एक नए विश्लेषण के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ के कारण 25 जुलाई से कम से कम 14 हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को नुकसान हुआ है। इनमें से कुछ परियोजनाएं ऐसी हैं जो पिछले 10 वर्षों में कई बार प्रभावित हुई हैं। इस कारण से विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय में इस तरह की परियोजनाएं लगाने से पहले डिजास्टर रिस्क एनालिसिस करना चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय की नाजुक पहाड़ियों में लापरवाही से किया गया निर्माण, वनों की कटाई और पर्यावरण नियमों का अनुपालन न करने के कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, और जलवायु परिवर्तन इस जोखिम को और बढ़ा रहा है।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के विश्लेषण के अनुसार, कुल्लू जिले के पलचान क्षेत्र में 25-26 जुलाई की रात को “बादल फटने से अचानक आई बाढ़” के कारण दो हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को काफी नुकसान हुआ। सेराई और ब्यास नदियों पर स्थित यह दोनों परियोजनाएं निजी कंपनियों की हैं।
कुल्लू जिले में ब्यास नदी के बेसिन में छह परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हो गईं, जबकि शिमला जिले की रामपुर तहसील में सतलज नदी बेसिन के घनवी खड्ड और समेज खड्ड में सात परियोजनाएं प्रभावित हुईं। मीडिया ख़बरों के अनुसार, 31 जुलाई-1 अगस्त को अचानक आई बाढ़ में सुमेज़ परियोजना के कम से कम आठ श्रमिकों की मौत हो गई।
क्लाइमेट फाइनेंस: अमीरों पर टैक्स लगाकर हर साल जुटाए जा सकते हैं 2 लाख करोड़ डॉलर
एक नए अध्ययन में सामने आया है कि स्पेन की तरह यदि सभी देश अपने 0.5% सबसे अमीर परिवारों पर सपंत्ति कर लगा दें तो वह हर साल 2.1 लाख करोड़ डॉलर जुटा सकते हैं। विकासशील देशों को सालाना जितना क्लाइमेट फाइनेंस चाहिए, यह राशि उसकी दोगुनी है। क्लाइमेट फाइनेंस पर चर्चा इस वर्ष कॉप29 वार्ता के केंद्र में हो सकती है।
भारत अपने 0.5% सबसे अमीर नागरिकों पर टैक्स लगाकर प्रति वर्ष 8,610 करोड़ डॉलर जुटा सकता है।
यह अध्ययन टैक्स जस्टिस नेटवर्क ने किया है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि हर देश अपने सबसे अमीर 0.5% परिवारों की संपत्ति पर 1.7% से 3.5% की मामूली दर से कर लगाकर व्यक्तिगत रूप से कितना राजस्व जुटा सकता है। यह संपत्ति कर इन परिवारों की पूरी संपत्ति के बजाय केवल उसके ऊपरी भाग पर लागू होगा।
जी20 देशों में भी अमीरों पर कर लगाने की मांग बढ़ रही है। इस साल की शुरुआत में ब्राजील, जर्मनी, स्पेन और दक्षिण अफ्रीका ने एक निष्पक्ष कर प्रणाली के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, ताकि गरीबी और जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रति वर्ष 250 बिलियन पाउंड अतिरिक्त मुहैया कराए जा सकें।
सत्रह जी20 देशों में किए गए एक हालिया सर्वे में पाया गया कि उन देशों के अधिकांश वयस्क नागरिक ऐसी नीति का समर्थन करते हैं जिसमें देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जीवनशैली में बड़े बदलाव लाने के लिए अमीरों पर अधिक संपत्ति कर लगाया जाए।
स्विट्ज़रलैंड और कनाडा ने रखा क्लाइमेट फाइनेंस डोनर्स की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव
दुनियाभर के राजनयिक अगले महीने संयुक्त राष्ट्र के नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर चर्चा के लिए एकत्रित होंगे। लेकिन क्लाइमेट फाइनेंस किन देशों को देना है इसपर अभी भी विवाद जारी है। विकासशील देश चाहते हैं कि यथास्थिति बनी रहे, यानि 1992 में यूएन क्लाइमेट संधि अपनाने के समय जिन देशों को औद्योगिक घोषित किया गया था वही क्लाइमेट फाइनेंस दें। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई विकसित देशों का कहना है कि पिछले तीन दशकों में स्थिति बहुत बदल चुकी है, इसलिए डोनर्स की सूची में विस्तार करना चाहिए। सभीका ध्यान मुख्य रूप से चीन पर है।
ऐसी में स्विट्ज़रलैंड और कनाडा ने डोनर्स का चुनाव करने के लिए दो अलग-अलग प्रस्ताव रखे हैं। स्विट्ज़रलैंड के प्रस्ताव में दो अलग-अलग मानक हैं। पहले मानक में दस सबसे बड़े वर्तमान उत्सर्जक शामिल हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) — क्रय शक्ति समता के समायोजन के बाद — $22,000 से अधिक है। इस मानक के अनुसार सऊदी अरब और रूस डोनर्स की सूची में शामिल होंगे। अगर इसकी गणना वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय डॉलर के आधार पर की जाती है, तो चीन भी इस सूची में होगा।
स्विस प्रस्ताव के दूसरे मानक के अनुसार ऐसे देश डोनर्स होने चाहिए जिनका संचयी और वर्तमान उत्सर्जन प्रति व्यक्ति कम से कम 250 टन है और जीएनआई प्रति व्यक्ति 40,000 डॉलर से अधिक है।
इस मानक के अनुसार इस सूची में दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, इज़राइल, चेकिया और पोलैंड के साथ कतर, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन भी आ जाएंगे। वहीं कनाडा के प्रस्ताव में शीर्ष दस उत्सर्जक तो हैं ही बल्कि लेकिन प्रति व्यक्ति जीएनआई सीमा $20,000 से थोड़ी कम है। इस कारण से इसमें चीन भी शामिल होगा भले ही जीएनआई की गणना कैसे भी की जाए।
भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील और ईरान जैसे बड़ी आबादी वाले उत्सर्जक इन सूचियों से बाहर हैं क्योंकि विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार उनके निवासियों की औसत संपत्ति तय सीमा से कम है।
बंदरगाहों पर ग्रीन टग नौकाएं चलाने के लिए सरकार ने शुरू किया कार्यक्रम
केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (जीटीटीपी) लॉन्च किया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य है पारंपरिक ईंधन-आधारित हार्बर टग नौकाओं को सस्टेनेबल हरित वाहनों में परिवर्तित किया जाए।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इसके लिए 1,000 करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। जीटीटीपी का पहला चरण 1 अक्टूबर, 2024 को शुरू होगा और 31 दिसंबर, 2027 तक जारी रहेगा।
बयान में कहा गया है कि “चार प्रमुख बंदरगाह — जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह प्राधिकरण, दीनदयाल बंदरगाह प्राधिकरण, पारादीप बंदरगाह प्राधिकरण, और वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण — कम से कम दो ग्रीन टगबोट ख़रीदेंगे या किराए पर लेंगे”। इसमें कहा गया है कि टग नौकाओं का पहला सेट बैटरी-इलेक्ट्रिक होगा, और जैसे-जैसे उद्योग का विकास होगा वैसे हाइब्रिड, मेथनॉल और ग्रीन हाइड्रोजन जैसी अन्य उभरती हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने का भी प्रावधान है।
इस कार्यक्रम के तहत सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रमुख भारतीय बंदरगाहों पर संचालित सभी टग नौकाएं ग्रीन हों।
मानसून के बाद कूनो में खुले छोड़ दिए जाएंगे 25 चीते
मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में साल भर पहले स्वास्थ्य जांच और निगरानी के लिए जिन अफ़्रीकी चीतों को बाड़ों में वापस ले जाया गया था, उन्हें मानसून ख़त्म होने के बाद जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से खबर दी कि सभी 25 चीते — 13 वयस्क और 12 शावक — स्वस्थ हैं। शुरुआत में कुछ चीतों को जंगल में छोड़ दिया गया था, लेकिन तीन चीतों की मौत के बाद पिछले साल अगस्त में उन्हें वापस उनके बाड़ों में ले जाया गया।
प्रोजेक्ट चीता पर सरकार की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, चीतों की मौत सेप्टिसीमिया के कारण हुई थी। चूंकि जून से अगस्त के दौरान अफ्रीका में सर्दी पड़ती है, इसलिए इसके पूर्वानुमान के कारण चीतों की पीठ और गर्दन पर सर्दियों के मोटे कोट विकसित हो गए थे, जिसके नीचे घाव होने के कारण संक्रमण हो गया और उनकी मौत हो गई।
अबतक अफ्रीका से लाए गए सात वयस्क चीतों और भारत में जन्मे पांच शावकों की मौत हो चुकी है। अब कूनो पार्क में शावकों समेत कुल 25 चीते हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़
-
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
-
बाकू वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर नहीं बन पाई सहमति