झारखंड में ऊर्जा परिवर्तन के प्रभावों और कोयला श्रमिकों की वैकल्पिक आजीविका को लेकर दिल्ली स्थित थिंक-टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस सर्वे में पता चला कि ज़्यादातर श्रमिकों आसपास की खदान बंद होने, रोज़गार के दूसरे विकल्पों और कोयला उत्पादन कम करने जैसे मुद्दों पर जानकारी नहीं है। करीब 85% कोयला श्रमिक वैकल्पिक रोज़गार के लिये ट्रेनिंग चाहते हैं।
देश में 65% बिजली का उत्पादन कोयला बिजली संयंत्रों से होता है। 2021 में एक अध्ययन में पाया गया कि भारत के करीब 40 प्रतिशत जिले किसी न किसी रूप में कोयले पर निर्भर हैं।
वहीं 2021 में ही किए गए एक और अध्ययन में कहा गया कि कोल फेजआउट से कोयला खनन, परिवहन, बिजली, स्पंज आयरन, स्टील और ईंट-निर्माण के क्षेत्रों में कार्यरत 1.3 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होंगे। इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों पर पड़ेगा।
क्लाइमेट ट्रेंड्स के सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोयला खनन से जुड़े 35% श्रमिक ऐसे हैं जिनके पास रोजगार बंद होने की स्थिति में घर चलाने के लिए कोई बचत नहीं है; लगभग 85% श्रमिकों ने वैकल्पिक रोजगार के लिए स्किलिंग या रीस्किलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने की इच्छा जताई।
लगभग 45% श्रमिकों का मानना था कि उनके पास अपनी पसंद के वैकल्पिक क्षेत्र में काम करने के लिए जरूरी कौशल नहीं है।
विभिन्न देशों की जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं पर यूएन प्रमुख ने जताया रोष
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने व्हाइट हाउस शिखर सम्मेलन में दिए एक संदेश में अमेरिका और दूसरे देशों के जलवायु प्रयासों को चुनौती देते हुए कहा कि तेल और गैस ड्रिलिंग का विस्तार और अमीर देशों की अन्य नीतियां पृथ्वी के लिए ‘मौत की सजा’ के समान है।
यूएन महासचिव ने “जीवाश्म ईंधन का उपयोग कर धरती को गर्म करने वाली गैसों का उत्सर्जन” करने के लिए “प्रमुख उत्सर्जकों” को फटकार लगाई।
गुटेरेस की इस चेतावनी की पृष्ठभूमि है रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न तेल और गैस आपूर्ति संकट, जिसके कारण अमेरिका और कुछ अन्य देश जलवायु के लिए हानिकारक तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले के उत्पादन में वृद्धि कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के उद्देश्य से “नई जीवाश्म ईंधन परियोजनाएं पूरी तरह से असंगत हैं”।
उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों की वर्तमान नीतियां धरती की तापमान वृद्धि को लगभग दोगुने स्तर पर ले जा रही हैं, जो हमारे ग्रह के लिए “मौत की सजा” है।
“फिर भी कई देश अपनी (जीवाश्म ईंधन) क्षमता में विस्तार कर रहे हैं। मैं उनसे आग्रह करता हूं कि अपनी दिशा बदलें,” गुटेरेस ने कहा।
वैश्विक जीवाश्म ईंधन फेजआउट पर सहमत हुए जी-7 देश
जी7 देशों ने पहली बार जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की है, हालांकि उन्होंने ऐसा करने के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं किया है।
जापान के साप्पोरो में हुई बैठक में जी7 देशों के जलवायु मंत्रियों ने ‘अधिक से अधिक 2050 तक नेट जीरो प्राप्त करने के लिए जीवाश्म ईंधन को तेजी से फेजआउट करने’ पर सहमति व्यक्त की।
पिछले साल के कॉप27 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों के बीच जीवाश्म ईंधन ऊर्जा को फेजडाउन करने का समझौता नहीं हो पाया था।
भारत ने इसके लिए एक प्रस्ताव रखा था जिसका 80 से अधिक देशों ने समर्थन किया था, लेकिन सऊदी अरब और अन्य तेल समृद्ध देशों ने इसका विरोध किया था।
लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस लक्ष्य को पूरा करने में बड़ी बाधाएं आएंगी।
विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए यदि अमीर देशों से पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिली तो दुनिया के दूसरे देश जी7 की इस प्रतिबद्धता को उतना महत्व नहीं देंगे।
जर्मनी में तेल और गैस हीटिंग के नये सिस्टम होंगे बैन
जर्मन सरकार ने 2024 से नए तेल और गैस हीटिंग सिस्टम पर प्रतिबंध लगाने वाले बिल को मंजूरी दे दी है। हालांकि, विपक्षी दलों का दावा है कि इस कदम से आम लोगों को आर्थिक तौर पर बहुत बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
बिल में कहा गया है कि 1 जनवरी, 2024 के बाद नई या पुरानी इमारतों में स्थापित किसी भी हीटिंग सिस्टम का 65 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित होना चाहिए। बिल में कम आय वालों को छूट देने का भी प्रावधान है।
बिल में कहा गया है कि ‘इमारतों के हीटिंग सिस्टम्स में तेजी से परिवर्तन किए बिना जर्मनी न तो अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है और न ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकता है’।
इस कदम से जर्मनी की इमारतों और भवनों में नवीकरणीय ऊर्जा संचालित हीटिंग पंप, सौर पैनल और हाइड्रोजन बॉयलर लगाए जाने की प्रक्रिया में तेजी आएगी।
जर्मनी का लक्ष्य 2045 तक कार्बन न्यूट्रल होने का है और यह कदम इस प्रयास के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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