोजेक्ट से 1 करोड़ टन कोयला उत्पादन करना चाहता है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कोयले की गिरती कीमतों की वजह से इस प्रोजक्ट की कामयाबी पर गंभीर शंकायें हैं पर अडानी ग्रुप ने इन तर्कों को मानने से इनकार कर दिया है।