पर्याप्त फाइनेंस के अभाव में प्रभावित होगा क्लाइमेट एक्शन: आर्थिक सर्वे

संसद में पेश किए गए 2024-25 के आर्थिक सर्वे में भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार, वी अनंत नजवरन ने चेतावनी दी है कि विकसित राष्ट्रों से वित्तीय सहायता की कमी के कारण विकासशील देश अपने जलवायु लक्ष्यों को संशोधित करने के लिए बाध्य हो सकते हैं। उन्होंने कॉप29 से मिले क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज को नाकाफी बताते हुए, विकसित देशों की आलोचना की।

आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि विकसित देशों से समर्थन की कमी के बीच, विकाशसील देशों को क्लाइमेट एक्शन के लिए घरेलू संसाधनों का रुख करना होगा। सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया है कि उचित फाइनेंस के बिना क्लाइमेट एक्शन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट को नुकसान होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसे स्थिति में भारत को क्लाइमेट रेसिलिएंस को प्राथमिकता देनी चाहिए।

ट्रम्प ने अमेरिका को पेरिस डील, से बाहर किया, डब्लूएचओ से भी किनारा 

डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के पहले ही दिन अमेरिका को पेरिस क्लाइमेट डील को संचालित करने वाले यूएनएफसीसीसी से बाहर करने और विकासशील देशों को सभी प्रकार की वित्तीय मदद (क्लाइमेट फाइनेंस) पर रोक लगाने के आदेश जारी किये। इसके साथ ही ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) से भी अपने देश का नाता तोड़ लिया।  ट्रम्प के यह फैसले अप्रत्याशित नहीं हैं लेकिन इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उथल-पुथल मच गई है। 

ईरान, यमन और लीबिया के साथ अब अमेरिका चौथा देश होगा जो पेरिस संधि का हिस्सा नहीं है। अमेरिका के इस फैसले का इस साल के अंत में ब्राज़ील में होनी वाली सालाना वैश्विक क्लाइमेट वार्ता (कॉप-30) पर असर पड़ता तय है जहां क्लाइमेट फाइनेंस चर्चा का प्रमुख विषय रहेगा। 

ब्लूमबर्ग ने कहा उनका संगठन करेगा क्लाइमेट फाइनेंस की भरपाई 

ट्रम्प के फैसले के बाद उद्योगपति माइक ब्लूमबर्ग ने कहा है कि उनका संगठन ब्लूमबर्ग फिलएंथ्रोपी फंडिंग  गैप को भरेगा। करीब 10 साल तक न्यूयॉर्क के मेयर रहे माइक ब्लूमबर्ग जलवायु मामलों में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत भी हैं। वे 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में उतरे भी थे लेकिन बाद में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। अमेरिका यूएन में जमा होने वाली क्लाइमेट फाइनेंस का 22 प्रतिशत हिस्सा देता है और 2024 में उसने करीब $ 11 बिलियन डॉलर दिये थे। अब अमेरिका के पीछे हटने से क्लाइमेट फंडिंग का बढ़ेगा। 

उधर ब्लूमबर्ग फिलएंथ्रोपी ने वर्ष 2024 में अकेले करीब $ 4.5 मिलियन क्लाइमेट फंड में दिया था। जानकारों का कहना है ब्लूमबर्ग का इरादा नेक और घोषणा स्वागत योग्य है लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने की मुहिम उद्योगपतियों या फिलएंथ्रोपी संगठनों के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती है। सवाल यह भी है कि अमेरिका केवल क्लाइमेट फंड देने से पीछे नहीं हट रहा बल्कि वह ग्रीनहाउस गैसों के लिए ज़िम्मेदार जीवाश्म ईंधन के व्यापार को भी खूब बढ़ाने की बात कर रहा है।  

नेपाल ने एवरेस्ट पर्वतारोहण की फीस बढ़ाई 

नेपाल ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए परमिट शुल्क में 36 प्रतिशत की वृद्धि की है। नेपाली अधिकारियों का कहना है कि  दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर कचरा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से कई उपाय भी शुरू किए हैं। नए संशोधित पर्वतारोहण नियमों के तहत, वसंत ऋतु (मार्च-मई) में सामान्य दक्षिण मार्ग से एवरेस्ट पर चढ़ने वाले विदेशियों के लिए रॉयल्टी शुल्क मौजूदा 11,000 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति से बढ़ाकर 15,000 अमेरिकी डॉलर कर दिया गया है।

सितंबर-नवंबर में पर्वतारोहण के लिए इच्छुक लोगों को 7,500 अमेरिकी डॉलर चुकाने होंगे। वर्तमान में इस दौरान यह शुल्क 5,500 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति है। वहीं, सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) और मानसून (जून-अगस्त) सीज़न के लिए प्रति व्यक्ति परमिट लागत 2,750 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 3,750 अमेरिकी डॉलर हो गई है। पर्यटन बोर्ड की निदेशक आरती न्यूपाने ने कहा, इस आशय का कैबिनेट निर्णय पहले ही हो चुका है, हालांकि आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है। उन्होंने कहा कि 8848.86 मीटर ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए नई फीस 1 सितंबर, 2025 से लागू होगी।

ब्रिटेन की संसद ने जलवायु परिवर्तन कानून पर बहस को टाला

ब्रिटेन की संसद ने जलवायु परिवर्तन और प्रकृति संरक्षण पर नए लक्ष्य निर्धारित करने के लिए एक प्रस्तावित कानून पर बहस नहीं करने के पक्ष में वोट दिया है। बिल पर बहस खत्म करने के प्रस्ताव को हाउस ऑफ कॉमन्स में 120 वोट मिले जबकि इसके पक्ष में सात वोट पड़े, जिसका अर्थ है कि यह विधेयक अब जुलाई तक संसद में वापस नहीं आएगा और इसके कानून बनने की संभावना नहीं है।

‘क्लाइमेट एंड नेचर बिल’ नामक यह विधेयक लिबरल डेमोक्रेट सांसद रोज़ सैवेज द्वारा प्रस्तावित किया गया था, हालांकि उन्होंने बिल पर वोटिंग के लिए जोर नहीं दिया, और कहा कि वह मंत्रियों के साथ मिलकर बिल पर सहमति बनाने का प्रयास करेंगी।

इस बिल का उद्देश्य है उत्सर्जन में कटौती करने और प्रकृति को बहाल करने के लिए जनता की राय से एक रणनीति बनाना। बिल का विरोध कर रहे कंज़र्वेटिव सांसदों की दलील है कि मौजूदा कानून जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम हैं।

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