सफेद झाग में अमोनिया और फॉस्फेट का उच्च स्तर होता है, जो सांस और त्वचा से जुड़ी बीमारियां पैदा कर सकता है। फोटो: Manishjaisi/Wikimedia Commons

हवा में खतरनाक धुंध और यमुना की सतह पर जहरीले झाग से जूझ रही दिल्ली

सर्दियों के वायु प्रदूषण और धुंध के बीच, दिल्ली में यमुना नदी पर तैरता सफेद जहरीला झाग कैमरे में कैद हुआ। नदी पर झाग उस कचरे से आता है जिसे ट्रीट किये बिना ही नदी में छोड़ दिया गया हो। एक रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों के सीवेज और औद्योगिक कचरे के मिश्रण में सफेद झाग में अमोनिया और फॉस्फेट का उच्च स्तर होता है, जो सांस और त्वचा से जुड़ी बीमारियां पैदा कर सकता है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक यमुना की सतह पर तैरते जहरीले झाग से निपटने के लिए दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) द्वारा खाद्य-ग्रेड एंजाइमों से भरी विशेष नावें तैनात की गई हैं। इस बीच दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर डब्लूएचओ द्वारा तय सुरक्षित स्तर से 50 से 70 गुना अधिक रिकॉर्ड किये गये।  

नैनोप्लास्टिक्स प्रदूषण से हो सकता है पार्किंसंस और डिमेंशिया  

साइंस एडवांसेज की रिपोर्ट के अनुसार, एक नए शोधपत्र में नैनोप्लास्टिक्स, पार्किंसंस रोग और संबंधित डिमेंशिया के बीच एक संभावित लिंक पाया गया है। अध्ययनों ने पर्यावरण में नैनोप्लास्टिक प्रदूषण के बढ़ते स्तर की पहचान की है। शोधकर्ताओं ने कहा कि नैनोप्लास्टिक्स क्लैथ्रिन-निर्भर एंडोसाइटोसिस के माध्यम से न्यूरॉन्स में आंतरिक रूप से प्रवेश कर सकता है, जिससे हल्की लाइसोसोमल हानि हो सकती है जो एकत्रित α-सिन्यूक्लिन के क्षरण को धीमा कर देती है। 

चूहों में, नैनोप्लास्टिक्स α-सिन्यूक्लिन फाइब्रिल्स के साथ मिलकर परस्पर कमजोर मस्तिष्क क्षेत्रों में α-सिन्यूक्लिन विकृति का फैलाव बढ़ा देता है। ये परिणाम नैनोप्लास्टिक प्रदूषण और पार्किंसंस रोग और संबंधित मनोभ्रंश से जुड़े α-सिन्यूक्लिन एकत्रीकरण के बीच आगे की खोज के लिए एक संभावित लिंक को उजागर करते हैं।

दिल्ली, मुंबई में 10 में से छह निवासी वायु प्रदूषण के कारण छोड़ना चाहते हैं शहर: सर्वेक्षण

एक नए सर्वेक्षण में कहा गया है कि नई दिल्ली और मुंबई में रहने वाले 60% लोग दोनों शहरों में बिगड़ते वायु प्रदूषण के कारण स्थानांतरण पर विचार कर रहे हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रदाता प्रिस्टिन केयर द्वारा दिल्ली, मुंबई और आसपास के 4,000 लोगों का सर्वेक्षण किया गया था। इसमें यह भी दर्ज किया गया कि 10 में से नौ उत्तरदाताओं को बिगड़ते वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के सबसे आम लक्षणों का अनुभव हो रहा है, जैसे लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ, घरघराहट, गले में खराश और आंखों में खुजली और पानी आने की समस्या। 

रिपोर्ट के अनुसार, 40% उत्तरदाताओं ने सर्दियों के मौसम के दौरान अपने प्रियजनों में अस्थमा या ब्रोंकाइटिस जैसी पहले से मौजूद श्वसन संबंधी समस्याओं में गिरावट देखी है। जब वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनी जीवनशैली को समायोजित करने के बारे में सवाल किया गया, तो 35% ने बताया कि उन्होंने व्यायाम और दौड़ने जैसी बाहरी गतिविधियाँ बंद कर दी हैं, जबकि 30% ने बाहर मास्क पहनना शुरू कर दिया है।

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