प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 75 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपने भाषण में कहा था कि भारत ने 2047 तक ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है। इस भाषण के तीन महीने बाद ही नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 में भारत ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की घोषणा की। ग्लास्गो में भारत ने यह भी लक्ष्य रखा कि 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट किया जाएगा।
जहां एक ओर भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम और गैस के रूप में विदेश से आयात करता है, वहीं विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के सबसे प्रदूषित 30 शहरों में से 22 भारत में हैं। इन दोनों तथ्यों को एक साथ देखने से यह स्पष्ट होता है कि भारत को 2047 तक ऊर्जा में आत्मनिर्भरता और 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ने की कितनी जरूरत है।
ऐसे में यह परखना महत्वपूर्ण होगा कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए कुछ योजनाएं जो सरकार ने हाल के वर्षों में बनाईं उनमें कितनी प्रगति हुई है।
सौर ऊर्जा: कितना वादा कितना हासिल
वर्ष 2015 में भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा था, जिसमें 100 गीगावाट के साथ सबसे बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा का था। तब से लेकर भारत ने सौर ऊर्जा स्थापना की दिशा में कई कदम उठाए। जहां 2015 में भारत की पहल पर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत हुई वहीं 2020 में प्रधानमंत्री ने एशिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क राष्ट्र को समर्पित किया।
वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा स्थापन का जो लक्ष्य रखा गया था, उसमें से 40 गीगावाट ऐसे सौर पार्कों से प्राप्त की जानी थी जिनकी स्थापना ‘सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना’ के तहत होनी थी। हालांकि भारत सरकार ने अब तक कुल 57 ऐसे सौर ऊर्जा पार्कों को मंज़ूरी दी है, जिनकी कुल क्षमता 39.2 गीगावाट है, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ नौ सोलर पार्क चालू हो पाए हैं, जिनकी कुल क्षमता 8.08 गीगावाट है।
मार्च 2021 में संसदीय स्थायी समिति एक रिपोर्ट में इस योजना की गति पर असंतोष व्यक्त करते हुए लिखा था कि वर्ष 2015-20 से अधिक की अवधि के दौरान (नवीकरणीय ऊर्जा) मंत्रालय केवल आठ सौर ऊर्जा पार्क ही पूर्ण रूप से विकसित कर सका।
सौर ऊर्जा से जुड़ी एक और योजना है पीएम-कुसुम, यानी ‘प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान’, जिसकी चर्चा बहुत कम होती है।
फरवरी 2020 के बजट भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना का जिक्र किया था। पीएम-कुसुम का उद्देश्य है सिंचाई के लिए किसानों को सौर पंप लगाने हेतु वित्तीय सहायता दी जाए, जिससे उन्हें डीज़ल पंप से सौर ऊर्जा की तरफ लाया जा सके। वित्तमंत्री ने कहा था कि इस योजना से ‘अन्नदाता, यानि किसान, ऊर्जा-दाता बन सकते हैं’। साल 2022 तक इस योजना का लक्ष्य 25,750 मेगावाट की सौर क्षमता जोड़ने का था, जिसके लिए 34,422 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की घोषणा की गई थी। लेकिन 15 दिसंबर 2022 को लोकसभा में दिए गए एक जवाब के अनुसार, अभी तक इस योजना पर सिर्फ 1,184 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए हैं। इस योजना के तहत जहां 20 लाख स्टैण्ड-अलोन पंप लगाए जाने थे, वहीं अभी तक सिर्फ 78,940 पंप ही लगे हैं। संसदीय स्थाई समिति ने इस योजना की प्रगति पर भी नाराजगी जताते हुए कहा कि वह ‘इस योजना के तहत मंत्रालय के खराब प्रदर्शन से बेहद निराश है’।
बायोगैस प्रयास कितने सफल
75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने अपने उपरोक्त भाषण में ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने की दिशा में गैस-आधारित अर्थव्यवस्था बनाने और देशभर में सीएनजी-पीएनजी के नेटवर्क का विस्तार करने की बात की थी। इसी संदर्भ में 1 अक्टूबर 2018 में संपीडित जैव-गैस, या कंप्रेस्ड बायोगैस का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ाने के लिए सतत (सस्टेनेबल अल्टर्नेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन) योजना शुरू की गई थी। इस योजना का उद्देश्य है कि कृषि अपशिष्ट, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट आदि का उपयोग करके बायो-गैस का उत्पादन किया जा सके। इस योजना के तहत 2023 तक 5,000 संपीडित बायोगैस (सीबीजी) संयंत्र स्थापित किए जाने हैं। लेकिन योजना की प्रगति रिपोर्ट बहुत खराब है। संसद में 19 दिसम्बर 2022 को प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक मात्र 40 प्लांट लगाए गए हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि 2023-24 तक 5,000 प्लांट लगाने के लक्ष्य को कैसे पूरा किया जाएगा?
इसी से मिलती जुलती योजना है गोबर-धन (गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन) योजना। गोबर-धन योजना की घोषणा 2018-19 के बजट में की गई थी, और इसका शुभारंभ 30 अप्रैल 2018 को हरियाणा के करनाल में किया गया था। गोबर-धन योजना का उद्देश्य है कि मवेशियों के गोबर और कृषि से निकले कचरे आदि से बायोगैस का उत्पादन करके गावों को स्वच्छ बनाया जा सके और साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिले। इस योजना के तहत 2018-19 में ही 700 प्लांट लगाने का लक्ष्य था। योजना को शुरू हुए करीब पांच साल पूरे हो गए हैं, फिर भी अभी 534 प्लांट ही लगे है।
भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। स्वाभाविक है कि यहां ऊर्जा की मांग में भी साल दर साल वृद्धि होती रहेगी। इसलिए भारत के लिए 2047 तक ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनना और 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना, दोनों ही लक्ष्य बहुत बड़े हैं।
भारत के लिए हर एक यूनिट ऊर्जा का उत्पादन बहुत मायने रखता है। समय की मांग है कि भारत को सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि से भी आगे जाकर सोचने की जरुरत है। भारत को हाइड्रोजन, परमाणु संलयन, मेथेनॉल आदि उभरते क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास पर और अधिक खर्च करने की आवश्यकता है।
(स्वच्छ ऊर्जा के संबंध में बनाई गई भारत सरकार की हालिया योजनाओं के आकलन की श्रृंखला का यह पहला भाग है।)