दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्रियों द्वारा क्लाइमेट फाइनेंस पर तैयार की गई एक रिपोर्ट को जी-20 देशों की आलोचना के बाद कमजोर कर दिया गया। रिपोर्ट के पिछले मसौदे में करोड़पतियों पर 2 प्रतिशत टैक्स लगाने और क्लाइमेट फाइनेंस और ग्रीन इन्वेस्टमेंट से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए केंद्रीय बैंकों और विनियमन प्राधिकरणों की मदद लेने जैसे कुछ सुझाव थे जिन्हें बाद के संस्करणों में या तो हटा दिया गया या उनकी भाषा बदल दी गई।
जी-20 देशों के जलवायु और वित्त मंत्रालयों और केंद्रीय बैंकों के अधिकारी वाशिंगटन, डीसी में ‘जी-20 टास्कफोर्स ऑन अ ग्लोबल मोबिलाइजेशन अगेंस्ट क्लाइमेट चेंज (टीएफ-क्लीमा)’ की बैठक में शामिल हुए थे। वर्तमान जी-20 अध्यक्ष ब्राज़ील की इस पहल का उद्देश्य है जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जलवायु और वित्त अधिकारियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
इस बैठक में जी-20 देशों द्वारा ही कमीशन की गई इस रिपोर्ट पर चर्चा हुई, जो विशेषज्ञों के एक स्वतंत्र पैनल द्वारा तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट का उद्देश्य था विकासशील देशों की तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जलवायु वित्त को बढ़ाने के लिए रोडमैप प्रदान करना। लेकिन सदस्य देशों की प्रतिक्रिया के जवाब में रिपोर्ट को काफी कमजोर कर दिया गया।
कॉप-16: बायोडाइवर्सिटी लक्ष्यों के लिए वित्तीय संसाधन बढ़ाने की मांग
कोलंबिया में संयुक्त राष्ट्र बायोडाइवर्सिटी कांफ्रेंस (कॉप-16) शुरू हो चुकी है। इस सम्मलेन में लाइक-माइंडेड मेगाडायवर्स कंट्रीज़ (एलएमएमसी) ने वैश्विक जैव-विविधता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधनों में वृद्धि का आह्वान किया है। एलएमएमसी समृद्ध जैव विविधता वाले विकासशील देशों का गठबंधन है जिसका सदस्य भारत भी है। भारत ने अपने वक्तव्य में विकसित देशों से आग्रह किया है कि वह विकासशील देशों को उनके जैव विविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए तत्काल वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण संसाधन प्रदान करें।
एलएमएमसी देशों ने ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) द्वारा निर्धारित 2030 तक सालाना 200 अरब डॉलर जुटाने के वित्तीय लक्ष्य और उपलब्ध वास्तविक फंडिंग के बीच के अंतर की ओर ध्यान आकर्षित किया। एक नए विश्लेषण के अनुसार, अधिकांश विकसित देश बायोडाइवर्सिटी फाइनेंस में अपने “उचित योगदान” का 50% से कम दे रहे हैं।
एलएमएमसी देशों ने जैव-विविधता के लिए कॉप द्वारा प्रबंधित एक विशेष फंड बनाने का प्रस्ताव रखा। भारत ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क के अनुरूप जैव-विविधता की रक्षा के लिए अपनी राष्ट्रीय योजना को संशोधित किया है, जिसे सम्मेलन के दौरान जारी किया जाएगा।
2024 के अंत तक ब्रिक्स देशों की ऊर्जा क्षमता में जीवाश्म ईंधन का योगदान 50% से कम होगा: रिपोर्ट
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। अब, संयुक्त रूप से इन देशों की स्थापित ऊर्जा क्षमता में लगभग 50% योगदान नवीकरणीय स्रोतों का होगा। इस साल के अंत तक इन देशों की जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा पर निर्भरता 50% से कम हो जाएगी।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस वर्ष, चीन, भारत और ब्राजील में 190 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता — मुख्य रूप से पवन और सौर — पहले ही जोड़ी जा चुकी है। जबकि इसके विपरीत जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा में 72 गीगावाट की वृद्धि हुई है। साल के अंत तक, संयुक्त रूप से ब्रिक्स देशों की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2,289 गीगावाट होगी, जबकि जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा 2,245 गीगावाट होगी।
कॉप-29 से पहले नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य के किसी भी पहलू पर सहमति नहीं
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर चल रही बातचीत आम सहमति हासिल करने से बहुत दूर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले महीने बाकू में कॉप29 सम्मलेन में नए क्लाइमेट फाइनेंस समझौते पर चर्चा करने के लिए किसी भी पहलू पर कोई सहमति नहीं बनी है।
विभिन्न देश अभी भी न्यू कलेक्टिव क्वान्टीफाईड गोल (एनसीक्यूजी) के किसी भी पहलू पर सहमत नहीं हैं, जिसमें नए लक्ष्य की संरचना, मात्रा और वित्त के स्रोत शामिल हैं।
एनसीक्यूजी की संरचना के संबंध में अनिश्चितता है। यह स्पष्ट नहीं है कि इसे विकसित से विकासशील देशों की सहायता के लिए एकल वित्तीय लक्ष्य के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए या एक अधिक जटिल ढांचे के रूप में जिसमें विशिष्ट उप-लक्ष्यों के साथ वैश्विक निवेश लक्ष्य शामिल हों। ये उप-लक्ष्य विकासशील देशों की सहायता के उद्देश्य से क्लाइमेट फाइनेंस के विभिन्न स्रोतों, विषयगत उद्देश्यों और नीति मार्गदर्शन को संबोधित करेंगे।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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