यूरोपियन यूनियन ने अगले 7 साल में कोरोना से लड़ने के लिये एक आर्थिक रिकवरी प्लान बनाया है। इसमें 2027 तक कुल 75,000 करोड़ यूरो खर्च किये जायेंगे ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे। इस पैकेज को मिलाकर कुल 1.62 लाख करोड़ यूरो खर्च होंगे लेकिन शर्त यह है कि 25% रकम ऐसी होगी जो क्लाइमेट के कार्यक्रमों में खर्च हो। जहां एक ओर मोटे तौर पर इस कदम को क्लाइमेट की लड़ाई के हित में देखा जा रहा है लेकिन जानकार कहते हैं कि फाइन प्रिंट में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की अनदेखी की गई है।
EIA नियमों को क्षेत्रीय भाषा में प्रकाशित करे सरकार: कर्नाटक हाइकोर्ट
अदालत का एक फैसला पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिये बड़ी जीत कहा जा रहा है। कर्नाटक हाइकोर्ट ने कहा है कि अगर केंद्र सरकार ने पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के ताज़ा ड्राफ्ट को क्षेत्रीय भाषाओं में नहीं छापा और प्रभावित होने वाले समूहों को इस पर अपनी राय देने के लिये पर्याप्त समय नहीं दिया तो कोर्ट प्रस्तावित क़ानून पर रोक लगाने पर विचार कर सकता है। कोर्ट ने यह चेतावनी एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा दायर याचिका की सुनवाई में दी। इस बीच मोदी सरकार ने उस वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया जिसने 2020 के ड्राफ्ट EIA नोटिफिकेशन की आलोचना की।
विश्व आर्थिक पैकजों में नहीं हो रही जलवायु परिवर्तन की परवाह: शोध
अध्ययन बताते हैं कि तमाम दबाव के बावजूद दुनिया भर की सरकारों ने अपने आर्थिक रिकवरी पैकेज में क्लाइमेट चेंज जैसे विषय को नज़रअंदाज़ किया है और व्यापार को ही तरजीह दी है। ऊर्जा नीति पर नज़र रखने वाले एक डाटाबेस ने बताया है कि जी-20 समूह के देशों ने जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस) पर आधारित और उसे बढ़ावा देने वाले सेक्टरों को $15100 करोड़ की मदद की है जबकि साफ ऊर्जा सेक्टर को केवल $8900 करोड़ दिये हैं। एक अन्य शोध में (विवड इकोनोमिक्स) पाया गया है कि 17 बड़े देशों के रिकवरी पैकेज में $ 3.5 लाख करोड़ उन सेक्टरों को दिये जा रहे हैं जिनके कामकाज से पर्यावरण पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है। उधर ब्लूमबर्ग न्यू एनर्ज़ी के मुताबिक यूरोप अपनी जीडीपी का 0.31% ग्रीन एनर्ज़ी पर लगा रहा है जबकि उत्तरी अमेरिका और एशिया के देश जीडीपी का 0.01% ही इस मद में खर्च कर रहे हैं।
जीवाश्म ईंधन की शब्दावली बदलना चाहता है सऊदी अरब
इस साल जी-20 देशों सम्मेलन का मेजबान सऊदी अरब चाहता है कि एक्सपर्ट ब्रीफिंग से ‘जीवाश्म ईंधन सब्सिडी’ शब्द समूह को इस्तेमाल न किया जाये और इसे ‘जीवाश्म ईंधन इन्सेन्टिव’ कहा जाये। महत्वपूर्ण है कि जी-20 देशों ने 2009 में ही जीवाश्म ईंधन को खत्म करने का इरादा किया था उसके बावजूद सऊदी अरब ने इस बदलाव के लिये प्रस्ताव किया है।
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