धरती के गर्म होने की रफ्तार बढ़ रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण आपदाओं की मारक क्षमता और तीव्रता भी बढ़ रही है लेकिन क्लाइमेट वार्ता में उन कंपनियों और लॉबीकर्ताओं का दबदबा बढ़ रहा है जो क्लाइमेट एक्शन को कमज़ोर करते हैं।
पिछले दिनों हमें दो महत्वपूर्ण तस्वीरें दिखी। पहली तस्वीर जर्मनी के एक गांव लुर्त्सराथ में लिग्नाइट खनन के खिलाफ प्रदर्शन की थी जिसमें 20 साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग भी शामिल हुईं। दूसरी तस्वीर आबूधाबी की राष्ट्रीय तेल कंपनी के प्रमुख अल जबेर की है जो इस साल नवंबर में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के अध्यक्ष होंगे।
अच्छा-बुरा दोनों काम करते हैं जबेर
सुलतान अल जबेर यूएई की सबसे बड़ी और दुनिया की 12वीं सबसे बड़ी तेल कंपनी (एडनॉक) के ही प्रमुख ही नहीं है बल्कि वो एक रिन्यूएबल एनर्जी यानी साफ ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली कंपनी मसदर भी चलाते हैं। यानी एक ओर तेल का कारोबार और दूसरी और साफ ऊर्जा का ढ़िंढोरा। जबेर अपने देश की जलवायु नीति और ऊर्जा नीति दोनों तय करते हैं।
वह साफ ऊर्जा के हिमायती हैं लेकिन तेल के कारोबार में निवेश को भी बढ़ा रहे हैं। वह कहते हैं कि कुल ऊर्जा में साफ ऊर्जा की हिस्सेदारी सबसे तेज़ी से बढ़ रही है और भविष्य साफ ऊर्जा का है लेकिन अभी इसका वक्त नहीं आया है। जबेर से कुछ वक्त पहले आबूधाबी में हुई आइल कॉन्फ्रेंस में तेल और गैस कंपनियों से 600 बिलियन डालर यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष निवेश की अपील की। उनके मुताबिक यह निवेश 2030 तक जारी रहना चाहिये।
क्लाइमेट कार्यकर्ताओं में चिंता
ज़ाहिर है जबेर के क्लाइमेट महासम्मेलन के अध्यक्ष बनने पर पर्यावरण के हितैषियों और साफ ऊर्जा के लिये लड़ रहे कार्यकर्ताओं में चिन्ता है। कई जानकार मानते हैं कि एक पेट्रोलियम पर आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश को क्लाइमेट सम्मेलन की अध्यक्षता सौंपना ही मकसद के खिलाफ है और जबेर को तेल कंपनी के प्रमुख का पद छोड़ देना चाहिये।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क की तस्नीम एस्सोफ कहती हैं कि तेल कंपनी के प्रमुख का जलवायु वार्ता का अध्यक्ष होना पूरे मकसद को ही विफल करता है। वह कहती है, “अगर वह अपने पद से इस्तीफा नहीं देते तो इसका स्पष्ट मतलब होगा कि एक पेट्रोस्टेट नेशनल ऑइल कंपनी और उससे जुड़े लॉबीकर्ताओं ने वार्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया है। या तो वह अध्यक्षता छोडें या तेल कंपनी के सीईओ पद से इस्तीफा दें।”
एस्सोफ याद दिलाती हैं कि 2021 में ग्लासगो में हुये सम्मेलन में 500 जीवाश्म कंपनियां मौजूद थीं और पिछले साल मिस्र में हुई क्लाइमेट वार्ता में इनकी संख्या 25% बढ़ गईं। उनका कहना है कि अगर जबेर सरकारी तेल कंपनी के प्रमुख के पद पर रहते हुये सम्मेलन की अध्यक्षता करते हैं तो तेल और गैस कंपनियों के हितधारकों को खुला आमंत्रण होगा और क्लाइमेट एक्शन पूरी तरह से विफल हो जायेगा।
गर्म हो रही धरती
धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी का ही परिणाम है कि पिछले 8 साल सबसे गर्म वर्षों में दर्ज किये गये हैं। साल 2022 में भारत में 122 सालों का सबसे गर्म मार्च रहा। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय उपमहाद्वीप में हीटवेव की आशंका 30 गुना बढ़ गई है। पाकिस्तान में पिछले साल आई अभूतपूर्व बाढ़ ने ज़बरदस्त तबाही की और भारत की समुद्र तटों पर चक्रवाती तूफानों की संख्या और मारक क्षमता बढ़ रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर ने अर्थव्यवस्था और कार्यक्षमता पर भी भारी असर डाल रही है।
लॉबीकर्ताओं की बढ़ रही संख्या
जीवाश्म ईंधन कंपनियों और क्लाइमेट चेंज को हौव्वा बताने वाले नेता लगातार जलवायु परिवर्तन वार्ता पर हावी हो रहे हैं। अंग्रेज़ी अख़बार द गार्डियन की रिपोर्ट याद दिलाती है कि कैसे ब्राजील के तत्कालीन राष्ट्रपति बोल्सनारो ने वार्ता की मेजबानी से इनकार कर दिया। साल 2019 में सम्मेलन चिली में होना था लेकिन वहां दंगे भड़कने के बाद इसे स्पेन के मेड्रिड में कराया गया। स्पेन की दो बड़ी जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने साफ इबेर्द्रोला और इंडेसा इसकी प्रायोजक बनी। इंडेसा स्पेन की सबसे अधिक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करने वाली कंपनी है। इन कंपनियों ने पूरी सम्मेलन स्थल पर अपने अपने लोगो लगाये और वार्ता को प्रभावित किया।
इसके बाद कोविड महामारी फैलने के कारण विकसित देशों को क्लाइमेट एक्शन को प्राथमिकता से हटाने का बहाना मिल गया। ग्लोसगो और शर्म-अल-शेख में जीवाश्म ईंधन कंपनियों और लॉबीकर्ताओं का शिकंजा मज़बूत होता गया जिसकी परिणति अब अल जबेर की अध्यक्षता के रूप में दिख रही है।
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