भारत में जीबीएस संक्रमण से 6 की मौत, सौ से अधिक बीमार

देश में जीबीएस यानी गिलियन बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी के सौ से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जबकि इससे महाराष्ट्र में तीन लोगों की मौत हो गई है। बंगाल में भी तीन संदिग्ध मौतें हुई हैं, हालांकि अभी सरकार द्वारा इनकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र के पुणे में सामने आए हैं, जहां अबतक इस बीमारी के 130 मरीज मिल चुके हैं। बंगाल में कोलकाता और हुगली जिलों से तीन संदिग्ध मौतें रिपोर्ट की गई हैं, जबकि कथित रूप से जीबीएस से पीड़ित तीन अन्य बच्चों का कोलकाता के बीसी रॉय अस्पताल में इलाज चल रहा है। तेलंगाना में भी बीमारी का एक मामला सामना आया है। 

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने बताया है कि पुणे में जीबीएस के 80 प्रतिशत ऐसे इलाकों से आए हैं जो एक बड़े कुएं के आसपास स्थित हैं। माना जा रहा है कि यह बीमारी कुएं के प्रदूषित जल से फैली है

जीबीएस एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) ही उसकी पेरिफिरल नर्व्स पर हमला करती है।  इस बीमारी में झुनझुनी और मांसपेशियों में कमज़ोरी के लक्षण होते हैं जिससे पक्षाघात हो सकता है लेकिन यह बीमारी कोरोना की तरह संक्रामक नहीं है। जीबीएस का कोई ज्ञात इलाज नहीं है, लेकिन उपचार से जीबीएस के लक्षणों को सुधारने और इसकी अवधि को कम करने में मदद हो सकती है। वैज्ञानिकों ने जीबीएस को अनिवार्य रूप से एक मानव-निर्मित महामारी बताया है। 

तमिलनाडु के तट पर हज़ारों ओलिव रिडली कछुए मरे पाये गये

भारत के पूर्वी तट पर तमिलनाडु राज्य में हज़ारों ओलिव रिडली कछुए मृत पाये गये हैं। ओलिव रिडली कछुए समुद्री इकोसिस्टम को महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और हर साल दिसंबर से मार्च के बीच अंडे देने के लिए तट पर आते हैं लेकिन इस बार इतनी बड़ी संख्या में कछुओं के मृत पाये जाने पर पर्यावरणविदों ने गहरी चिन्ता जताई है और राज्य सरकार से कदम उठाने की मांग की है।

ओलिव रिडले कछुओं की बड़ी संख्या में मृत्यु का मुख्य कारण अंडे देने के सीज़न में तट से प्रतिबंधित पांच समुद्री मील के भीतर मछुआरों द्वारा ट्रॉलरों का बड़े पैमाने पर उपयोग करना और जहाजों पर कछुआ फंसने से रोकने की टर्टल एक्सपल्शन डिवाइस (टीईडी)  का न होना शामिल है। बिना डिवाइस के प्रयोग के ट्रॉल जालों में कछुए फंस जाते हैं। राज्य सरकार ने यहां एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि तट से पांच समुद्री मील के भीतर ट्रॉल जाल से मछली पकड़ने पर पहले से ही प्रतिबंध लगा दिया गया है और घोंसला बनाने के मौसम के दौरान टीईडी की स्थापना के बिना ट्रॉल जाल का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

वायुमंडलीय कार्बन का स्तर 1.5 डिग्री की सीमा से कहीं अधिक

यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय मौसम और जलवायु एजेंसी मेट ऑफिस ने खुलासा किया है कि जिस दर से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के स्तर में वृद्धि हो रही है, वह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से नीचे रखने के लिए आवश्यक स्तर से कहीं अधिक है। मेट ऑफिस ने हवाई स्थित मौना लोआ वेधशाला के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है कि 2024 में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता रिकॉर्ड रूप से 3.58 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) बढ़ी। जबकि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए यह वृद्धि 1.8 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए।

कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में इस ऐतिहासिक उछाल के पीछे रिकॉर्ड जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन, उष्णकटिबंधीय जंगलों जैसे प्राकृतिक कार्बन सिंक के कमजोर होने और अल नीनो तथा जलवायु परिवर्तन के कारण असाधारण जंगल की आग की घटनाओं की विशेष भूमिका है।

महासागरों के गर्म होने की दर चार गुना बढ़ी 

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि महासागरों के गर्म होने की दर पिछले चार दशकों की तुलना में चार गुना तेज हो गई है। 

एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि 2019-23 के दौरान समुद्र का तापमान प्रति दशक 0.27 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है, जबकि 1980 के दशक के अंत में यह हर दशक में 0.06 डिग्री सेल्सियस था।

ग्लोबल मीन सी लेवल टेम्परेचर (वैश्विक औसत समुद्री सतह तापमान) में परिवर्तन की अंतर्निहित दर पृथ्वी के ऊर्जा संचय के अनुपात में बढ़ती है और रिपोर्ट में यह लिखा गया है कि 1985-89 के दौरान 0.06 (सेल्सियस प्रति दशक) से बढ़कर 2019-23 में 0.27 (सेल्सियस प्रति दशक) हो गई है।

रिपोर्ट के लेखकों ने बताया कि महासागरों का तेजी से गर्म होना पृथ्वी की ऊर्जा में बढ़ते असंतुलन के कारण होता है – जिससे सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी द्वारा अवशोषित की जाती है, जो अंतरिक्ष में वापस जाने की तुलना में अधिक होती है।

उन्होंने कहा कि 2010 के बाद से ऊर्जा असंतुलन लगभग दोगुना हो गया है, और यह आंशिक रूप से ग्रीनहाउस गैस के बढ़ते स्तर के कारण है क्योंकि पृथ्वी अब पहले की तुलना में सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में कम लौटा  रही है। 

अपने विश्लेषण में, टीम ने पाया कि 2023 और 2024 की शुरुआत में अनुभव की गई रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी का लगभग आधा (44 प्रतिशत) तेज रफ्तार से गर्म हो रहे महासागरों के कारण हो सकता है।

ऐसा माना जाता है कि वैश्विक महासागर का तापमान 2023 और 2024 की शुरुआत में लगातार 450 दिनों के लिए रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है।

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