क्लाइमेट साइंस
Newsletter - September 4, 2020
मॉनसून: अगस्त ने तोड़ा 44 साल का रिकॉर्ड
पहले खुश्क जुलाई और अब बरसात से सराबोर अगस्त। मौसम विभाग का कहना है कि अगस्त में बारिश ने पिछले 44 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इस साल अगस्त में देश भर में सामान्य से 25% अधिक बारिश हुई। इससे पहले 1976 में अगस्त में अभी के सामान्य स्तर के मुकाबले 28.4% अधिक बरसात दर्ज की गई थी। मध्य भारत और दक्षिण के तटीय ज़िलों में सबसे अधिक बरसात हुई है।
इस साल पूरे देश में कुल 8% अधिक बारिश दर्ज की गई है। दक्षिण प्रायद्वीप में 23% अधिक बरसात हुई है और मध्य भारत में 16% अधिक बरसात हुई है। मॉनसून का सीज़न जून से सितंबर तक माना जाता है। सेंट्रल वॉटर कमीशन के मुताबिक 49 में से 34 जलाशय 90% भर चुके हैं। उधर भारत के पड़ोसी बांग्लादेश और पाकिस्तान में बारिश से बुरा हाल है। पाकिस्तान के कराची में बारिश ने 89 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। अगस्त के आखिरी हफ्ते लगातार मूसलाधार बारिश से कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई।
उत्तराखंड का नैनीताल है किंग कोबरा का बसेरा!
उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च विंग ने एक रिपोर्ट तैयार की है जो बताती है कि राज्य के नैनीताल ज़िले में किंग कोबरा की मौजूदगी असामान्य रूप से अधिक है। वेबसाइट डी-डब्लू हिन्दी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 5 ज़िलों में किंग कोबरा की मौजूदगी दर्ज की गई है और उसमें नैनीताल ज़िले में किंग कोबरा की साइटिंग असामान्य रूप से अधिक है। किंग कोबरा दुनिया का सबसे बड़ा ज़हरीला सांप है लेकिन यह इंसानों पर अमूमन हमला नहीं करता। उत्तराखंड में इसके द्वारा किसी इंसान को डसने का कोई मामला सामने नहीं आया है।
रिपोर्ट बताती है कि 2015 से जुलाई 2020 के बीच पूरे राज्य में किंग कोबरा 132 बार दिखा। इनमें से 83 बार किंग कोबरा की मौजूदगी नैनीताल जिले में ही रिकॉर्ड की गई जबकि देहरादून में किंग कोबरा को 32 बार देखा गया. इसके अलावा पौड़ी जिले में 12 बार किंग कोबरा दिखा जबकि उत्तरकाशी में सिर्फ 3 और हरिद्वार में तो 2 बार ही इसकी साइटिंग रिकॉर्ड हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह गहन शोध का विषय है कि किंग कोबरा नैनीताल में ही इतना अधिक कैसे दिख रहा है।
दुनिया में आग की घटनाओं में 13% की बढ़ोतरी: WWF
कैलिफोर्निया में अभी अग्निशमन कर्मचारी राज्य के इतिहास की सबसे विनाशकारी आग पर काबू पाने में लगे हैं। उधर वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) की एक रिपोर्ट में पता चला है कि पूरी दुनिया में साल 2019 के मुकाबले आग की घटनायें 13% बढ़ी हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि 1970 के दशक के मुकाबले आग की अवधि 20% बढ़ गई है। इसके अलावा यह पाया गया है कि 75% बार आग मानव जनित होती है और उससे इतना कार्बन इमीशन हो रहा है जितना साल में सभी यूरोपीय देश मिलकर करते हैं.
क्लाइमेट नीति
भारत में कोयले के इस्तेमाल पर गुटेरेस ने जताई चिंता
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भारत से अपील की है कि वह कोयले का इस्तेमाल जल्दी और पूरी तरह से बन्द करे। गुटेरेस ने कहा कि वह भारत में सस्ती बिजली की ज़रूरत को समझते हैं लेकिन इस साल के बाद देश में कोई कोयला पावर प्लांट नहीं लगना चाहिये और जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी खत्म होनी चाहिये। दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (टेरी) के कार्यक्रम में वीडियों क्रांफ्रेंस के ज़रिये हिस्सा शामिल हुये गुटेरेस ने यह बात कही। हालांकि गुटेरेस ने सोलर अलायंस के तहत साफ ऊर्जा क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदमों की भी सराहना की।
विवादों में उत्तराखंड सरकार की ईको टूरिज्म नीति
उत्तराखंड सरकार की प्रस्तावित ईको-टूरिज्म पॉलिसी पर जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं हालांकि सरकार कहती है कि यह नीति राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देगी। सरकार का कहना है कि उसने “पर्यावरण संरक्षण के लिये पर्याप्त सेफगार्ड” अपनाते हुये “जैव-विविधता को बचाने और सामाजिक-आर्थिक विकास” बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में 65% से अधिक जंगल हैं। सरकार का कहना है कि “उत्तराखंड ईको टूरिज्म पॉलिसी-2020” विशेष रूप से पहाड़ी ज़िलों के ग्रामीण इलाकों को विकसित करने के लिये बनायी गई है और इसमें “स्थानीय लोगों की भागेदारी का रोल प्रमुख रहेगा। उन्हें रोज़गार मिलेगा और पहाड़ी ज़िलों के गांवों से पलायन रूकेगा और जंगलों को बताने के लिये फंड इकट्ठा किया जा सकेगा।”
जंगलों में ट्रैकिंग, नेचर वॉक, बर्ड वॉचिंग और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी को बढ़ावा दिया जायेगा। इसके साथ ही उत्तराखंड के मेलों और उत्सवों को इसमें शामिल किया जायेगा। उधर जानकारों और वन अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान स्वरूप में इस नीति को लागू करने की ताकत वन विभाग की जगह पर्यटन विभाग के अधिकारियों के पास होगी। इससे जंगल के संवेदनशील इलाकों में “गैरज़िम्मेदाराना” तरीके से “निर्माण की गतिविधियां” बढ़ने का डर है जिससे जैव विविधता को खतरा हो सकता है।
वन महानिरीक्षक ने उठाये जंगल के आंकड़ों पर सवाल
भारत जैसे देश में जहां पहले ही जंगलों पर भारी खतरा है वहां क्या ‘जंगलों की क्षतिपूर्ति’ (कॉम्पेनसेटरी अफॉरेस्टेशन) से कोई फायदा होगा? वन महानिरीक्षक (आईजी- फॉरेस्ट) ए.के. मोहंती की एक चिट्ठी में साफ कहा गया है कि कॉम्पेनसेटरी अफॉरेस्टेशन को लेकर 70% आंकड़े “ग़लत या अधूरे” हैं। मोहंती ने ये चिट्ठी सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को लिखी है। इसमें उन्होंने वन क्षेत्र को आंकड़ों को लेकर कई खामियों को उजागर किया है।
EIA: 500 वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों की सरकार से अपील
पर्यावरणीय आकलन पर 500 जाने माने वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने सरकार से अपील कर कहा है वह अपने नये प्रस्ताविक प्रावधानों को वापस ले ले। इन लोगों वे एक खुले पत्र में सरकार से कहा है कि EIA-2020 (नोटिफिकेशन) के प्रावधान पर्यावरण के लिये गंभीर ख़तरा हैं। सरकार को पर्यावरणीय प्रभाव पर जारी किये गये नोटिफिकेशन पर जानकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने 17 लाख सुझाव दिये हैं लेकिन केंद्रीय पर्यावरण सचिव पहले ही किसी भी तरह के बदलाव पर ठंडा रुख दिखा चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र अगले साल क्लाइमेट समिट से पहले करेगा मीटिंग
कोरोना महामारी के कारण ग्लासगो में दिसंबर में होना वाला जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन नहीं हो सका। अब अगले साल होने वाले सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्ट्र सभी देशों की एक मीटिंग करने की सोच रहा है ताकि उस वक्त की भरपाई हो सके जो कोरोना के कारण बर्बाद हुआ। सम्मेलन नवंबर 2021 में तय किया गया है। हर साल होने वाले इस सम्मेलन में दुनिया के 190 से अधिक देश हिस्सा लेते हैं।
वायु प्रदूषण
NGT ने दिया 175 प्रदूषण नियंत्रक स्टेशन लगाने का आदेश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से कहा है कि वह 6 महीने के भीतर देश भर में 175 एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाये। कोर्ट ने सीपीसीबी से कहा कि वह सभी राज्यों को प्रदूषण बोर्डों के साथ ऑनलाइन मीटिंग करके इस काम को मॉनीटर करे। सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने जुलाई में सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों को करीब 520 करोड़ रुपये अदा किये। कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब बोर्ड ने अदालत से कहा कि 173 स्टेशन पहले ही लगाये जा चुके हैं। इससे पहले कोर्ट ने सरकार के नेशनल क्वीन एयर प्रोग्रान (NCAP) की कड़ी आलोचना करते हुये उसे मॉडिफाई करने को कहा था। इस प्रोग्राम के तहत करीब 120 शहरों का प्रदूषण 2024 तक 30% जाना है।
दिल्ली की हवा ने शुद्धता को लेकर बनाया रिकॉर्ड
अगस्त महीने के आखिरी दिन दिल्ली की हवा ने कम प्रदूषण का रिकॉर्ड बना दिया। 31 अगस्त को एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 41 दर्ज किया गया। साल 2015 में मॉनिटरिंग शुरू होने के बाद से यह वायु प्रदूषण का सबसे कम नापा गया स्तर है। जानकारों का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन और हवा की बेहतर रफ्तार के कारण प्रदूषण इस स्तर तक गिरा। दिल्ली में अगस्त के महीने में 364.8 मिमी बारिश हुई जो सामान्य से 305 मिमी अधिक है। राजधानी में इतनी बरसात पिछले 12 साल में कभी नहीं हुई। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का कहा है कि 2015 के बाद से पहली बार इस महीने “गुड” एयर क्वॉलिटी स्तर के चार दिन रिकॉर्ड किया गया। इस साल अब तक “गुड” एयर क्वॉलिटी वाले 5 दिन दर्ज हो चुके हैं। इस साल 28 मार्च को “गुड” एयर क्वॉलिटी रिकॉर्ड की गई थी।
कोयला बिजलीघरों के लिये समय सीमा 2 साल बढ़े: ऊर्जा मंत्री
ज़हरीला गैस उगलते कोयला बिजलीघरों से फिलहाल राहत मिलती नहीं दिख रही है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने देश में 322 पावर प्लांट यूनिटों के लिये इमीशन नियंत्रक लगाने की समय सीमा 2022 तक बढ़ाने की मांग की है। कोयला बिजलीघरों को पहले ही दो बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। देश की कुल 448 यूनिटों को सल्फर नियंत्रक टेक्नोलॉजी लगानी है जिसे FGD या फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन कहा जाता है। यह तकनीक कोयला बिजलीघरों की चिमनियों से निकलने वाली SO2 को नियंत्रित करती है। अब तक केवल 4 यूनिटों में एफजीडी लगा है और 130 यूनिटों ने इसके लिये टेंडर दिये हैं। बिजली कंपनियां इस महंगी तकनीक को लगाने में शुरू से अनमनी दिख रही हैं।
नवजात फेफड़ों पर प्रदूषण की मार का असर किशोरावस्था पर
एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि 1 साल तक के नवजात शिशुओं को अगर यूरोपियन यूनियन के तय मानकों से कम प्रदूषित वातावरण में भी रखा जाये तो किशोरावस्था में उनके फेफड़ों की क्षमता पर असर पड़ता है। यूरोपियन यूनियन के हिसाब से पीएम 2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिये जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से यह 10 से कम होना चाहिये। नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के लिये यूरोपियन यूनियन और डब्लू एच ओ दोनों के मानक बराबर हैं।
शोधकर्ताओं ने जर्मनी के म्यूनिक और वेसेल में 915 बच्चों पर अध्ययन किया। बच्चों के फेफड़ों की ताकत मापने के लिये 6 साल, 10 साल और 15 साल की उम्र में टेस्ट किये गये। फिर अध्ययन के नतीजों की तुलना प्रदूषण के उस स्तर से की गई जहां यह बच्चे तब रह रहे थे जब इनकी उम्र 1 साल से कम थी। इस तुलना में इस बात का भी खयाल रखा गया कि बच्चे के मां-बाप धूम्रपान करते थे या नहीं। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वयस्क जिन्होंने बचपन में इससे भी कम प्रदूषण झेला था उन्हें अस्थमा होने की संभावना अधिक थी।
साफ ऊर्जा
UAE और सऊदी अरब में सौर ऊर्जा भारत से सस्ती
IEEFA और JMK की रिसर्च के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में सौर ऊर्जा एक रुपये प्रति यूनिट से सस्ती है जो कि भारत के (2.36 रु प्रति यूनिट) मुकाबले काफी सस्ती है। असल में किसी देश में सौर ऊर्जा की दरें इस बात पर निर्भर हैं कि वहां टैक्स कितना है और सरकार की नीति क्या है। इन दोनों ही देशों में लंबी अवधि के लिये सस्ते कर्ज़ की व्यवस्था है और वहां कॉरर्पोरेट टैक्स नहीं है। इसके अलावा ज़मीन भी काफी कम कीमत पर उपलब्ध है। जानकार कहते हैं कि अगर सरकार चीन से आने वाले उपकरणों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी जारी रखती है तो यूएई और सऊदी जैसे देशों के मुकाबले भारत की सोलर दरों ऊंची होती जायेंगी।
पावर कंपनियां साफ ऊर्जा के बजाय तेल, कोयले में कर रहीं निवेश
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ताज़ा रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि दुनिया की हर 10 बिजली कंपनियों में से केवल एक ही जीवाश्म ईंधन के बजाय साफ ऊर्जा में निवेश कर रही है। इस रिसर्च के तहत दुनिया की 3,000 पावर कंपनियों पर शोध किया गया और पता चला कि 90% पावर कंपनियां तेल, कोयले और गैस जैसे प्रदूषण करने वाले ईंधन में ही निवेश कर रही हैं और इन पावर प्लांट्स को प्रमोट भी कर रही हैं।
NTPC ने साफ ऊर्जा के लक्ष्य के लिये बनाई अलग कंपनी
सरकारी कंपनी एनटीपीसी ने साफ ऊर्जा के बिजनेस के लिये अपनी एक अलग कंपनी बनाने का फैसला किया है। इसके लिये उसे नीति आयोग और डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (डीआईपीएएम) से हरी झंडी भी मिल गई है। इस नई कंपनी का नाम होगा एनटीपीसी रिन्यूएबिल एनर्जी बिजनेस। एनटीपीसी पहले ही 1100 मेगावॉट साफ ऊर्जा का उत्पादन कर रही है। भारत का लक्ष्य है कि वह 2032 तक 39,000 मेगावॉट साफ ऊर्जा पैदा करे। एनटीपीसी ने इसके 30% उत्पादन का लक्ष्य रखा है और यह नई कंपनी इसी उद्देश्य से बनाई गई है।
चीन में सोलर मॉड्यूल की बढ़ती कीमतों का असर पड़ेगा भारत पर
भारत में सोलर उपकरणों का बड़ा हिस्सा चीन से आयात होता है। अंग्रेज़ी अख़बार इकोनोमिक टाइम्स में छपी ख़बर के मुताबिक 2017 के बाद से पहली बार चीन में सोलर उपकरणों के बढ़ते दामों से भारत के प्रोजेक्ट प्रभावित हो सकते हैं। इसकी दो वजह हैं। पहली , चीन की फैक्ट्री जीसीएल पोली में हुआ धमाका। यहीं से दुनिया को होने वाली सोलर मॉड्यूल सप्लाई का एक तिहाई भेजा जाता है। दूसरी वजह है कि दक्षिण-पूर्व चीन में बाढ़ के कारण वहां जीसीएल के अलावा एक बड़ी पोली-सिलिकॉन उत्पादक कंपनी को काम रोकना पड़ा है। इससे भारत के कारोबार पर असर पड़ रहा है क्योंकि 85% सोलर उपकरण चीन से आते हैं। जानकार कहते हैं कि इससे भारतीय कंपनियों की आमदनी गिरेगी।
बैटरी वाहन
राजस्थान सरकार ने इलैक्ट्रिक बसों के लिये किया अनुबंध
राजस्थान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कमीशन ने इलेक्ट्रिक बसों के लिये ग्रीनसेल मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड के साथ अनुबंध किया है। ये बस हर रोज 600 किलोमीटर यात्रा करेंगी। इन्हें पर्यटकों के पसंदीदा उदयपुर, जोधपुर और जयपुर के बीच चलाया जायेगा. यह अनुबंध राजस्था में पर्यटक केंद्रों के बीच ग्रीन कॉरिडोर बनाने की दिशा में एक कदम है।
केरल के कन्नूर में बनेंगे सुपर केपेसिटर
सरकारी कंपनी केल्ट्रॉन ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के साथ एक एमओयू किया है। यह एमओयू बैटरी वाहनों की आधुनिक तकनीक में क्रांति ला रहे सुपर केपेसिटर बनाने के लिये किया गया है। बैटरी वाहन कंपनियों की सुपरकेपेसिटर में काफी दिलचस्पी है क्योंकि ये ऐसी एनर्जी स्टोरेज डिवाइस हैं जो बहुत जल्दी रिचार्ज होती हैं और बड़ी मात्रा में एनर्जी स्टोर कर सकती हैं। यहां तक कि बसों में इस्तेमाल होने वाली ये आधुनिक बैटरियां कुछ सेकेंड में ही रिचार्ज हो जाती हैं।
यूरोपीय कार बाज़ार में धमाकेदार सेल की उम्मीद
यूरोप के ऑटो निर्माताओं को उम्मीद है कि बैटरी कारों की लोकप्रियता को देखते हुये कारों की बिक्री में ज़बरदस्त तेजी आयेगी। कार निर्माता इसे V-शेप रिकवरी कह रहे हैं। हाइब्रिड, प्लग-इन हाइब्रिड और ईवी की कुल सेल पिछले महीने 18% बढ़ी। पिछले 10 महीने में ईवी का रजिस्ट्रेशन दोगुना हुआ है औऱ हाइब्रिड में चार गुना की बढ़ोतरी हुई है। उधर कैलिफोर्निया ने 2030 तक राज्य में करीब 40,000 ईवी चार्जर लगाने के लिये 43.7 करोड़ डॉलर के प्लान को मंजूरी दी है जिसमें 50% चार्जर कम आमदनी वाले समुदाय के पास लगाये जायेंगे। इससे अगले 10 साल में 50 लाख ज़ीरो इमीशन वाहन सड़कों पर उतरेंगे।
जीवाश्म ईंधन
कोयला ब्लॉक नीलामी पर गंभीर सवाल
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरेंमेंट (सीएसई) ने अपनी एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें सरकार द्वारा 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी पर गंभीर सवाल खड़े किये गये हैं। रिपोर्ट कहती है कि ये खदानें खोली गईं तो घने जंगलों के विनाश के साथ इस क्षेत्र में रह रहे आदिवासियों का विस्थापन होगा। इस स्टडी में इस बिन्दु को रेखांकित किया गया है कि 2015 के बाद से अब तक नई खानों के लिये 19,000 हेक्टेयर जंगल काटे गये हैं जिससे 10 लाख पेड़ों का सफाया हुआ और दस हज़ार परिवारों को विस्थापित होना पड़ा।
सीएसई की रिपोर्ट ये भी कहती है कि जंगलों को खनन करने या न करने के लिये “गो” और “नो-गो” में बांटने की प्रक्रिया भी एक धोखा है क्यों मापदंडों को आखिरी वक्त में बदला जा सकता है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “साल 2020 में जिन 41कोयला ब्लॉक्स को नीलाम किया जा रहा है वह पहले नो-गो श्रेणी में थे।”
कोयले के बजाय प्राकृतिक गैस की ओर झुका बांग्लादेश
कोयले की खपत में एशिया के अव्वल देशों में शामिल बांग्लादेश अपने 13 गीगावॉट के बिजलीघरों को कोयले की बजाय एलएनजी यानी प्राकृतिक गैस से चलाने की सोच रहा है। बांग्लादेश के पावर, एनर्जी और मिनरलस रिसोर्सेज मंत्रालय का कहना है कि कोयला आधारित प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पास रहे क्योंकि उन पर कोई पैसा लगाना नहीं चाहता। दूसरी ओर नेचुरल गैस में कार्बन इमीशन और खर्च दोनों ही कम है। माना जा रहा है कि बांग्लादेश साल 2030 तक अपना गैस आयात दोगुना कर देगा। हालांकि बांग्लादेश फिलहाल 5,371 मेगावॉट के निर्माणधीन कोयला बिजलीघरों पर काम जारी रखेगा। महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश के कोयला बिजलीघरों चीन के कई बैंकों से कर्ज़ मिल रहा है।
आर्कटिक के पास नॉर्वे करेगा ऑयल ड्रिलिंग
उत्तरी ध्रुव के पास ऑयल ड्रिलिंग का नॉर्वे सरकार का फैसला काफी पर्यावरण के लिये घातक हो सकता है। नॉर्वे ने इस पर अंतिम दौर की तैयारी पूरी कर ली है जिसमें जनता से राय ली जाती है। नॉर्वे यहां 9 जगह तेल ड्रिलिंग की योजना बना रहा है जो न केवल आर्कटिक का संवेदनशील पर्यावरण के लिये बुरा है बल्कि खुद कंपनियों के लिये भी घाटे का सौदा हो सकता है।
ग्रीनपीस, नेचर एंड यूथ, डब्लू डब्लू एफ और फ्रेंड्स ऑफ अर्थ नॉर्वे जैसे संगठनों ने नॉर्वे सरकार से कहा है कि वह इस फैसले पर फिर से विचार करे क्योंकि ऑर्कटिक में तेल फैला तो उसे साफ करने की कोई टेक्नोलॉजी अभी उपलब्ध नहीं है।