नैनीताल हाइकोर्ट ने हाथी कॉरिडोर में 3,300 पेड़ काटने पर लगाई रोक

उत्तराखंड में हाइकोर्ट ने ऋषिकेश और भनियावाला के बीच एक सड़क मार्ग के लिए 3,300 पेड़ों के कटान पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह रास्ता राजाजी नेशनल पार्क के एलीफैण्ट कोरिडोर से होकर जाता है। कोर्ट ने देहरादून की निवासी रेनू पॉल की याचिका पर यह रोक लगाई है। अदालत ने याचिकाकर्ता से अनुरोध किया है कि वह परियोजना से प्रभावित गलियारे और सड़क के विशिष्ट खंडों को दर्शाने वाली गूगल तस्वीरें प्रस्तुत करें। अदालत ने राज्य सरकार को परियोजना से संबंधित सभी प्रासंगिक अनुमतियां उसके समक्ष प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया है। 

उत्तराखंड में यह सड़क प्रोजेक्ट मोतीचूर, बडकोट और ऋषिकेश फॉरेस्ट रेन्ज में एलीफैण्ड कोरिडोर से होकर जायेगा। मुख्य न्यायाधीश जी नरेन्द्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की पीठ ने सरकारी वकील से कहा कि अगर कोरिडोर से सड़क निकलती है तो उसकी जगह फ्लाईओवर बनाया जाना चाहिए क्योंकि इसे अवरुद्ध नहीं किया जा सकता है। इस मामले की सुनवाई अब 21 मार्च को होगी। 

कैम्पा फंड के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने क्षतिपूरक वनीकरण के लिए बने कैम्पा फंड के कथित दुरुपयोग पर उत्तराखंड सरकार को लताड़ लगाई है। पिछले महीने विधानसभा में रखी गई इस सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में विकास कार्यों से नष्ट हुए जंगलों की क्षतिपूर्ति के बदले पेड़ लगाने के लिए जमा (कैम्पा) फंड का एक हिस्सा आईफ़ोन, किचन की सामग्री, भवनों को चमकाने और अदालतों के मुकदमे लड़ने पर खर्च किया गया था

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 2019 से 2022 के बीच, 275.34 करोड़ रुपए का ब्याज अदा नहीं किया गया। राज्य ने इसे स्वीकार किया और 2023 में 150 करोड़ रुपए जमा किए, लेकिन अभी भी एक बड़ी राशि का कोई हिसाब नहीं है। अदालत ने मामले पर मुख्य सचिव से 19 मार्च तक जवाब मांगा है, और आगे कार्रवाई की चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए कैम्पा फंड का उपयोग करने में जवाबदेही की आवश्यकता है।

लॉस एंड डैमेज फंड से बाहर हुआ अमेरिका

अमेरिका हानि और क्षति (लॉस एंड डैमेज) फंड के बोर्ड से बाहर हो गया है। यह फंड विकासशील देशों को जलवायु आपदाओं से निपटने में मदद करता है। यह ट्रंप प्रशासन द्वारा वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों को विफल करने की दिशा में एक और कदम है। इससे पहले अमेरिका पेरिस समझौते से पीछे हटने और क्लाइमेट फंडिंग में कटौती करने का निर्णय कर चुका है। अमेरिका के प्रतिनिधि ने 4 मार्च को एक पत्र लिखकर बोर्ड को इस निर्णय के बारे में सूचित किया। 2022 में कॉप27 के दौरान लंबी बातचीत के बाद यह फंड बनाया गया था। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से कमजोर देशों को लाभान्वित करना था। ट्रंप सरकार के आने से पहले अमेरिका ने लॉस एंड डैमेज फंड में 17.5 मिलियन डॉलर देने का वादा किया था। जानकारों का कहना है कि अमेरिका की वापसी से वैश्विक क्लाइमेट जस्टिस और जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि को दूर करने के प्रयास कम होंगे।

फाइनेंस पर वादा पूरा करें विकसित देश तो 1.5 डिग्री के लक्ष्य की प्राप्ति संभव: भारत

भारत का मानना ​​है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना अभी भी संभव है, लेकिन इसके लिए विकसित देशों को अपनी वित्तीय और तकनीकी प्रतिबद्धताओं को पूरा करना होगा। द एनर्जी रिसोर्स इंस्टिट्यूट (टेरी) की वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिट को संबोधित करते हुए, पर्यावरण मंत्री भूपेंदर यादव ने कहा कि मौजूदा वैश्विक सिस्टम जलवायु परिवर्तन से निपटने में विफल है और तत्काल सुधारों की आवश्यकता है।

उन्होंने यूएनईपी की इमीशन गैप रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सौर, हवा और जंगल उत्सर्जन में कटौती करने में मदद कर सकते हैं यदि तत्काल कार्रवाई की जाती है। हालांकि, विकसित देश अपने वादे से पीछे हट गए हैं और उन्होंने सालाना 1.3 ट्रिलियन डॉलर के फाइनेंस की बजाय 2035 तक केवल 300 बिलियन डॉलर की पेशकश की है।

जेटी परियोजना के लिए अडानी समूह को मिली मैंग्रोव पेड़ काटने की अनुमति

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अडानी सीमेंटेशन लिमिटेड को महाराष्ट्र के रायगड में एक जेटी परियोजना के लिए 158 मैंग्रोव पेड़ काटने की अनुमति दे दी है। हालांकि, अदालत ने पर्यावरण संरक्षण और विकास में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने कंपनी को पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए सभी नियामक शर्तों का पालन करने का निर्देश दिया। 172 करोड़ रुपए की इस परियोजना का उद्देश्य जलमार्गों के माध्यम से सीमेंट और कच्चे माल की ढुलाई करना है। कोर्ट ने कहा कि इससे सड़कों पर ट्रैफिक कम होगा जिससे कार्बन उत्सर्जन में 60% से अधिक की कटौती संभव है। अदालत ने परियोजना के सार्वजनिक लाभ को स्वीकार करते हुए प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया, विशेष रूप से तब जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता में हानि से जूझ रही है।

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