नेशनल बोर्ड फार वाइल्ड लाइफ (NBWL) ने 11 राज्यों की विकास परियोजनाओं को वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस दे दी। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये हुई बोर्ड की पहली बैठक में यह मंज़ूरी दी गई है। नियमों के मुताबिक जिस भी प्रोजेक्ट में वन भूमि या संरक्षित रिज़र्व फॉरेस्ट की ज़मीन का ज़रा सा भी हिस्सा जाता है उसे बोर्ड की मंज़ूरी हासिल करनी होती है। पर्यावरण मंत्री के ट्वीट से जानकारी मिली कि इन प्रोजेक्टस में गोवा का हाइवे प्रोजेक्ट, नागपुर मुंबई सुपर हाइवे, कोटा में खनन प्रोजेक्ट के अलावा उत्तराखंड और तेलंगाना की सिंचाई योजना शामिल है।
इस बीच सरकार ने “उद्यम में आसानी” (ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस) के लिये किसी भी नये लाइसेंसधारी को ताज़ा क्लीयरेंस लेने से पहले दो साल तक खनन का अधिकार दिया है।
कोरोना संकट के कारण ग्लासगो में होने वाला सम्मेलन स्थगित
इस साल का जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन COP-26 फिलहाल स्थगित कर दिया गया है और इसकी तारीखों का ऐलान कोरोना संकट के गुज़र जाने के बाद होगा। पहले यह सम्मेलन 9 नवंबर से यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में होना था। इस वार्ता से पहले होने वाली सारी वार्ताएं भी अभी रद्द कर दी गई हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने पहले ही कह दिया था कि जलवायु परिवर्तन लड़ाई अहम है लेकिन फिलहाल सभी देशों को अपने सारे संसाधन इस वाइरस से निबटने में लगाने होंगे।
COP-26: सदस्य देशों पर क्लाइमेट प्लान जमा करने का दबाव कायम
भले ही जलवायु परिवर्तन का महासम्मेलन COP 26 अभी स्थगित हो गया हो लेकिन सभी देशों पर यह दबाव कायम है कि वह कार्बन इमीशन कटौती का अधिक कड़ा रोडमैप संयुक्त राष्ट्र में जमा करे। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन पर काम कर रही संस्थाओं ने सभी देशों से 31 दिसंबर तक रोडमैप जमा करने को कहा है।
जापान ने अपनी योजना का खाका जमा किया है लेकिन उसमें इमीशन कट करने के जो लक्ष्य रखे गये हैं उनसे जानकार खुश नहीं हैं। जापान ने 2015 में बताये लक्ष्य ही दोहराये हैं और 2030 तक 26% (2010 के मुकाबले) इमीशन कट करने का वादा किया है। वैज्ञानिक कहते हैं कि यह रोडमैप अपर्याप्त होने के साथ विज्ञान की अनदेखी भी करता है।
कोरोना संकट: डूबते कारोबार के बीच एयरलाइंस ने कार्बन डील में संशोधन की मांग
एयरलाइन इंडस्ट्री ने इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेशन (ICAO) से मांग की है कि कोरोना संकट को देखते हुये कार्बन इमीशन से जुड़ी स्कीम में संशोधन किया जाये। इंडस्ट्री ने यह भी कहा है कि अगर ऐसा नहीं होता तो वह इस डील से खुद को अलग कर सकती हैं। इस स्कीम के तहत एक तय सीमा से अधिक कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने पर कंपनियों को एक चार्ज देना है लेकिन एविएशन कंपनियां फिलहाल उड्डयन सेक्टर पर पड़ी मार की दुहाई दे रही हैं। हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे अपनी ज़िम्मेदारी से भागने का बहाना बताया है।
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