उत्तराखंड: सुरंग में फंसे मज़दूरों का अंतहीन इंतज़ार
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में निर्माणाधीन सुरंग के धंसने के 40 मज़दूर फंस गए जिन्हें निकालने की कोशिश छठे दिन भी जारी थी। करीब 4.5 किलोमीटर लम्बी यह सुरंग राज्य में चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है। सुरंग धंसने की घटना रविवार सुबह साढ़े पांच बजे हुई। सुरंग में फंसे ज़्यादातर मज़दूर बिहार और झारखंड के हैं। झारखण्ड सरकार ने तीन सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल उत्तराखंड भेजा है।
आपदा प्रबंधन की टीमें और राहतकर्मी मज़दूरों को निकालने के काम में लगीं हैं और उन्हें जीवित रखने के लिए सुरंग में ऑक्सीज़न सप्लाई की जा रही है। राहतकर्मी मलबे में एक मोटी स्टील पाइप डालकर मजदूरों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं, मंगलवार को यह प्रयास शुरू कर दिया गया। आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने दावा किया था कि फंसे हुए मजदूरों को मंगलवार की शाम या बुधवार सुबह तक बाहर निकाल लिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इस घटना की जांच के लिए राज्य सरकार ने एक कमेटी का भी गठन किया है।
चार धाम यात्रा मार्ग का हिस्सा
यह सुरंग उत्तराखंड में बन रहे चार धाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है। 20 फरवरी 2018 को कैबिनेट ने इसे मंज़ूरी दी थी। इस प्रोजेक्ट की कुल कीमत करीब 1400 करोड़ बताई गई गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच सड़क मार्ग की लंबाई 20 किलोमीटर कम होने और 1 घंटा बचने की बात कही गई। इस बीच हिमालय में विकास और निर्माण के मॉडल पर फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह सवाल भी उठ रहा है कि इस सुरंग में कोई एस्केप टनल क्यों नहीं बना हालांकि इस सुरंग की घोषणा के वक्त कैबिनेट नोट में सुरंग में एस्केप रूट की बात की गई है।
सर्दियों में अल-नीनो के कारण बढ़ेंगी बाढ़ की घटनाएं?
अमेरिकी शोध एजेंसी नासा के समुद्र विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इन सर्दियों में अल-निनो प्रभाव बढ़ता रहा तो दुनिया के कई देशों, विशेष रूप से अमेरिका के पश्चिमी तटीय शहरों में, बाढ़ में वृद्धि देखी जा सकती है और सड़कों में भारी जल भराव हो सकता है। अल-निनो समुद्री तापमान में बदलाव के कारण होने वाली एक नियमित मौसमी घटना है, जिसके कारण कुछ वर्षों के अंतराल में प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 3 से 4 डिग्री तक बढ़ जाता है। इस जटिल मौसमी घटना के कारण कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश और कहीं सूखे की स्थित पैदा हो जाती है। नासा के विशेषज्ञों के मुताबिक शक्तिशाली अल-निनो के कारण सर्दियों में बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी और वैसी घटनाएं देखने को मिलेंगी जो अल-निनो के अलावा दूसरे वर्षों में अमेरिका के पश्चिमी तट पर नहीं होती थी। साल 2030 तक शक्तिशाली अल-निनो वर्षों में 10 वर्षीय बाढ़ (यानी ऐसी बाढ़ जिसकी 10 साल में एक बार होने की संभावना होती है) की 10 घटनाएं हो सकती हैं और 2040 तक यह संख्या 40 तक पहुंच सकती है।
पिछले 12 महीने धरती के इतिहास में रहे सबसे अधिक गर्म
नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के बीच 12 महीने का वक्त विश्व इतिहास की अब तक के सबसे गर्म समयावधि रही और इस दौरान धरती के तापमान में — औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ के मुकाबले — 1.3 डिग्री की वृद्धि दर्ज की गई। एक गैर लाभकारी साइंस रिसर्च ग्रुप क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान में इस वृद्धि के पीछे मानव जनित जलवायु परिवर्तन है जो कि कोयले और गैस के प्रयोग से निकलने वाली गैसों के वातावरण में बढ़ते जमाव का परिणाम है।
पिछले एक साल में दुनिया की 90% आबादी, यानी करीब 730 करोड़ लोगों ने अधिक तापमान वाले कम से कम 10 दिन झेले, जलवायु परिवर्तन के कारण जिनकी संभावना तीन गुना अधिक हो गई है। भारत में 120 करोड़ लोगों (यानी 86% आबादी) ने इस एक साल में कम से कम 30 ऐसे दिनों असामान्य रूप से गर्म दिनों का सामना किया।
सदी के मध्य तक ज़ूनोटिक बीमारियों से होंगी 12 गुना अधिक लोगों की मौत
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नए शोध में चेतावनी दी गई है कि जानवरों से इंसानों में फैलने वाले संक्रमण (यानी ज़ूनोटिक रोग) बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं और ऐसा अनुमान है कि साल 2050 में इस कारण मरने वाले इंसानों की संख्या 2020 की तुलना में 12 गुना अधिक होंगी। जंतुओं से इंसानों में होने वाले संक्रमण को ‘स्पिलओवर इंफेक्शन’ भी कहा जाता है और इस कारण कोविड-19 समेत कई आधुनिक महामारियां फैली हैं।
इस नतीजे पर पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले 60 साल में महामारियों के आंकड़ों और पैटर्न का अध्ययन किया, हालांकि इनके विश्लेषण में कोविड-19 शामिल नहीं था। जिस डेटाबेस का अध्ययन किया गया उसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट्स और वह सभी संक्रमण घटनाएं शामिल थीं जिनमें 50 या अधिक लोगों की मौत हुई। जैसे 1918 और 1957 में फैला फ्लू।
कीट विलुप्ति कैसे प्रभावित करेगी धरती को
कीट-पतंगे धरती पर मौजूद जीवन और जैव विविधता के वाहक हैं। लेकिन, यह नन्हें प्राणी तेज़ी से विलुप्त हो रहे हैं और आज धरती पर ऐसी 20 लाख प्रजातियों पर विलुप्ति का संकट है। यह संख्या संयुक्त राष्ट्र के पहले लगाए गए अनुमान से दोगुना है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विलुप्ति धरती के अस्तित्व के लिए भारी संकट खड़ा कर सकती है।
महत्वपूर्ण है कि कीट-पतंगों के जीवन और उनकी उपयोगिता के बारे में अन्य प्राणियों के मुकाबले बहुत कम अध्ययन हुआ है और हमारे पास जैव विविधता में इनके योगदान के बारे में जानकारी बहुत कम है। पिछले 50 साल में जानवरों की आबादी 70% घटी है लेकिन जब कीट-पतंगों की बात हो तो परागण में इनके योगदान को देखते हुये इनकी विलुप्ति से कृषि और खाद्य संकट के साथ विराट जल संकट खड़ा हो जाएगा।
भारत में रेड सेंडर्स यानी लाल चंदन को विलुप्त होती प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कन्वेंशन के तहत समीक्षा से छूट मिल गई है। इसे पूर्वी घाट के इलाकों में विशेषकर आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। समीक्षा में छूट से निर्यात के लिये इस प्रजाति का वृक्षारोपण करने वाले किसानों को फायदा होगा क्योंकि लाल चंदन बहुमूल्य प्रजाति है जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अच्छी कीमत मिलती है।
भारत 2004 से ही रेड महत्वपूर्ण व्यापार की समीक्षा (आरसीटी) समीक्षा सूची में है लेकिन पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा है कि नियमों के पालन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को लगातार जानकारी उपलब्ध कराने की वजह से भारत को इस समीक्षा सूची से हटा लिया गया है।
ग्लोबल वार्मिंग की सीमा से दोगुना जीवाश्म ईंधन उत्पादन करेंगे भारत समेत 20 देश: यूएन रिपोर्ट
धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक जितना जीवाश्म ईंधन उत्पादन होना चाहिए, दुनिया उससे 110% अधिक उत्पादन करने की राह पर है। यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) समर्थित विचार मंचों की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
बुधवार को जारी की गई ‘प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट‘ में 20 बड़े जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों के उत्पादन की समीक्षा की गई है। इन 20 में से 17 देशों ने पेरिस समझौते के अंतर्गत नेट-जीरो उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है।
रिपोर्ट के इस चौथे संस्करण में कहा गया है कि 2030 तक तेल और गैस के वार्षिक उत्पादन में क्रमशः 27% और 25% की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि 2050 तक यह वृद्धि क्रमशः 29% और 41% हो सकती है।
कोयले को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 से 2030 के बीच कोयला उत्पादन 10 प्रतिशत बढ़ेगा, लेकिन इसके बाद 2050 तक इसमें 41% की गिरावट होगी। 2030 तक होनेवाली इस वृद्धि में भारत, इंडोनेशिया और रूस सबसे आगे रहेंगे। यह देश 2030 तक कोयला उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की योजना बना रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल भारत ऊर्जा आत्मनिर्भरता और आजीविका पैदा करने के लिए कोयला उद्योग को सबसे महत्वपूर्ण मानता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हालांकि भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं और इसके लिए महत्वपूर्ण निवेश भी किए हैं, लेकिन जीवाश्म ईंधन उत्पादन को व्यवस्थित रूप से समाप्त करने की कोई सरकारी नीति अभी तक नहीं बनी है। लेकिन इस मामले में भारत अकेला नहीं है, बल्कि रिपोर्ट के अनुसार इन 20 देशों में से किसीने 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के अनुरूप तेल, गैस और कोयला उत्पादन में कटौती करने की प्रतिबद्धता नहीं जताई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों को 2040 तक कोयला उत्पादन और उपयोग को लगभग पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए, और 2050 तक तेल और गैस के उत्पादन और उपयोग में 2020 के स्तर के मुकाबले तीन-चौथाई की कटौती करनी चाहिए। अगस्त 2022 में संशोधित भारत के एनडीसी लक्ष्यों के अनुसार देश 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक अपने उत्सर्जन में 45% की कटौती करेगा, ऊर्जा क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी को 50% तक बढ़ाएगा।
चीन की मीथेन उत्सर्जन पर योजना लेकिन घटाने के लक्ष्य तय नहीं
चीनी सरकार ने एक 11 पेज की योजना प्रकाशित की है जिसका लंबे समय से इंतज़ार किया जा रहा था। यह पेपर इस बारे में है कि चीन मीथेन — जो कि एक बहुत हानिकारक ग्रीनहाउस गैस है — उत्सर्जन को कैसे नियंत्रित करेगा लेकिन चीन ने इस गैस उत्सर्जन को घटाने के कोई लक्ष्य नहीं बताए हैं। चीन ने यह घोषणा अमेरिका के साथ वार्ता से पहले प्रकाशित की है और यह कोयला खदानों, धान की खेती और लैंडफिल जैसे मीथेन उत्सर्जन स्रोतों के बारे में है।
चीन दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक है और सबसे अधिक मीथेन पैदा करता है जो मूलत: उसकी कोल इंडस्ट्री के कारण है। क्लाइमेट चेंज को नियंत्रित करने के लिए मीथेन उत्सर्जन बहुत ज़रूरी है, और दुनिया के 150 देशों ने पिछले साल मीथेन संधि पर हस्ताक्षर किए और 2020 और 2030 के बीच 30% इमीशन कट का वादा किया लेकिन चीन, भारत और रूस ने इस संधि पर दस्तखत नहीं किए हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के पैनल में अडानी के सलाहकार को शामिल करने पर बवाल
पर्यावरण मंत्रालय के पैनल में अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) के एक सलाहकार को शामिल किए जाने से राजनैतिक बवाल मच गया है। विपक्षी दलों ने ‘हितों के टकराव’ की ओर इशारा करते हुए सरकार की आलोचना की है।
इस साल सितंबर में जब जलविद्युत और नदी घाटी परियोजनाओं के लिए विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) का पुनर्गठन किया गया था, तब सात गैर-संस्थागत सदस्यों में एजीईएल के प्रमुख सलाहकार जनार्दन चौधरी को भी नामित किया गया था। पर्यावरण मंत्रालय के परिवेश पोर्टल पर उपलब्ध विवरण के अनुसार, 17-18 अक्टूबर को पुनर्गठित ईएसी की पहली बैठक के दौरान महाराष्ट्र के सतारा में एजीईएल की 1,500 मेगावाट की ताराली पंपिंग भंडारण परियोजना पर चर्चा की गई थी।
चौधरी ने स्पष्ट किया कि हालांकि वह 17 अक्टूबर की बैठक में शामिल हुए थे, लेकिन उन्होंने एजीईएल की ताराली परियोजना पर केंद्रित सत्र में भाग लेने से परहेज किया। उन्होंने कहा कि वह एजीईएल के सलाहकार के रूप में काम करते हैं और कंपनी के पेरोल पर नहीं हैं। चौधरी ने यह भी कहा कि उन्होंने ईएसी में अपनी नियुक्ति से पहले मंत्रालय को कंपनी के साथ अपनी संबद्धता के बारे में बताया था। हालांकि विपक्षी दल सरकार से सवाल कर रहे हैं कि समिति में चौधरी का नामांकन किसने और क्यों किया।
दिवाली के बाद बढ़ा प्रदूषण, दिल्ली में सबसे तेज गिरी वायु गुणवत्ता
दिल्ली में पटाखों पर लगा प्रतिबंध बेअसर रहा और इस साल दिवाली के बाद राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का स्तर पिछले साल के मुकाबले अधिक दर्ज किया गया। पिछले साल जहां दिवाली के बाद शहर का वायु गुणवत्ता इंडेक्स (एक्यूआई) 303 था वहीं इस साल नवंबर 13 को यह 358 दर्ज किया गया। शनिवार को थोड़ी राहत के पहले इसमें लगातार वृद्धि होती रही और वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ बनी रही। शनिवार की सुबह दिल्ली का एक्यूआई 399 था, जबकि शुक्रवार की शाम यह 405 दर्ज किया गया था। गुरुवार को यह 419, बुधवार को 401, मंगलवार को 397 और सोमवार को 358 था।
यही नहीं, एनसीएपी ट्रैकर ने एक विश्लेषण में पाया कि पार्टिकुलेट मैटर पीएम2.5 का स्तर दिल्ली में सबसे तेजी से बढ़ा। दिवाली के दिन, यानी नवंबर 12 को यह स्तर 143.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) था, नवंबर 13 को यह 395.9 µg/m3 पाया गया। एनसीएपी ट्रैकर ने देश के 11 राज्यों की राजधानियों का विश्लेषण करके यह पाया कि उनमें से नौ शहरों में दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर पिछले साल से अधिक था। दिवाली के दिन पीएम2.5 का औसत स्तर सबसे अधिक पटना में पाया गया।
दिवाली की रात में सभी शहरों में पीएम2.5 का स्तर अपने चरम पर था। दिल्ली में इस साल दिवाली के बाद वायु गुणवत्ता में गिरावट 2015 के बाद से सबसे तेज़ थी, जहां पीएम2.5 और पीएम10 का स्तर क्रमशः 45% और 33% बढ़ गया।
पिछले हफ्ते हुई बारिश और पश्चिमी विक्षोभ के कारण हवा की बढ़ी हुई गति ने दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद की थी। लेकिन पटाखों के धुएं से कई स्थानों पर पीएम2.5 की सांद्रता बढ़ गई।
मानव उत्सर्जन के कारण वातावरण में पारे का स्तर सात गुना बढ़ा: अध्ययन
एक हालिया शोध के अनुसार, लगभग 1500 ईस्वी से आधुनिक युग की शुरुआत के बाद से, मनुष्यों ने वातावरण में जहरीले पारे की सांद्रता को सात गुना तक बढ़ा दिया है।
हार्वर्ड जॉन ए पॉलसन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज (एसईएएस) के शोधकर्ताओं ने ज्वालामुखी से वार्षिक पारा उत्सर्जन की सटीक गणना करने के लिए एक नई तकनीक बनाई। ज्वालामुखी प्राकृतिक स्रोतों से पारा उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। उस अनुमान और एक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग टीम द्वारा पूर्व-मानवजनित वायुमंडलीय पारा स्तरों के पुनर्निर्माण के लिए किया गया था। अध्ययन के अनुसार, मनुष्यों द्वारा पर्यावरण में पारा उत्सर्जित करने से पहले, वातावरण में पारे की औसत मात्रा 580 मेगाग्राम थी।
हालांकि, 2015 में, सभी उपलब्ध वायुमंडलीय मापों को देखने वाले स्वतंत्र शोध ने अनुमान लगाया कि वायुमंडलीय पारा भंडार लगभग 4,000 मेगाग्राम था — जो इस अध्ययन में बताई गई प्राकृतिक स्थिति से लगभग सात गुना अधिक है। यह बढ़ोत्तरी मानवों द्वारा खनन, उद्योग, अपशिष्ट जलाने और कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों से पारे के उत्सर्जन से हुई है।
दुनिया में 21 मिलियन टन प्लास्टिक वातावरण में पहुंचा: ओईसीडी
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2022 में पूरी दुनिया में 21 मिलियन टन प्लास्टिक वातावरण में घुल गया। यह रिपोर्ट प्लास्टिक संधि पर बनी अंतरसरकारी समिति की बैठक के दो दिन पहले जारी हुई। प्लास्टिक नियंत्रण के लिए एक संधि (जो सभी देशों पर बाध्यकारी होगी) के लिए 13 से 19 नवंबर तक कीनिया में बैठक हो रही है।
ओईसीडी की रिपोर्ट में प्लास्टिक संकट और इसके खिलाफ किसी भी एक्शन में देरी और कमज़ोरी के ख़तरों की समीक्षा भी की गई है। रिपोर्ट बताती है कि अगर यूं ही चलता रहा तो 2020 की तुलना में 2040 तक वातावरण में प्लास्टिक का रिसाव 50 प्रतिशत बढ़ जाएगा। इस अंतरिम रिपोर्ट के बाद अगले साल की पहली छमाही में अधिक गहन और विस्तृत रिपोर्ट जारी की जाएगी।
वायु प्रदूषण से बढ़ता है टाइप-2 डायबिटीज का खतरा: शोध
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से टाइप-2 मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में पाया गया कि उच्च मात्रा में महीन प्रदूषण कणों (पीएम2.5) — जो बालों के एक कतरे से भी 30 गुना पतले होते हैं — के साथ हवा में सांस लेने से ब्लड शुगर के स्तर में वृद्धि हुई और टाइप-2 डायबिटीज के मामलों में वृद्धि हुई। यह अध्ययन दिल्ली और चेन्नई में किया गया था।
अध्ययन में 2010 से 2017 तक 1,200 से अधिक पुरुषों और महिलाओं के एक समूह का मूल्यांकन किया गया और समय-समय पर उनके ब्लड शुगर के स्तर को मापा गया। उन्होंने उस दौरान प्रत्येक प्रतिभागी के इलाके में वायु प्रदूषण का निर्धारण करने के लिए उपग्रह डेटा और वायु प्रदूषण एक्सपोज़र मॉडल का भी उपयोग किया। अध्ययन से पता चला कि एक महीने तक पीएम2.5 के संपर्क में रहने से ब्लड शुगर का स्तर बढ़ा और एक वर्ष या उससे अधिक समय तक इसके संपर्क में रहने से मधुमेह का खतरा भी। इसमें यह भी पाया गया कि दोनों शहरों में वार्षिक औसत पीएम2.5 स्तर में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से मधुमेह का खतरा 22 प्रतिशत बढ़ गया।
साफ ऊर्जा में मिलीं जीवाश्म ईंधन क्षेत्र से अधिक नौकरियां: आईए रिपोर्ट
साल 2021 में दुनियाभर में साफ ऊर्जा क्षेत्रों में उपलब्ध नौकरियों की संख्या 3.5 करोड़ हो गई, जो पहली बार पारंपरिक जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में उपलब्ध नौकरियों की संख्या (3.2 करोड़) से अधिक रही, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की एक वैश्विक रिपोर्ट में बताया गया है। विश्व ऊर्जा रोजगार 2023 रिपोर्ट से पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा में नौकरियां लगातार बढ़त बनाए हुए हैं और जीवाश्म ईंधन नौकरियों से 3.6 गुना अधिक की दर से बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर 47 लाख नौकरियां बढ़ीं, जबकि जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में 2020 की छंटनी के बाद बढ़ोत्तरी धीमी हुई और नौकरियों की संख्या महामारी के पहले के स्तर से लगभग 13 लाख कम रही। हालांकि, साफ़ ऊर्जा में मिलने वाले नए अवसर जीवाश्म ईंधन में जाने वाली नौकरियों से अधिक हैं।
भारत में, जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में रोजगार की संख्या 2019 के स्तर से ऊपर चली गई। दूसरी ओर, नई स्वच्छ ऊर्जा नौकरियों के मामले में देश चौथे नंबर पर रहा।
कॉप28: फेजआउट डील की मांग ने अक्षय ऊर्जा निवेश की ओर खींचा ध्यान
इस महीने के अंत में शुरू होनेवाले जलवायु महासम्मेलन (कॉप28) के पहले लगभग 100 कैंपेन समूहों ने आयोजकों को एक खुली चिट्ठी लिखकर मांग की है कि वार्ता के दौरान जीवाश्म ईंधन फेजआउट और साफ ऊर्जा ट्रांजिशन पर एक औपचारिक समझौता होना चाहिए। इन कार्यकर्ता समूहों ने चिंता जताई है कि इस बाबत एक कमजोर समझौते को अपनाने की तैयारी चल रही है।
उनकी मांग ने एक बार फिर इस ओर ध्यान खींचा है कि 2030 तक वैश्विक ऊर्जा क्षमता तीन गुनी बढ़ाकर 11,000 गीगावाट करने के लिए ग्लोबल साउथ को फाइनेंस की जरूरत है।
इस साल भारत में हुए सम्मलेन में जी20 देशों ने 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने के साथ-साथ, 4 ट्रिलियन डॉलर के सालाना निवेश पर भी सहमति जताई थी। लेकिन आंकड़ों पर नज़र डालें तो पेरिस समझौते के बाद से, चीन के बाहर ग्लोबल साउथ के देशों में अक्षय ऊर्जा में निवेश में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। यदि विश्व को 4 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचना है, तो ग्लोबल साउथ के देशों में अक्षय ऊर्जा में निवेश को दोगुने से भी अधिक बढ़ाना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि 2030 तक चीन के इतर ग्लोबल साउथ के साउथ के देशों में लगभग 1.9 ट्रिलियन डॉलर के वार्षिक निवेश की जरूरत होगी।
युद्ध के बीच गाजा निवासियों को रूफटॉप सोलर से मिल रही बिजली
हमास के हमले के बाद इज़रायल की जवाबी कार्रवाई के दौरान फिलिस्तीन के गाजा क्षेत्र में ईंधन और बिजली की आपूर्ति लगभग ठप हो चुकी है। ऐसे में बीस लाख की घनी आबादी वाले इस क्षेत्र के कई निवासियों को रूफटॉप सोलर जीवनरेखा प्रदान कर रहे हैं। कई वर्षों से इस क्षेत्र को अक्सर ब्लैकआउट का सामना करना पड़ता है, जो इज़रायली हमलों के दौरान और भी बदतर हो जाते हैं। इसलिए, जो गाजा निवासी रूफटॉप सोलर पैनल लगवा सकते थे, उन्होंने बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने ने लिए ऐसा किया है।
गाजा के निवासियों ने बताया कि हालांकि ये सौर पैनल भी इजरायली बमबारी में नष्ट हो सकते हैं, बिजली आपूर्ति जारी रखने में इनसे बहुत मदद मिली है।
वहीं दूसरी ओर कॉउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर नामक थिंकटैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में एनर्जी ट्रांजिशन में रूफटॉप सोलर का योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 25 करोड़ से अधिक घरों में छतों पर 637 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता के पैनल लगाए जा सकते हैं।
भारत में पवन ऊर्जा स्थापना में 64% की गिरावट
मेरकॉम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस साल की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के बीच भारत में 412 मेगावाट पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई। यह पिछली तिमाही (अप्रैल-जून) के मुकाबले 64% कम है। वहीं पिछले साल की तीसरी तिमाही में जोड़ी गई क्षमता के मुकाबले यह 53% कम है।
बताया जा रहा है कि इस गिरावट की वजह है कि इस तिमाही में कर्नाटक और राजस्थान जैसे पवन ऊर्जा में अग्रणी राज्यों ने अपनी क्षमता में कोई वृद्धि नहीं की। सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में डेवलपर्स को सबस्टेशनों की कमी से जूझना पड़ा, जिसके कारण अधिकांश पूरी हो चुकी परियोजनाएं भी कमीशन नहीं की जा सकीं। वहीं राजस्थान में इस तिमाही में कोई परियोजना कमीशन नहीं की जानी थी, इसलिए इसकी क्षमता में भी कोई वृद्धि नहीं हुई।
आईएसए को अगले कुछ महीनों में 50 मिलियन डॉलर जुटाने की उम्मीद
इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए) के प्रमुख अजय माथुर ने कहा है कि उन्हें अगले कुछ महीनों में सौर ऊर्जा के लिए 50 मिलियन डॉलर का निवेश मिलने की उम्मीद है। कार्बनकॉपी से बातचीत में माथुर ने कहा कि उन्होंने एक खाका तैयार किया है, जिसमें फिलहाल अफ्रीका, फिर एशिया और फिर लैटिन अमेरिका के देशों पर ध्यान दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इन तीनों चरणों के लिए उन्हें एक पैरेंट कंपनी की तलाश है जो आईएसए द्वारा प्रबंधित होगी। उन्होंने कहा कि भारत ने सैद्धांतिक तौर पर इसमें अहम योगदान देने का फैसला किया है। “दो अन्य संस्थाएं हैं जो इसके लिए स्रोत उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। तीन देश ऐसे हैं जिनके साथ चर्चा अंतिम चरणों में है और छह अन्य देशों के साथ भी चर्चा की जा रही है,” माथुर ने कहा।
“हमने अपने लिए 50 मिलियन डॉलर का मानक तय किया है। हमें उम्मीद है कि उसके बाद हम जून 2024 तक पेमेंट गारंटी सुविधा के लिए $100 मिलियन, बीमा निधि सुविधा के लिए $20 मिलियन और प्रारंभिक पूंजी के लिए $50 मिलियन जुटाने में सफल होंगे,” उन्होंने कहा।
इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला के भारत आगमन की व्यवस्था में सरकार जोर-शोर जुटी हुई है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने विभिन्न सरकारी ऑफिसों को आदेश जारी किया है कि ईलॉन मस्क की कंपनी को जनवरी 2024 तक प्रत्येक आवश्यक मंजूरी मिल जानी चाहिए।
इकॉनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीएमओ ने हाल ही में एक बैठक करके देश में ईवी मैन्युफैक्चरिंग के अगले चरण की समीक्षा की, जिसमें टेस्ला के निवेश प्रस्ताव पर भी चर्चा की गई। ईटी ने एक बड़े अधिकारी के हवाले से बताया कि बैठक में सामान्य नीतिगत चर्चा के आलावा टेस्ला के निवेश को मंजूरी देने की प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया गया।
वित्त मंत्रालय ने फेम योजना बढ़ाने के प्रस्ताव पर उठाए सवाल
वित्त मंत्रालय ने फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) योजना के तहत देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी मौजूदा वित्त वर्ष के बाद भी जारी रखने के प्रस्ताव पर सवाल उठाया है। भारी उद्योग मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक और वैकल्पिक ईंधन वाहनों के विकास में मदद करने के लिए फेम III योजना के तहत ईवी के लिए सब्सिडी को पांच और वर्षों के लिए बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था।
इकॉनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि जिन प्रमुख इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन निर्माताओं को फेम I और II योजनाओं से सबसे अधिक लाभ हुआ है, उन्हें सरकार से किसी और मदद की जरूरत नहीं है। फेम II 2024 में समाप्त हो रही है। फेम III के लिए सरकार और भी बड़ी राशि आवंटित कर सकती है। हालांकि, मौजूदा स्थिति में यह स्पष्ट नहीं है कि इस योजना में किस सेगमेंट को टारगेट किया जाएगा।
इंडियन आयल के साथ मिलकर देशभर में 2,500 ईवी चार्जर इंस्टाल करेगी ओकाया
ओकाया ईवी चार्जर्स ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के साथ मिलकर पूरे भारत में 2,550 इलेक्ट्रिक वाहन चार्जर स्थापित करने की योजना बनाई है। कंपनी ने कहा कि इसके लिए वह 125 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। ओकाया के अनुसार, 20 से अधिक राज्यों में ऐसे 362 चार्जर पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं।
इनमें उच्च और निम्न-वोल्टेज चार्जर्स शामिल हैं, जैसे 3.3-किलोवाट और 7.4-किलोवाट चार्जर, 30-किलोवाट वॉल-माउंटेड सीसीएस (संयुक्त चार्जिंग सिस्टम) 2 डीसी फास्ट चार्जर, और 60-किलोवाट सीसीएस2 डीसी फास्ट चार्जर।
क्या ईवी बैटरियों का सस्टेनेबल निर्माण और रीसाइक्लिंग कर सकता है भारत?
लगभग 23 लाख ईवी उपयोगकर्ताओं के साथ भारत इलेक्ट्रिक वाहन का तेजी से उभरता हुआ बाजार है। गत वित्तीय वर्ष में देश में ईवी की बिक्री में 174% की वृद्धि हुई। ईवी की बढ़ती मांग के साथ, लिथियम-आयन बैटरी की मांग बढ़ना भी तय है। वर्तमान में, भारत लिथियम-आयन बैटरी और सेल के लिए मुख्य रूप से चीन से आयात पर निर्भर है।
भारत को यदि अपने ईवी कार्यक्रम का विस्तार करना है और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है तो बैटरी सेल के लिए कच्चे माल की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है। जानकारों का कहना है कि वैश्विक सप्लाई चेन की जटिलता को देखते हुए, भारत के लिए जरूरी है कि वह एक एनर्जी स्टोरेज इकोसिस्टम विकसित करे। बैटरी सेल विनिर्माण को बढ़ाकर उसे देश के डीकार्बनाइज़ेशन लक्ष्यों के अनुरूप बनाना होगा।
लेकिन इन सबके बीच, नए खनिजों की मांग को कम करने के लिए बैटरी रीसाइक्लिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाना बहुत जरूरी है।
कोयला मंत्रालय ने कहा है कि थर्मल पावर संयंत्रों में आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कोयले का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। इस बढ़ोत्तरी के लिए नए ब्लॉक खोले जाएंगे, मौजूदा खदानों की क्षमता बढ़ाई जाएगी और कैप्टिव, कमर्शियल खदानों से उत्पादन बढ़ाया जाएगा।
कोयला मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “वर्ष 2027 और 2030 के लिए निर्धारित उत्पादन देश में ताप विद्युत संयंत्रों की संभावित घरेलू आवश्यकता से कहीं अधिक होगा।” देश में फिलहाल प्रति वर्ष लगभग एक बिलियन टन कोयले का उत्पादन होता है। मंत्रालय की योजना इसे 2027 तक बढ़ाकर 1.4 बिलियन टन और 2030 तक 1.5 बिलियन टन करने की है। मंत्रालय ने कहा है कि 2030 तक अतिरिक्त 80 गीगावॉट थर्मल क्षमता जोड़ने के लिए अधिक कोयले की जरूरत होगी।
वहीं सितंबर में भारत ने 20.61 मिलियन टन कोयले का आयात किया, जो पिछले साल के सितंबर से 4.3% अधिक है। केंद्र सरकार ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि सितंबर के दौरान घरेलू कोयला उत्पादन में भी वृद्धि हुई जिसके कारण कोयला क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद न करने से खतरे में पड़ेंगीं और जिंदगियां: वैज्ञानिक
सौ से अधिक वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त (फेजआउट) किए बिना जलवायु संकट अधिक से अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डालेगा। लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लाइमेट एक्शन में देरी से 2050 तक गर्मी के कारण हुई मौतों में लगभग पांच गुना वृद्धि होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में मनुष्यों का स्वास्थ्य अब “जीवाश्म ईंधन की दया पर निर्भर है”।
रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि स्वास्थ्य पर बढ़ते जोखिम और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (अडॉप्टेशन) की बढ़ती लागत के बावजूद, सरकारें, बैंक और कंपनियां अभी भी जीवाश्म ईंधन के उपयोग और विस्तार की अनुमति दे रही हैं, जिससे लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि दुनिया जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रही, तो परिणाम न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी विनाशकारी हो सकते हैं।
अमेरिका में लगभग प्रतिदिन हो रही हैं जीवाश्म ईंधन उद्योग से जुड़ी घातक रासायनिक दुर्घटनाएं: शोध
गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में लगभग रोज़ खतरनाक रासायनिक दुर्घटनाएं हो रही हैं, जिससे लोग आग, विस्फोट, और रिसाव के ज़रिए खतरनाक विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश घटनाएं जीवाश्म ईंधन उद्योग से जुड़ी हैं, जैसे परिवहन, जीवाश्म ईंधन का उत्पादन और निस्तारण आदि।
फरवरी में एक अध्ययन में पाया गया था कि इस तरह की घटनाएं लगभग दो दिन में एक हो रही थीं। जबकि नई रिपोर्ट में पाया गया है कि जनवरी 2021 से 15 अक्टूबर 2023 तक खतरनाक रासायनिकों से जुड़ी 829 ऐसी घटनाएं हुईं, यानि लगभग 1.2 दिनों पर एक घटना।