अरावली में फिर से खनन की ज़िद पर सरकार

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - March 12, 2021

तापमान का बढ़ता ग्राफ: पिछले 22 साल में भारतीय उपमहाद्वीप में हीट वेव की संख्या दो गुनी हो गयी है। Photo: Outlook

भारत में 1998 से गर्मियों का मौसम हो रहा है अधिक कठोर

भारत में 1998 से लगातार गर्मियों के मिजाज़ में ‘स्पष्ट बदलाव’ दिख रहा है। जलवायु संकट को इस परिवर्तन की वजह बताने जानकारों का कहना है कि उन्होंने 1971 से अब तक के आंकड़ों का अध्ययन किया है और पाया है कि गर्मियों में तापमान का ग्राफ बढ़ रहा है और पिछले 22 साल में भारतीय उपमहाद्वीप में हीट वेव की संख्या दो गुनी हो गयी है। इस साल मौसम विभाग ने जो भविष्यवाणी की है उसके मुताबिक गर्मियों में दिन में उबलती गर्मी पड़ेगी  और रातों में काफी अधिक तापमान रहेगा। आधिकारिक रूप से सर्दियों के खत्म होने की घोषणा से पहले ही छत्तीसगढ़, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में सामान्य से अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है। 

कुछ जानकारों का कहना है कि मौसम के इस पैटर्न के पीछे एन-निनो प्रभाव के ऊपर ला-निना वाले सालों का हावी होना है। उधर एक शोध के मुताबिक जलवायु संकट के कारण बड़ी भारतीय कंपनियों को अगले 5 साल में रु 7.14 लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है। 

पिछले 1000 साल में अटलांटिक समुद्र धारा सबसे कमज़ोर: शोध 

शोधकर्ताओं के मुताबिक अटलांटिक समुद्र धारा पिछले 1000 साल में अभी सबसे कमज़ोर दिख रही हैं। महत्वपूर्ण है कि दुनिया में मौसम का मिजाज़ तय करने में अटलांटिक समुद्र धारा का बड़ा प्रभाव होता है। इसे जिसे नॉर्थ अटलांटिक ड्रिफ्ट या अटलांटिक मेरिडायोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी) कहा जाता है जो विषुवतीय क्षेत्र से गर्म पानी को उत्तरी गोलार्ध की ओर भेजती है। इससे ठंडे देशों को गर्मी मिलती है। एएमओसी के अभाव में यूनाइटेड किंगडम में सर्दियों का औसत तापमान 5 डिग्री और कम हो सकता है। 

नेचर जियोसाइंस में छपे नये शोध में कई दूसरे अध्ययनों से मिले आंकड़ों के आधार पर एक ग्राफ तैयार किया गया है जो यह बताता है कि पिछले 1,600 सालों में एएमओसी किस तरह बदला है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध तक यह प्रभाव सामान्य रहा लेकिन 1850 से इसमें एक कमज़ोरी देखी गयी जो बीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते काफी स्पष्ट हो गई है। 

चमोली आपदा में “मानव गतिविधि न होने” का दावा गलत: विशेषज्ञ

जानकारों ने DRDO के एक शीर्ष अधिकारी के बयान की आलोचना की, जिसमें कहा गया था कि उत्तराखंड के चमोली जिले में पिछले महीने हिमस्खलन और घातक बाढ़ के लिए मानवीय गतिविधि “तत्काल कारण नहीं” थी।  डीआरडीओ के तहत काम करने वाली रिसर्च बॉडी जियो इन्फोर्मेटिक्स रिसर्च इस्टेबलिशमेंट (जीआरई) के निदेशक लोकेश कुमार सिन्हा ने कहा था की त्रासदी एक मानव प्रेरित आपदा नहीं थी। ग्लोबल वार्मिंग और हिमालय में बढ़ता तापमान, चमोली आपदा का मुख्य कारण हो सकते हैं।

कई जानकार इस बात से बिलकुल सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि 200 से अधिक लोग दो बांधों पर काम कर रहे थे जो कि हिमनदों के काफी करीब हैं। अगर ये बांध यहां नहीं बनाये जा रहे होते, तो बाढ़ से जान-माल को कोई नुकसान नहीं होता। विशेषज्ञों का ये भी मानना है की आपदा पर कोई भी निष्कर्ष निकालने करने से पहले इस मुद्दे का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिये। उनका कहना है कि उत्तराखंड पर कोई भी अनियोजित निर्माण या मानव जनित दबाव आत्मघाती हो सकता है ।


क्लाइमेट नीति

फिर खनन की ज़िद: लम्बे समय बाद अरावली में कुछ हरियाली लौट रही है लेकिन हरियाणा सरकार के नये इरादे डराने वाले हैं। Photo: India Legal

हरियाणा ने अरावली में खनन के लिये सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी

पर्यावरणविदों के विरोध के बावजूद हरियाणा सरकार ने अरावली में फिर खनन शुरू करने के लिये सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी है। खट्टर सरकार विशेष रूप से फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात ज़िलों में खनन की दिलचस्पी दिखा रही है। अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतश्रंखलाओं में हैं और इसके आसपास जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ रहा है। इसलिये जानकार भू-जल संरक्षण और जैव-विविधता के महत्व को देखते हुये यहां खनन पर आपत्तियां जताते रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2009 में अरावली में माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इस बीच अवैध खनन की शिकायतें आती रही हैं। पिछले कुछ सालों में नागरिक संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों की कोशिशों से अरावली में वन्य जीव और पक्षियों की संख्या बढ़ी है लेकिन सरकार द्वारा फिर से माइनिंग के इरादे नई मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।    

अमीर देश 2030 तक कोयले का इस्तेमाल बन्द करें: गुट्रिस 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने दुनिया के अमीर देशों से अपील की है कि वह इस दशक के अंत तक कोयले का इस्तेमाल बन्द कर दें। गुट्रिस ने ग्रुप-7 देशों से कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के वादे को पूरा करने के लिये वह इस साल जून में होने वाली शिखर वार्ता से पहले या उसमें यह वादा करें। पिछले हफ्ते वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये दिये संदेश में गुट्रिस ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन में कमी करने के जो लक्ष्य रखे गये हैं वह धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। 

गुट्रिस के मुताबिक बिजली उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल बन्द करना 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अकेला सबसे बड़ा कदम होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये पूरी दुनिया में बिजली उत्पादन में कोयले का प्रयोग 2010 के स्तर से 80% कम करना होगा और पेरिस वार्ता में 190 से अधिक देशों ने जो लक्ष्य घोषित किये हैं वह इस ज़रूरत से काफी कम हैं। वेबसाइट क्लाइमेट होम में छपी ख़बर के मुताबिक जापान और अमेरिका जैसे देशों ने अब तक कोयले को खत्म करने का कोई प्लान नहीं बनाया है जबकि जर्मनी 2038 तक कोयले का प्रयोग जारी रखना चाहता है। 

CRZ नियमों का उल्लंघन कर रहे उद्योग मुआवज़ा देकर पा सकते हैं छुट्टी 

सरकार के एक नये आदेश से भारत के संवेदनशील समुद्र तटों को ख़तरा हो सकता है। इस आदेश के बाद पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील समुद्र तटीय क्षेत्र में बिना अनुमति के प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनियां मुआवज़ा देकर बच सकती हैं। इन कंपनियों को संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन के लिये मुआवज़ा देना होगा और वह बन्द नहीं की जायेंगी। सरकार ने एक ऑफिस मेमोरेंडम से इस नियम की घोषणा की है। इससे पहले कंपनियों को काम शुरु करने से पहले अनुमति लेना ज़रूरी था। 

चीन जून में शुरू करेगा ऑनलाइन इमीशन ट्रेनिंग 


साल 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की घोषणा के बाद अब चीन ने कहा है कि वह इस साल कार्बन उत्सर्जन ट्रेडिंग सिस्टम शुरू करेगा।  शंघाई हर शुक्रवार और शनिवार को ट्रेडिंग का आयोजन करेगा जबकि पंजीयन और डाटा एक्सचेंज सेंट्रल ह्यूबे प्रान्त से होगा। संभावना है कि जून के आखिरी हफ्ते में यह ऑनलाइन ट्रेडिंग शुरू होगी। शुरुआत में कोयले और गैस आधारित प्लांट के इमीशन और बड़ी रिफाइनरियों और फैक्ट्रियों के भीतर बने (कैप्टिव) प्लांट के उत्सर्जन की ट्रेडिंग होगी.


वायु प्रदूषण

महंगा सिलिंडर, घर में प्रदूषण: एक नया सर्वे बताता है कि महंगाई ने एलपीजी का इस्तेमाल मुश्किल कर दिया है और इससे इनडोर पॉल्यूशन बढ़ रहा है। Photo: Livelaw

घर के भीतर प्रदूषण: ‘केवल 50% कर रहे रसोई गैस का इस्तेमाल’

रसोई गैस का सिलिंडर महीने भर में 125 रुपये महंगा हो गया है और शहरी झुग्गियों में वह किनारे पड़ा है। जी हां, यहां लोग प्रदूषण करने वाला ईंधन ही जला रहे हैं और इससे इनडोर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। यह बात एक नये सर्वे में सामने आई है जो बताता है कि 6 राज्यों में 86% शहरी झुग्गियों में एलपीजी सिलिंडर है लेकिन केवल 50% परिवार ही उसे इस्तेमाल कर रहे हैं। इन राज्यों में 16% झुग्गियों में लकड़ी, उपले, कोलतार और मिट्टी का तेल ही खाना बनाने के लिये ईंधन के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। यह सर्वे दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, इन्वारेंमेंट एंड वॉटर (CEEW) ने कराया। जिन 6 राज्यों में यह सर्वे किया गया वह हैं उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान। देश की कुल झुग्गियों का करीब एक चौथाई इन राज्यों में ही है। 

उधर सरकार ने संसद में यह जानकारी दी है कि पिछले 7 साल में एलपीजी सिलिंडर की कीमत दोगुनी हो गई है और सब्सिडी हटा ली गई है। इस दौरान पेट्रोल-डीज़ल से टैक्स वसूली भी साढ़े चार गुना बढ़ गई है।  1 मार्च 2014 को दिल्ली में एलपीजी सिलिंडर ₹ 410.50 का था जो बढ़कर अब ₹ 819 का हो गया है।  

दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने 100 से अधिक निर्माण इकाइयों पर लगाया जुर्माना 

दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पिछले दिनों निर्माण और पुराने भवनों को तोड़ने में लगी 447 साइट्स का निरीक्षण किया और इनमें से 106 साइट डस्ट कंट्रोल यानी धूल नियंत्रण के नियमों  का पालन नहीं कर रही हैं। इन सभी साइट्स पर कुल 52 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इनका निरीक्षण 24 दिसंबर और 21 जनवरी की बीच किया गया था। इनमें 44 साइट्स को डस्ट कंट्रोल के पूरे इंतजाम करने तक काम रोकने को भी कहा गया। 

छोटे और बड़े निर्माण क्षेत्रों के लिये दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (डीपीसीसी) की गाइडलाइंस हैं ताकि वायु प्रदूषण न हो। इसमें निर्माण साइट को कवर करने, वाहनों की आवाजाही के लिये ट्रैक बनाने और धूल उड़ने से रोकने के लिये जल छिड़काव जैसे कदम शामिल हैं। 

दिल्ली-एनसीआर में जेनरेटरों पर पाबंदी हटी

आने वाले दिनों में बेहतर एयर क्वॉलिटी के पूर्वानुमान को देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों (गुड़गांव, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद और नोयडा आदि) में डीज़ल जनरेटर के इस्तेमाल पर पाबंदी हटा दी है। हालांकि सीपीसीबी ने दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से यह कहा है वह ख़तरनाक प्रदूषण वाले संभावित स्थानों (हॉट-स्पॉट्स) पर नियमों की कड़ी पालना सुनिश्चित करे।  

दिल्ली में दो स्मॉग टावरों पर काम शुरू 

वायु प्रदूषण पर काबू करने के लिये देश की राजधानी दिल्ली में लगने वाले दो स्मॉग टावरों पर काम तेज़ हो गया है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक इन दोनों ही टावरों के डिज़ाइन तैयार हैं और उन जगहों पर निर्माण भी शुरू हो गया है जहां इन्हें लगाया जाना है। एक टावर दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाबा खड्ग सिंह मार्ग पर तो दूसरा दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर सबसे प्रदूषित रहने वाले स्थानों में से एक आनन्द विहार में लग रहा है। 

इनका डिज़ाइन आईआईटी दिल्ली ने तैयार किया है और नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (एनबीसीसी) इन्हें बनाने का काम कर रहा है।  दोनों ही टावरों की ऊंचाई 25 मीटर होगी। हालांकि जानकार यह सुझाते रहे हैं कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका स्रोत पर प्रदूषण को रोकना है और स्मोग टावर अप्रभावी और खर्चीले शोपीस ही साबित होंगे। 

छोटे शहरों में एयर क्वॉलिटी डाटा की कमी: संसदीय समिति 

संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी हवा को साफ करने के लिये बनाये गये नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम यानी एनसीएपी को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिये नगर निगम स्तर पर क्षमता बढ़ाया जाना ज़रूरी है। पैनल ने यह बात भी कही है कि छोटे शहरों और कस्बों में एयर क्वॉलिटी के समुचित और भरोसेमंद डाटा की कमी है। 

संसदीय पैनल ने कहा है कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत  एयर क्वॉलिटी के मॉनिटरिंग के लिये उपकरण लगाने हेतु जो पैसा दिया जाना है उसे प्राथमिकता के आधार पर आवंटित किया जाये।  मिसाल के तौर पर गुवाहाटी को एनसीएपी के तहत 2019-20 में केवल 20 लाख रुपया दिया  जबकि एक एयर क्वॉलिटी मॉनिटर लगाने में 1.2 करोड़ रुपया लगता है। पैनल ने इस मामले में पारदर्शिता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। 


साफ ऊर्जा 

सुस्त रफ्तार: संसदीय समिति ने कहा है कि सरकार साफ ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने में बहुत पीछे है और इसके बजट में भी लगातार कमी हो रही है | Photo: Council on Foreign Relations

साफ ऊर्जा लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही सरकार: संसदीय समिति

संसदीय समिति ने “साफ ऊर्जा लक्ष्य हासिल कर पाने में लगातार असफल रहने के लिये” केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है। समिति ने कहा है कि वित्त वर्ष 2020-21 में (जनवरी 2021 तक)  साफ ऊर्जा क्षमता केवल 5.47 गीगावॉट बढ़ाई गई जबकि इस साल के लिये लक्ष्य 12.38 गीगावॉट का है। जहां इस साल 9 गीगावॉट के सौर ऊर्जा पैनल लगाये जाने थे जबकि केवल 4.16 गीगावॉट के  ही पैनल लगा पाये। पवन ऊर्जा क्षमता 3 गीगावॉट बढ़ाने का लक्ष्य था लेकिन उसमें 1 गीगावॉट से भी कम की बढ़ोतरी हुई। 

समिति का कहना है कि साल 2019-20 में बजट में 26% की कमी हुई वहीं 2020-21 में 38% की कमी हुई है। संसदीय समिति ने रूफ टॉप सोलर कार्यक्रम (छतों पर सोलर पैनल लगाने) में नाकामी को लेकर सवाल खड़े किये हैं और कहा कि सरकार को सिंगल विन्डो सिस्टम अपनाना चाहिये ताकि इस कार्यक्रम के तहत मिलने वाली सब्सिडी में कम समय लगे और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो। सरकार ने 2022 तक पूरे देश में कुल 40 गीगावॉट रूफ टॉप सोलर का लक्ष्य रखा है लेकिन अभी तक यह क्षमता 4 गीगावॉट से भी कम है। 

अगले 10 साल में सौर ऊर्जा का लक्ष्य 280 गीगावॉट, सोलर मॉड्यूल पर लगेगी 40% कस्टम ड्यूटी 

भारत ने तय किया है कि वह अगले साल (अप्रैल, 2022) से सोलर मॉड्यूल्स (सौर उपकरणों) के आयात पर 40% कस्टम ड्यूटी लगायेगा। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक साफ ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने इस पर मेमो जारी किया है। सोलर उपकरणों पर अभी कोई कस्टम ड्यूटी नहीं है लेकिन घरेलू उत्पादन बाज़ार को बढ़ाने के लिये एक सेफगार्ड कर (टैक्स) लगाया जाता है जो जुलाई में खत्म हो रहा है। 

भारत की सौर ऊर्जा क्षमता अभी 39 गीगावॉट (39,000 मेगावॉट) है।  सरकार ने जो आदेश जारी किया है उसके मुताबिक साल 2030 तक भारत इसे बढ़ाकर 280 गीगावॉट (2,80,000 मेगावॉट) करना चाहता। भारत का लक्ष्य है कि 2022 तक देश की कुल रिन्यूएबिल पावर क्षमता 175 गीगावॉट हो जाये जो कि अभी केवल 93 गीगावॉट है। पेरिस समझौते के तहत साल 2030 तक भारत की कुल रिन्यूएबिल पावर क्षमता को 450 गीगावॉट किया जाना है।  

नई पवन चक्कियों को हरी झंडी में रिकॉर्ड बना: BNEF शोध 

कोरोना महामारी के बावजूद पूरी दुनिया में बहुत सारे नये विन्ड टर्बाइन यानी पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिली है। ब्लूमबर्ग एनईएफ का अध्ययन कहता है कि पिछले साल ऐसे नये प्रोजेक्ट – जिन्हें स्थापित करने के लिये पैसा दिया गया-  में 59% का उछाल हुआ। इनकी कुल क्षमता 96 गीगावॉट है। 

रिपोर्ट कहती है कि साल 2020 में जो नये प्रोजेक्ट मंज़ूर हुये उनकी कुछ क्षमता 96.3 गीगावॉट है जबकि 2019 में 60.7 गीगावॉट के प्रोजेक्ट मंज़ूर हुये। जिन प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिली है उनमें से अधिकतर समुद्र तट पर हैं। समुद्र के भीतर (ऑफ शोर) पवन चक्कियों के नये प्रोजेक्ट्स में 19% कमी आई है। रिपोर्ट कहती है कि 2020 में दुनिया के सभी देशों में पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स की संख्या बढ़ी है लेकिन चीन में सबसे अधिक बढ़ोतरी हुई। चीन ने 2020 में कुल  57.8 गीगावॉट के प्रोजेक्ट मंज़ूर किये। 

यूरोप में पवन ऊर्जा की रफ्तार सुस्त 

उधर यूरोप में पवन ऊर्जा यानी विन्ड एनर्जी उस रफ्तार से नहीं बढ़ रही जो कि यूरोपीय यूनियन द्वारा तय किये गये क्लाइमेट और एनर्जी लक्ष्य हासिल करने के लिये ज़रूरी है। यह बात विन्ड यूरोप नाम एक इंडस्ट्री ग्रुप की रिपोर्ट में कही गई है। यूरोप की 400 कंपनियां विन्ड यूरोप की सदस्य हैं। रिपोर्ट में इस सुस्त रफ्तार के पीछे संयंत्र लगाने के जटिल नियमों को वजह बताया गया है।  

यूरोप की कुल पवन ऊर्जा क्षमता 220 गीगावॉट है। पिछले साल यूरोपीय देशों ने विन्ड एनर्जी की क्षमता में कुल 14.7 गीगावॉट की बढ़ोतरी की। यह कोरोना महामारी से पहले किये गये अनुमान से 19% कम है। समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक यूरोपीय यूनियन के 27 देशों ने 2021 से 2025 के बीच सालाना 15 गीगावॉट पवन ऊर्जा के संयत्र लगाने का लक्ष्य रखा है लेकिन अगर 2030 तक 40% कार्बन इमीशन कट के लक्ष्य को पाना है तो ईयू को अगले 10 सालों में (2021-30) सालाना 18 गीगावॉट विन्ड एनर्जी बढ़ानी होगी। अगर कार्बन इमीशन में 55% कट के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करना है तो फिर सालाना 27 गीगावॉट की पवन चक्कियां लगानी होंगी।  


बैटरी वाहन 

लिस्ट से बाहर: दिल्ली सरकार ने टाटा निक्सोन को फिलहाल बैटरी वाहनों की उस लिस्ट से हटा दिया है जिन्हें खरीदने पर ग्राहक को छूट मिलती है: Photo: CarDekho

दिल्ली सरकार ने टाटा निक्सोन को सब्सिडी लिस्ट से हटाया

दिल्ली सरकार ने साल 2020 में सबसे अधिक बिकने वाली कार, टाटा निक्सोन  को फिलहाल बैटरी वाहनों उस लिस्ट से हटा दिया है जिन पर सब्सिडी मिलती है। यह फैसला एक ग्राहक की शिकायत पर किया गया जिसमें कहा गया कि यह कार कभी भी 200 किलोमीटर की ड्राइविंग रेन्ज को पार नहीं कर पाई जबकि इसे सिंगल चार्जिंग में 320 किलोमीटर चलने वाली बता कर बेचा गया। बैटरी कारों पर 1.5 से 3.0 लाख तक की छूट मिल रही है लेकिन इस फैसले के बाद टाटा निक्सोन की बिक्री घटने की आशंका है। हालांकि टाटा का कहना है कि इस मॉडल की ड्राइविंग रेन्ज को ARAI सर्टिफिकेशन के तहत “आदर्श परिस्थितियों” में तय की गई दूरी माना गया है और  उसके द्वारा ग्राहक की इस शिकायत की जांच कराया जाना बाक़ी है। 

अगले 10 साल में वोल्वो होगी पूरी तरह इलैक्ट्रिक

स्विस कार निर्माता कंपनी वोल्वो ने घोषणा की है कि साल 2030 से वह केवल पूरी तरह इलेक्ट्रिक कारें ही बेचेगी। इस ऐलान के साथ वोल्वो यूरोप की उन बड़ी कंपनियों में शामिल हो गई है जो आईसी इंजन कारों को स्थाई रूप से अलविदा कह रही हैं। वोल्वो ने 2019 में ऐलान किया था कि उसकी सभी कारों में (हाइब्रिड के रूप में) इलैक्ट्रिक मोटर होगी और 2025 तक उसकी 50% बिक्री पूरी तरह से इलैक्ट्रिक कारों की होगी।  वोल्वो का कहना है कि वह हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहनों में निवेश नहीं करना चाहती क्योंकि कंपनी को नहीं लगता कि इन वाहनों में ग्राहकों की कोई दिलचस्पी होगी। 

भारत ने टेस्ला को दिया दुनिया का सबसे किफायती ऑफर 

भारत के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अमरीकी इलैक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला को दुनिया का – चीन से सस्ता – किफायती ऑफर दिया है। शर्त ये है कि टेस्ला अपनी कारों को केवल भारत में एसेंबिल ही न करे बल्कि शुरू से लेकर आखिर तक यहां पर बनाये थी। इसके पीछे सोच है कि टेस्ला भारत से अपनी गाड़ियों को बनाकर दूसरे देशों को निर्यात करे।


जीवाश्म ईंधन

कोयले पर समर्थन: जहां संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सभी देशों से कोयले का प्रयोग बन्द करने की अपील की है वहीं अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी प्रमुख ने भारत द्वारा इसके इस्तेमाल को जायज़ ठहराया है।Photo:Setu Anand on Unsplash

कोयले पर IEA प्रमुख ने भारत का समर्थन किया

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख फतेह बिरोल ने कोयला इस्तेमाल जारी रखने के भारत के इरादों का समर्थन किया है। एक लीडरशिप समिट में उन्होंने यह तर्क दिया कि विकासशील देश उस समस्या से लड़ने के लिये अपने यहां लाखों नौकरियों और आर्थिक वृद्धि की बलि नहीं चढ़ा सकते जिसे अमीर और विकसित देशों ने पैदा किया है। महत्वपूर्ण है कि भारत ने “एनर्ज़ी सिक्योरिटी, स्थायित्व और सस्टेनेबिलिटी” के लिये IEA के साथ हाल में ही में एक एमओयू पर दस्तखत किये हैं और एजेंसी प्रमुख का यह बयान भारत को मिला बड़ा समर्थन है। गृहमंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि साल 2015 तक देश को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में कोयला क्षेत्र अहम रोल अदा करेगा। 

बिरोल ने यह बात ऐसे समय  में कही है जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने सभी देशों से साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की पुरज़ोर अपील की है और कहा है कि वह कोयले की “घातक लत” छोड़ें। वैसे बिरोल ने अपने बयान में यह कहा है कि कोयले का प्रयोग धीरे-धीरे खत्म करने के लिये वैश्विक वित्तीय मदद चाहिये जिसकी मांग गरीब और विकासशील देश करते आ रहे हैं।  

 हंगरी ने 5 साल पहले ही कर देगा कोयला बिजलीघर बन्द!

हंगरी इस बात के लिये तैयार हो गया है कि वह अपना आखिरी कोयला बिजलीघर 2030 के बजाय अब 2025 में ही बन्द कर देगा। हंगरी  ने अब 2030 तक 90% कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है और यह देश अब अपनी सौर ऊर्जा की क्षमता को 6 गीगावॉट बढ़ायेगा जो कि न्यूक्लियर पावर क्षमता से 3 गुना है। अपने आखिरी कोयला बिजलीघर – मात्रा स्थित 884 मेगावॉट का प्लांट – की जगह हंगरी गैस और सोलर एनर्जी पर आधारित पावर प्लांट बना रहा है और जिन मज़दूरों का रोज़गार छिनेगा उन्हें यूरोपियन यूनियन से मुआवज़ा मिलेगा। अब हंगरी का नाम उन छह यूरोपीय देशों – यूके, आयरलैंड, स्लोवाकिया, इटली, पुर्तगाल और फ्रांस – की लिस्ट में जुड़ गया है जो 2025 तक कोल पावर का इस्तेमाल बन्द कर देंगे। 

 बांग्लादेश नौ कोयला बिजलीघरों  को बंद करेगा

बांग्लादेश ने नौ नई कोयला परियोजनाओं को रद्द करने की फैसला किया है। देश में आयातित कोयले की बढ़ती लागत और घटता विदेशी निवेश इसकी वजह हैं। बांग्लादेशी अखबार डेली सन की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के बिजली सचिव हबीबुर्रहमान ने बिजली क्षेत्र की एक मासिक समीक्षा बैठक में 7,461 मेगावाट की संयुक्त बिजली क्षमता के साथ नियोजित कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को हटाने का फैसला किया है।

वर्तमान में बांग्लादेश अपनी जरूरत से अधिक बिजली पैदा करता है। इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) के अनुसार, वर्ष 2019-2020 में बांग्लादेश ने अपने बिजली संयंत्रों की क्षमता का केवल 40% उपयोग किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 43% कम है। भले ही बांग्लादेश  बिजली का उपयोग नहीं करता है लेकिन उसके पावर डेवलपमेंट बोर्ड को पावर प्लांट ऑपरेटरों को महंगी सब्सिडी का भुगतान करना पड़ता है।