जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से ठीक पहले यूएनडीपी और प्रमुख रिसर्च संस्थानों की रिपोर्ट में जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर चिन्ता जताई गई है। इसमें कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन उत्पादन की ऐसी रफ्तार से नेट ज़ीरो का लक्ष्य नहीं हासिल हो सकता। रिपोर्ट यह भी चेताती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के संकट को देखते हुये भारत के पास जीवाश्म ईंधन उत्पादन के लिये कोई नीति नहीं है। रिपोर्ट प्रमुख अनुसंधान संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा तैयार की गई है और यह भारत सहित 15 प्रमुख उत्पादक देशों का प्रोफाइल बताती है। द प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट सरकार में कोयला, तेल और गैस के नियोजित उत्पादन और पेरिस समझौते की तापमान सीमाओं को पूरा करने के अनुरूप वैश्विक उत्पादन स्तरों के बीच के अंतर को देखा गया है ।
कोयला प्रयोग खत्म करने को लेकर जी-20 देश अब भी एक नहीं
अगले हफ्ते रोम में होने वाले जी-20 सम्मेलन से पहले इस मंच के देश चरणबद्ध तरीके से कोयला प्रयोग खत्म करने के मामले में एकमत नहीं हैं। समाचार एजेंसी रायटर ने सूत्रों के हवाले यह ख़बर छापी है और कहा है कि जीवाश्म ईंधन और कोयले का प्रयोग फेज़ आउट करने में रूस, भारत और चीन अनमने हैं।
इस बीच बीबीसी ने ख़बर दी है कि कुछ देश संयुक्त राष्ट्र पर दबाव डाल रहे हैं कि वह जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बन्द करने के मामले में बहुत ज़ोर न दे। यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले प्रकाशित होगी। कहा जा रहा है कि जीवाश्म ईंधन को बन्द न करने के लिये सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश दबाव बना रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि अमीर देश, गरीब देशों को साफ ऊर्जा टेक्नोलॉजी के लिये अधिक पैसा देने पर सवाल उठा रहे हैं। यूएन की आंकलन जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल द्वारा हर 6-7 साल में प्रकाशित होती है।
जलवायु जोखिमों से लड़ने में गरीब देशों की मदद के लिए आईएमएफ ने की कोष की स्थापना
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ रहे गरीब देशों के लिए अच्छी खबर है। इन प्रयासों में उनकी सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) $50 बिलियन तक की फंडिंग सुविधा स्थापित करने की प्रक्रिया में है। रेिज़िलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी ट्रस्ट का लक्ष्य है कि अमीर देशों से पैसा इकट्टठा करके उससे गरीब देशों में वित्त का पुनर्वितरण करना होगा, जिसे नीतिगत समर्थन प्राप्त होगा। इस ट्रस्ट को पहले ही G20 देशों के वित्त मंत्रियों से समर्थन मिल चुका है।
सीओपी-26 से पहले प्रमुख जलवायु कानून पारित करने के लिए संघर्ष कर रहा बाइडेन प्रशासन
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के जलवायु परिवर्तन से निबटने के प्रयासों को उन सीनेटरों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है जो जीवाश्म ईंधन के हिमायती हैं। ग्लासगो में हो रहे सीओपी26( यूएनका जलवायु परिवर्तन शिखर महासम्मेलन ) सोमवार को शुरु हो रहा है लेकिन अमेरिका को एक प्रमुख जलवायु क़ानून पारित करना बाकी है, जो निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण बैठक से पहले उसे बैकफुट पर ले आएगा। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों पार्टियों के जीवाश्म ईंधन-समर्थक सीनेटर बाइडेन प्रशासन के प्रस्तावित अवसंरचना विधेयक और सुलह विधेयक में मौजूद जलवायु उपायों को समाप्त कर रहे हैं या कमजोर कर रहे हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि इनमें से एक विशेष उपाय जो साफ़ बिजली उत्पादन के लिए उत्पादकों को पुरस्कृत करता है, विधेयक में शामिल नहीं होगा।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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