क्लाइमेट फाइनेंस के अलावा लॉस एंड डैमेज फंड की मांग पिछले करीब 30 सालों से हो रही है। आखिरकार ‘विशेष रूप से संकटग्रस्त देशों के लिए’ अब इस फंड की स्थापना हो गई है जो इस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की एकमात्र और सबसे बड़ी उपलब्धि रही।
मानव जनित ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव जलवायु आपदाओं (जैसे अप्रत्याशित बाढ़, सूखा और चक्रवातों के रूप में) के रूप में दिख रहे हैं। इनसे होने जान और माल का नुकसान हानि और क्षति (लॉस एंड डैमेज) में गिना जाता है। शर्म-अल-शेख में हुए समझौते की सबसे बड़ी और शायद एकमात्र कामयाबी लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना है जिसकी मांग विकासशील देशों की लंबे समय से कर रहे थे।
हालांकि समझौते की भाषा के हिसाब से यह फंड “विशेषरूप से संकटग्रस्त देशों” तक ही सीमित रखा जाएगा और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश को इसका फायदा मिलेगा या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है।
सम्मेलन में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से जुड़ी हानि और क्षति के बढ़ते दायरे पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
इन प्रभावों के परिणामस्वरूप विनाशकारी आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसान हो रहे हैं, जैसे जबरन विस्थापन और सांस्कृतिक विरासत, मानव गतिशीलता और स्थानीय समुदायों के जीवन और आजीविका पर प्रभाव आदि। हानि और क्षति से निबटने के लिए पर्याप्त और प्रभावी कार्रवाई के महत्व को रेखांकित किया गया।
हानि और क्षति से जुड़े उन वित्तीय नुकसानों पर भी गहरी चिंता व्यक्त की गई जिसका सामना विकासशील देश कर रहे हैं और जिसके कारण उनपर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति बाधित हो रही है।
पहली बार, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से जुड़ी हानि और क्षति का सामना करने के लिए फंड की व्यवस्था से संबंधित मामलों पर चर्चा का स्वागत किया गया।
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