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जलवायु परिवर्तन हम सब की ही ग़लतियों का नतीजा है!

हाइलाइट
– इस सदी के अंत तक भारत का औसत तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की संभावना है
– जहाँ दुनिया भर के समुद्रों की सतह का औसत तापमान 1951-2015 के बीच 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, हमारे उष्णकटिबंधीय भारतीय महासागर का तापमान उसी दौरान 1.0 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है
– हिन्द महासागर के ऊपरी 700 मीटर के तापमान में तो पिछले छह दशक में अचानक ही उछाल आया है
– पिछले दो दशकों में समुद्री तूफानों की आवृत्ति और तीव्रता में एक ख़ास तेज़ी अनुभव की गयी है
– मोंसूनी बरसात में पिछले छह दशक में 6 प्रतिशत की गिरावट आयी है मध्य भारत, दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत में सूखे की न सिर्फ़ आमद बढ़ी है, उसकी तीव्रता भी बढ़ी है
– सूखे का असर झेलने वाले क्षेत्र में भी 1.3 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है ग्लोबल वार्मिंग के चलते महाद्वीपीय बर्फ के पिघलने और समुद्र के पानी के तापीय विस्तार के चलते पूरी दुनिया में समुद्र स्तर बढ़ गया है
– हिंदू कुश हिमालय ने 1951–2014 के दौरान लगभग 1.3 ° C तापमान वृद्धि का अनुभव किया
– सदी के अंत तक, हिन्दू कुश पहाड़ों की सतह का भी औसत तापमान 5.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जायेगा।

ख़वातीन-ओ-हज़रात, ये जान लीजिये कि ये जो आप साल-दर-साल बढ़ती भीषण गर्मी,  कहीं इतनी ज्यादा बरसात, की बाढ़ आ जाये तो कहीं सूखा पड़ना, नित नये समुद्री तूफ़ान वगैरह, सारी परेशानियों की वजह, हमारी ग़लतियों के नतीजे से होने वाला जलवायु परिवर्तन है। बल्कि अब तो इस बात की तसदीक़ विज्ञान कर रहा है।

हाल ही में भारत सरकार ने भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का एक आंकलन करवाया। और उस आंकलन के निष्कर्ष में ये साफ़ निकल कर आया है कि भारत, और उसके इर्दगिर्द, के पर्यावरण में आ रहे नकारात्मक बदलाव सीधे तौर पर इन्सानों की ग़ैर ज़िम्मेदाराना हरकतों का नतीजा हैं।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा जारी की गयी अपनी तरह की इस पहली रिपोर्ट को भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे, के अंतर्गत सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किया गया है।

रिपोर्ट की मानें तो अगर हम सबने ध्यान नहीं दिया तो इस सदी के अंत तक भारत का औसत तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की संभावना है। अब आगे पढने से पहले ज़रा अपने घर के उस बच्चे की शक्ल याद कर लीजिये जो हमारे आपके न रहने पर, सदी के अंत में हमारे कर्मों को भुगत रहा होगा।

साढ़े चार डिग्री की इस बढ़त का असर समझ रहे हैं आप? नहीं? तो ये जान लीजिये कि 1901 से लेकर 2018 तक, मतलब 115 सालों में तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। जब 115 साल में 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, तब तो इतना बुरा हाल है हमारा। हर साल गर्मी के मौसम में हम झुलस जा रहे हैं और साल दर साल यह तपिश बढ़ती ही जा रही है।  

यहाँ ये भी जान लीजिये कि इस 0.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़त में सबसे ज़्यादा इज़ाफ़ा पिछले 30-40 सालों में हुआ है, वो भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से। सोचिये जब गर्मी की रफ़्तार और असर अभी ऐसा है तो इस सदी के अंत तक जब यहाँ तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जायेगा, तब क्या हाल होगा।

क्या होगा हमारी अगली नस्ल का? इस सवाल के ज़हन में आते ही रूह काँप उठती है।

खैर, आगे बात करें तो रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ़ ज़मीन ही नहीं, हमारे सागर का तापमान भी बढ़ गया है और अगर नहीं कुछ किया तो बढ़ता ही जायेगा। जहाँ दुनिया भर के समुद्रों की सतह का औसत तापमान 1951-2015 के बीच 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, हमारे उष्णकटिबंधीय भारतीय महासागर का तापमान उसी दौरान 1.0 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। इससे साफ़ होता है कि आखिर क्यों अब समुद्री तूफानों की आमद और तीव्रता बढ़ती ही जा रही है। हिन्द महासागर के ऊपरी 700 मीटर के तापमान में तो पिछले छह दशक में अचानक ही उछाल आया है और यह एक घातक संकेत है। घातक इसलिए क्योंकि यहाँ भी तार आपसे और हमसे जुड़े हैं।

आगे यह रिपोर्ट बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते महाद्वीपीय बर्फ के पिघलने और समुद्र के पानी के तापीय विस्तार के चलते पूरी दुनिया में समुद्र स्तर बढ़ गया है। लेकिन स्थिति की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि उत्तर हिंद महासागर में समुद्र-स्तर की वृद्धि 1874-2004 के दौरान जहाँ प्रति वर्ष 1.06-1.75 मिमी की दर से हुई, वहीँ पिछले ढाई दशकों (1993-2017) में इसमें वृद्धि प्रति वर्ष 3.3 मिमी की दर से हुई है। वैज्ञानिकों की मानें तो इक्कीसवीं सदी के अंत तक उत्तर हिन्द महासागर में समुद्र स्तर का बढ़ कर लगभग 300 मिमी तक हो जाने का अनुमान है।

समुद्री क्षेत्रों की बात हो तो समुद्री तूफानों की चर्चा बेहद ज़रूरी है। हाल ही में अम्फ़ान और निसर्ग से हमारे तटीय क्षेत्र जूझ चुके हैं। इन तूफानों का इतनी जल्दी और इस तीव्रता से आना चिंता का विषय है। इस रिपोर्ट में भी इसी तीव्रता के बढ़ने का इशारा किया गया है। वैज्ञानिकों ने पाया कि पिछले दो दशकों में तो कुछ ज़्यादा ही तेज़ी अनुभव की गयी है इनकी तीव्रता में।

बाहरहाल, क्योंकि आजकल मौसम बरसात का है तो चलिए मानसून (जून-सितम्बर) की बात करें। इस सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले छह दशक में मानसून में 6 प्रतिशत की गिरावट आयी है। इसमें सबसे ज़्यादा गिरावट पश्चिमी घाट के इलाकों और खेती के लिए मुफ़ीद गंगा के मैदानी इलाकों में दर्ज की गयी है।

मतलब इसका सीधा असर देश की खेती-किसानी और उपज-पैदावार पर पड़ेगा। बरसात में आयी इस कमी की वजह बताई गयी है उत्तरी गोलार्ध के ऊपर मानव-जनित एयरोसोल और ग्रीन हाउस गैसों से होने वाला विकिरण। और इन सब वजहों से अगर बरसात में कमी आयी है तो उसकी तीव्रता में बढ़ोतरी भी हुई है। अब समझे आप क्यों अब बरसात होती है तो इतनी होती है कि जीना दूभर हो जाये, और सीज़न के बावजूद जब नहीं होती तो भी जीना मुश्किल हो जाता है।

बात यहाँ बरसात न होने की हुई तो चलिए अब आपको सूखे के बारे में रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं। रिपोर्ट में ये साफ़ तौर पर बताया गया है कि मध्य भारत, दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत में सूखे की न सिर्फ़ आमद बढ़ी है, उसकी तीव्रता भी बढ़ी है। सबसे चिंताजनक बात है कि सूखे का असर झेलने वाले क्षेत्र में भी 1.3 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। जहाँ अब तक हर दशक में लगभग दो बार सूखा पड़ता था, वहीँ जलवायु मॉडल अनुमानों के अनुसार इक्कीसवीं सदी के अंत तक भारत में सूखे की स्थिति न सिर्फ़ दशक में दो बार से अधिक के औसत तक जाएगी, उसकी तीव्रता और क्षेत्र में वृद्धि की भी बहुत संभावना है।

अंततः, सूखे और गर्मी से चलते हैं पहाड़ों की ओर। जलवायु परिवर्तन का असर वहां भी देखने को मिला वैज्ञानिकों को। हिंदू कुश हिमालय ने 1951–2014 के दौरान लगभग 1.3 ° C तापमान वृद्धि का अनुभव किया। साथ ही हिन्दू कुश के कई क्षेत्रों में बर्फबारी में गिरावट आई है। लेकिन इसके विपरीत, उच्च-ऊंचाई वाले काराकोरम हिमालय ने सर्दियों में ज़्यादा बर्फबारी का भी अनुभव किया है जिसकी वजह से ग्लेशियरों के पिघलने की गति पर लगाम लगी है। लेकिन इक्कीसवीं सदी के अंत तक, हिन्दू कुश पहाड़ों की सतह का भी औसत तापमान 5.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जायेगा।

कुल मिलाकर कहें तो शोधकर्ताओं के पास भरपूर वैज्ञानिक साक्ष्य हैं इस बात को सिद्ध करने के लिए कि क्षेत्रीय जलवायु में इन परिवर्तनों को मानवीय गतिविधियों ने प्रभावित किया है।

सोचने बैठिये तो एहसास होता है कि कहाँ से कहाँ आ गए हम। समुद्र, पहाड़, बरसात, नदी बर्फ़, गर्मी, हवा  सब कुछ ही तो हमने ख़राब कर दिया। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के बाद तो अब कहने को भी कुछ नहीं बचा है। और आप क्योंकि इस ख़बर को यहाँ तक पढ़ चुके हैं तो ये भी साफ़ है कि आप कोई अबोध बालक नहीं जिसे बात की गहराई का अंदाज़ा न हो। तो ख़वातीन-ओ-हज़रात, अब क्योंकि बात शुरू आप से ही की थी, तो बस अब इतना कहेंगे कि बात आप पर ही ख़त्म होगी। आख़िर ग़लती आपकी है। अब देखना ये है कि इस ग़लती सुधारने के लिए आप करते क्या हैं।  वैसे, हमें उम्मीद है आप ग़लती सुधारेंगे।

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दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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