मानकों में बदलाव: सरकारी खरीद के दौरान गेहूं और धान में नमी के मानकों को बदलने का प्रस्ताव है। फोटो: China Daily

सरकारी खरीद: गेहूं और धान में नमी के पैमाने बदलना चाहती है सरकार

केंद्र सरकार, गेहूं और धान की फसलों की सरकारी खरीद से पहले उनमें नमी की मात्रा के पैमानों को बदलना चाहती है और इससे किसानों की फिक्र बढ़ गई है। मंत्रालय और एफसीआई गेहूं में नमी की वर्तमान मात्रा 14 फीसद को संशोधित कर 12 फीसद और धान में मौजूदा नमी की मात्रा 17 फीसद को 16 फीसदी करना चाहता है।अभी उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के बीच इसे लेकर विचार चल रहा है। एफसीआई ही  किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खाद्यान्न खरीदता है। 

मौजूदा मानकों के हिसाब से गेहूं में नमी 12 प्रतिशत ही होनी चाहिये और  यह अधिकतम 14 फीसद तक जा सकती है। हालांकि एफसीआई 12 फीसदी की सीमा से ऊपर भी स्टॉक खरीदती है लेकिन उसे किसानों के लिए तय एमएसपी पर मूल्य में कटौती के साथ खरीदा जाता है। जबकि 14 फीसदी से अधिक नमी वाले स्टॉक को खारिज कर दिया जाता है।

प्रोजेक्ट पास करने में तत्परता के आधार पर राज्यों को रेकिंग देने के फैसले से जानकार नाराज़ 

कोई राज्य कितनी तत्परता से विकास परियोजनाओं को हरी झंडी देता है – यानी उसके अधिकारी कितनी जल्दी किसी प्रोजेक्ट को पास करते हैं इस आधार केंद्र सरकार राज्यों की रेटिंग करेगी। सरकार कहती है कि ‘व्यापार करने में सुगमता’ यानी ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस का उद्देश्य हासिल करने के लिये वह ऐसा कर रही है। हालांकि पर्यावरण के जानकार इससे खुश नहीं हैं और उन्होंने इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है कि ऐसी स्थित में पर्यावरणीय अनुमति बस एक औपचारिकता बनकर रह जायेगी। सरकार ने इससे पहले पर्यावरणीय सहमति के लिये समय सीमा को घटाकर 105 दिनों से 75 दिन कर दिया था। 

तेजी से हरित मंजूरी पर राज्यों को रेट करने के केंद्र के फैसले से पर्यावरणविद नाराज़ 

भारत सरकार अब राज्यों की इस आधार पर  रेटिंग करेगी कि उनके पर्यावरण मूल्यांकन प्राधिकरण पर्यावरण मंजूरी देने में कितने कुशल हैं। यह सरकार के ‘व्यापार सुगमता (ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस)’ लक्ष्य को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा है। हालांकि पर्यावरणविदों ने सरकार से इस निर्णय को तुरंत वापस लेने की मांग की है क्योंकि उनका मानना ​​है कि यह पर्यावरण अनुपालन को केवल एक औपचारिकता बना देगा। सरकार ने पहले पर्यावरण मंजूरी मिलने के औसत समय को 105 दिनों से घटाकर 75 दिन कर दिया था।

अत्यधिक जल दोहन से दिल्ली-एनसीआर में ज़मीन खिसकने का ख़तरा 

दिल्ली-एनसीआर के इलाके में अत्यधिक भू-जल के दोहन से ज़मीन के धंसने का ख़तरा है। एक नये अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली एन सी आर के 100 वर्ग किलोमीटर के इलाके में यह ख़तरा बहुत अधिक है जिसमें 12.5 वर्ग किलोमीटर का कापसहेड़ा वाला क्षेत्र शामिल है। यह इलाका एयरपोर्ट से बस 800 मीटर की दूरी पर है। यह रिसर्च आईआईटी मुंबई, कैंब्रिज स्थित जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस और अमेरिका स्थित साउथ मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है जिसमें कहा गया है कि  एयरपोर्ट के आसपास के इलाके में ज़मीन के धंसने की रफ्तार बढ़ रही है। महिपालपुर के पास 2014-16 के बीच डिफोर्मिटी की जो रफ्तार थी

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