बाकू सम्मेलन के बाद विकासशील देशों ने खटखटाया अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा

बाकू में कॉप-29 सम्मेलन में विकसित देशों को उनकी जलवायु संबंधी जिम्मेदारियों के लिए उत्तरदायी ठहराने के लिए, विकासशील देशों, विशेष रूप से छोटे द्वीप राज्यों ने अब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ),, का दरवाज़ा खटखटाया है जो कि संयुक्त राष्ट्र की मुख्य न्यायिक शाखा है। पिछली दो दिसंबर से यहां इस अपील पर सुनवाई शुरू हुई है कि विकसित देश क्लाइमेट फाइनेंस और लॉस एंड डैमेज जैसे मुद्दों पर अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे। महत्वपूर्ण है कि बाकू सम्मेलन में विकासशील देशों ने विकसित देशों से क्लाइमेट फाइनेंस के प्रभावों से लड़ने के लिए कुल $ 1.3 ट्रिलियन  की मांग की थी लेकिन अभी सन्धि में 2035 से केवल $ 300 बिलयन दिये जाने की बात ही कही गई। इसमें यह भी स्पष्ट नहीं है कि कितना पैसा अनुदान या पब्लिक फाइनेंस से होगा। 

यह मुकदमा प्रशांत महासागर में एक छोटे से देश वानुअतु की पहल पर हुआ है जिसने पिछले साल मार्च में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में एक प्रस्ताव पारित किया था। कई अन्य छोटे आइलैंड नेशन्स की तरह, वानुअतु सबसे संकटग्रस्त देशों में से एक है, जिसका अस्तित्व समुद्र के बढ़ते जल-स्तर से खतरे में है। 

वानुअतु ने सितंबर, 2021 में जलवायु परिवर्तन पर ICJ की सलाहकारी राय के लिए एक प्रस्ताव पेश किया। इसे बड़ी संख्या में देशों से समर्थन मिला और अंततः UNGA ने पिछले साल मार्च में उस प्रस्ताव को अपनाया, जिसे 132 देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था। .

इस प्रस्ताव में मुख्य रूप से दो सवालों के जवाब मांगे गए हैं। पहला यह कि जलवायु प्रणाली की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत देशों के क्या दायित्व हैं। दूसरा, उन देशों के लिए इन दायित्वों के तहत कानूनी परिणाम क्या हैं जिन्होंने इस जलवायु प्रणाली को नुकसान पहुंचाया है। इस केस के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि ICJ में अब तक 90 देशों और संगठनों ने इस मामले में अपना पक्ष लिखित रूप में पेश किया है।  

वैश्विक प्लास्टिक संधि में वार्ता विफ़ल हुई, अब अगले साल होगी बैठक 

दक्षिण कोरिया के बुसान में प्लास्टिक प्रदूषण पर हुई वार्ता विफल हो गई। यहां  कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाने के लिए अंतर सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) की 5वीं और आधिकारिक रूप से आखिरी बैठक में संधि पर कोई सहमति नहीं बन सकी। वार्ता की विफलता के बाद अब 2025 में आईएनसी की एक और बैठक होगी। रंवाडा समेत कोई 100 देशों के ग्रुप ने प्लास्टिक उत्पादन को बन्द करने की मांग की लेकिन पेट्रोलियम उत्पादक देश इसके पक्ष में नहीं है। 

भारत और चीन समेत कुछ विकासशील देशों ने भी प्लास्टिक के उत्पादन को बन्द करने का विरोध किया और सारा ध्यान प्लास्टिक प्रदूषण पर केन्द्रित करने की बात कही। इस सन्धि को लेकर कार्बनकॉपी ने यह रिपोर्ट विस्तार से लिखी है जिसमें इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में पता चलता है। 

ऑस्ट्रेलियाई क्लाइमेट नीति को “गाइड” करने के लिए मैकिन्से को दी गई $ 1.6 मिलियन की फीस 

कंसल्टेंसी फ़र्म मैकिन्से दुनिया की सबसे बड़ी जीवाश्म ईंधन कंपनियों के लिए काम करती है। इसके बावजूद इसे ऑस्ट्रेलिया की एनर्जी और क्लाइमेट पॉलिसी को “गाइड” करने के लिए 1.6 मिलियन डॉलर का भुगतान किया गया था। अंग्रेजी अख़बार गार्डियन के मुताबिक फ़र्म को यह रकम 11 महीनों के दौरान दी गई। 

सबको यह पता है कि इस कंपनी के तेल और गैस क्षेत्र के दिग्गजों से संबंध हैं, फिर भी मैकिन्से ने ऑस्ट्रेलिया का लिए “विस्तृत बाजार, आर्थिक और नीति विश्लेषण” किया और मॉडलिंग तैयार की जो “आंतरिक ऊर्जा और जलवायु नीति कार्य” पर आधारित थी। ऑस्ट्रेलिया सरकार के  जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, पर्यावरण और जल विभाग ने कहा कि काम को आउटसोर्स किया गया था क्योंकि इसमें आवश्यक “तकनीकी क्षमता” नहीं थी। लेकिन आलोचकों का दावा है कि कंपनी के निजी क्षेत्र के ग्राहकों को देखते हुए यह अनुबंध अनुचित था।

सेंटर फॉर क्लाइमेट रिपोर्टिंग और गैर-लाभकारी रिसर्च संगठन आरिया ने अमेरिकी अदालत के दस्तावेजों का आकलन करने के बाद कहा है कि मैकिन्से के रिश्ते कई जीवाश्म ईंधन कंपनियों से हैं जो ऑस्ट्रेलियाई में काम कर रही हैं। इन कंपनियों में कैल्टेक्स, पीबॉडी एनर्जी ऑस्ट्रेलिया, सैंटोस, शेल ऑस्ट्रेलिया, वुडसाइड, इनपेक्स, बीएचपी, रियो टिंटो, एजीएल और ओरिजिन शामिल हैं।

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