मिटिगेशन: उत्सर्जन में 43% कटौती का इरादा, लेकिन जीवाश्म ईंधन पर अड़े देश

मिटिगेशन को लेकर चर्चा फीकी रही। खींचतान के बीच 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश जारी रखी गई लेकिन उसके लिये ‘सभी प्रकार के जीवाश्म ईंधन कि कटौती’ शब्दावली को वार्ता के सहमति पत्र में शामिल नहीं किया गया।

बिजली उत्पादन के दौरान कार्बन उत्सर्जन को कम करना और वातावरण से कार्बन सोखने की व्यवस्था करना मिटिगेशन कहलाता है। जैसे नवीनीकरणीय बिजली स्रोत और जंगलों को लगाना।

कॉप -27 में घोषित शर्म-अल-शेख क्रियान्वयन योजना में यह स्वीकार किया गया कि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिये 2030 तक उत्सर्जन में (2019 के स्तर के मुकाबले) 43 प्रतिशत की त्वरित, तीव्र और लगातार कटौती करनी होगी। महत्वपूर्ण है कि आईपीसीसी ने 2030 के स्तर के मुकाबले 45% कटौती की बात कही थी। लेकिन कॉप -27 में  सभी प्रकार के जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में कटौती (फेज़ डाउन) की शब्दावली को शामिल नहीं किया जा सका

शर्म-अल-शेख प्लान में यह भी माना गया है कि इस महत्वपूर्ण दशक में इक्विटी (यानी जिसने जितना अधिक प्रदूषण किया है वह उतनी ज़िम्मेदारी निभाये) और सर्वोत्तम वैज्ञानिक जानकारियों के आधार पर त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है, जिसमें विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप और सतत विकास तथा गरीबी उन्मूलन के प्रयासों के संदर्भ में समान लेकिन अलग-अलग ज़िम्मेदारियां और क्षमताएं झलकती हों। हालांकि अमीर और विकसित देश मिटिगेशन को इक्विटी से अलग करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। 

देशों से कहा गया कि वह कम-उत्सर्जन की ओर बढ़ने में सहायक तकनीक के विकास और प्रसार में तेजी लाएं और इसके लिए नीतियां बनाएं। स्वच्छ बिजली उत्पादन और ऊर्जा दक्षता (यानी कम बिजली के इस्तेमाल से अधिक उत्पादकता) को बढ़ावा दें।

कोयले के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करें और जीवाश्म ईंधन को मिलने वाली सब्सिडी बंद करें। लेकिन ऐसा करते हुए राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप सबसे गरीब और कमजोर तबकों को सहायता प्रदान करें और न्यायोचित परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता को पहचानें। 

मीथेन सहित गैर-कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक कम करने के लिए आगे की कार्रवाइयों पर विचार करने के लिए देशों को एक बार फिर निमंत्रित किया गया।

पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रकृति और पारितंत्र की रक्षा, संरक्षण और बहाली के महत्व पर जोर दिया गया। वन और अन्य स्थलीय और समुद्री पारितंत्र ग्रीनहाउस गैसों को रोकें तथा सामाजिक और पर्यावरणीय सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए, जैव विविधता की रक्षा की जाए।

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