भारत के 20 राज्यों के भूजल में आर्सेनिक की समस्या है लेकिन यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम में आर्सेनिकोसिस का संकट गंभीर है।
क्रिएटिविटी और सोशल मीडिया का मिश्रण बड़ा असरकारी होता है और इसका रिश्ता पर्यावरण, क्लाइमेट चेंज और स्वास्थ्य से भी है। इस बात को लेख में आगे समझाऊंगा लेकिन शुरुआत पिछले दिनों फिल्मकार विनोद कापड़ी द्वारा शूट किये गये एक वीडियो से जिसमें दिखी एक युवा की लगन और उसका संकल्प। इस वीडियो में रात के वक्त एक लड़का प्रदीप मेहरा सड़क पर दौड़ रहा है। कार से जा रहे कापड़ी उसे देखते हैं और घर तक छोड़ने की पेशकश करते हैं लेकिन नोयडा सेक्टर 16 में काम करने वाला प्रदीप कहता है कि वह हर रोज़ इसी तरह दौड़कर घर जाता है और यह सेना में भरती के लिये तैयारी का हिस्सा है।
यह वीडियो इंटरनेट पर कुछ ही घंटों में वायरल हो गया। लोगों ने प्रदीप को शुभकामनायें दीं और मदद के पेशकश भी हुई। अख़बारों में ख़बरें छपीं और प्रदीप को कई टीवी चैनलों ने बुलाकर स्टूडियो में बिठाया। लेकिन यहां यह याद दिलाना ज़रूरी है कि प्रदीप जिस नोयडा की सड़कों पर दौड़ रहा है वह वायु प्रदूषण के लिहाज से दुनिया के सबसे प्रदूषित इलाकों में है। बहुत संभव है कि अपनी उम्र और जोश के दम पर वह हवा में घुले ज़हर को मात दे दे और जल्दी ही सेना में भरती हो जाये लेकिन देश के हर हिस्से में युवाओं के लिये स्थितियां इतनी अनुकूल नहीं हैं।
नोयडा से करीब एक हज़ार किलोमीटर दूर मनेर गांव के देशराज ने कई साल तक प्रदीप की तरह दौड़ लगाई, कसरत की और सेना में भर्ती के सभी टेस्ट भी पास किये लेकिन बार-बार मेडिकल टेस्ट में फेल होते रहे। आज देशराज 10 हज़ार रुपये की प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं और उन्हें अपना भविष्य अनिश्चित दिखता है। देशराज के फेल होने के पीछे उनकी त्वचा में दिख रहे आर्सेनिकोसिस के लक्षण हैं। आर्सेनिकोसिस जानलेवा बीमारी है जो ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मौजूदगी से होती है। देशराज और उसके साथियों की समस्या इस आर्सेनिक समस्या पर बनी इस फिल्म में देखी जा सकती है।
भारत के 20 राज्यों के भूजल में आर्सेनिक की समस्या है लेकिन यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम में आर्सेनिकोसिस का संकट गंभीर है। आज बिहार का मनेर देश के सबसे अधिक आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में है। बिहार के आरा, बक्सर, पटना, समस्तीपुर, सिवान, दरभंगा और भागलपुर समेत कई राज्यों में यह दिक्कत है। सबसे चिन्ताजनक बात यह है कि यहां के गरीब (जिनमें से ज़्यादातर किसान हैं) परिवारों के पास साफ पानी के कोई विकल्प नहीं हैं। देशराज कहते हैं कि वो “जब से पैदा हुये हैं यही पानी पी रहे हैं।” विडम्बना है कि वह ये जानते भी हैं कि इस पानी में बहुत आर्सेनिक है लेकिन यहां लोगों के पास कोई विकल्प नहीं हैं। बाज़ार से हर रोज़ खरीद कर पानी पी नहीं सकते और गहरा ट्यूबवेल या हैंडपम्प खुदवाने के लिये भी बड़ा सारा पैसा चाहिये।
आर्सेनिक का खतरा सिर्फ पानी तक सीमित नहीं है यह आपकी फूड चेन में प्रवेश कर गया है और इस लिहाज से जो इंसान साफ पानी भी पी रहा है या आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्र में नहीं भी रहता वह भी आर्सेनिकोसिस की ज़द में है। पानी में 10 पीपीबी (माइक्रोग्राम प्रति लीटर) तक सुरक्षित सीमा मानी जाती है लेकिन यूपी-बिहार के गांवों में कई जगह आर्सेनिक का स्तर 1000 पीपीबी से अधिक मापा गया है। इस कारण अगले 2-3 दशकों में पूरी एक पीढ़ी के पंगु हो जाने का ख़तरा है। सोशल मीडिया की क्रिएटिविटी ख़बर को कुछ ही पलों में लोगों के बीच वायरल कर देती है लेकिन उतनी ही तेज़ी से लोग उसे भूल भी जाते हैं। आज हमारे धरती, और पूरे ग्रह के सामने अस्तित्व का संकट है। हमारी हवा, पानी और मिट्टी ही ज़हरीली नहीं है बल्कि भोजन की प्लेट पर भी ज़हर पहुंच रहा है। जिसके पीछे रासायनिक खाद या कीटनाशक ही नहीं बल्कि आर्सेनिक जैसे खतरे हैं। इस बारे में लिखी गई रिपोर्ट्स को यहां, यहां और यहां पढ़ा भी जा सकता है।