फोटो: Balaji Srinivasan/Pixabay

कुल 11,000 प्रजातियों के विलुप्ति जोखिम का आकलन करने के लिए ‘नेशनल रेड लिस्ट आकलन’ शुरू

जैव विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) और कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के तहत किए गए वादों को पूरा करने के लिए भारत ने ‘नेशनल रेड लिस्ट असेसमेंट (एनआरएलए)’ 2025–2030 विज़न डॉक्यूमेंट की शुरुआत की है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य देशभर की करीब 11,000 प्रजातियों — जिनमें 7,000 वनस्पति प्रजातियां और 4,000 जीव-जंतु प्रजातियां शामिल हैं — के विलुप्ति जोखिम का दस्तावेज़ीकरण और आकलन करना है।

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) और वॉटिनिकल सर्वे (बीएसआई) ने आईयूसीएन-इंडिया और सेंटर फॉर स्पीशीज सर्वाइवल के साथ मिलकर एक समन्वित, वैज्ञानिक रूप से आधारित प्रणाली का ढांचा तैयार किया है, जो भारत की प्रजातियों की संरक्षण स्थिति का मूल्यांकन और निगरानी करेगी।

भारत दुनिया के 17 मेगाविविध देशों में से एक है, और यहां 36 वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से चार — हिमालय, पश्चिमी घाट, इंडो-बर्मा और सुंडालैंड — स्थित हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत विश्व के कुल भूभाग का केवल 2.4% हिस्सा घेरता है, लेकिन इसमें विश्व की लगभग 8% वनस्पतियां और 7.5% जीव-जंतु पाए जाते हैं। इनमें से 28% पौधे और 30% से अधिक जानवर देश के लिए स्थानिक (एंडेमिक) हैं।

सात वर्षों में तीसरी बार डूबा पंजाब: 2025 की बाढ़ ने ‘भारत के अन्न भंडार’ को किया तबाह

पंजाब में आई हालिया बाढ़ ने 7 लाख हेक्टेयर जमीन को पानी में डुबो दिया, जहां सड़ती फसलें और गाद के ढेर रह गए। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 10–15 दिनों में 2,520 गांव जलमग्न हो गए और कृषि से जुड़े करीब 4 लाख लोग प्रभावित हुए।

राज्य की ‘लगभग कटाई के लिए तैयार’ फसलें 2,02,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि पर पूरी तरह नष्ट हो गईं। अनुमान है कि चावल की फसल में ₹7,500 करोड़ का नुकसान हुआ है, जबकि फॉल्स स्मट रोग ने 3 लाख एकड़ क्षेत्र को प्रभावित किया है।

गुरदासपुर के शिकार गांव के जैविक किसान तेज प्रताप सिंह ने कहा, “जलवायु परिवर्तन और सरकारी कुप्रबंधन के परिणाम का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है?”

हार्दोवाल गांव की 60 वर्षीय दलबीर कौर ने बताया: “25 अगस्त की आधी रात को बाढ़ अचानक आई… कोई चेतावनी नहीं थी। हमने कभी नहीं सोचा था कि पानी यहां तक पहुंच जाएगा। अब भी खेत और घरों में दो फीट तक गाद भरी है।”

रेलवे लाइन और राज्य राजमार्ग के बीच बसे इस क्षेत्र के सभी गांव जलमग्न हैं। गन्ना और धान की फसलें अब भी पानी में डूबी हुई हैं। यह बाढ़ पंजाब के ग्रामीण परिदृश्य को बदल चुकी है।

वैज्ञानिकों की चेतावनी: कोरल रीफ्स के नष्ट होने के साथ पहला ‘जलवायु टिपिंग पॉइंट’ पार

दुनिया अब अपना पहला ‘जलवायु टिपिंग पॉइंट’ पार कर चुकी है — जब वैश्विक तापन ने गर्म-पानी वाले कोरल रीफ्स को अपरिवर्तनीय क्षय की ओर धकेल दिया है। द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट में बताया गया कि 23 देशों के 160 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस नई शोध में पाया गया है कि ये रीफ्स अब अपने ‘थर्मल टिपिंग पॉइंट’ से गुजर रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने यह सीमा पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर रखी थी, जबकि दुनिया अब 1.4 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच चुकी है। न्यू साइंटिस्ट से बात करते हुए प्रमुख लेखक प्रोफेसर टिम लेनटन ने कहा, “हमने 1.5 डिग्री सेल्सियस की दुनिया का एक नमूना देखा है — और इसके परिणाम भी। अधिकांश कोरल रीफ्स अब बड़े पैमाने पर मरने या सीवीड और एल्गी से ढके रूप में बदलने के जोखिम में हैं।”

द गार्डियन ने रिपोर्ट किया कि दुनिया अब अन्य ‘टिपिंग पॉइंट्स’ — जैसे अमेज़न वर्षावनों के सूखने, महासागरीय धाराओं के ढहने और बर्फ की चादरों के पिघलने — के भी करीब पहुंच चुकी है।

भारत का ‘कोल्ड डेजर्ट’ बना 13वां यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व

यूनेस्को ने 27 सितंबर 2025 को भारत के ‘कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व’ को अपनी वैश्विक सूची में शामिल कर लिया है। डाउन टू अर्थ के अनुसार, भारत में अब कुल 13 यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व हैं। यह भारत का पहला उच्च-ऊंचाई वाला ठंडा मरुस्थलीय रिजर्व है और यूनेस्को की वैश्विक नेटवर्क में सबसे ठंडे और शुष्क पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है। लगभग 7,770 वर्ग किलोमीटर में फैला यह क्षेत्र 3,300 से 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें पिन वैली नेशनल पार्क, चंद्रताल, सर्चू और किब्बर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी शामिल हैं।

यह क्षेत्र हिम तेंदुए, हिमालयी आइबेक्स, नीली भेड़ और स्वर्ण चील जैसे दुर्लभ जीवों का घर है। यहां करीब 12,000 स्थानीय निवासी पशुपालन, खेती और पारंपरिक औषधि से अपनी जीविका चलाते हैं।

गंगा की गर्मी के मौसम की धारा का स्रोत हिमनद नहीं, भूजल है

एक नई वैज्ञानिक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि गंगा नदी की गर्मी के मौसम की धारा मुख्य रूप से भूजल से संचालित होती है, हिमनद (ग्लेशियर) से नहीं। मोंगाबे इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पत्रिका हाइड्रोलॉजिकल प्रोसेसेज़ में प्रकाशित इस अध्ययन ने समस्थानिक (आइसोटोप) विश्लेषण के ज़रिए यह निष्कर्ष निकाला कि भूजल जलभृत (एक्वीफायर्स) गंगा की धारा के प्रमुख स्रोत हैं।

मुख्य लेखक अभयानंद सिंह मौर्य ने बताया कि हिमनदों से आने वाले जल का योगदान केवल कुल प्रवाह का लगभग 32% है। उन्होंने कहा, “गंगा के मैदानों में प्रवाह ऋषिकेश से कई गुना अधिक है — इससे यह स्पष्ट होता है कि शेष जल का स्रोत भूजल ही है।”

गंगा नदी, जो गंगोत्री हिमनद से निकलकर इंडो-गैंजेटिक मैदान होते हुए भारत और बांग्लादेश से गुजरती है, न केवल करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है बल्कि यह आर्द्रभूमि और मछलियों जैसे पारिस्थितिक तंत्रों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

दार्जिलिंग में भूस्खलन: पर्यावरणविदों ने बताया ‘मानवजनित आपदा’

दार्जिलिंग में हालिया भूस्खलनों को पर्यावरणविदों ने ‘मानवजनित पारिस्थितिक आपदा’ बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह दशकों से चली आ रही वनों की कटाई, अनियोजित शहरीकरण और कमजोर शासन व्यवस्था का नतीजा है, जिसने नाजुक हिमालयी ढलानों को अस्थिर बना दिया है। 12 घंटे की लगातार बारिश ने 20 से अधिक लोगों की जान ले ली और सैकड़ों को बेघर कर दिया।

पर्यावरणविद् सुजीत रहा ने कहा, “बारिश केवल ट्रिगर है, असली कारण पहाड़ों के साथ किया गया अत्याचार है।” विशेषज्ञों ने चेताया कि बेढंगे निर्माण, खराब जल निकासी और पर्यटन केंद्रित विकास ने दार्जिलिंग की पारिस्थितिकी को बदल दिया है।

जेएनयू के प्रोफेसर विमल खवास ने कहा कि यह त्रासदी हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती जलवायु संकट और स्थानीय प्रशासनिक विफलता का हिस्सा है। उन्होंने स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन और जल संसाधन नियोजन की मांग की। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि पूर्वी हिमालय अब ‘जलवायु परिवर्तन से जलवायु संकट’ के चरण में पहुंच चुका है।

सितंबर की बाढ़ ने महाराष्ट्र में 68 लाख हेक्टेयर फसलें तबाह कीं

महाराष्ट्र में सितंबर में आई भारी बारिश और बाढ़ ने 68.69 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर खड़ी फसलें नष्ट कर दीं, जिससे मराठवाड़ा और आसपास के क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए। राहत एवं पुनर्वास विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, राज्य सरकार प्रभावित किसानों के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता मांगने का प्रस्ताव तैयार कर रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दोनों उपमुख्यमंत्रियों एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ समीक्षा बैठक की है।

बीड़, नांदेड़, छत्रपति संभाजीनगर, यवतमाल, लातूर, सोलापुर, जालना, परभणी, बुलढाणा और नाशिक जैसे जिलों में 3 से 7 लाख हेक्टेयर तक की फसलें बर्बाद हुई हैं। किसानों ने प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपए मुआवज़े और कर्जमाफी के वादे को पूरा करने की मांग की है। बाढ़ में सिंचाई उपकरण और बिजली पंप बह गए, जिससे खेती फिर शुरू करना मुश्किल हो गया है। विभाग ने बताया कि एग्रीस्टैक प्रणाली के तहत किसानों का ई-केवाईसी कार्य तेज़ी से पूरा किया जा रहा है, ताकि राहत वितरण शीघ्र हो सके।

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