अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख फतेह बिरोल ने कोयला इस्तेमाल जारी रखने के भारत के इरादों का समर्थन किया है। एक लीडरशिप समिट में उन्होंने यह तर्क दिया कि विकासशील देश उस समस्या से लड़ने के लिये अपने यहां लाखों नौकरियों और आर्थिक वृद्धि की बलि नहीं चढ़ा सकते जिसे अमीर और विकसित देशों ने पैदा किया है। महत्वपूर्ण है कि भारत ने “एनर्ज़ी सिक्योरिटी, स्थायित्व और सस्टेनेबिलिटी” के लिये IEA के साथ हाल में ही में एक एमओयू पर दस्तखत किये हैं और एजेंसी प्रमुख का यह बयान भारत को मिला बड़ा समर्थन है। गृहमंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि साल 2015 तक देश को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में कोयला क्षेत्र अहम रोल अदा करेगा।
बिरोल ने यह बात ऐसे समय में कही है जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने सभी देशों से साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की पुरज़ोर अपील की है और कहा है कि वह कोयले की “घातक लत” छोड़ें। वैसे बिरोल ने अपने बयान में यह कहा है कि कोयले का प्रयोग धीरे-धीरे खत्म करने के लिये वैश्विक वित्तीय मदद चाहिये जिसकी मांग गरीब और विकासशील देश करते आ रहे हैं।
हंगरी ने 5 साल पहले ही कर देगा कोयला बिजलीघर बन्द!
हंगरी इस बात के लिये तैयार हो गया है कि वह अपना आखिरी कोयला बिजलीघर 2030 के बजाय अब 2025 में ही बन्द कर देगा। हंगरी ने अब 2030 तक 90% कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है और यह देश अब अपनी सौर ऊर्जा की क्षमता को 6 गीगावॉट बढ़ायेगा जो कि न्यूक्लियर पावर क्षमता से 3 गुना है। अपने आखिरी कोयला बिजलीघर – मात्रा स्थित 884 मेगावॉट का प्लांट – की जगह हंगरी गैस और सोलर एनर्जी पर आधारित पावर प्लांट बना रहा है और जिन मज़दूरों का रोज़गार छिनेगा उन्हें यूरोपियन यूनियन से मुआवज़ा मिलेगा। अब हंगरी का नाम उन छह यूरोपीय देशों – यूके, आयरलैंड, स्लोवाकिया, इटली, पुर्तगाल और फ्रांस – की लिस्ट में जुड़ गया है जो 2025 तक कोल पावर का इस्तेमाल बन्द कर देंगे।
बांग्लादेश नौ कोयला बिजलीघरों को बंद करेगा
बांग्लादेश ने नौ नई कोयला परियोजनाओं को रद्द करने की फैसला किया है। देश में आयातित कोयले की बढ़ती लागत और घटता विदेशी निवेश इसकी वजह हैं। बांग्लादेशी अखबार डेली सन की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के बिजली सचिव हबीबुर्रहमान ने बिजली क्षेत्र की एक मासिक समीक्षा बैठक में 7,461 मेगावाट की संयुक्त बिजली क्षमता के साथ नियोजित कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को हटाने का फैसला किया है।
वर्तमान में बांग्लादेश अपनी जरूरत से अधिक बिजली पैदा करता है। इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) के अनुसार, वर्ष 2019-2020 में बांग्लादेश ने अपने बिजली संयंत्रों की क्षमता का केवल 40% उपयोग किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 43% कम है। भले ही बांग्लादेश बिजली का उपयोग नहीं करता है लेकिन उसके पावर डेवलपमेंट बोर्ड को पावर प्लांट ऑपरेटरों को महंगी सब्सिडी का भुगतान करना पड़ता है।
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