केंद्र सरकार ने पहली बार एक एटलस जारी किया है जिसमें एक्सट्रीम वेदर (जैसे भयानक बाढ़, अति सूखा) के कारण संकटग्रस्त ज़िलों की सूची है। क्लाइमेट हेजार्ड एंड वल्नरेबिलिटी एटलस ऑफ इंडिया के मुताबिक पश्चिम बंगाल का सुंदरवन और उससे लगे ओडिशा के ज़िले, तमिलनाडु के रामनाथपुरम, पुडुकोट्टाई और तंजावुर इस लिस्ट में हैं। समुद्र तट से लगे इन ज़िलों में चक्रवाती तूफानों की 13.7 मीटर तक ऊंची लहरों का ख़तरा है। जानकारों का कहना है कि इस एटलस से विनाशकारी मौसम से लड़ने की तैयारी में मदद मिलेगी।
इस एटलस में जलवायु संकट को लेकर 640 नक्शे हैं और इन्हें जारी करने वाले पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को उम्मीद है कि इनसे शीत लहर, बर्फबारी, ओलावृष्टि, वज्रपात, भारी बारिश और चक्रवात समेत 13 एक्सट्रीम वेदर की घटनाओं से लड़ने में मदद होगी। इससे पहले पूर्वी हिस्से के आठ राज्यों – झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश को मंत्रालय ने क्लाइमेट से पैदा संकट को देखते हुये चिन्हित किया था।
उत्तर भारत में शीतलहर का प्रकोप जारी
नये साल की शुरुआत शीतलहर और भारी बरसात के साथ हुई थी लेकिन जनवरी के अन्त तक उत्तर भारत के कई हिस्सों में बारिश और भारी बर्फबारी जारी है। मौसम विभाग के मुताबिक जनवरी 2022 72 साल का सबसे सर्द महीना है। कई मैदानी राज्यों में बारिश हुई और उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में जमकर बर्फबारी हुई। इस कारण पूरे उत्तर भारत में शीतलहर बढ़ गई। बुधवार को दिल्ली में अधिकतम तापमान सामान्य से 10 डिग्री नीचे रहा।
तोंगा में ज्वालामुखी फटने से सुनामी
विशेषज्ञों का कहना है कि तोंगा द्वीपसमूह में ज्वालामुखी विस्फोट से आये सुनामी का रिश्ता क्लाइमेट चेंज से हो सकता है। ख़बरों के मुताबिक करीब 15 मीटर तक समुद्र की लहरें उठीं जिससे तोंगा के बाहरी हिस्सों में कम से कम 3 लोगों की मौत हो गई। तोंगा ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन से करीब 200 मील पूर्व की ओर डेढ़ सौ से अधिक द्वीपों का समूह है जिनमें जिनमें से ज़्यादाकर में कोई नहीं रहता। जानकार कह रहे हैं कि समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण विनाशलीला अधिक व्यापक हुई है।
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि गर्म होते इस समुद्र में सतह हर साल 6 मिमी उठ रही है और चक्रवातों से ऐसी एक्सट्रीम वेदर की घटनायें और बढेंगी।
बेहतर भू-प्रबंधन से जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण
एक ताज़ा अध्ययन में यह बात कही गई है कि बेहतर भू-प्रबंधन क्लाइमेट चेंज से लड़ने का एक प्रभावी तरीका है। विज्ञान पत्रिका नेचर में छपे शोध के मुताबिक “स्थान विशेष को ध्यान में रखकर किये गये बेहतर भू-प्रबंधन” से दुनिया भर में ज़मीन पर हरियाली हर साल करीब 1370 करोड़ टन कार्बन हर साल रोक सकता है।
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