बिहार में इस साल डेंगू का ज़बरदस्त प्रकोप दिख रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 10 अक्टूबर तक ही 9,235 मामले सामने आ चुके थे। अक्टूबर के महीने में पहले 10 दिनों में ही करीब 2,500 केस सामने आये। बिहार में सितंबर के महीने में 6 हज़ार से अधिक मामले दर्ज हुए थे जो 2022 में इसी महीने में सामने आए डेंगू के मामलों से करीब 3 गुना अधिक है।
देश के दूसरे राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल और उत्तराखंड में भी डेंगू के मार रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बॉर्न डिज़ीज़ के मुताबिक इस साल पूरे देश में करीब 1 लाख मामले सितंबर के मध्य तक सामने आ चुके थे। पिछले साल डेंगू के कुल मामलों की संख्या सवा दो लाख से ऊपर रही थी।
उधर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भी इस साल अब तक डेंगू के 2 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज किये जा चुके हैं और सितंबर के अंत तक मरने वालों की संख्या 1000 से अधिक हो गई।
इस साल सामान्य से कम रहा मानसून, कुल 94% ही बरसा
इस साल 30 सितंबर को खत्म हुए मॉनसून सीज़न के बाद मौसम विभाग द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि देश में बारिश सामान्य से 6% प्रतिशत कम हुई। मौसम विभाग के मुताबिक इस साल एल निनो प्रभाव के कारण मॉनसून में कमी अपेक्षित थी लेकिन कुछ सकारात्मक कारणों की वजह से इस कमी की भरपाई हुई और 1 जून से 30 सितंबर के बीच कुल मॉनसून 94% दर्ज किया गया। मौसम विभाग ने अक्टूबर में सामान्य से अधिक तापमान की चेतावनी भी दी है।
चरम मौसमी आपदाओं की मार, 6 साल में हर रोज़ 20,000 बच्चे विस्थापित
नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक चरम मौसमी घटनाओं से हर घंटे 16 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर क्षति हो रही है यानी करीब 130 करोड़ रुपए। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक 1970 के बाद से अब तक एक्सट्रीम वेदर डिजास्टर्स के कारण होने वाली क्षति 7 गुना बढ़ गई है।
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट बताती है कि मौसम संबंधी आपदाओं के कारण पिछले 6 सालों में 13.4 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं जिनमें से 32 प्रतिशत यानी करीब 4.3 करोड़ बच्चे हैं। यह बात यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रन्स फंड (यूनिसेफ) ने 6 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में कही है। इसका मतलब है कि 2016-21 के बीच 20,000 बच्चे मौसमी आपदाओं के कारण हर रोज़ विस्थापित हुए। रिपोर्ट कहती है कि हर 10 विस्थापितों में से 3 बच्चे हैं और सबसे अधिक विस्थापन चक्रवाती तूफानों और बाढ़ की घटनाओं के कारण झेलना पड़ा है।
ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर को क्लाइमेट प्रभावों से $300 बिलियन का नुकसान
बिगड़ते क्लाइमेट प्रभावों के कारण पूरी दुनिया में इंफ्रास्ट्रक्चर को हर साल 300 बिलियन डॉलर (यानी 24 लाख करोड़ रुपए) की क्षति हो रही है। कोअलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) की द्विवार्षिकी रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
अगर स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में होने वाले नुकसान को जोड़ दें तो यह नुकसान 845 बिलियन डालर यानी (70 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच जाता है। यह संख्या 2021-22 में दुनिया के जीडीपी में हुए इजाफे के सातवें हिस्से के बराबर है।
रिपोर्ट में कहा गया है: एक्सट्रीम वेदर से उत्पन्न ख़तरे आपदा संकट, संपत्ति की क्षति और सेवाओं में बाधा को बढ़ाते हैं और इससे मौजूदा ढांचे के काम बंद हो सकता है। रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि सालाना औसत क्षति (एएएल) का 30% जियोलॉजिकल हेजार्ड (बाढ़, इरोज़न और भूकंप जैसी आपदाएं) के कारण है लेकिन 70% क्षति के लिए क्लाइमेट हैजार्ड ज़िम्मेदार हैं।
सीडीआरआई दुनिया भर के देशों का एक साझा कार्यक्रम है जिसका लॉन्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट एक्शन समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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