पिछले पखवाड़े दुनिया में 4 बड़े चुनाव संपन्न हुये। इनके नतीजों का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ चल रही जंग पर असर पड़ना तय है।
भारत में सत्तारूढ़ दल ने पूरे बहुमत के साथ फिर वापसी की है। उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार जलवायु परिवर्तन के निबटने के लिये उठाये जा रहे सकारात्मक कदम जारी रखेगी। साफ ऊर्जा के लिये भारत अपने लक्ष्य और महत्वाकांक्षी बनायेगा। सितंबर में न्यूयॉर्क में होने वाले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत की भूमिका पर सबकी नज़र होगी। भारत के लिये अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को लीडर के रूप में स्थापित करने का बड़ा मौका है।
दूसरी ओर यूरोप में “ग्रीन” पार्टियों ने अपनी सीटें बढ़ाईं हैं – खासतौर से जर्मनी, फ्रांस और फिनलैंड में ऐसे दलों को कामयाबी मिली है। इससे उम्मीद बंध रही है कि यूरोपीय यूनियन का क्लाइमेट एक्शन तेज़ होगा। हालांकि ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीशन का दोबारा चुनाव कई लोगों के लिये हैरान करने वाला है और माना जा रहा है कि इससे कोयला लॉबी के हौसले बढ़ेंगे जो पहले ही नई कोयला खदानों को खोलने और कोयला बिजलीघरों को स्थापित करने मांग कर रही हैं। इंडोनेशिया में जोको विडोडो के चुने जाने से पाम ऑइल की तलाश में रेन-फॉरेस्ट का कटान तय है जो एक बहुत ही निराश करने वाली ख़बर है क्योंकि यह जंगल वातावरण की कार्बन गैस सोखने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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