उत्तराखंड के जोशीमठ में पिछले कुछ दिनों में इमारतों और सडकों में दरारें आईं हैं और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर हटाने का काम जारी है।
इसी बीच बुधवार की शाम आक्रोशित लोगों ने मशाल जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया। जोशीमठ के लोग डरे हुए हैं क्योंकि यह एक अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र है जो सेस्मिक ज़ोन 5 में आता है।
सवाल यह उठ रहे हैं कि जोशीमठ जैसे संवेदनशील हिमालयी भूभाग पर इतनी बड़ी आपदा को कैसे होने दिया जा रहा है? क्या इसके पीछे वहां पर हुए निर्माण और प्रोजेक्ट्स का हाथ है?
जोशीमठ की नाज़ुक भूगर्भीय बनावट के बावजूद पिछले कई वर्षों में न केवल यहां पर बहुमंजिला मकान और होटल बने हैं है बल्कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और चारधाम यात्रा मार्ग जैसी बड़ी परियोजनाओं के तहत भी भारी निर्माण हुआ है।
जोशीमठ के ऊपर इस समय जो संकट मंडरा रहा है उसकी चेतावनी लगभग पांच दशक पहले ही दे दी गई थी। साल 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एम.सी. मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी जिसने अपनी रिपोर्ट में यह सलाह दी थी कि यहां सडकों की मरम्मत और निर्माण कार्य के लिए पहाड़ों से भारी पत्थर न हटाए जाएं और खुदाई व ब्लास्टिंग का काम न किया जाए।
लेकिन पिछले 30-40 सालों में चमोली जिले और विशेषकर जोशीमठ में इस तरह के कई बड़े निर्माण कार्य हुए जिनकी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में मनाही थी।
फरवरी 2021 में चमोली में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना अचानक आई बाढ़ की चपेट में आ गई, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए।
इस आपदा के बाद जून 2021 में तीन भूगर्भशास्त्रियों की एक स्वतंत्र समिति का गठन किया गया, जिसमें नवीन जुयाल भी थे। इस समिति ने क्षेत्र का सर्वेक्षण किया और कहा कि यदि जोशीमठ में और खुदाई की गई तो यह डूब जाएगा।
इसके बावजूद जोशीमठ में एनटीपीसी के अलावा जेपी का भी एक बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा है। इसके अलावा भी सड़क निर्माण कार्य हुए हैं जिनमें जोशीमठ-हेलंग बाईपास प्रमुख है।
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