Newsletter - May 15, 2019
बड़ी ख़बर: जर्मन कार कंपनी डायमलर का ऐलान: 2039 से बनायेगी केवल बैटरी कारें
मशहूर कार ब्रांड मर्सिडीज़-बेंज की मालिक जर्मन कंपनी डायमलर ने घोषणा की है कि वह 2039 से उनकी बनाई सारी कारें बैटरी चालित ही होंगी। इसी कंपनी ने ही 1886 में कारों में पहला IC इंजन लगाया था। डायमलर ने यह घोषणा अपने “एंबिशन 2039” प्रोग्राम के तहत की है जिसमें प्रदूषण रहित ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने का लक्ष्य है। कंपनी का लक्ष्य है कि 2039 तक उसके सभी यूरोपियन कार-प्लांट भी सिर्फ सौर ऊर्जा से ही चलें।
डायमलर ने पिछले साल (2018 में) कुल करीब 24 लाख कारें बेचीं थीं। फॉक्सवेगन के बाद यह दूसरी जर्मन कार कंपनी है जिसने बैटरी कार निर्माण की दिशा में बड़ा वादा किया है। दूसरी ओर बीएमडब्लू, जेगुआर, वॉल्वो और ऑडी जैसी कारों ने अधिक से अधिक इलैक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों की घोषणा की है जिससे कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है। हालांकि भारत जैसे देश में इसका असर नगण्य ही रहेगा क्योंकि हमारे यहां ऐसी लग्ज़री कारों की संख्या 1.5% से भी कम है।
क्लाइमेट साइंस
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन मापने के लिये संयुक्त राष्ट्र की नई गाइडलाइन
इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने कहा है कि पुराने हो चुके मानकों और तरीकों की जगह अब ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को मापने के लिये वैज्ञानिक शोध के आधार पर बने नये मानकों का प्रयोग होगा। अब तक इस्तेमाल हो रहे नियम 2006 की गाइडलाइंस पर आधारित थे।
नये मानक ऊर्जा के अलग अलग क्षेत्रों में उत्सर्जन के स्रोतों के अलावा औद्योगिक प्रक्रिया, कचरे, कृषि और जंगल से जुड़े हैं। इन नये नियमों पर चर्चा के लिये जापान के कोयोटो में 5 दिन की महासभा हुई। नई गाइडलाइंस से सभी देशों को ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरे का पता लगाने और उससे लड़ने में सुविधा होगी।
लाखों प्रजातियों पर ख़तरे के पीछे “अंधाधुंध विकास दर” का पागलपन: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
जैव विविधता पर शोध करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था IPBES का कहना है कि दुनिया में मौजूद जन्तुओं और वनस्पतियों की 80 लाख में से 10 लाख प्रजातियों पर ख़तरे के पीछे विकास की अंधी दौड़ है। अपनी ताज़ा रिपोर्ट में संस्था ने औद्योगिक कृषि और मछलीपालन को इस संकट के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार माना है और कहा है कि दुनिया की सरकारें और औद्योगिक कंपनियां “निहित स्वार्थ” के लिये कृषि, ऊर्जा और खनन जैसे क्षेत्रों में सुधारवादी कदम रोक रहे हैं। जैव विविधता को बचाने की कोशिशों के तहत अगले साल चीन में संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों की बैठक होगी।
जियो – इंजीनियरिंग से कम होगा धरती का तापमान!
कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वॉर्मिंग का सामना करने के लिये क्रांतिकारी प्रयोग करने की सोची है। वैज्ञानिक ध्रुवों पर पिघल रही बर्फ को फिर से जमाने और वातावरण में पिछले कई दशकों में इकट्ठा हो चुके कार्बन को हटाने के प्रयोग की तैयारी में हैं। इन प्रयोगों के तहत ध्रुवों के ऊपर बादलों में महीन नमक के कण प्रविष्ट कराने से लेकर कोल प्लांट्स ने निकल रही कार्बन को सोख कर उसे सिंथेटिक ईंधन में बदलने जैसे तरीके शामिल हैं। हालांकि कैंब्रिज के जानकार दावा कर रहे हैं कि अगले 10 सालों में होने वाले ये प्रयोग मानवता के आने वाले 10 हज़ार सालों की नियति तय करेंगे लेकिन विशेषज्ञों का एक धड़ा ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के ऐसे तरीकों को सही नहीं मानता है।
क्लाइमेट नीति
ग्लोबल वॉर्मिंग: संयुक्त राष्ट्र ने देशों से कड़े कदम उठाने को कहा
सितंबर में न्यूयॉर्क में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्ट्र के नेताओं ने अपील की है कि 2020 तक सभी देश कार्बन उत्सर्जन कम करने के अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्य को और कड़ा करें ताकि धरती के तापमान में बढ़ोतरी 1.5 डिग्री तक सीमित रखी जा सके। अपनी ताज़ा न्यूज़ीलैंड यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने चेतावनी दी कि विश्व के देश तापमान वृद्धि को ज़रूरी 1.5 डिग्री के बैरियर के नीचे रखने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने कहा है कि 2020 के बाद कोई भी देश कोयला बिजलीघर न लगाये। गुट्रिस ने चेताया है, “अगर आप लक्ष्य हासिल नहीं करते तो तबाही तय है।”
ऑस्ट्रेलिया: तटीय इलाकों के आदिवासियों ने की सरकार के खिलाफ शिकायत
ऑस्ट्रेलिया में निचले समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले आदिवासियों ने मानवाधिकार कमेटी में सरकार के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। टॉरिस द्वीपों के आदिवासियों ने अपनी शिकायत में कहा है समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने उनका जीवन संकट में डाल दिया है। CNN के मुताबिक करीब 270 द्वीपों के निवासियों ने कहा है कि उनके जीते जी उनके घर, कब्रिस्तान और सांस्कृतिक जगहें सब डूब जायेंगी।
UK के बाद आयरलैंड ने घोषित की क्लाइमेट इमरजेंसी
आयरलैंड गणराज्य, यूनाइटेड किंगडम के बाद दूसरा देश है जिसने जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता को लेकर आपातकाल घोषित किया है। UK ने 1 मई को यह घोषणा की थी। आयरलैंड में यह प्रस्ताव बिना वोट के सर्वसम्मति से पास किया गया। जहां आयरलैंड के कई हिस्से नेट कार्बन इमीशन को ज़ीरो करने की योजना बना रहे हैं वहीं स्कॉटलैंड ने 2045 और न्यूज़ीलैंड ने 2050 तक यह लक्ष्य हासिल करने की बात कही है।
वायु प्रदूषण
जाड़ों में ही नहीं पूरे साल रहती है दिल्ली-एनसीआर की हवा जानलेवा
केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों का अध्ययन कर जानकारों ने बताया है कि सिर्फ ठंड के मौसम में ही नहीं दिल्ली और उससे सटे शहरों की हवा गर्मियों में भी बहुत प्रदूषित और दम घोंटने वाली है। सोमवार को दिल्ली की हवा “बहुत ख़राब”(322), गाज़ियाबाद की “बहुत ख़राब (384)” और गुरुग्राम की “खराब” (277) श्रेणी में थी। दिल्ली में 1 से 12 मई के बीच 10 जगहों में पीएम 2.5 का औसत 500 था जो कि “हानिकारक” की श्रेणी में आता है।
सरकार ने वायु प्रदूषण पर चिंताजनक रिपोर्ट को फिर किया खारिज
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में प्रकाशित हुई ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट’ (SoGA) को खारिज करते हुये कहा है कि ऐसी रिपोर्ट्स का मकसद सिर्फ“डर” पैदा करना होता है। पिछले महीने प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017 में भारत में 12 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई। इससे पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में इस तरह की चेतावनी दी जा चुकी है जिसमें दो साल पहले प्रकाशित लेंसट रिपोर्ट भी शामिल है।
उल्लेखनीय है कि दो साल पहले भी तत्कालीन पर्यावरण मंत्री अनिल दवे ने लेंसट रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया था जबकि सरकार की अपनी रिसर्च बॉडी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के शोध में भी पिछले साल ऐसे ही चिंताजनक आंकड़े सामने आये।
लोकसभा चुनाव: आप ने किया फसल की ठूंठ जलाने से होने वाले प्रदूषण से लड़ने का वादा
पिछली 12 मई को दिल्ली में 7 लोकसभा सीटों पर वोट डाले गये। यहां सभी सीटों पर लड़ रही आम आदमी पार्टी (आप) ने हर साल जाड़ों से पहले फसल की ठूंठ (खुंटी) जलाने से होने वाले प्रदूषण से लड़ने का वादा किया है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों द्वारा फसल कटाई के बाद खुंटी जलाने से दिल्ली में हर दमघोंटू हालात पैदा हो जाते हैं। इससे निबटने के लिये नई तकनीक की मशीनें लाये जाने और राज्यों के बीच तालमेल बिठाने की बात उठती रही है।
साफ ऊर्जा
बैटरी निर्माण के क्षेत्र में 4000 करोड़ डॉलर का निवेश
सरकार चाहती है कि 2022 तक बैटरी बनाने की नई यूनिट्स को बढ़ावा देने के लिये 4000 करोड़ डॉलर (यानी करीब 2,80,000 करोड़ रुपये) का निवेश हो जिसके लिये देश-विदेश की कंपनियों से निविदायें आमंत्रित की जायेंगी।
सरकार का इरादा है कि अगले करीब 3 साल में बैटरी पावर क्षमता 40 GW तक हो जाये जिससे बैटरी वाहनों के बाज़ार को बड़ी ताकत मिलेगी। यह कोशिश पेरिस समझौते के उस वादे को पूरा करने की दिशा में है जिसमें 2022 तक 175 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा सरकार यह भी चाहती है कि 2030 तक वाहनों की कुल बिक्री में 30% संख्या बैटरी वाहनों की हो।
साफ ऊर्जा काफी है, नदियों को बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं: WWF
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (WWF) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोत दुनिया में बिजली की ज़रूरत को पूरा करने के लिये काफी है और विश्व भर की नदियों को तबाह करने के लिये उन पर बड़े-बड़े बांधों का निर्माण करना ज़रूरी नहीं है। पेरिस में रिलीज़ की गई WWF रिपोर्ट कहती है कि सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोत पूरी दुनिया की 1,65,000 किलोमीटर लंबी नदियों को तबाह होने से बचा सकते हैं। भारत में भी बड़े बांधों का निर्माण एक विवाद का विषय रहा है जो नदियों, जंगलों और जैव विविधता की तबाही के साथ बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन की वजह बनते हैं।
साफ ऊर्जा अगले 5 साल में 80 GW बढ़ने की संभावना
एक सर्वे के मुताबिक उम्मीद है कि अगले 5 साल में भारत अपनी साफ ऊर्जा की क्षमता में 80 GW की वृद्धि कर लेगा। इसमें 47 GW सौर ऊर्जा, 21 GW पवन ऊर्जा होगी। सर्वे में यह भी कहा गया है कि इसके अलावा 8 GW रूफ टॉप सोलर पैनल से मिलेगी। उधर ऊर्जा के क्षेत्र में रिसर्च और विश्लेषण करने वाली एजेंसी इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एण्ड फिनांशियल एनालीसिस (IEEFA) का कहना है कि अगर भारत को 2022 तक निर्धारित 175 GW साफ ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को हासिल करना है तो उसे रूफ टॉप सोलर की दिशा में तेज़ी से काम करना होगा। अब तक भारत करीब 4 GW रूप टॉप सोलर पावर ही लगा पाया है जबकि उसने 2022 तक 40 GW रूफ टॉप सौर ऊर्जा का लक्ष्य रखा है।
बैटरी वाहन
ओला टैक्सी का पहला बैटरी प्रयोग फेल लेकिन रतन टाटा ने बढ़ाया हौसला
टैक्सी-ऑटो सर्विस मुहैय्या कराने वाली कंपनी ओला का कहना है कि भारत में ई-कारों के आने में वक़्त लगेगा। नागपुर में ई-टैक्सी सर्विस के लिये पायलट प्रोजक्ट के निराशाजनक नतीजों के बाद ओला ने यह बयान दिया है। कंपनी के मुताबिक इस दिशा में क्रांति के लिये पहले ई-बाइक और ई-रिक्शॉ को बढ़ावा मिलना चाहिये। ओला का कहना है कि टैक्सी ड्राइवरों ने शिकायत की है कि बैटरी-स्वॉपिंग की सुविधा न होने की वजह से चार्ज़िंग में उनका बहुत वक़्त ज़ाया हो रहा है और खर्च कमाई से अधिक है।
उधर उद्योगपति रतन टाटा ने ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिये ओला में निवेश किया है हालांकि उनके द्वारा निवेश की गई रकम कितनी है यह पता नहीं है लेकिन कहा जा रहा है कि रतन टाटा यह कदम बताता है कि ई-वाहनों में उन्हें पूरा यकीन है। इसी साल टाटा ने यह फैसला किया था कि अब नये कोयला बिजलीघरों में कंपनी निवेश नहीं करेगी।
फेम – II कम कर सकता है करीब एक तिहाई कार्बन उत्सर्जन : CII
भारतीय उद्योग महासंघ (CII) का कहना है कि अगले 10 सालों में वाहनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में करीब 37% की कमी लाई जा सकती है और ऊर्जा की खपत 64% कम हो जायेगी। CII का अनुमान सरकारी आकलन पर आधारित है जिसके मुताबिक अहर तय लक्ष्य हासिल किये गये को कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता घटेगी। अभी भारत कच्चे तेल का 83.7% आयात करता है।
हालांकि उद्योग महासंघ ने ई-वाहनों से जुड़े घरेलू उत्पादन कारखानों को बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। भारत ने 2017 में 15 करोड़ डॉलर ( करीब 1055 करोड़ रुपये) की लीथियम-ऑयन बैटरियां चीन से आयात की लेकिन अब वह अपनी बैटरी बनाने की यूनिट्स लगा कर आयात घटाने की दिशा में काम कर रहा है।
जीवाश्म ईंधन
समुद्र व्यापार पर निर्भर देशों के चर्च बेचेंगे तेल-गैस कंपनियों में हिस्सेदारी
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में साथ देने के लिये अब पोप की अपील के बाद कई चर्च संगठन (Diocese) अब कार्बन फैलाने वाले ईंधन का व्यापार करने वाली कंपनियों से हाथ खींच लेंगी। पनामा, ग्रीस, माल्टा, इटली और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों की चर्च ने यह फैसला किया है। यह सभी देश समुद्री व्यापार पर काफी हद तक निर्भर हैं। समुद्री जहाजों में बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन इस्तेमाल होता है जो कि दुनिया के 3% प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है।
UK ने पूरा हफ्ता बिना कोल पावर के बिताया, कैंब्रिज ने भी बड़ी कंपनियों से नाता तोड़ा
गुनगुनी धूप के इस मौसम में यूनाइटेड किंगडम ने पवन ऊर्जा का फायदा उठाते हुये पूरा एक हफ़्ता बिना कोल पावर के बिताया। मौसम अनुकूल होने के कारण लोगों को इनडोर हीटिंग की ज़रूरत नहीं पड़ी। यूके के नेशनल ग्रिड ने कहा है कि जैसे जासे साफ ऊर्जा की सप्लाई बढ़ेगी इस तरह के प्रयोगों की संख्या और बढ़ाई जायेगी। यूके 2025 तक कोयला बिजलीघरों को अलविदा कहने का वादा कर चुका है।
उधर कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने ऐसी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है जो तेल और गैस जैसे कार्बन उत्सर्जक ईंधन को बढ़ावा देते हैं। इससे विश्वविद्यालय को करोड़ों पाउण्ड की कमाई होती है लेकिन एक प्रस्ताव को मंज़ूरी देकर अब संस्थान ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में खड़े होने का फैसला किया है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव की अपील: 2020 के बाद न लगे कोई नया कोयला बिजलीघर
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने दुनिया के सभी देशों से अपील की है कि 2020 के बाद कोयला बिजलीघरों को लगाना बन्द कर दिया जाये। उन्होंने सभी देशों से साफ ऊर्जा और बैटरी वाहनों का इस्तेमाल करने का कहा है। भारत, चीन और अमेरिका में बढ़ते कोयले, तेल और गैस के इस्तेमाल के कारण पिछले साल 2018 में पूरी दुनिया के कार्बन उत्सर्जन में 2.7% की बढ़ोतरी हुई है।
हालांकि यूरोपियन यूनियन में शामिल 20 देशों के ग्रुप ने इसी दौरान अपना कार्बन उत्सर्जन पिछले साल के मुकाबले 2.5% कम किया है। पुर्तगाल और बुल्गारिया के कार्बन इमीशन में तेज़ी से कमी आई लेकिन पोलैंड का कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है। इस बीच वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर 8 लाख सालों के सबसे ऊंचे स्तर (415 पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया जो विनाशलीला की चेतावनी है।
अगले साल न्यूयॉर्क में बंद हो जायेंगे सभी कोयला बिजलीघर, अमेरिका की कोल पावर में 40% की कटौती
न्यूयॉर्क ने नये उत्सर्जन नियमों के बाद वहां कोल प्लांट नहीं चल पायेंगे। राज्य में आखिरी बचे दो कोयला बिजलीघर 2020 में बंद हो जायेंगे। पूरे अमेरिका में 2010 के बाद से अब तक 289 कोल प्लांट बंद हुये हैं जिससे कोल पावर क्षमता 40 प्रतिशत कम हुई है। इनमें से 50 कोल प्लांट तो ट्रम्प के शासनकाल में बंद हुये हैं। अमेरिका की बिजली में अब कोयले का हिस्सा केवल 25% है लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका अब बिजली बनाने के लिये अधिक से अधिक शेल गैस का इस्तेमाल कर रहा है जो कम प्रदूषित फैलाने वाला ईंधन नहीं है।