कोयले से बिजली उत्पादन के इतिहास में ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि किसी साल की पहली छमाही में कोयले के नये पावर प्लांट खुले कम और पुराने बंद ज़्यादा हुए।
इस साल 1 जनवरी से 30 जून तक, जहाँ 18.3GW क्षमता के संयंत्रों ने काम करना शुरू किया तो वहीँ 21.2GW क्षमता के संयंत्र सेवानिवृत्त हुए। मतलब 2.9GW उत्पादन क्षमता की शुद्ध गिरावट। अमूमन आँकड़े इससे उलट रहते हैं।
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के कोल् पॉवर प्लांट ट्रैकर की ताज़ा रिपोर्ट में प्रकाशित विश्लेषण से ऊर्जा क्षेत्र के इस बड़े वैश्विक बदलाव का ख़ुलासा हुआ है।
कोविड महामारी से झूझते और अप्रत्याशित घटनाओं से भरे इस वर्ष के पहले छह महीनों के लिए दुनिया के कोयला बिजली उत्पादन उद्योग पर ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के विश्लेषण से निकले नतीजे से न सिर्फ़ दुनिया के ऊर्जा परिपेक्ष्य में होते बदलाव दिखाते हैं, बल्कि दुनिया भर में उत्सर्जन आंकड़ों की दशा और दिशा के लिए भी महत्वपूर्ण सिद्ध होते दिख रहे हैं। आख़िर पहली बार दुनिया में कोयला बिजली संयंत्रों की संख्या और क्षमता में कमी हो रही है।
अब बात अगर इस वैश्विक रिपोर्ट को एशिया के संदर्भ में देख कर की जाये तो बेहद रोचक निष्कर्ष निकलते हैं। मसलन, दक्षिण पूर्व एशिया, जिसे कई वर्षों से कोयला शक्ति के लिए सबसे मजबूत बाजारों में से एक माना जाता है, वहां कोयला बिजली संयंत्र उद्योग को सिकुड़ते देखा जा सकता है। और यह कमी चीन में कोयला बिजली संयंत्रों में बड़े इज़ाफे के बावजूद देखने को मिली है। जबकि चीन के बाहर संचालित कोयला बिजली की क्षमता 2018 में पहले से ही चरम पर है।
एक और उत्साहजनक तथ्य यह निकल कर आया है इस रिपोर्ट में कि प्रस्तावित नए थर्मल पॉवर प्लांट और उनके निर्माण की संख्या, वर्ष 2015 की तुलना में, 70 प्रतिशत कम हो गए हैं।
यहाँ चीन की बात करना ज़रूरी है क्योंकि चीन का इस गिरावट में कोई योगदान नहीं है और चीन तो अमादा है कोयले पर अपनी निर्भरता बढ़ाने के लिए। इस वर्ष अब तक चीन की कोयला बिजली संयंत्र पाइपलाइन का विस्तार प्रस्तावित क्षमता का 90 प्रतिशत (59.4GW में से 53.2GW) हो चुका है। वहीँ प्रस्तावित निर्माण का 86 प्रतिशत (15.8GW का 12.8GW) शुरू हो चुका है और नए संयंत्रों को खोलने के लक्ष्य का 62 प्रतिशत (18.3GW का 11.4 GW) पूरा हो चुका है। और यह तब है जब कोविड महामारी ने चीन के साथ साथ पूरी दुनिया को हिला कर रखा हुआ है।
आगे बात दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की करें तो बांग्लादेश और वियतनाम की शक्ल में दो प्रमुख कोयला बिजली बाज़ार दिखाई देते हैं। इन दोनों ही देशों के ऊर्जा मंत्रालयों के हालिया संकेतों से ऐसा लगता है कि दोनों ही देश अपनी नियोजित कोयला बिजली क्षमता में न सिर्फ़ कमी लाने की सोच रहे हैं, बल्कि अपनी नयी योजनाओं को स्थगित करने और रद्द करने तक पर विचार कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो हम चीन में होते घटनाक्रम के बावजूद, एशिया में कोयले की शक्ति को काफी, (33.4GW तक) घटता देखे पाएंगे।
बात एशिया की हो तो एक नज़र भारत पर डालना ज़रूरी है। रिपोर्ट की मानें तो भारत वैश्विक कोयला बिजली विकास में अपने हिस्से को लगातार कम कर रहा है। दो साल पहले, 2018 में, जहाँ विश्व पाइपलाइन में भारत की 17 प्रतिशत भागीदारी थी, वहीँ 2020 की पहली छमाही के अंत तक वो भागीदारी घट कर 12 प्रतिशत तक आ गयी है। कुछ साल पहले यह एक अकल्पनीय संभावना थी लेकिन इस साल की पहली छमाही में भारत में न सिर्फ़ इस क्षेत्र में कोई नया निर्माण नहीं हुआ, बल्कि भारत ने अपने कोयला बेड़े को 0.3GW तक सिकोड़ भी लिया। यह बेहद उत्साहजनक बात है।
और अंततः अब एक नज़र डाल लेनी चाहिए कुछ और निष्कर्ष जो एशियाई देशों के लिए बेहद प्रासंगिक हैं।शुरुआत करते हैं इस बात से कि इस साल कुल 1.0 GW की प्रस्तावित कोयला बिजली संयन्त्र प्रस्तावित हुए और उनमें से कुल 0.8 GW क्षमता का निर्माण 2020 की पहली छमाही में शुरू हुआ। साल 2015 के बाद से हर छह महीने में 2.9GW नए प्रस्तावों और 2.7GW नए निर्माण के एक क्षेत्रीय औसत से यह ताज़ा आंकड़ा 70 प्रतिशत की कमी बताता है।
कुल मिलाकर इस विश्लेषण में कई देशों को कोयला बिजली विकास योजनाओं को रद्द करते या उसपर बड़े सवाल उठाते देखा जा सकता है। मसलन मिस्र ने 6.6 GW की योजना रद्द कर दी तो पाकिस्तान ने 700MW का प्लांट रद्द किया। और वहीं बांग्लादेश और वियतनाम ने तो अपनी नियोजित क्षमता की योजनाओं को या तो रद्द किया या स्थगित किया या उसकी समीक्षा करने का सुझाव दिया है। ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के कोल् पॉवर प्लांट ट्रैकर के इस विश्लेषण से लगता है एशिया का कोयला बिजली संयंत्रों का बेड़ा ताश के पत्तों से बने घर की तरह जल्द ही ध्वस्त हो सकता है।
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