देश के उत्तर और पश्चिम में कई राज्यों में भारी बारिश और बाढ़ ने जीवन को तहस नहस किया है तो वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जुलाई के महीने में भी भीषण गर्मी ने बुरा हाल कर रखा है।
दिल्ली में यमुना में उफान के बाद उसका जलस्तर थोड़ा कम हुआ है लेकिन लेकिन लगातार हो रही बारिश से चिंताएं बढ़ रही हैं। वहीं हिंडन नदी में आई बाढ़ के चलते ग्रेटर नोएडा के सुतियाना गांव के पास डंपिंग यार्ड में खड़ी 350 कारें पानी में डूब गईं। दिल्ली पहले से ही अभूतपूर्व जलजमाव और बाढ़ से जूझ रही है, जिसके कारण 27,000 से अधिक लोगों को उनके घरों से निकाला गया है और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ है। विशेषज्ञों ने दिल्ली की बाढ़ के लिए यमुना के फ्लडप्लेन्स पर अतिक्रमण, थोड़े समय के भीतर अत्यधिक वर्षा और गाद जमा होने को जिम्मेदार ठहराया है।
वहीं पिछले कुछ हफ़्तों से भारी बारिश से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश में बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं से भारी नुकसान हुआ है। आंकड़ों के अनुसार, 24 जून को मानसून की शुरुआत के बाद से, हिमाचल प्रदेश में लगभग 652 घर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, जबकि 236 दुकानों और 2,037 गौशालाओं के अलावा 6,686 आवास आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
बुधवार को शिमला ज़िले में बादल फटने से एक प्राथमिक पाठशाला एक युवक एवं महिला मंडल भवन, तीन लोगों के मकान और तीन गौशालाएं बह गए। ज्यूरी के समीप कुन्नी और बधाल के समीप नैनी में भी बाढ़ आने से लोगों के बगीचों को काफी क्षति हुई है। आईएमडी शिमला के प्रमुख सुरेंद्र पॉल ने कहा, “अगर हम पिछले 100 सालों के रिकॉर्ड को देखें, तो यह साल सबसे अधिक वर्षा वाला होगा, इसने राज्य में अब तक के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।”
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अंतरिम सहायता के रूप में केंद्र से ₹2,000 करोड़ की मांग की है और कहा है कि बाढ़ पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने के लिए राहत मैनुअल में बदलाव किया जाएगा।
उत्तराखंड में भी बारिश से भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं हुई हैं। हरिद्वार में बाढ़ से करीब 53,000 हेक्टेयर फसलें बर्बाद हो गईं, वहीं बद्रीनाथ और यमुनोत्री हाइवे पर भूस्खलन से यात्राएं अवरुद्ध हो गईं। न्यू टिहरी और दूसरे कई जिलों में फंसे हुए सैलानियों को भी सुरक्षित निकला गया।
महाराष्ट्र में बारिश के चलते रायगढ़ जिले में पिछले हफ्ते इरशालवाड़ी गांव में भारी भूस्खलन हुआ, जिसमें 27 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घर नष्ट हो गए। यवतमाल जिले में भी भारी बारिश से बाढ़ जैसे स्थिति उत्पन्न हो गई, और फंसे हुए लोगों को निकालने लिए वायुसेना के हेलीकॉप्टर की मदद लेनी पड़ी।
मुंबई में भी पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण कई जगहों पर सड़कों और रेलवे ट्रैक पर जलजमाव हुआ जिससे लोगों को ट्रैफिक जाम और लोकल ट्रेनों में देरी से जूझना पड़ा। अनुमान है कि आगामी कुछ दिनों तक मुंबई में बारिश जारी रहेगी।
गुजरात के कुछ हिस्सों में भी पिछले दिनों लगातार भारी बारिश हुई, जिसके परिणामस्वरूप सौराष्ट्र और कच्छ के निचले इलाकों में बाढ़ आ गई। अहमदाबाद एयरपोर्ट पर भी भारी जलजमाव की तस्वीरें सामने आईं। जूनागढ़ में रिहायशी इलाकों में भीषण बाढ़ आने के कारण कई मवेशी और वाहन पानी के तेज बहाव में बह गए। वहीं राजकोट में लोगों को गंभीर जलजमाव का सामना करना पड़ा।
कर्नाटक में भी सक्रिय मानसून ने बाढ़ का खतरा पैदा कर दिया है और भारी बारिश के बाद कई छोटी नदियां उफान पर हैं। कई जिलों में स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है और तटीय इलाकों में रेड अलर्ट जारी किया गया है।
दूसरी और उत्तर प्रदेश और बिहार में उमस भरी गर्मी का प्रकोप जारी है। मौसम विभाग का कहना है कि चूंकि मानसून की टर्फ लाइन अभी भी मध्य प्रदेश के पास है इसलिए उत्तर प्रदेश में बारिश नहीं हो रही है। मानसून के उत्तरी भाग में पहुंचने पर प्रदेश के लोग राहत की उम्मीद कर सकते हैं। अनुमान था कि राज्य में 22 जुलाई के बाद गर्मी से राहत मिलेगी लेकिन पूर्वांचल के ज्यादातर जिलों में अधिकतम तापमान 35-36 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है।
वहीं बारिश की राह देख रहे बिहार में भी आने वाले दिनों में गर्मी और उमस से राहत मिलने की उम्मीद कम है। प्रदेश में बीते दो महीनों के दौरान केवल 340 मिलीमीटर वर्षा हुई है। ऐसे में धान की फसल पर भी संकट मंडरा रहा है।
72% बाढ़ संवेदनशील जिलों में से केवल 25% के पास है प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: रिपोर्ट
दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी इनवायरेंमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्लू) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 72% ज़िलों में अत्यधिक बाढ़ का ख़तरा है लेकिन उनमें से केवल 25% ज़िलों में ही प्रारंभिक बाढ़ चेतावनी प्रणाली (अर्ली वॉर्निंग सिस्टम) है।
इसका मतलब है कि भारत की दो तिहाई आबादी को बाढ़ का ख़तरा है लेकिन उनमें से केवल एक तिहाई ही ऐसे हैं जिन्हें पूर्व चेतावनी प्रणाली की सुरक्षा उपलब्ध है।
हिमाचल प्रदेश जहां कि इस साल बाढ़ से भारी तबाही हुई है वह उन राज्यों में है जहां अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की सबसे कम कवरेज है। हालांकि उत्तराखंड जो कि बाढ़ से सामान्य रूप से प्रभावित हुआ है वहां बाढ़ चेतावनी सिस्टम बेहतर है।
सीईईडब्लू के मुताबिक देश के 12 राज्यों — यूपी, हिमाचल प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और गोवा – में भारी बाढ़ का ख़तरा है। लेकिन इनमें से केवल तीन राज्यों बिहार, असम और यूपी में चेतावनी सिस्टम की उच्च उपलब्धता है।
चरम मौसमी घटनाएं: मौतें घटीं, पर संपत्ति का नुकसान बढ़ा
उधर मौसम विभाग ने कहा है कि भारत में चरम मौसमी घटनाओं के कारण होने वाली मौत की घटनाएं बहुत कम हो गई हैं, हालांकि सामाजिक आर्थिक तरक्की के कारण संपत्ति का नुकसान बढ़ा है। यह बात मौसम विभाग के निदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कही है।
महापात्र ने 2013 की केदारनाथ आपदा की तुलना इस साल हिमाचल में बाढ़ से करते हुए कहा कि पूर्व चेतावनी प्रणाली में बड़ा सुधार हुआ है। साथ ही, आपदा प्रबंध एजेंसियों की तैयारियों, रोकथाम और शमन में काफी सुधार हुआ है।
बिजली गिरने की घटनाओं में सालाना करीब 2,500 लोगों की मौत पर महापात्र ने कहा कि इससे निपटना अब भी एक चुनौती है, जबकि चक्रवातों से निपटने में कामयाबी हासिल कर ली गई है।
उन्होंने कहा कि बिजली गिरने की घटनाएं काफी कम समय में होती हैं और इसके पूर्वानुमान करना बहुत कठिन है।
जुलाई होगा अब तक का सबसे गर्म महीना, नासा के वैज्ञानिक की चेतावनी
जुलाई इतिहास का अब तक का सबसे गर्म महीना हो सकता है। यह भविष्यवाणी अमेरिकी अनुसंधान एजेंसी नासा के गोडार्ट इंस्टिट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज़ के निदेशक वैज्ञानिक गाविन शिमिड ने की है। अमेरिका के दक्षिणी हिस्से में लगातार हीटवेव के प्रभाव का अध्ययन कर, शिमिड ने कहा कि अगर पिछले हज़ारों नहीं तो सैकड़ों सालों में यह सबसे गर्म महीना ज़रूर होना चाहिए।
अन्य वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है कि जुलाई 2023 इतिहास का सबसे गर्म महीना होने की राह पर है। इसपर टिपण्णी करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग का युग समाप्त हो गया है और “ग्लोबल बॉयलिंग का युग शुरू हो गया है”।
“जलवायु परिवर्तन भयावह है, और यह तो बस शुरुआत है,” गुटेरेश ने कहा। “वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना और जलवायु परिवर्तन की सबसे बुरी स्थिति से बचना अभी भी संभव है। लेकिन उसके लिए तत्काल बड़े क्लाइमेट एक्शन की जरूरत है।”
शिमिड का कहना है कि हीटवेव निश्चित रूप से इस बात की संभावना को बढ़ा रही हैं कि साल 2023 इतिहास का सबसे गर्म साल बन जाए।
उनकी गणना बताती है कि इस बात की 50 प्रतिशत संभावना है कि धरती पर 2023 सबसे गर्म साल होगा जबकि दूसरे मॉडल इस संभावना को 80% तक बता रहे हैं। महत्वपूर्ण है कि बीती 3 जुलाई को धरती का औसत तापमान अब के इतिहास में सबसे अधिक रहा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने पहले ही इस बात की आशंका जताई है कि 2025 तक धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री होने का रिकॉर्ड टूट जाएगा।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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