बच जायेंगी पर्यावरण नियमों को तोड़ने वाली कंपनियां

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - July 15, 2021

बीमारियों का ख़तरा: ग्लोबल वॉर्मिंग की बढ़ती मार से मलेरिया और डेंगू जैसे रोगों का ख़तरा बढ़ेगा जो नई चुनौती है। फोटो - Pixabay

सदी के अंत तक 840 करोड़ लोगों पर मलेरिया-डेंगू का ख़तरा

ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर के कारण इस सदी के अंत तक दुनिया के 800 करोड़ से अधिक लोग मलेरिया और डेंगू की चपेट में होंगे। ये दोनों ही बीमारियां मच्छरों के काटने से होती हैं और धरती के बढ़ते तापमान का कारण सन 2100 तक उन बहुत सारी जगहों पर भी मच्छरों का प्रकोप होगा जहां वे अभी नहीं होते। यह बात द लैंसेट प्लैनटरी हेल्थ में प्रकाशित एक नये अध्ययन से पता चली है। इसके मुताबिक सदी के अंत तक धरती के तापमान में बढ़ोतरी 3.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जायेगी और 1970-99 के मुकाबले 470 करोड़ अधिक लोग इन दो बीमारियों का शिकार होंगे। यह अध्ययन लंदन स्कूल ऑफ लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के विशेषज्ञों की अगुवाई में हुआ है। 

धरती के बढ़ते तापमान के लिये कार्बन उत्सर्जन ज़िम्मेदार है जो कोयला, पेट्रोल, डीज़ल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ ) के मुताबिक अभी हर साल 4 लाख लोग मलेरिया से मर रहे हैं जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं। भारत और अफ्रीकी देशों में तापमान वृद्धि के कारण इन बीमारियों के प्रसार के अधिक आशंका है। 

देहरादून में बना देश का पहला क्रिप्टोगैमिक उद्यान 

उत्तराखंड के चकराता में देश का पहला ‘क्रिप्टोगैमिक उद्यान’ बनाया गया है। देहरादून ज़िले में कोई 9000 फुट की ऊंचाई पर देवबंद नामक जगह पर यह बगीचा बना है। जो आदिम वनस्पतियां बिना बीज के फैलती हैं उन्हें क्रिप्टोग्रैम कहा जाता है। शैवाल, मॉस, लाइकेन, फर्न और कवक जैसे ‘क्रिप्टोगैम’ को उगने के लिए नम दशाओं की जरूरत होती है। इस उद्यान में अभी क्रिप्टोग्रैम की 76 प्रजातियां हैं। देवबन में देवदार और हबलूत वृक्षों के घने जंगल हैं जो ‘क्रिप्टोगैमिक’ या पुष्पहीन प्रजातियों के उगने के लिए प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराते हैं। उत्तराखंड वन विभाग में रिसर्च विंग के प्रमुख चीफ कंज़रवेटर ऑफ फॉरेस्ट संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि, ‘‘हमने उद्यान के लिए देवबन में तीन एकड़ से ज्यादा भूमि को प्रदूषण स्तर कम होने तथा नम दशाओं के कारण चुना जो इन प्रजातियों के पौधों के उगने में सहायक हैं।’’ 

अमेरिका के पर्मियन बेसिन में हैं सबसे बड़े मीथेन के उत्सर्जक संयंत्र 

एक नये अध्ययन में पता चला है कि अमेरिका के पर्मियन बेसिन में स्थित तेल और गैस के संयंत्र दुनिया में मीथेन गैस के सबसे बड़े उत्सर्जकों में हैं। जहां एक ओर यह पता है कि तेल और गैस के मामले में यह बेसिन पूरे अमेरिका के कुल मीथेन उत्सर्जन के आधे से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है वहीं  इस बात की जानकारी नहीं है कि हर संयंत्र का अपना उत्सर्जन कितना है। इस स्टडी का मकसद उपग्रह की तस्वीरों का इस्तेमाल कर प्रत्येक संयंत्र का उत्सर्जन पता लगाना है। अध्ययन में पाया गया कि नये संयंत्र फ्लेरिंग ऑपरेशन में कुशल न होने के कारण सबसे बड़े उत्सर्जक है। 

जलवायु परिवर्तन से तबाह हो जायेगा उत्तरी ध्रुव का ‘आखिरी बर्फीला हिस्सा’

उत्तरी ध्रुव में “बर्फ से ढके आखिरी हिस्से” को पिछले कुछ सालों तक जलवायु परिवर्तन से जितना खतरा  बताया जा रहा था, असली खतरा उससे कहीं ज़्यादा है। यह बात एक नये शोध में सामने आयी है। साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित अध्ययन में यह बात इस क्षेत्र के वेंडल समुद्र के डाटा के आधार पर कही गई। उत्तरी ध्रुव के इस हिस्से में इस समुद्र की 50% बर्फ 2020 की गर्मियों में पिघल गई। वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसमी कारणों से यह बर्फ पिछली है लेकिन क्लाइमेट चेंज यहां आइस की सतह को हर साल पतला कर रहा है।


क्लाइमेट नीति

ख़तरे को हरी झंडी: इको-टूरिज्म के नाम पर निर्माण गतिविधियों को मिली छूट से संरक्षित वन क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ सकता है। फोटो - Trison Thomas on Unsplash

वन क्षेत्र में इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट्स के लिये गाइडलाइंस मंज़ूर

पर्यावरणविदों द्वारा तमाम आलोचना के बावजूद नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (एनबीडब्लूएल) ने वन क्षेत्र में इको-टूरिज्म के लिये बने दिशानिर्देशों को मंज़ूरी दे दी है। पिछली 11 जून को हुई बैठक में बोर्ड ने संरक्षित इलाकों की एक लिस्ट भी जारी की जहां ये इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट हो सकते हैं। इससे पहले 8 मार्च को हुई बैठक में  केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ से कहा था कि ये गाइड लाइन लोगों में वन और वन्य जीवों के संरक्षण की समझ विकसित करने के लिये हैं और इससे वन क्षेत्र और इसके आसपास रहने वाले समुदायों को रोज़गार मिलेगा और उनकी आमदनी होगी। हालांकि विशेषज्ञों का कहना  है कि इन प्रोजेक्ट्स के कारण संरक्षित इलाकों में जो अस्थायी या स्थायी ढांचे बनेंगे उनसे जंगल विभाजित होगा। इस कारण वन्यजीवन और जंगल पर बुरा असर पड़ेगा। 

अरुणांचल प्रदेश ने विवादित प्रोजेक्ट पर सूचना देने से किया इनकार 

अरुणांचल प्रदेश की दिबांग घाटी में विवादित एटलिन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट फिर चर्चा में है। राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट की कीमत और उससे होने वाले फायदे का विश्लेषण (कॉस्ट-बेनेफिट रेश्यो एनालिसिस) क्या है यह जानकारी देने से इनकार कर दिया है। यह सूचना आरटीआई कानून के तहत मांगी गई थी। राज्य सरकार ने कहा है कि संबंधित कंपनी की अनुमति न होने के कारण वह यह जानकारी नहीं दे सकती। विशेषज्ञों ने 3907 मेगावॉट की इस जलविद्युत परियोजना पर सवाल खड़े किये थे क्योंकि यह सदाबहार सब-ट्रॉपिकल और वर्षावनों वाले इलाके में है जहां बाघ भी पाये जाते हैं। 

जम्मू-कश्मीर हाइवे: नियमों की अवहेलना पर एनजीटी की फटकार 

केंद्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने जम्मू-कश्मीर में बानिहाल-उधमपुर हाइवे के चौड़ीकरण के दौरान पर्यावरण नियमों की अनदेखी के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई को फटकार लगाई है। इस हाइवे को एन एच – 44 के नाम से जाना जाता है। एनजीटी का कहना है कि पिछले 4 साल से इस प्रोजेक्ट में अवैज्ञानिक और गैरकानूनी तरीके से हो रहे मलबा निस्तारण को रोकने के लिये कोई उपाय नहीं किये गये हैं। यह मलबा सीधे चिनाब नदी में डाला जा रहा है जिससे वह इसके पानी और आसपास की वॉटर बॉडीज़ को नुकसान पहुंचा रहा है। कोर्ट ने एनएचएआई को चेतावनी दी है कि अगर आवश्यक कदम नहीं उठाये गये तो प्रोजेक्ट को रोका भी जा सकता है।


वायु प्रदूषण

जुर्माना दो, बच निकलो: केंद्र सरकार की नई योजना के बाद नियम तोड़ कर बने प्रोजेक्ट्स को मान्यता मिल जायेगी। फोटो - Pixabay

केंद्र की नई योजना में पर्यावरण नियम तोड़ने वालों को माफी

सरकार ने वायु प्रदूषण और पर्यावरण से जुड़े नियमों को तोड़ने वालों के लिये एक माफी योजना तैयार की है। पर्यावरण के जानकार इसे पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से एक झटका और नियम तोड़ने वालों को बचाने का हथियार मान रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक जिन प्रोजेक्ट के पास पर्यावरणीय अनुमति नहीं होगी उनका दोबारा मूल्यांकन होगा और नियम तोड़ने वाली कंपनी पर जुर्माना लगाया जायेगा। जानकार कहते हैं कि यह प्रोजेक्ट के आकार और प्रभाव को जाने बिना उसे वैधता देने जैसा है और  गैर-कानूनी प्रोजेक्ट्स को । रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की “नई एमनेस्टी स्कीम” साल 2020 के ड्राफ्ट ईआईए नोटिफिकेशन में भी थी जिसमें परियोजनाओं को “निर्माण के बाद” अनुमति देने का प्रावधान था। इस ईआईए नोटिफिकेशन की खूब आलोचना हुई थी। 

सरकार के नये प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई प्रोजेक्ट नियमों की अवहेलना करके बना है लेकिन और “मंज़ूरी देने योग्य” है तो उसे अपने संशोधन प्लान की लागत के बराबर बैंक गारंटी जमा करनी होगी। इसके अलावा नेचर और समुदाय के लिये संसाधनों को बढ़ाने का प्लान जमा करना होगा।   

रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार का कहना है कि सरकार की नई योजना नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश का पालन करने के लिये है जिसमें “पहले हुये नियमों के उल्लंघन पर संबंधित अधिकारी प्रदूषण करने वाला जुर्माना भरे के सिद्धांत पर कार्रवाई के लिये स्वतंत्र हैं।”  

दिल्ली सरकार ने प्रदूषण कर रहे कोयला बिजलीघरों को बन्द करने की याचिका वापस ली 

दिल्ली में कोल पावर प्लांटों के प्रदूषण का प्रकोप बना रहेगा। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका को वापस ले लिया है जिसमें मांग की गई थी कि दिल्ली के पड़ोसी हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के उन 10 कोल पावर प्लांट्स को बन्द किया जाये जिन्होंने अब तक सल्फर डाई ऑक्साइड नियंत्रण के लिये एफजीडी टेक्नोलॉजी नहीं लगाई है।  दिल्ली ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के उस आदेश को रद्द किया जाये जिसमें बोर्ड ने एफजीडी तकनीक लगाने की समय सीमा बढ़ा दी थी। दिल्ली सरकार ने अदालत से इस मामले में केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन को भी रोकने की मांग की थी।  

डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक कि सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कई आदेशों के बावजूद  बिजलीघरों द्वारा वायु प्रदूषण को रोकने के लिये कुछ नहीं किया गया है। 

साफ हवा में कृषि उत्पादकता 20% बढ़ी: अमेरिकी शोध  

अमेरिका की स्टेफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में दावा किया गया है कि वायु प्रदूषण कम होने पर 1999 और 2019 के बीच मक्का और सोयाबीन की पैदावार में 20% इज़ाफा हुआ। इसकी कीमत 500 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष आंकी गई है। वैज्ञानिकों ने उपग्रह की मदद से कई क्षेत्रों में ओज़ोन (कार एक्ज़ास्ट से निकलने वाला प्रदूषक), पार्टिकुलेट मैटर और कोयला बिजलीघरों से निकलने वाले नाइट्रोजन और सल्फर का  अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट अंतर पाया कि कोयला संयंत्रों से दूर उगने वाली फसल की पैदावार अधिक होती है। 

इस रिसर्च की पूरी समायवधि के दौरान मक्का और सोयाबीन की औसत पैदावार पांच प्रतिशत घटी। यह शोध प्रदूषण को पकड़ने में सैटेलाइट की अद्भुत क्षमता को भी बताता है जिसका इस्तेमाल उन देशों में अधिक हो सकता है जहां एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग लचर है।


साफ ऊर्जा 

बढ़ा ग्राफ: बीपी की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में सौर और पवन ऊर्जा के ग्राफ में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई। फोटो - Pexels

सौर और पवन ऊर्जा क्षमता वृद्धि की रिकॉर्ड रफ्तार

तेल, गैस और एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी बीपी की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़ने की रिकॉर्ड रफ्तार रही तेल उद्योग में दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे बड़ी गिरावट आई। एनर्जी सेक्टर पर बीपी की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना महामारी के कारण कार्बन इमीशन में इस साल 6% की गिरावट हुई जो 1945 के बाद से अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। रिपोर्ट कहती है कि अगर धरती के तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखना है तो कोरोना के वक्त कार्बन इमीशन में जितनी गिरावट हुई वह सिलसिला अगले 30 साल तक जारी रहना चाहिये। 

साल 2020 में वैश्विक रूप से तेल की मांग में 9.7% की गिरावट आयी लेकिन अब इस साल इसकी मांग 54 लाख बैरल प्रतिदिन बढ़ने की संभावना है और साल 2022 के अंत तक यह महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच जायेगा। एनर्जी सेक्टर पर बीपी की सालाना रिपोर्ट 1952 से लगातार प्रकाशित हो रही है और इसकी काफी साख है। बीपी ने आने वाले सालों में अपने साफ ऊर्जा कार्यक्रमों को तेज़ी से बढ़ाने और 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है।   

कच्छ के रण में लगेगा देश का सबसे बड़ा सोलर पार्क 

सरकारी पावर कंपनी एनटीपीसी गुजरात में भारत का सबसे बड़ा सोलर फोटोवोल्टिक सेल प्रोजेक्ट लगायेगी। एनटीपीसी रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड  ने कहा कि यह प्रोजेक्ट कच्छ के रण के खवाड़ा गांव में लगेगा। इस प्रोजेक्ट की अधिकतम क्षमता 4750 मेगावॉट होगी। कंपनी का कहना है कि सोलर और विन्ड के अलावा दूसरे साफ ऊर्जा स्रोतों पर भी विचार कर रही है। इस सोलर पार्क से एनटीपीसी आरआईएल का इरादा ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का भी है।


बैटरी वाहन 

बढ़ेगी रेन्ज: अब बेहतर रेफ्रिजेरेंट की खोज से इलैक्ट्रिक कार की रेन्ज बढ़ने का दावा किया जा रहा है। फोटो - Pixabay

इलैक्ट्रिक कार की रेन्ज को 50% तक बढ़ाने का दावा

एसी निर्माता कंपनी डायकिन ने कहा है कि उसने एक नया रेफ्रिजेरेंट (कार के भीतर तापमान नियंत्रित करने वाला तत्व) खोज लिया है जो कि बैटरी कारों की रेन्ज को 50% तक बढ़ायेगा। जो बैटरी कार को चलाती है उसकी पावर का एक हिस्सा वाहन के भीतर क्लाइमेट कंट्रोल में खर्च होता है। डायकिन का दावा है कि उसका रेफ्रिजेंरेंट परम्परागत रेफ्रिजेरेंट के मुकाबले 10 से 15 डिग्री नीचे उबल जाता है और इस कारण जो इलैक्ट्रिक कार एक बार चार्जिंग में 300 किलोमीटर वह 150 किलोमीटर अतिरिक्त दूरी तय कर पायेगी। 

डायकिन का यह रेफ्रिजेरेन्ट 2025 तक बाज़ार में आ जायेगा लेकिन इसकी कीमत क्या होगी अभी इसका पता नहीं है। अमेरिका के बाज़ार में इसका प्रयोग करने से पहले इसे उचित मानदंडों पर खरा उतरना होगा। 

मस्क ने सोलर सिटी के अधिग्रहण को जायज़ ठहराया 

अमेरिकी इलैक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला के सीईओ ईलॉन मस्क ने छतों पर सोलर पैनल लगाने वाली कंपनी सोलर सिटी के अधिग्रहण को सही ठहराया है। टेस्ला कंपनी के शेयर धारकों के एक समूह ने मस्क पर यह आरोप लगाते हुए मुकदमा किया था कि अपनी एक बड़ी योजना में फंडिंग की कमी को पूरा करने के लिये उन्होंने (मस्क ने) 260 करोड़ अमेरिकी डॉलर लगाकर यह अधिग्रहण किया। रुफ टॉप सोलर लगाने वाली कंपनी सोलर सिटी की स्थापना मस्क और उनके दो चचेरे भाइयों ने की थी। मुआवज़े की मांग करने वाले इन शेयर धारकों का कहना था कि टेस्ला में महज़ 22%  का वोटिंग इंट्रेस्ट होने के बावजूद मस्क ने निदेशकों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और डील के पक्ष में वोटिंग करवाई। उधर मस्क अदालत में कहा कि यह अधिग्रहण बिल्कुल स्वाभाविक है और उनकी क्लीन एनर्जी बिजनेस और सस्टेनेबल एनर्जी इकोनमी की नीति के तहत है। मस्क ने कहा कि दोनों ही कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी बराबर ही और इस डील से उन्हें कोई वित्तीय लाभ नहीं हुआ।


जीवाश्म ईंधन

खरीदार नहीं: सरकार की दो-तिहाई से अधिक खदानों में निवेशकों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। फोटो -Albert Hyseni on Unsplash

नीलामी में 72% कोयला खदानों को नहीं मिला बोली लगाने वाला

सरकार ने जिन 67 कोयला खदानों को नीलामी के लिये खोला उनमें से 48 खदानों के लिये किसी ने बोली तक नहीं लगाई। केवल 8 खदानों में ही नियमों के हिसाब से ज़रूरी न्यूनतम दो से अधिक बोलियां लगाई गईं। जिन 19 खदानों में निवेशकों ने दिलचस्पी दिखाई उनमें से 15 नॉन-कोकिंग कोयले की थी  लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार के प्रयासों और दावों के बावजूद कोयले में कंपनियों की दिलचस्पी नहीं है। इससे पहले इसी साल सरकार ने जब कोयला खदानों को नीलामी के लिये खोला था तो आधी खदानों के लिये किसी ने बोली नहीं लगाई और इस साल किसी विदेशी निवेशक ने कोयला खदानों की नीलामी में हिस्सा नहीं लिया। महत्वपूर्ण है कि सरकार ने उस पाबंदी को पहले ही हटा लिया था जिसमें इस्तेमाल करने के लिये ही कोयला खरीदा जाये। इससे कोयले का निर्यात बढ़ गया है। 

यह दिलचस्प है कि इस साल बोली लगाने वालों में अडानी पावर और छत्तीसगढ़ मिनिरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन शामिल है।  अडानी ग्रुप क्लीन एनर्जी में भारी निवेश कर रहा है और छत्तीसगढ़ सरकार ने 2019 में कहा था कि वह राज्य में नये कोयला पावर प्लांट नहीं लगायेगा। 

एनटीपीसी 2032 तक कोल पावर क्षमता को करेगा आधा

भारत की सबसे बड़ी पावर कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन यानी एनटीपीसी ने घोषणा की है कि वह 2032 तक कोल पावर उत्पादन क्षमता को घटाकर आधा यानी करीब 27 गीगावॉट कर देगा। कंपनी अब क्लीन एनर्जी क्षेत्र में विस्तार कर रही है। इसका इरादा साल 2032 तक 30 गीगावॉट रिन्यूएबिल क्षमता के संयंत्र लगाने का था जो एनटीपीसी ने अब बढ़ाकर 60 गीगावॉट कर दिया है। आज कंपनी की कुल ऊर्जा का केवल 18% ही साफ ऊर्जा है लेकिन वह दावा कर रही है 2032 में उसकी कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 50% क्लीन एनर्जी होगी। कंपनी की योजना सोलर के साथ ऑफशोर विन्ड (समुद्र की भीतर पवन चक्कियां) क्षमता विकसित करने का है।  

भारत में अब भी 40% निर्भरता कोयले पर 

एक रिसर्च में पता चला है कि भारत में करीब 40% रोज़गार की निर्भरता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोयला खनन पर निर्भर है। इनमें से ज़्यादातर नौकरियां झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और  तमिलनाडु में हैं। इस अध्ययन के निष्कर्ष ऐसे वक्त में आये हैं जब क्लीन एनर्जी में बढ़ते निवेश और कोयला प्रयोग घटाने की कोशिश की वजह से कोल सेक्टर की नौकरियों पर मार पड़ेगी। यह बहस तेज़ है कि कैसे साफ ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाते वक्त जस्ट ट्रांजिशन यानी कोयला क्षेत्र के कर्मचारियों के रोज़गार का खयाल रखा जाये।

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