ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि भारत उन देशों को कार्बन क्रेडिट हस्तांतरण करने के लिए तैयार है जो उससे हरित हाइड्रोजन खरीदते हैं और वह जापान और अन्य देशों के साथ बातचीत कर रहा है जिनके साथ वह ऐसा समझौता कर सकता है।
कार्बन क्रेडिट, या कार्बन ऑफसेट ऐसे परमिट को कहा जाता है जो किसी उत्सर्जक को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति देते हैं। जो उत्सर्जक अपने उत्सर्जन में सीधे कटौती नहीं कर सकते वह कार्बन क्रेडिट के माध्यम से अपने क्लाइमेट एक्शन की भरपाई कर सकते हैं। जिन कार्बन क्रेडिट धारकों ने अपना क्लाइमेट टारगेट पूरा कर लिया है, वह बचे हुए क्रेडिट को कार्बन क्रेडिट मार्केट में बेच सकते हैं।
देश में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग का ढांचा पहले से प्रचलित नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (आरईसी) की व्यवस्था की तरह है। यह प्रमाणपत्र प्रदूषण करने वाले उद्योगों को बाज़ार आधारित उपकरण खरीदकर अपनी हरित ऊर्जा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की अनुमति देते हैं। लेकिन आरईसी काफी हद तक स्वैच्छिक हैं, वहीं दूसरी ओर उद्योगों के लिए कार्बन क्रेडिट के नियमों का अनुपालन अनिवार्य होगा।
इसके अलावा, भारत द्वारा कार्बन क्रेडिट के निर्यात से स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करने वाले उद्योगों को पूंजी प्राप्त करने में मदद मिलेगी। जून में केंद्र ने देश के कार्बन बाजार की मॉनिटरिंग के लिए एक समिति का गठन किया था।
2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा के लक्ष्य का 70% हासिल कर सका भारत
भारत ने 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा था और जून 2023 तक 70.10 गीगावाट हासिल कर लिया है, जबकि अन्य 55.60 गीगावाट की क्षमता निर्माणाधीन है।
सरकार ने संसद में बताया कि 30 जून, 2023 तक देश में स्थापित कुल सौर ऊर्जा क्षमता 70.10 गीगावाट है, और इसके अलावा, 55.90 गीगावाट की स्थापना चल रही है।
वहीं मेरकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार 2023 की दूसरी तिमाही में देश ने 30 बिलियन यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया, जो पिछले साल इसी अवधि में हुए उत्पादन के मुकाबले 20.8 प्रतिशत अधिक रहा। पिछली तिमाही के मुकाबले उत्पादन में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पिछले छह महीनों में देश ने 59.79 बिलियन यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया है, जिसमें राजस्थान, कर्नाटक और गुजरात अग्रणी हैं।
क्या फ्लोटिंग सोलर से हल होगी भूमि उपलब्धता की समस्या
सौर ऊर्जा परियोजनाओं की कमीशनिंग में देरी का एक प्रमुख कारण है भूमि के एक बड़े हिस्से की उपलब्धता और उसका अधिग्रहण। इसके लिए विश्लेषकों और निर्माताओं ने कई विकल्प सुझाए हैं जिनमें से एक है ‘फ्लोटिंग सोलर इंस्टालेशन’।
फ्लोटिंग सोलर या फ्लोटिंग फोटोवोल्टिक्स (एफपीवी), एक ऐसी संरचना पर लगे सौर पैनल होते हैं जो किसी जलनिकाय पर तैरती रहती है। भूमि संरक्षण के अलावा, फ्लोटिंग सोलर प्लांट (एफएसपी) सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी) मॉड्यूल की दक्षता में भी सुधार करते हैं, और जल निकायों को अत्यधिक वाष्पीकरण से बचाते हैं।
फरवरी 2020 की एक रिपोर्ट में दी एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने कहा था कि भारत के जलाशयों का क्षेत्रफल 18,000 वर्ग किमी या लगभग 1.8 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें एफएसपी के माध्यम से 280 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
जानकारों की मानें तो देश को 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत अधिक भूमि की आवश्यकता है। एफएसपी इस समस्या का समाधान हो सकता है। भूमि संरक्षण के अलावा, वे पानी के वाष्पीकरण को 40 प्रतिशत से अधिक कम करते हैं।
पुरानी पवन टर्बाइनों को पुनः चालू करने के प्रयास तेज करे सरकार: संसदीय समिति
ऊर्जा संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय से कहा है कि वह पुरानी पवन टर्बाइनों को रीपॉवर करने की संशोधित नीति के अनुमोदन और कार्यान्वयन में तेजी लाए।
भारत में पवन ऊर्जा के मूल्यांकन पर हाल ही में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में समिति ने कहा कि अधिकांश पवन ऊर्जा क्षमता आठ राज्यों में केंद्रित है, और सुझाव दिया कि प्रमुख स्थलों पर मौजूद पुरानी, अकुशल पवन टर्बाइनों को रिटायर किया जाए।
समिति ने प्राकृतिक संसाधनों और भूमि का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए पुरानी टर्बाइनों की जगह उन्नत, अधिक कुशल टर्बाइनों को लगाने का सुझाव दिया।
जवाब में मंत्रालय ने राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के इस अनुमान को स्वीकार किया कि 2 मेगावाट से कम क्षमता वाली पवन टर्बाइनों को रीपॉवर करके 25,406 मेगावाट की क्षमता प्राप्त की जा सकती है।
मंत्रालय ने याद दिलाया कि 2016 में एक रीपॉवर नीति जारी की गई थी, और हितधारकों की प्रतिक्रिया के आधार पर एक संशोधित नीति तैयार की गई है, जिसे मंजूरी मिलना अभी बाकी है।
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